आपकी राय
शुभ संकेत नहीं
संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण लगातार हंगामें की भेंट चढ़ रहा है। संसद के कामकाज को ठप्प करने में सत्ता व विपक्ष दोनों जिम्मेदार हैं। वर्तमