आपकी राय
जल संकट के खतरे
जल संकट से आज जिस तरह के हालात बन रहे हैं उससे आने वाले समय में पानी की भयावह स्थिति होगी। बड़ी आबादी के बोझ और पानी के बढ़ते दुरुपयोग के बीच मौसम में बदलाव के साथ-साथ तापमान में बढ़ोतरी से दुनिया की आधी बड़ी झीलों में पानी की कमी होती जा रही है। इस पानी की कमी ने अदृश्य संकट की तरफ इशारा किया है जिसे समझा जाना जरूरी है। उल्लेखनीय है कि नदियों से ज्यादा झीलों के पानी का दैनिक जीवन में उपयोग अधिक होता है। जल संकट के चलते फिर मानव जीवन कितना संघर्षपूर्ण होगा? इससे पहले कि हालात और गंभीर हों, जल पुनर्भरण और उसके जमीनी प्रयास जरूरी हैं।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
भारत से उम्मीदें
छब्बीस मई के दैनिक ट्रिब्यून में पुष्प रंजन का लेख ‘यूक्रेन विवाद सुलझाने में भारत से उम्मीदें’ विषय पर चर्चा करने वाला था! विभिन्न देशों में युद्ध होते रहे हैं और उनको रुकवाने में कुछ महत्वपूर्ण लोगों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बेशक अमेरिका तथा रूस के राष्ट्रपति के साथ मोदी के अच्छे संबंध हैं लेकिन रूस अभी युद्ध रोकने के पक्ष में तैयार नहीं है। अगर पुतिन भारत में जी20 की मीटिंग में आते हैं तो इस बात की संभावना है कि वह दोनों देशों में युद्ध विराम के लिए बातचीत करें।
शामलाल कौशल, रोहतक
उपलब्धि पर गर्व
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने हाल ही में अत्याधुनिक नेविगेशन सैटेलाइट लांच किया। इससे देश का नेविगेशन सिस्टम और मजबूत होगा। वहीं अमेरिकी जीपीएस सिस्टम पर निर्भरता कम होगी। इसके साथ ही चक्रवातों के दौरान मछुआरों, पुलिस, सेना को बेहतर नेविगेशन सिक्योरिटी मिलेगी। भारतीय वैज्ञानिकों ने सराहनीय कार्य किया है। देश के लोगों को अपने वैज्ञानिकों पर गर्व होना चाहिए।
चंद्र प्रकाश शर्मा, रानी बाग़, दिल्ली
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :- dtmagzine@tribunemail.com
बुलंदी पर बेटियां
इस बार की सिविल सेवा परीक्षा के परिणाम में लड़कियों के शानदार प्रदर्शन की खबरें सुर्खियां बनीं। इस परीक्षा परिणाम में पहले चार सर्वोच्च स्थानों पर लड़कियां रहीं। देश की लड़कियों ने यह साबित कर दिया कि अगर इन्हें कैरियर बनाने के लिए लड़कों के समान अधिकार दिए जाएं तो ये कामयाबी की बुलंदियों को अवश्य छू सकती हैं। लड़कियों ने उन संकीर्ण सोच वाले लोगों को आईना दिखाया जो अपनी बेटियों के प्रति संकीर्ण मानसिकता रखते हैं।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
बढ़ते हादसे
आये दिन सड़क हादसों में कई जिंदगियां काल के गाल में समा रही हैं। लेकिन इन सड़क दुर्घटनाओं से वाहन चालक क्या सबक सीख रहे हैं, यह सवाल यथावत खड़ा है। यातायात विभाग द्वारा चालक के गाड़ी चलाने के साथ-साथ दुर्घटना का अंदेशा होने पर हादसों से बचने की सूझबूझ का भी परीक्षण अवश्य ही करना चाहिए। साथ ही वाहन मालिक को फिटनेस की सख्त हिदायत दी जानी चाहिए। यातायात विभाग, पुलिस एवं प्रशासन के साथ आम नागरिकों के संपूर्ण योगदान से ही यह संभव होगा।
विभाष अमृतलाल जैन, पारा झाबुआ
नीति-रीति में बदलाव
कर्नाटक चुनावों में कांग्रेस की विजय उसकी कामयाबी को दर्शाती है। हि.प्र. में कांग्रेस की जीत का कारण भाजपा शासन में महंगाई, बेकारी, गरीबी तथा किसानों की समस्याएं थीं। भाजपा से लोगों के उठते विश्वास व राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से कर्नाटक की जागरूक जनता का भी रुझान बदला है। इसके साथ ही भाजपा का विपक्षी दलों के प्रति रूखा व्यवहार व कांग्रेस की लगातार आलोचना लाभकारी नहीं हो सकती। जनता की समस्याओं का हल करने के बदले में भाजपा विपक्षी नेताओं के खिलाफ सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करके मतदाताओं को बेवकूफ नहीं बना सकती। भाजपा को अपनी नीतियों में परिवर्तन करना होगा।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
आत्ममंथन करे भाजपा
कर्नाटक विधानसभा के चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस यदि संगठित होकर चुनाव लड़े तो उसके लिए अभी भी देर नहीं हुई है। उधर भाजपा को समझ लेना चाहिए कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के भाषणों-रैलियों के सहारे चुनाव जीतने का सिलसिला लंबा चलने वाला नहीं है। लेकिन कांग्रेस को याद रखना चाहिए कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में आप पार्टी को ऐतिहासिक जीत प्रदान करने के बाद मतदाताओं ने लोकसभा चुनावों में सभी सांसद भाजपा के चुने थे। अर्थात् उनके लिए दिल्ली अभी दूर है, और नज़दीक वो तभी आ पाएगी यदि एकजुटता बनी रहे। दूसरी तरफ हारने वाली पार्टी यानी भाजपा के लिए गहन आत्मविश्लेषण का समय है।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल
मतदाता अब सजग
इसे लोकतंत्र की खूबसूरती ही कहा जाएगा कि एक ही दिन में अलग-अलग राज्यों में हुए मतदान में जनता ने अलग-अलग जनादेश दिया गया। उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में भाजपा, पंजाब के उपचुनाव में आम आदमी पार्टी और कर्नाटक में जनता ने कांग्रेस को सत्ता की चाबी थमायी। इससे प्रमाणित हो गया कि सत्ताधीश इसे अपनी बपौती न समझें। कर्नाटक की जनता ने ध्रुवीकरण की राजनीति को नकार दिया। भाजपा ने राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा। परंतु कांग्रेस ने क्षेत्रीय मुद्दों और जनता की समस्याओं के निराकरण के वादों से चुनाव जीता। इस जीत से साबित हो गया कि देश का मतदाता अब जागरूक है।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
खतरे की घंटी
कर्नाटक हो या अन्य किसी भी राज्य के चुनाव, मतदाता की नाराज़गी जायज है। जनता को बेहतर सरकार की आवश्यकता होती है, तभी वहां की जनता ने कर्नाटक में बदलाव लाना ही उचित समझा। कर्नाटक में कांग्रेस की जोरदार वापसी के प्रमुख कारण हैं- बढ़ती महंगाई और जनता से बार-बार कागजात बनवाना। परेशानी के चलते जनता ने कांग्रेस का विकल्प चुना। आज के समय में महंगाई आसमान छू रही है और गरीब वर्ग इस महंगाई और कागजातों में ही सिमट कर रह गया है। बचत की तो बात ही बहुत दूर है। अगर भाजपा जनता के विश्वास पर खरी नहीं उतरी तो इसका खमियाजा आगामी 2024 के चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।
सतपाल, कुरुक्षेत्र
परिवर्तन का मन
कर्नाटक चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए अच्छे हैं। राज्य के मतदाता परिवर्तन का मन बना चुके थे। ऐसे में कांग्रेस को बहुमत देना पसंद किया तथा राज्य से भाजपा को नकारा। भाजपा का बजरंग बली का मुद्दा भी सिरे नहीं चढ़ पाया। कांग्रेस ने चुनाव में धर्मनिरपेक्षता का पालन किया। आगामी लोकसभा व विधानसभा चुनावों में भी राहुल गांधी की पदयात्रा जीत की ऊर्जा बनेगी । यह कांग्रेस के लिए प्राणवायु बन सकती है। कर्नाटक के मतदाता ने राज्य में अलग तरह का जनादेश देकर साबित किया कि सत्ताधीश उसे बपौती मानकर न चलें।
रमेश चन्द्र पुहाल, पानीपत
प्रगतिशील जनादेश
कर्नाटक के चुनावी परिणाम में निवर्तमान सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार और जनहित के मुद्दों के प्रति उदासीनता प्रमुख कारण रहे। कांग्रेस ने जनहित और समाज में सौहार्द बढ़ाने के लिए वैकल्पिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। न्यायसंगत आवश्यकता के अनुसार जाति-समुदाय को वरीयता देने के आश्वासन ने उस जाति- समुदाय को एकमुश्त कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने के लिए प्रेरित किया। राहुल की पदयात्रा तथा जनता के बीच जाकर सीधा संवाद बनाने की कला ने भी मतदाता का दिल जीता। कर्नाटक में जनादेश के मायने हैं कि अब मतदाता की रुचि केवल उन मुद्दों में है जो उसकी रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करते हैं। कथित तौर पर समाज को विभाजित करने वाली बातों में उसकी कोई रुचि नहीं है।
शेर सिंह, हिसार
पुरस्कृत पत्र
कांग्रेस को संजीवनी
प्रजातंत्र में हर चुनाव की अपनी एक प्रकिया है, जिससे लोकतंत्र को मजबूती और ताजगी मिलती है। कर्नाटक में हालिया चुनावी परिणाम कांग्रेस पार्टी के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं हैं। पार्टी के स्थानीय और केन्द्रीय नेताओं की एकजुटता व राहुल गांधी की पदयात्रा भाजपा पर भारी पड़ गई। इस जनादेश के आगामी लोकसभा चुनावों पर असर का आकलन करना अभी जल्दबाजी होगी, क्योंकि सांसद के चुनाव का दृष्टिकोण कुछ अलग होता है। फिर भी कांग्रेस पार्टी का जोश अगले लोकसभा चुनाव में जरूर सातवें आसमान पर रहेगा।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
बहिष्कार का औचित्य
विपक्ष का नये संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार का ऐलान न सिर्फ निन्दनीय बल्कि हास्यास्पद भी है। कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों की मांग है कि संसद के नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराया जाए। विपक्ष का कहना है कि यह उद्घाटन राष्ट्रपति के हाथों न करवाना राष्ट्रपति का घोर अपमान है। कैसी विडम्बना है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ‘गलत संबोधन’ कर अपमानित करने वाली पार्टी को आज राष्ट्रपति के सम्मान का बोध सता रहा है। इसी तरह तृणमूल कांग्रेस के एक नेता ने राष्ट्रपति पर अवांछित टिप्पणी की थी। ऐसे में नये संसद भवन के उद्घाटन समारोह के बहिष्कार की विपक्षी दलों की घोषणा का असल मकसद आसानी से समझा जा सकता है।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल
निरर्थक मुद्दा
प्रधानमंत्री 28 मई को नये संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। लेकिन कुछ विपक्षी दल चाहते हैं कि नये संसद भवन परिसर का उद्घाटन राष्ट्रपति के कर कमलों द्वारा हो। विपक्ष को इसे अनावश्यक बहस का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। संसद भवन उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार संबंधित खबरें बेहद निराशाजनक हैं। आखिर भारत की संसद देश की सबसे बड़ी पंचायत है। विरोध तो जायज हो सकता है लेकिन ‘लोकतंत्र के मंदिर संसद’ का बहिष्कार किसी भी स्तर पर जायज नहीं है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, देवली, दिल्ली
क्षुद्र राजनीतिक हमला
नये संसद भवन का प्रधानमंत्री के हाथों उद्घाटन न होने की जिद कर रहे विपक्षी दलों में से अनेक वे हैं, जिन्होंने राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी के रूप में द्रौपदी मुर्मू का विरोध किया था। इन दिनों राष्ट्रपति के मान-सम्मान की चिंता में दुबले होने का दिखावा कर रहे दलों में से कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने बजट स्तर में उनके अभिभाषण का बहिष्कार किया था। इसमें संदेह नहीं कि विपक्षी दल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बहाने प्रधानमंत्री मोदी पर क्षुद्र राजनीतिक हमला कर रहे हैं।
चंद्र प्रकाश शर्मा, दिल्ली
गरिमा का हो सम्मान
चौबीस मई के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘मूल्यों-आदर्शों के प्रतीक बनें जनतंत्र के मंदिर’ नये संसद भवन का उद्घाटन करने के विवाद को लेकर विपक्षी दलों द्वारा बहिष्कार किए जाने पर चर्चा करने वाला था। नये संसद भवन का उद्घाटन कौन करता है, इसके मुकाबले में यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि क्या संविधान, लोकतंत्र तथा संसद की गरिमा, परंपरा, मूल्यों तथा आदर्शों के अनुसार संसद में कार्यवाही होती है या नहीं। पिछले कुछ सालों में हमारी संसदीय कार्यवाही में लगातार गिरावट आयी है। संसद के भीतर होने वाली बहस का स्तर गिरा है। यह न केवल अलोकतांत्रिक है बल्कि संविधान तथा लोकतंत्र के मंदिर की गरिमा का भी अपमान है।
शामलाल कौशल, रोहतक
प्रेरक सफलता
इक्कीस मई के दैनिक ट्रिब्यून लहरें अंक में अरुण नैथानी का ‘तीसरे नेत्र से बैंकिंग, अब शोध को आतुर’ साक्षात्कार धनीराम की संघर्षशील कथा-व्यथा आयामों को छूने की अनूठी मिसाल प्रेरणादायक रही। मानव जीवन में दिव्यांगता चुनौतियों का सामना करने हेतु ढाल साबित होती है। धनीराम के अधिक से अधिक उच्चतर शिक्षा प्राप्ति की तलब का कथन ‘चिराग की रोशनी का मुकाबला चिराग से होता है।’ सरकार को दिव्यांग जनों की मदद के लिए और सुविधाएं प्रदान करने की जरूरत है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
धोनी की चमक
महेन्द्र सिंह धोनी की अगुआई में चेन्नई सुपर किंग्स दसवीं बार आईपीएल के फाइनल में पहुंच गयी है। एक अच्छी टीम का चयन करना हमेशा से कप्तान धोनी की खासियत रही है। मैच के दौरान वो स्टंप्स के पीछे से लगातार खेल को चलाते रहते हैं तथा अपने गेंदबाज़ों को वक़्त-वक़्त पर उचित सलाह देते हैं। यही कारण है कि उनकी कप्तानी में कई युवा खिलाड़ी निरंतर रूप से बेहतर प्रदर्शन करते आए हैं। तुषार देशपांडे एवं मथीशा पथिराना जैसे युवाओं ने उम्दा गेंदबाज़ी का परिचय दिया है।
तुषार आनंद, पटना, बिहार
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कश्मीर का संदेश
जम्मू कश्मीर में जी-20 पर्यटन कार्य समूह की तीन दिवसीय बैठक का शानदार आगाज किया जा चुका है। 60 देशों के प्रतिनिधियों ने भारत में पर्यटन की संभावनाओं और विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर की खूबसूरती और पर्यटक स्थलों को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम तैयार किये हैं। केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के अथक प्रयासों द्वारा विश्व मानचित्र पर जम्मू-कश्मीर को अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन केन्द्र के रूप में तैयार करने का बीड़ा उठाया गया है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत में पर्यटन की जितनी संभावनाएं हैं ऐसी विश्व में कहीं भी दिखाई नहीं देती।
वीरेंद्र कुमार जाटव, देवली, दिल्ली
कचरा होती जिंदगी
कचरा मानव के लिए त्रासदीदायक है। इसके ढेर जहां गंदगी पैदा करते हैं वहीं लाइलाज बीमारियों को न्योता भी देते हैं। बीते सालों के कटु अनुभव के बाद अब कचरा प्रबंधन के प्रति राज्यों की मानसिकता बदली है। ‘मेरी लाइफ मेरा स्वच्छ शहर भारत अभियान’ के तहत कचरा निस्तारण की पहल सराहनीय है। इस योजना के अंतर्गत शहर के हर वार्ड में आरआरआर सेंटर की स्थापना से उपयोगी चीजों को कचरे में जाने से रोकने की पहल होगी। इस दिशा में आगे जमीनी प्रयासों की जरूरत है जो कचरे के ढेरों से मुक्ति दिला सके।
अमृतलाल मारू, इन्दौर, म.प्र.
नोट वापसी
दो हजार के नोट बदलने के लिए बैंक खुलने से पहले लोग बाहर खड़े नजर आ रहे हैं। शहरों में कई जगह नोट बन्द होने को लेकर अफवाहें हैं। वैसे रिजर्व बैंक ने अधिसूचना जारी करके चार महीने का वक्त दिया है। लेकिन लोगों में दो हजार के नोट बंद होने की अफवाह से बैंकों के बाहर भीड़ जमा होने लगी है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी भीड़ देखने को मिल रही है। उसका कारण यह है कि गांवों पर एक बैंक उपलब्ध है।
कांतिलाल मांडोत, सूरत
संघीय ढांचा प्रभावित
बाईस मई के दैनिक ट्रिब्यून में गुरबचन जगत का ‘सुशासन में बाधक केंद्र-राज्य टकराव’ लेख केंद्र तथा दिल्ली सरकार के बीच शक्तियों के बंटवारे के आपसी टकराव का विश्लेषण करने वाला था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में प्रशासन सुचारु ढंग से चलाने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति, ट्रांसफर आदि का काम दिल्ली सरकार के पास रखने को कहा है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में केंद्र सरकार जीएसटी द्वारा राज्यों की मौद्रिक शक्ति को अपने पास रखकर उन्हें आर्थिक शक्ति से वंचित कर रही है। ऐसी गतिविधियों से लोकतांत्रिक संघीय ढांचा कमजोर हो रहा है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
कर्नाटक का जनादेश
उन्नीस मई के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘कर्नाटक के जनादेश का लोकतांत्रिक संदेश’ कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार का विश्लेषण करने वाला था। भाजपा 2014 में लोगों को राष्ट्रवाद, आदर्शवाद और नई सोच के आश्वासन के बाद भारी बहुमतों से चुनाव जीती थी। इस बीच भाजपा ने हिंदुत्व, विक्टिम कार्ड के सहारे प्रचार करना शुरू किया था। कर्नाटक चुनाव में लोगों ने भ्रष्टाचार, महंगाई, गरीबी के मुद्दों पर भाजपा को सबक सिखाया है।
शामलाल कौशल, रोहतक
प्रकृति से सामंजस्य
किसान प्रकृति के सबसे नजदीक होता है और प्रकृति को पोसता है, किन्तु स्वार्थवश उसके द्वारा की गई कुछ भूलें प्रकृति को भारी नुकसान पहुंचा रही हैं। लापरवाही से की गई तारबंदी पेड़ों को अत्यधिक कष्ट देती है। सड़कों के साथ-साथ खड़े वृक्ष इस जकड़न के शिकार हो रहे हैं। किसान अपने खेतों की तारबंदी करते समय कांटेदार अथवा धारदार तारों को बांधने के लिए नए खूंटे गाड़ने की बजाय हरे-भरे पेड़ों के चारों तरफ लपेट देते हैं। कुछ समय बाद ये तार पेड़ों के अंदर धंस जाते हैं और पेड़ के विकास को बाधित करते हैं।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
मिठास की घातकता
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा शुगर के कथित विकल्प वाली मिठास को लेकर आगाह किया गया कि ये चीजें विज्ञापनों में दर्शाए गए परिणाम नहीं देती। बल्कि इनके लगातार सेवन से गंभीर रोगों का खतरा रहता है। देश में कई ऐसी वस्तुओं पर प्रतिबंध नहीं जिन पर विदेशों में उनके हानिकारक प्रभावों के कारण रोक है। संबंधित विभाग की निगरानी इतनी सख्त नहीं कि वे हर विज्ञापन की सत्यता को परख कर उसे बंद करवा सकें। बेहतर है जनता खुद जानकारी प्राप्त इनका सेवन करे।
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म.प्र.
संतुलन जरूरी
बाईस मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाने का उद्देश्य पर्यावरण और प्रकृति के बीच संतुलन रखना भी है। धरती पर असंख्य जीव जंतु और पेड़-पौधे हैं, जो एक दूसरे से अलग-अलग व परस्पर निर्भर हैं। इंसान ने भौतिकतावाद की अंधी दौड़ में अन्य प्राणियों के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
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दूर रखा जाये
हर खेल में, चाहे क्रिकेट, फुटबाल या हॉकी हो या फिर ओलंपिक का कोई खेल हो सभी में, राजनीतिक हस्तक्षेप इतना अधिक हो गया है कि योग्य खिलाड़ियों को मौका नहीं मिल पाता है। इस राजनीतिक वर्चस्व से मुक्ति के लिए इन खेलों में सिर्फ भूतपूर्व खिलाड़ियों को ही बागडोर देनी होगी। राजनेताओं को इन सबसे दूर रखना होगा। सरकार को यह नियम बनाना ही होगा कि किसी भी खेल संघ में कोई भी राजनेता अथवा उसके परिवार का व्यक्ति किसी भी पद पर आसीन न हो। तब ही खेल संघ को तमाम सुविधाएं जैसे आर्थिक सहायता, मैदानी सुविधाएं इत्यादि मिल पाएंगी।
भगवानदास छारिया, इंदौर
खिलाड़ी ही संभाले
देश के विभिन्न खेल संघों पर राजनेताओं का दबदबा आजादी के बाद से ही चला आ रहा है। वरिष्ठ खिलाड़ियों अथवा प्रशिक्षुओं के पास ही खेल संघों की कमान होनी चाहिए न कि किसी राजनेता के पास। जिस संगठन में राजनीति का प्रवेश हो जाता है वहां भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार का होना लाजिमी है। देश को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं में जनसंख्या के अनुरूप पदक नहीं मिल पाते। अंतर्राष्ट्रीय साख कायम रखने के लिए खेलों में पारदर्शिता कायम रखना अब आवश्यक हो गया है। खेल संगठनों की बागडोर केवल खेल जगत से जुड़े व्यक्तियों के पास ही होनी चाहिए।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
गुणवत्ता में गिरावट
यह देश और युवा खिलाड़ियों के लिए बहुत ही गलत है कि खेल संघ में भी राजनीतिक वर्चस्व कायम है। खेलों में राजनीतिक वर्चस्व कायम होने के कारण ही शायद देश फीफा या अन्य खेलों के अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उतना कामयाब नहीं है, जितना होना चाहिए। हालांकि क्रिकेट में फिर भी कुछ अच्छे प्रदर्शन देखने को मिल जाते हैं, जबकि देश में हरेक खेल, वो चाहे राष्ट्रीय खेल हॉकी हो, फुटबॉल हो या और दूसरे खेल हों, के अनमोल हीरे छुपे रुस्तम हो सकते हैं। बस जरूरत है उनकी तलाश करने की, उन्हें आगे लाने की और मौका देने की।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
कानून बने
देश में खेल संगठनों पर राजनेताओं का ही दबदबा रहा है। उनका यह हस्तक्षेप खिलाड़ियों के विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं की चयन प्रक्रिया को प्रभावित करता है। इसके अतिरिक्त जब विदेशों में खेल आयोजित होते हैं तो खिलाड़ियों के दल के साथ राजनेता भी जाते हैं जिनका खेलों की गुणवत्ता व पारदर्शिता से कोई संबंध नहीं होता। अतः जरूरी है कि खेल संघों को राजनीतिक वर्चस्व से मुक्त करने के लिए कानून बनाया जाना चाहिए जिसमें यह प्रावधान हो कि खेल संघों के मुखिया वही लोग बनें जो राष्ट्रीय या अंतराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी या कोच आदि रहे हों।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
न्यायपालिका का हस्तक्षेप
देश के तमाम खेल संगठनों पर राजनेताओं ने कब्जा कर रखा है। क्या एक राजनेता खेल की बारीकियों को समझ सकता है? क्या एक राजनेता खिलाड़ियों के सामने आने वाली परेशानियों को समझ कर उसका निदान कर सकता है? शायद कदापि नहीं। खेल संगठनों पर हमेशा ही खेल से जुड़ी हस्तियों को ही विराजमान होना चाहिए। भविष्य में खेल संगठनों पर कोई राजनेता काबिज न हो, ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए। राजनेताओ से ऐसी पारदर्शिता की उम्मीद कभी नहीं की जा सकती। न्यायपालिका को इस मामले में हस्तक्षेप करना होगा।
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम
मुक्ति जरूरी
देश में खेल संगठनों पर राजनेताओं या उनके परिवार के सदस्यों का नियंत्रण रहा है। खिलाड़ियों के चुनाव, प्रशिक्षण, कोच की नियुक्ति, अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में प्रतिनिधित्व आदि मामलों में खेल संगठनों पर काबिज राजनेता लोग ही फैसला करते रहे हैं। ऐसे लोग खेल संगठनों के लिए आवंटित राशि का दुरुपयोग भी कर सकते हैं। विभिन्न खेल संघों के अध्यक्ष के लिए अनुभवी, प्रशिक्षित, चरित्रवान तथा खेलों की जानकारी रखने वाले खिलाड़ियों की ही नियुक्ति करनी चाहिए। राजनेता लोग तो खेल अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में खिलाड़ियों के प्रोत्साहन के लिए नहीं बल्कि सैर-सपाटे के लिए जाते हैं। खेल संघों को राजनेताओं से मुक्ति मिलनी चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
पुरस्कृत पत्र
पुराने खिलाड़ी आएं
आज राजनीति जीवन का एक अभिन्न अंग बन गई है। गांव के गली-मोहल्ले से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक संगठनों में सफेदपोशों की घुसपैठ है। ऐसे में प्रतिष्ठित और मलाईदार संगठन कैसे अछूते रह सकते हैं। देखा जाए तो राजनीति के कारण ही खेल संगठनों का कबाड़ा हुआ है। महिला पहलवानों ने संघ अध्यक्ष के खिलाफ जिस तरह का प्रदर्शन किया इसके मद्देनजर सरकार को फैसला लेना होगा। तमाम खेल संघों पर जिस तरह राजनीतिक मोहरे सरकार ने फिट कर रखे हैं उन्हें खेल हित में हटाकर उनकी जगह निवर्तमान खिलाड़ियों को जवाबदेही देना चाहिए। जिससे खिलाड़ियों को सीनियरों के अनुभव के लाभ के साथ ही दलगत राजनीति से मुक्ति मिले।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
एक बार विनोबा भावे भारत के कोने-कोने में जाकर मेहनत और उदारता से दान की अलख जगा रहे थे। एक कस्बे में गये। एक चर्मकार का पुत्र उनसे तरह-तरह के संवाद करने लगा। किशोरावस्था को पार कर चुका वह युवा विनोबा जी से खूब बहस कर रहा था। उसका मूल प्रश्न था कि वो अपना खानदानी काम नहीं करना चाहता था। विनोबा से उसने कहा था कि यह बेहद ऊबाऊ काम है। अब अगले दिन विनोबा ने ठीक उसके पिता के बगल में बैठकर खुद जूते तथा चप्पल की मरम्मत का काम किया। चर्मकार का पुत्र दंग था कि विनोबा पूरे उत्साह और खुशी से वह काम कर रहे थे। शाम को विनोबा से वह फिर पूछने लगा कि मैं इसमें आनंद कैसे पा सकता हूं। विनोबा ने कहा कि कोई काम तब तक उत्साह नहीं देता जब तक कि उसके मूल में सेवा और लगाव का भाव न हो। इसलिए अपने हर काम को पूजा समझो और उससे प्यार करो। फिर, यह प्यार कब आनंद उत्सव बन जाता है। तुमको पता भी नहीं चलेगा। प्रस्तुति : पूनम पांडे
आत्मघात का कदम
वर्ष 2021 में देश में आत्महत्या करने वालों में 25.6 प्रतिशत दिहाड़ीदार मज़दूर थे। वहीं आत्महत्या करने वाले लोगों में एक बड़ा वर्ग उन लोगों का था जो सेल्फ-एम्प्लॉयड थे यानी जिनका ख़ुद का रोज़गार था। ग़ौरतलब है कि इस रिपोर्ट में खेतिहर मज़दूरों की गिनती दिहाड़ीदार मज़दूरों से अलग की गई है और उन्हें ‘कृषि क्षेत्र में लगे व्यक्तियों’ की श्रेणी के तहत वर्गीकृत किया गया है। ‘कृषि क्षेत्र में लगे व्यक्तियों’ की श्रेणी में वर्ष 2021 में 10,881 लोगों ने आत्महत्या की। इनमें से 5,318 किसान और 5,563 खेतिहर मज़दूर थे। सवाल उठता है कि आत्महत्या की कोई भी वजह रही हो लेकिन यह चिंता का विषय है। ऐसे में आत्महत्या के कारणों को जानना जरूरी है। उनके निदान के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
शैलेन्द्र चौहान, प्रतापनगर, जयपुर
सेहत का साथी
सोलह मई के दैनिक ट्रिब्यून में दीप्ति अंगरीश का लेख ‘रोज एक चम्मच घी से इम्यूनिटी में मजबूती’ देसी घी के प्रयोग के लाभों की जानकारी देने वाला था। वैज्ञानिकों ने भी गाय का घी रोज प्रयोग करने से पाचन क्रिया, बीमारियों से लड़ने आदि की समस्या दूर करने में सहायता करने की बात कही है। व्यायाम करने वाले या पहलवान लोग देसी घी को नियमित तौर पर प्रयोग करके अपनी ताकत बढ़ाते हैं। आजकल बाजार में मिलावटी देसी घी बिक रहे हैं, उसके बदले में अगर घर में मलाई से देसी घी बनाकर खाया जाए तो ज्यादा उपयोगी होगा।
शामलाल कौशल, रोहतक
ज़िंदगी को हौसला
चौदह मई के दैनिक ट्रिब्यून अध्ययन कक्ष अंक में प्रभा पारीक की ‘हौसला’ कहानी दिल की गहराइयों में उतरने वाली रही। कथा नायक प्रतीक द्वारा मेहनत से प्राप्त उच्च पद पर नियुक्ति असहाय मां के सपनों को साकार करती हुई प्रेरणा का स्रोत है। संस्कारी, होनहार प्रतीक अपने पद की गरिमा नैतिक मूल्यों को बनाए रखने में जरा भी विचलित नहीं होता। कहानी का सुखांत कथानक की प्रासंगिकता को सार्थक बनाता है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
बेरोजगारी की मार
देश में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या बन चुकी है। पिछले कई वर्षों से देश में बेरोजगारी की दर 7 प्रतिशत से ऊपर ही रही है। यह भयावह वाली स्थिति है। युवाओं को बड़े पैमाने पर रोजगार चाहिए लेकिन सरकारी नौकरियां बेहद कम हैं। सरकार की निजीकरण की नीति के कारण भी नौकरियां लगातार घटती जा रही हैं। रेलवे से लेकर जहाजरानी मंत्रालय एवं दूरसंचार मंत्रालय हो, सभी जगह कटौती की गई है। सरकार ने जरूर कौशल विकास योजना के माध्यम से निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने का बीड़ा उठाया हुआ है लेकिन यह नाकाफी है। हालांकि ठेकेदारी व्यवस्था के माध्यम से भी लाखों नौकरिया उपलब्ध हैं लेकिन यहां शोषण की बड़ी मार पड़ती है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, देवली, दिल्ली
चलने का हक
पंजाब देश का ऐसा पहला राज्य बना है, जहां लोगों को ‘राइट टू वाक’ अधिकार मिलेगा। राज्य सरकार ने बाकायदा इसके लिए सड़कों के निर्माण के समय फुटपाथ और साइकिल ट्रैक बनाना अनिवार्य कर दिया है। इस तरह के निर्माण से फुटपाथ और साइकिल सवार सुरक्षित रह सकेंगे। जरूरत इस बात की है कि दोनों ही ट्रैक इस तरह बनाये जाएं कि उनमें दुपहिया चार पहिया वाहनों से दुर्घटना का अंदेशा न रहे। इस तरह के निर्माण पूरे देश में किए जाने चाहिए जिससे नागरिकों के अधिकारों का उपयोग हो सके।
अमृतलाल मारू, इन्दौर, म.प्र.
बचत को चपत
देश में साइबर क्राइम के मामले बढ़ते जा रहे हैं। साइबर अपराधी हर नया हथकंडा अपनाकर लोगों को चूना लगाने की कोशिश कर रहे हैं। मोबाइल, ईमेल, व्हाट्सएप और अन्य इंटरनेट के जरिए मैसेज या लिंक भेजकर साइबर अपराधी लोगों को लूट रहे हैं। लोगों को चाहिए कि वे किसी के भी झांसे में न आयें। साइबर अपराधी की धोखाधड़ी से बचने के लिए स्वयं भी जागरूक होना पड़ेगा।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
नीति-नीयत का सवाल
आज भारतीय राजनीति में सेक्युलरिज्म का अर्थ अल्पसंख्यकों का व्यापक तुष्टिकरण से है। कर्नाटक चुनाव में भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत वास्तव में तुष्टिकरण पर आधारित है। कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण का खेल इस तरह से खेला कि उसे उसका भरपूर फायदा मिला। जिसमें उसे अब कर्नाटक के रूप में एक तिनके का सहारा मिल गया है। बीते आठ सालों में यह जीत कांग्रेस के लिए बहुत मायने रखती है। आज का मतदाता गोलमोल एवं दोहरी बातें बिल्कुल पसंद नहीं करता। उसे नीति एवं नीयत में सर्वथा स्पष्ट तथा इरादों में अटल नेता चाहिए।
समराज चौहान, गुवाहाटी, असम
खतरे बताएं
सत्रह मई के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘खिलौना नहीं मोबाइल’ पढ़ा। माता-पिता बच्चों को खिलौने के तौर पर मोबाइल फोन दे देते हैं। लेकिन वे इस बात से बेखबर हैं कि इसका बच्चों पर क्या असर पड़ रहा है। छोटा बच्चा उत्सुकतावश उसके साथ खेलता है। वे इसके दुष्परिणामों के बारे में नहीं जानते। बच्चों में लगातार मोबाइल इस्तेमाल करने से आपराधिक हिंसक मानसिकता जन्म ले रही है। आंखों तथा दिमाग पर मोबाइल के निरंतर प्रयोग का बुरा प्रभाव पड़ रहा है। बेशक मोबाइल के बहुत सारे लाभ भी हैं लेकिन मोबाइल के निरंतर प्रयोग से बच्चों, युवकों, स्त्रियों तथा बुजुर्गों को जागरूक करने की आवश्यकता है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
संभलने का वक्त
भाजपा को आने वाले चुनावों में यदि जीत हासिल करनी है तो जिन भाजपा शासित राज्यों में किसी भी नेता, मंत्री के खिलाफ शिकायतें मिलती हैं, उसका निदान करना होगा। कर्नाटक में यह गलती हो चुकी है। लोगों में बोम्मई सरकार के खिलाफ काफी असंतोष था, जगह-जगह सीएम के खिलाफ पोस्टर लगे हुए थे। मोदी ने वोटरों को रिझाने की कोशिश भी की लेकिन सफलता नहीं मिली। हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक का भी हाथ से जाना नि:संदेह भाजपा को अपनी रणनीति बदलने पर सोचने के लिए विवश करेगा।
भगवानदास छारिया, इंदौर
महंगाई का करंट
पंजाब सरकार ने बिजली दरों में बढ़ोतरी कर दी। हालांकि सरकार ने हर महीने 300 यूनिट मुफ्त को जारी रखा हुआ है। सरकार ने बिजली की दरों में जो बढ़ोतरी की है, इससे अब लोग बिजली का प्रयोग शायद बहुत सोच-समझकर करेंगे। और भी सरकारों ने मुफ्त बिजली का भी प्रावधान किया है, हालांकि यह कुछ यूनिट तक ही है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं की बिजली का दुरुपयोग किया जाए। बिजली का दुरुपयोग पर्यावरण के लिए तो हानिकारक है ही, साथ ही सरकारी खजाने पर नकारात्मक असर पड़ता है, जिसकी भरपाई सरकारें महंगाई बढ़ाकर हम से ही करती हैं।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
मंथन जरूरी
कर्नाटक के चुनाव परिणामों ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा की चुनावी तैयारियों की पोल खोल कर रख दी है। हिमाचल के बाद अब कर्नाटक भी उसके हाथ से निकल गया है। वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा के चलते जिस तरह भाजपा में असंतोष उभर रहा है, वह आने वाले किसी बड़े बदलाव का संकेत है। इस साल राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के साथ ही मिजोरम और तेलंगाना में भी चुनाव होने हैं और 2024 में लोकसभा चुनाव है। ऐसे में पार्टी को क्या हासिल होना है, इस पर मंथन जरूरी है।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
मकसद पर सवाल
महिला पहलवानों द्वारा जारी जंतर-मंतर पर प्रदर्शन ग्लोबल प्रचार तंत्र का हिस्सा बनने वाला है। यहां प्रश्न खड़ा होता है कि क्या यह उचित है? क्या देश के प्रश्नों को हम विश्व पटल पर रख कर कुछ हासिल कर पाएंगे? विदेशी पहलवानों को शामिल करते हुए क्या भारत में कुश्ती संघ के प्रश्नों का हल निकल पायेगा। समाचार पत्रों की सुर्खियां इस बात का संकेत दे रही हैं कि पहलवानों का सब्र भी टूटता जा रहा है। इससे न देश का और न ही कुश्ती संघ का भला होगा और पहलवानों को भी न्याय नहीं मिल पाएगा।
वीरेंद्र कुमार जाटव, देवली, दिल्ली
आदर्शों का हनन
बारह मई के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘चुनावी जंग में मूल्यों-आदर्शों का हनन’ कर्नाटक विधानसभा चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव आचार संहिता की धज्जियां उड़ाने का वर्णन करने वाला था। इन विधानसभा चुनावों में सत्तापक्ष द्वारा ध्रवीकरण करने का यत्न किया गया। कांग्रेस ने भी बजरंग दल पर पाबंदी लगाने का आश्वासन दिया। दरअसल बात सिर्फ चुनाव जीतने की नहीं है बल्कि देश की एकता, अखंडता, तथा भाईचारे को बचाए रखने की भी है, जिसकी परवाह किसी भी दल ने कर्नाटक विधानसभा चुनावों में नहीं की। वहीं धर्म अथवा जाति के नाम पर वोट मांगना लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।
शामलाल कौशल, रोहतक
गृहयुद्ध जैसी स्थिति
पाकिस्तान में बीते दिनों इमरान खान को जिस तरीके से गिरफ्तार किया गया उसे लेकर जनता सड़कों पर उतर आई। पहले ही कंगाली से जूझ रहे पाक में दंगे भड़कने से गृहयुद्ध की स्थिति उत्पन्न होती नजर आयी। असल में, वर्तमान सरकार और सेना मिलकर इमरान की चुनौती समाप्त करना चाहते हैं। यदि ऐसे ही पाकिस्तान की सड़कों पर अराजकता जारी रही तो सेना को सत्ता हथियाने का मौका मिल सकता है।
सुभाष बुड़ावनवाला, रतलाम, म.प्र.
जिम्मेदार बनें
भारत का दुनिया में बड़ी आबादी वाला देश बनना खुशी नहीं बल्कि चुनौती है। अगर हमारे देश की आबादी यूं ही निरंतर बढ़ती रही तो वह दिन दूर नहीं जब देश को इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा। बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने के लिए सरकार हस्तक्षेप करे या न करे लेकिन परिवार नियोजन प्रत्येक नागरिक की खुद की जिम्मेदारी होनी चाहिए। यह सभी को पता होना चाहिए कि छोटा परिवार सुखी परिवार, बच्चे दो ही अच्छे। प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी या जागरूकता देश के लिए वरदान साबित हो सकती है। इसलिए अपनी जिम्मेदारी समझें ताकि देश बिना किसी समस्या के विकास के पथ पर अग्रसर हो।
सतपाल, कुरुक्षेत्र
छोटा परिवार देशभक्ति
लगातार बढ़ती आबादी की वजह से प्राकृतिक संस्थानों पर दबाव पड़ता है। जनसंख्या की वजह से आवास, परिवहन, स्वास्थ्य और शिक्षण आदि मूलभूत सुविधाओं को भी पूरा करना मुश्किल हो जाता है। बेरोजगारी पहले से ही एक ज्वलंत समस्या है। जागरूकता प्रसार में केंद्र और राज्य सरकारें पहल कर सकती हैं। लोगों में यह भावना होनी चाहिए छोटा परिवार रखना भी एक तरह से देश भक्ति ही है। सरकार सहित राजनेताओं नीति निर्माताओं और आम नागरिकों, सभी को साथ मिलकर एक बड़ी नीति जनसंख्या वृद्धि रोकने की बनानी होगी।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
तंत्र का हस्तक्षेप
घर में बच्चे का जन्म लेना अपार खुशी की बात है। लेकिन अधिक बच्चे पैदा करना आज के समय में तर्कसंगत नहीं है। छोटा परिवार सुखी परिवार की नीति जांची-परखी है। भारत में सबसे घनी आबादी न केवल जीवनयापन के संसाधनों को जल्दी चट करेगी बल्कि बेरोजगारी व महंगाई से भी रूबरू करवाएगी। इस चुनौती से निपटने के लिए हमें परिवार नियोजन के साधनों का बेझिझक इस्तेमाल कर, बच्चे दो ही अच्छे के नारे पर सख्ती से अमल करने की जरूरत है। वरना तंत्र को मजबूरन हस्तक्षेप करना पड़ेगा।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
चिंतन जरूरी
बढ़ती आबादी देश के लिए चुनौती है। दुर्भाग्य की बात क्या होगी जब दुनिया में सबसे पहले परिवार नियोजन की बात करने वाला देश दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया। यदि हम जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार पर रोक नहीं लगा पाए तो भावी पीढ़ी के लिए रोजगार, राशन व स्वच्छ पर्यावरण का संकट पैदा हो जाएगा। इसलिए बढ़ती जनसंख्या को लेकर चिंता नहीं बल्कि चिंतन करने की आवश्यकता है। सरकार को जनसंख्या नियंत्रण कानून यथाशीघ्र लागू करने पर मंथन करना चाहिए। देखने में आता है कि यदि देश में रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं तो जनसंख्या दबाव महसूस नहीं होता।
सोहन लाल गौड़, कैथल
नियमन तंत्र बने
वर्तमान में भारत विश्व में सर्वाधिक आबादी वाला देश बन गया है। इसके कारण बेरोजगारी, निर्धनता, कुपोषण, आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा, रहन सहन के स्तर और अवसंरचना जैसी अनेकानेक गंभीर समस्याएं पैदा हुई हैं। ‘हम दोनों एक हमारा एक’ की नीति को अपनाते हुए प्रत्येक दम्पति को केवल एक संतान की उत्पत्ति करनी होगी। संतान संयम हेतु प्रचलित आधुनिक वैज्ञानिक कृत्रिम निरोधकों का उपयोग नि:संकोच करना चाहिए। छोटे परिवार के लाभों तथा गर्भ निरोधक उपायों पर विशेष बल दिया जाना चाहिए। आवश्यकता होने पर राष्ट्रीय स्तर पर वैधानिक प्रावधानों का संशोधन कर आबादी पर नियंत्रण के लिए भविष्योन्मुखी तंत्र विकसित करना होगा।
राजीव चन्द्र शर्मा, अम्बाला छावनी
समय रहते निदान हो
सीमित संसाधन, सीमित अवसर, सीमित भूमि क्षेत्रफल, सीमित स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ बढ़ती जनसंख्या एक बड़ी चुनौती है। इसका सीधा असर स्वास्थ्य सेवाओं, प्रति व्यक्ति आय और जीवन स्तर पर पड़ेगा। एक अच्छा उच्चस्तरीय जीवन जीना स्वप्न मात्र रह जायेगा। जनसंख्या नियंत्रण पर हमारी भागीदारी कितनी है, वह जनसंख्या मामले में विश्व में प्रथम स्थान पर पहुंचने से स्पष्ट हो चुकी है। जनसंख्या रोकने की मुहिम को अब जनभागीदारी के सहारे छोड़ना, जनसंख्या विस्फोट को अनियंत्रित करने जैसा होगा। मर्ज लाइलाज हो उससे पहले उसका उपचार और निदान ढूंढ़ना समझदारी होगी।
राजेंद्र कुमार शर्मा, देहरादून, उत्तराखंड
पुरस्कृत पत्र
संतुलन जरूरी
बढ़ती जनसंख्या के चलते इंसान ने जल-थल व नभ किसी को भी नहीं बख्शा। सीमित प्राकृतिक संसाधनों की वजह से गरीबी व महंगाई की मार तो झेलनी ही पड़ी। साथ ही साथ मांग ज्यादा पूर्ति कम की समस्या अर्थव्यवस्था में असंतुलन पैदा करती रही है। बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं किया गया तो बेरोजगारी व गरीबी के साथ-साथ आर्थिक व प्राकृतिक संतुलन पूर्णतया बिगड़ जाएगा। इंसान के स्वार्थ व लापरवाही का नतीजा ही है कि पर्यावरण संतुलन बिगड़ चुका है। संतान की संख्या को लेकर कठोर कानून व लोगों को ज्यादा से ज्यादा शिक्षित करने पर सरकार को और अधिक प्रयास करने होगें।
ऋतु गुप्ता, फरीदाबाद
मुफ्त की रेवड़ियां
चुनाव की घोषणा होते ही घोषणा पत्र में मुफ्त चीजें बांटने की राजनीतिक दलों में होड़ मच जाती है। जिस राज्य में सरकारें गत पांच वर्षों से राज कर रही हैं, उनमें भी अब चुनावी वर्ष में कई तरह की मुफ्त घोषणाएं कर रही हैं। हैरानी की बात है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार-बार आपत्ति उठाए जाने के बावजूद राजनीतिक दलों के कान पर जूं नहीं रेंगती। चुनाव आयोग और न्यायालय के कथन के बावजूद मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की घोषणाएं जारी है। वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक हालातों को देखते हुए सरकारें और लंबे समय तक मुफ्त अनाज व अन्य सुविधाएं नहीं दे पाएंगी। लोगों को कमा कर खाने की हिम्मत जुटानी चाहिए।
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म.प्र.
हृदयस्पर्शी कहानी
सात मई के दैनिक ट्रिब्यून अध्ययन कक्ष अंक में आशमा कौल की ‘अनंत यात्रा’ मर्मस्पर्शी कहानी पढ़कर आंखें नम हो गयीं। संतान से माता-पिता की अपेक्षाएं होती हैं। कथा नायिका यशोदा की अंतिम हवाई यात्रा की आधी-अधूरी अभिलाषा का अनंत यात्रा कथानक अत्यंत भावपूर्ण रहा। सुकेश साहनी की ‘कुत्ते का घर’ लघुकथा में धनी वर्ग की अभिमानी प्रवृत्ति पर करारा व्यंग्य है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
सतर्कता जरूरी
‘कंगाली में बवाल’ संपादकीय में पाकिस्तान की जिस नीयत का उल्लेख किया है वह वहां के शासकों की परंपरा रही है। चीन के प्रभाव में रहे पाकिस्तान की आर्थिक हालत पहले ही बुरी तरह खराब रही है फिर वहां आंतरिक संघर्ष ने हालातों को और बिगाड़ा। प्रधानमंत्री और सेना के बीच संतुलन न बैठने की वजह से ही इमरान की गिरफ्तारी हुई है। हालांकि इमरान की गिरफ्तारी से उपजा बवाल वहां का आंतरिक मामला है फिर भी हमें बड़ा सतर्क रहने की जरूरत है।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
यह कैसा जश्न
ग्यारह मई के दैनिक ट्रिब्यून में सोनम लववंशी का संवेदनशील लेख ‘रिश्तों के रिसने पर यह कैसा जश्न’ तमिल टीवी की अभिनेत्री द्वारा अपने पति से तलाक मिलने पर खुशी से सोशल मीडिया पर फोटो शूट आउट देना शर्मनाक ही नहीं बल्कि परिवार नामक संस्था के अस्तित्व को चुनौती भी है। पति-पत्नी का तलाक होना निश्चित तौर पर एक दुखदाई घटना है। इससे न केवल दोनों पक्षों की बदनामी होती है बल्कि दूसरी बार वैवाहिक जीवन के सफल होने पर भी सवालिया निशान लगता है। ऐसी स्थिति में कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं और न ही रिश्तों में टिकाऊपन होता है।
शामलाल कौशल, रोहतक
बेहतर संस्कार जरूरी
मनुष्य जीवन में शिक्षा के साथ संस्कारों का विशेष महत्व है। जीवन में यदि शिक्षा कीमती तोहफा है तो संस्कार जीवन का सार है। इसलिए यदि मनुष्य को शिक्षा के साथ बेहतर संस्कार दिए जाएं तो जीवन की दिशा व दशा दोनों बदल जाते हैं। लेकिन विडंबना है कि इस भागदौड़ भरी जिंदगी में शिक्षा केवल किताबी ज्ञान बन कर रह गया है। बच्चे की शिक्षा को केवल रोजगार तक सीमित कर दिया जाता है। ऐसी शिक्षा से मानवीय मूल्यों एवं संस्कारों की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसलिए समाज व राष्ट्र हित को देखते हुए अध्यापकों व अभिभावकों का उत्तरदायित्व बढ़ जाता है।
सोहन लाल गौड़, बाहमनीवाला, कैथल
अनर्गल प्रलाप
शंघाई सहयोग संगठन की गोवा बैठक में पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने भी अपनी हाजिरी लगाई। भारत नहीं चाहता था कि पाकिस्तान इसमें भाग ले। पाकिस्तान वह शत्रु देश है जो हमेशा अपने गिरेबां में छुरी रखता है। इन दिनों पाकिस्तान अपनी खस्ता हालत होने के बावजूद अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। अब भी आतंक की घटनाओं में सहयोग दे रहा है। विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो कंगाली के समय में भी भारत के खिलाफ अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं।
मनमोहन राजावत, शाजापुर, म.प्र.
निकाय चुनाव
उ.प्र. के नगरपालिका और नगर पंचायत के चुनाव में भाजपा, बसपा एवं सपा पूरी ताकत से चुनाव लड़ रही हैं। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पूर्व इस चुनाव को उत्तर प्रदेश का सेमीफाइनल चुनाव कहा गया है। भाजपा ने इस चुनाव को गंभीरता से लिया और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने चुनाव की कमान संभाली एवं सभी मंत्रियों को भी क्षेत्रवार जिम्मेदारी सौंपी। संभावना तो यही मानी जा रही है कि भाजपा अधिकांश नगर निगम की सीटें जीतेगी लेकिन बिना लहर वाले इस चुनाव में राजनीतिक ऊंट किस करवट बैठेगा यह 13 तारीख को चुनावी परिणाम ही बता पाएंगे।
वीरेंद्र कुमार जाटव, देवली, दिल्ली
फिक्र का हो जिक्र
दुर्भाग्य की बात है कि आज के नेता राष्ट्रीय ज्वलंत मुद्दों को छोड़कर एक-दूसरे की व्यक्तिगत आलोचनाओं पर लगे हुए हैं। साफ है कि ये देश और जनता के मुद्दों को ताक पर रखकर सिर्फ आपस में ही लड़ रहे हैं। भारत जोड़ो यात्रा के बाद जनता को कांग्रेस के उबरने की कुछ उम्मीद थी लेकिन इनके नेताओं ने अपने उलटे-सीधे बयानों से खुद को उलझाया हुआ है। आज जनता के सामने महंगाई, बेरोजगारी और अराजकता के मुद्दे सामने खड़े हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में इन मुद्दों का शायद ही प्रभाव पड़े।
वेद मामूरपुर, नरेला
जागरूकता में समाधान
देश में कोरोना के मामले फिर से नजर आये हैं। इसका कारण लोगों ने लापरवाही दिखानी शुरू कर दी थी। मास्क, भीड़ से दूरी, स्वच्छता को दरकिनार कर दिया गया। कोरोना से बचने के लिए जरूरी है कि इन हिदायतों का सख्ती से पालन किया जाये। वहीं स्कूलों में बच्चों को भी मास्क आदि का वितरण करना चाहिए। बच्चों को कोरोना से बचने के लिए सुरक्षित उपाय बताकर जागरूक करते रहना चाहिए। जब हम सब जागरूक रहेंगे तभी महामारी कोरोना से दूर रह सकते हैं।
मुकेश विग, सोलन, हि.प्र.
मानवता की सेवा
हर वर्ष 8 मई को ‘विश्व रेडक्रॉस दिवस मनाया जाता है। इस दिवस के मनाने का मुख्य कारण हेनरी ड्यूनेंट के जन्मदिन, उनको याद करने के लिए भी मनाया जाता है। रेडक्रॉस डे वैसे तो पहली बार वर्ष 1948 में मनाया गया था, लेकिन इसे आधिकारिक मंजूरी वर्ष 1984 में मिली थी। रेडक्रॉस के नाम पर आज भी मानवता के लिए बिना किसी भेदभाव के काम हो रहे हैं। दुनिया के किसी भी देश में जब भी कोई आपदा आती है, जैसे कि भूकंप, बाढ़ या अन्य, तो यह संगठन पीडि़त लोगों के लिए मददगार बनता है। वर्ष 1920 में भारतीय रेडकॉस सोसायटी की स्थापना हुई थी।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
नशे का जाल
हरियाणा में नशे का कारोबार अपने पैर पसार चुका है। वहीं बेरोजगारी के इस आलम में युवा वर्ग आसानी से नशे की गिरफ्त में आ रहा है। नशा तस्कर धड़ल्ले से नशीले पदार्थों की सप्लाई कर रहे हैं। पुलिस भी मूकदर्शक बनी हुई है। राष्ट्रीय राजमार्गों पर चल रहे कई ढाबों पर नशाखोरी का धंधा बखूबी चल रहा है। दिन-प्रतिदिन व्यापक हो रही इस सामाजिक बुराई ने अब तो स्कूल–कॉलेज के विद्यार्थियों को भी अपने चंगुल में ले लिया है। इस बुराई को कानूनी कड़ाई और पुलिस की ईमानदार कोशिश से ही रोक-थाम लगाई जा सकती है।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
राजनीति का चेहरा
राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत ने पूर्व में अपनी सरकार गिराए जाने में वसुंधरा राजे द्वारा सहयोग देने का खुलासा किया है। इस खुलासे ने एक बार फिर इस बात पर मोहर लगा दी है कि नेता अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। इस दांव से उन्होंने वसुंधरा राजे के लिए अगले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री चेहरा बनने पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म.प्र.
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :- dtmagzine@tribunemail.com
कार्रवाई की जरूरत
दिल्ली के जंतर-मंतर पर लगातार धरना दे रहे प्रदर्शनकारी खिलाड़ियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बाद उनकी एफआईआर दर्ज की गई। अफसोस इस बात का है कि देश की बेटियों को दुर्व्यवहार के खिलाफ न्याय प्राप्त करने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। आखिरकार इन बेटियों के पक्ष में कई पहलवान और किसान खाप समर्थन के लिए आये हैं। देखना यह है कि उनकी शिकायतों को दूर करने के लिए कोई कार्रवाई होती है या नहीं।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
बिगड़े बोल
छह मई के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख सभी राजनीतिक दलों द्वारा जाति, धर्म, संप्रदाय, क्षेत्र के नाम पर राजनीति करने का पर्दाफाश करने वाला था। लोगों को भ्रमित करने के लिए नेताओं द्वारा अपशब्द बोलना आदि बातें कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतने के लिए सभी दल इस्तेमाल कर रहे हैं। आजकल भारतीय राजनीति अपने निचले स्तर तक पहुंच गई है।
शामलाल कौशल, रोहतक
नागरिक जिम्मेदारी
पंजाब प्रांत और विदेशों में बैठे कुछ अलगाववादी लोगों की शह पर प्रदेश का वातावरण खराब करने के कुत्सित प्रयास किये जा रहे हैं। अमृतपाल प्रकरण इसका ताज़ा उदाहरण है। यद्यपि इस प्रकरण का एक प्रकार से पटाक्षेप हो गया है। फिर भी सौहार्द और एकता को हानि पहुंचाये जाने की चुनौती अभी समाप्त नहीं हुई है। इस चुनौती से निपटना क़ानून, पुलिस, प्रशासन और सरकार के साथ-साथ देश के हर नागरिक का कर्तव्य है। वातावरण खराब करने वाले तत्वों पर कड़ी नज़र रखनी होगी। जहां सौहार्द एवं एकता-विरोधी स्वर सुनाई दे, उसे हतोत्साहित करना होगा। भड़काऊ भाषणों, धरनों, प्रदर्शनों का समर्थन नहीं करना होगा।
तेजेंद्र पाल, कैथल
सामंजस्य जरूरी
पिछले दिनों एक अलगाववादी नेता, अमृतपाल सिंह ने अलगाववादी आंदोलन को फिर से पंजाब में उकसाने का असफल प्रयत्न किया। वहीं पंजाब और केंद्र सरकार ने संयुक्त प्रयास से उसको गिरफ्तार करके असम में डिब्रूगढ़ जेल में भेज कर स्थिति को बिगड़ने से बचा लिया। धार्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक तौर पर प्रदेश में सौहार्द, राष्ट्रीय एकता तथा संप्रभुता पर आंच नहीं आने दी। केंद्र तथा राज्य सरकार को मिलकर माहौल को ठीक रखना होगा। सुरक्षा तथा गुप्तचर एजेंसियों को भी सतर्क रहना होगा। विभिन्न संप्रदायों के लोगों में मेलमिलाप, भाईचारा और सामंजस्य जरूरी है।
शामलाल कौशल, रोहतक
जनता जागे
आज देश में तोड़फोड़, आगजनी और हिंसा आम बात हो गई है। इन घटनाओं के पीछे देखा जाए तो विघ्न-संतोषी लोगों और छिछोरे राजनीतिज्ञों की भूमिका होती है जो किसी भी हालत में समाज के बीच सामंजस्य देखना नहीं चाहते। धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों की इसमें बड़ी भूमिका होती है। पंजाब जिस दौर से गुजर चुका है उसकी पुनरावृत्ति फिर होते-होते बची। कट्टरवाद के खिलाफ सरकार ने जिस तरीके से कार्रवाई की, उसी तरह अपना हित अहित देखकर देश की जनता को निर्णय करना चाहिए। इससे देश की संप्रभुता के साथ ही सद्भाव भी मजबूत होगा।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
बड़ी हो सोच
पंजाब में सामाजिक सौहार्द और राष्ट्रीय संप्रभुता को चुनौती देने की कोशिश का पंजाब सरकार व पुलिस ने पूर्ण संयम व धैर्य से सफलतापूर्वक मुकाबला किया। केंद्र सरकार व राज्य सरकार ने बड़ी सूझबूझ से परस्पर सामंजस्य स्थापित कर उपर्युक्त चुनौती का पटाक्षेप किया। इस मामले को एक नज़ीर की तरह लिया जाना चाहिए। ऐसी स्थितियों में नागरिकों की भी जिम्मेदारी है कि वे सभी प्रकार की संकीर्णताओं से मुक्त होकर सामाजिक सौहार्द व एकता के विरोधियों का प्रतिकार करें। इनकी किसी सभा, प्रदर्शन, जलसे व जलूसों में भाग न लें। उन्हें किसी भी प्रकार का सहयोग प्रदान न करें।
शेर सिंह, हिसार
सहयोग करें
हमारे देश की संस्कृति एवं परम्परा यही है कि समाज के सभी धर्मों एवं जातियों के लोग आपस में सौहार्द, एकता, प्यार मोहब्बत से मिल-जुलकर रहें। सुख-दुःख में एक-दूसरे का साथ दें। परन्तु समाज के कई स्वार्थी, सत्तालोलुप घटक आपसी भाईचारे को बिगाड़ने की कोशिश में रहते हैं। ऐसी परिस्थिति में सभ्य समाज का नागरिक होने के नाते हमें ऐसे तत्वों का न तो सहयोग तथा न ही संरक्षण करना चाहिए बल्कि उनका सामाजिक बहिष्कार तथा सरकार द्वारा उनके खिलाफ होने वाली कार्यवाही में भी सहायता करनी चाहिए।
एमएल शर्मा, कुरुक्षेत्र
प्रतिरोध जरूरी
पंजाब में राज्य व केंद्र सरकार ने मिलकर प्रदेश में शांति भंग करने के अलगाववादियों के प्रयासों को जिस तरह से नाकाम किया है, वह अति सराहनीय है। अलगाववादी संगठन वारिस पंजाब दे के मुखिया की गिरफ्तारी से जहां अमन पसंद लोगों ने राहत की सांस ली है, वहीं अलगाव पसंद लोगों के मनसूबों को गहरा आघात लगा है। देश में सौहार्द व एकता को चुनौती देने वाले किसी भी प्रयास को नाकाम करने के लिए जहां यह जरूरी है कि देश व प्रदेश की सरकारें मिलकर काम करें, वहीं नागरिकों का भी कर्तव्य है कि वे भी अलगाववादियों का विरोध करें।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
पुरस्कृत पत्र
नाकाम करें कोशिश
भारत विरोधी ताकतों ने एक बार फिर पंजाब में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की नाकाम कोशिश की। लेकिन केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने मिलकर स्थिति पर नियंत्रण कर लिया। कुछ मुट्ठीभर लोग जो धार्मिक कट्टरता का ज़हर घोलना चाहते हैं, उनके वक्तव्यों को नजरअंदाज करना चाहिए। कोई धार्मिक नेता उन्मादी भाषण देता है तो प्रत्येक नागरिक का दायित्व है कि ऐसे नफरती भाषणों का पुरजोर विरोध किया जाए। आज़ादी के बाद से अभी तक हमारे देश का विकास अखंडता से ही संभव हो सका है। आम देशवासी को विभाजनकारी तत्वों से हर हाल में दूर रहना होगा।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
पवार का इस्तीफा
तीन मई के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित ‘पवार छोड़ेंगे पावर, नहीं मान रहे समर्थक’ समाचार शरद पवार द्वारा एनसीपी पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का वर्णन करने वाला था। शरद पवार राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी हैं। कांग्रेस के साथ मतभेद होने के बाद अपनी एनसीपी बना ली। वर्तमान में महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे, शिवसेना से अलग होकर भाजपा की मदद से मुख्यमंत्री बने हुए हैं। शरद पवार के भतीजे तथा समर्थकों द्वारा भाजपा में शामिल होने की अटकलों के बीच उसे झटका देने को शरद पवार ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। पवार के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के दूरगामी परिणाम होंगे।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
नारे की प्रासंगिकता
वर्ष 1965 में अमेरिका द्वारा लाल गेहूं देने से इंकार करने के बाद एक नारा तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा दिया गया था ‘जय जवान, जय किसान’। इसी ज्वाला ने किसानों का मनोबल इतना बढ़ाया कि आज हम पूरे विश्व में गेहूं के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक देश बन चुके हैं। वर्तमान में इस नारे की प्रासंगिकता का आकलन करने की बात आती है तो यह समझना आवश्यक हो जाता है कि क्या इस नारे से हम आज सिर्फ मनोबल बढ़ा रहे हैं या उन किसानों और जवानों के सशक्तीकरण की भी बात कर रहे हैं। अगर हमें विकसित देश बनना है तो अन्नदाताओं और सैनिकों को सशक्त करने और सुरक्षा देने की बात करनी होगी।
धीरज शाही, कुशीनगर
बेलगाम जुबान
देश में जब भी चुनाव होते हैं, राजनीतिक दलों के नेता देश-प्रदेश के विकास, निर्माण व मानवीय जरूरतों का विज़न प्रस्तुत करने के बजाय अमर्यादित बोल बोलना शुरू कर देते हैं। किसी को भी किसी की पद प्रतिष्ठा, गरिमा, मर्यादा की कोई परवाह नहीं है। न कोई तौल, न कोई मोल। समझदार मुंह खोलने से पहले सौ बार सोचता है। मगर ऐसे में इन नेताओं के बारे में क्या कहें? अब तो समझ से परे है।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
सुकून के लिए ब्रेक
तीन मई के दैनिक ट्रिब्यून में रजनी अरोड़ा का बेहतरीन लेख ‘सुकून के लिए लीजिए सोशल मीडिया से ब्रेक’ पढ़ा। आज के वैज्ञानिक युग में व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, टि्वटर आदि के बढ़ते नशे के कारण लोगों की सोच में परिवर्तन, इसका एडिक्ट हो जाना आदि बातों को लेकर सोशल मीडिया से कुछ समय के लिए ब्रेक लेने का सुझाव देने वाला था। वास्तव में ऐसा करने से हमारा जीवन तनाव रहित हो जाएगा, हम अन्य जरूरी कामों के लिए योजना बना सकेंगे। हम सब सोशल मीडिया के बढ़ते प्रचलन के नुकसान को जानते और समझते हैं। जरूरी है कि एक बार आप ब्रेक लेकर तो देखो, कितना सुकून और मानसिक सुख मिलेगा।
शामलाल कौशल, रोहतक
भाषा की संवेदना
दो मई के दैनिक ट्रिब्यून में ‘घृणा की भाषा’ संपादकीय से आम सहमति होनी चाहिए। आज जिस प्रकार के जहरीले बोल नेताओं द्वारा उगले जा रहे हैं वह न केवल राजनीति में अनैतिकता की पराकाष्ठा है वरन नेताओं की हीन मानसिकता भी समझी जा सकती है। आज अच्छे और प्रतिष्ठित नेता किसी को भी मुंह में जो आया बोले जा रहे हैं। न भाषा की संवेदना है न विचारों का कोई स्तर। नेताओं का चरित्र गलतियां करके माफी मांगने का हो चला है। इनकी कही गई बातें बेअसर नहीं होती, उसका दुष्प्रभाव पड़ता ही है। जब तक दो-चार घृणित बोलों के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं होगी, जहरीले बोल बंद नहीं होंगे।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
जेल में जंजाल
गत बीस दिनों तिहाड़ जेल में दो माफियाओं की हत्या का मामला बहुत ही गंभीर और तिहाड़ जेल की व्यवस्था पर कई सवाल उठाता है। कैदियों को जेल में सुधार के दृष्टिकोण से रखा जाता है। यह बात तो किसी से छुपी नहीं है कि दबंग लोग अपने रुतबे और पैसे के बल पर जेलों में मोबाइल सहित कई प्रकार की सुविधा प्राप्त कर लेते हैं। कानून व जेल मंत्रालयों को इस पर गंभीरता से विचार-विमर्श करके सभी विसंगतियों को दूर करना चाहिए।
विभूति बुपक्या, खाचरौद, म.प्र.
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इस्तीफा और राजनीति
शरद पवार के अचानक इस्तीफे की पेशकश ने महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल ला दिया है। शरद पवार के इस कदम से महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह ही नहीं लगा है बल्कि विपक्षी एकता मुहिम भी संदेह के घेरे में खड़ी हो गई है। संभवत: कांग्रेस द्वारा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विपक्षी एकता मुहिम के सूत्रधार के रूप में बढ़ते राजनीतिक कद पर भी शरद पवार ने जरूर विचार किया होगा क्योंकि राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में शरद पवार की भूमिका न के बराबर हो गई थी। यदि इस्तीफा मंजूर होता है तो सांसद सुप्रिया सुले शरद पवार की उत्तराधिकारी हो सकती हैं जिसका कारण स्पष्ट है कि अजित पवार क्षेत्रीय राजनीति में निर्विवाद नेता बनना चाहते हैं। लगता है महाराष्ट्र में राजनीतिक उठापटक और समीकरण का एक नया दौर आने वाला है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, देवली, दिल्ली
विश्वसनीयता जरूरी
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है मीडिया। अखबार समाचारों के साथ-साथ कई ऐसी जानकारी भी देता है जो सबका सामान्य ज्ञान बढ़ाती है। संयुक्त राष्ट्र ने 1993 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस 3 मई को मनाए जाने की घोषणा की थी। लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए प्रेस मुख्य भूमिका निभाती है। अखबार के लिए गागर में सागर वाली कहावत उपयुक्त है। भारत में प्रेस राजनीतिक पार्टियों के लिए प्रचार का साधन है तो आमजन की आवाज को सत्ताधारियों के कानों तक पहुंचाने का जरिया भी है। मीडिया को अपनी विश्वसनीयता बनाये रखनी चाहिए।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
अभद्र भाषा
राजनीतिक अखाड़े में शुरू से ही सकारात्मक विचारों की लड़ाई न करके केवल नकारात्मक विचारों की लड़ाई चलती आ रही है। कभी कोई नेता किसी को चोर, जहरीला सांप, नालायक जैसी आपत्तिजनक टिप्पणी से संबोधित करता है तो कोई किसी अन्य टिप्पणी से। किसी भी व्यक्ति, भले ही वह कोई नेता हो या आम आदमी, के प्रति आपत्तिजनक टिप्पणी करना सही नहीं है। सकारात्मक विचारों से ही आप जनता को जीत सकते है, अशुद्ध विचारों से नहीं।
सतपाल, कुरुक्षेत्र
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अलगाव की राह
हाल ही में तलाक के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की पीठ का फैसला प्रशंसनीय है। तलाक की डिक्री प्राप्त करने की प्रक्रिया अक्सर समय लेने वाली और लंबी होती है क्योंकि परिवार अदालतों के समक्ष बड़ी संख्या में इसी तरह के मामले लंबित होते हैं। इस फैसले से बड़ी संख्या में तलाक के मामलों का बोझ कम करने में मदद मिलेगी। जोड़े को तलाक के लिए फाइल करने के बाद छह महीने की अवधि दी जाती है ताकि यह विचार किया जा सके कि शादी को बचाया जा सकता है या नहीं। यह अच्छी बात है कि जो जोड़े अब साथ नहीं रहना चाहते उन्हें अब छह महीने और इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
भृगु चोपड़ा, जीरकपुर
तुरंत हो कार्रवाई
उनतीस अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून में गुरबचन जगत का ‘कश्मीर में अव्यवस्था पर शीघ्र कार्रवाई का वक्त’ लेख चर्चा करने वाला था। केंद्र सरकार जिस प्रकार से जम्मू कश्मीर में हालात सुधारने की बात कहती है, वास्तविकता उससे कोसों दूर है। कश्मीरी पंडितों की घर वापसी होती हुई दिखाई नहीं देती। पाकिस्तान के जिस तरह से विस्फोटक हालात हैं, उनसे लोगों का ध्यान हटाने के लिए पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में कुछ भी कर सकता है। इन सब बातों को लेकर भारत सरकार को आवश्यक कार्रवाई समय रहते करनी चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
गैस त्रासदी के सबक
लुधियाना में जहरीली गैस से 11 लोगों की मौत ने भोपाल गैस त्रासदी की याद को ताजा कर दिया। यदि यह गैस रिसाव बड़े पैमाने पर होता तो बड़ी संख्या में मानवीय क्षति हो सकती थी। ऐसा नहीं है कि इन उद्योगों के घातक रसायनों को सीवर में डालने के दुष्प्रभाव से इसके निर्माता व इनकी नियामक संस्था को पूरा ज्ञान नहीं है। सब कुछ भ्रष्टाचार के चलते प्रशासनिक अमला आंखें मूंद लेता है। ऐसे कारखानों में काम कर रहे मजदूरों को बीमा और नियमित स्वास्थ्य सेवाएं व सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए।
विभूति बूपक्या, खाचरोद, म.प्र.
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नेताओं की बदजुबानी
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे द्वारा ‘जहरीले सांप’ की टिप्पणी पर भाजपा का जोरदार हमला एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। देश के प्रधानमंत्री के प्रति अमर्यादित भाषा एवं शब्दावली को किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। चुनावी घमासान में नेताओं की बदजुबानी किसी तरफ से नहीं होनी चाहिए। यह स्वस्थ लोकतंत्र की भावना के प्रतिकूल है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की सदस्यता इसी प्रकरण में भेंट चढ़ चुकी है। इसके बावजूद कांग्रेस को यह समझ न आए तो कांग्रेस के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।
वीरेन्द्र कुमार जाटव, देवली, दिल्ली
पेयजल आपूर्ति
मनीमाजरा, चंडीगढ़ के निवासियों को 24 घंटे पानी की आपूर्ति प्रदान करने के लिए एक पायलट योजना के अंतर्गत शहर में अल्ट्रासोनिक स्मार्ट वॉटर मीटर लगाये जा रहे हैं। इस योजना के अंतर्गत 1500 पानी के मीटरों को बदल दिया है। यह तकनीक मासिक रीडिंग के अलावा दैनिक उपयोग डेटा प्रदान करेगी। इस उपकरण से आपूर्ति में रिसाव की संभावना कम हो जाएगी और दूषित पानी की समस्या का समाधान हो जाएगा। यह एक अच्छी योजना है और ये मीटर चंडीगढ़ के सभी सेक्टरों और पंजाब के अन्य क्षेत्रों में भी लगाए जाने चाहिए।
रोहन चंद्रा, जीरकपुर
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जनता जागे
वर्तमान में अधिकांश राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव में विजयी होने की संभावना रखने वाले प्रत्याशियों को नामांकित किया जाता है। राजनीतिक दलों हेतु नैतिकता और विचारधारा बेमानी हो गई है। सत्तारूढ़ दल में प्रविष्टि के पश्चात अभियुक्त पर लगाए गए आरोप वापस ले लिए जाते हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों से अपराधियों की राजनीति में एंट्री पर किसी प्रकार के प्रतिबंध की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। केवल जनता अपनी मतदान की शक्ति से राजनीति में अपराधियों की एंट्री रोक सकती है। मतदाता को ईमानदार प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान करना होगा। जब मतदाता अपराधियों को देश भर में पराजित करने का संकल्प ले लेंगे तो कोई भी दल उन्हें अपनी ओर से प्रत्याशी घोषित करने का दुस्साहस नहीं कर पाएगा।
राजीव चन्द्र शर्मा, अम्बाला छावनी
राजनीतिक दल दोषी
विडंबना है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजनीति में अपराधियों की एंट्री रोकने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। लगभग सभी राजनीतिक दलों का हाई कमान अपराधी छवि वाले नेताओं का बचाव करता है। ऐसे में अपराधियों की राजनीति में एंट्री रोकने के लिए कौन कानून बनाएगा। राजनीति में अपराधियों की एंट्री को रोकने के लिए चुनाव आयोग ही कोई उचित कदम उठा सकता है। जिन लोगों पर कोई छोटा-सा भी आपराधिक मामला दर्ज हो, उसके चुनाव लड़ने पर पूरी तरह प्रतिबंध होना चाहिए। इसके साथ मतदाता जागरूक होकर अपने कीमती मत का प्रयोग कर राजनीति में अपराधियों की एंट्री बंद कर सकते हैं।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
कठोर निर्णय जरूरी
माफिया सरगना अतीक अहमद और उसके भाई की पुलिस कस्टडी में हुई हत्या कई कानूनी सवालों को जन्म देती है। उससे भी बड़ा सवाल भारतीय राजनीति में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को सभी दलों द्वारा टिकट देने का है। विधायक, सांसद बनने पर ऐसे लोग अकूत धन व कारोबार खड़ा कर लेते हैं। लेकिन किसी भी पार्टी को अपने नेताओं में कोई कमी नहीं दिखती और विरोधियों पर वार करते रहते हैं। अपराधियों की राजनीति में एंट्री रोकने के लिए वोटर व चुनाव आयोग को कठोर निर्णय लेने होंगे।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
कानूनी प्रावधान हो
राजनीति में अपराधीकरण के लिए किसी एक व्यक्ति, संस्था या किसी कारक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि इन अपराधियों का अपने क्षेत्र में अच्छा-खासा दबदबा रहता है। ऐसे में संभावना रहती है कि चुनाव जीत जाएंगे। इसीलिए राजनीतिक दल इन्हें टिकट देने के लिए लालायित रहते हैं। राजनीतिक दलों को खुद ही दागी व्यक्तियों को टिकट देने से बचना होगा अन्यथा एक समय ऐसा आएगा जब जनता का इन दलों से विश्वास उठ जाएगा। इसके अलावा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन करके ऐसे नेताओं को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर देना चाहिए।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
स्थिति सुनिश्चित हो
सभी दल चुनावी मैदान में उसी उम्मीदवार को उतारते हैं जिसका समाज में दबदबा और उसकी चुनाव जीतने की पूर्ण संभावना हो। भले ही उसके खिलाफ कानूनन कई मामले लंबित हों। अतीक अहमद व उसके भाई की हत्या राजनीतिक शह का सबूत है। चुनाव आयोग को चुनाव मैदान में उतरने से पहले उम्मीदवारों की स्थिति सुनिश्चित कर देनी चाहिए। उम्मीदवारों के विरुद्ध आपराधिक मामलों की पुष्टि किए बिना चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। चुनाव आयोग को अपनी चुनावी प्रणाली में समय-समय पर सुधार करना चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
राजनीतिक संरक्षण
सभी राजनीतिक दल और मतदाताओं की यह सोच बन चुकी है कि ‘राजनीति में कोई नीति नहीं होती’ जैसे जुमलों ने राजनीति के प्रति जनमानस की सोच ही बदल रखी है। जिस दिन देश का मतदाता राजनीति और चुनाव में ‘बाहुबल’ और ‘धनबल’ को नकार देगा उसी दिन से अपराधियों और माफियाओं की एंट्री राजनीति में बंद हो जाएगी। इस कार्य में यदि मतदाता, चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय की भागीदारी तय कर लें तो देश की राजनीति के स्वर्णिम दिनों की शुरुआत हो जायेगी। छोटे-छोटे अपराधियों को माफिया का दर्जा कहीं न कहीं राजनीतिक संरक्षण से मिलता है।
राजेंद्र कुमार शर्मा, देहरादून, उत्तराखंड
पुरस्कृत पत्र
मतदाता की जिम्मेदारी
राजनीति में अपराधियों का प्रवेश यदि कोई रोक सकता है तो वह है मतदाता। मतदाता यदि अपने विवेक का इस्तेमाल करे और लोकतंत्र की रक्षा में अपनी भूमिका के प्रति सजग बने तो हम मतपत्र की मार से गलत लोगों को राजनीति में आने से रोक सकते हैं। अतीक अहमद और उसके भाई की मौत पर आंसू बहाने वाले समाज और राजनीतिक दलों से यह पूछने का समय आ गया है कि आख़िर क्यों और कब तक अतीक अहमदों को उनका प्रश्रय मिलता रहेगा। मतदाताओं को भी आत्ममंथन करना होगा कि अतीक अहमद कैसे पांच बार विधायक और एक बार सांसद बन बैठा। अगर राजनीति को अपराधियों से मुक्त करना है तो हम सबको अपनी-अपनी भूमिका जिम्मेदारी से निभानी होगी।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल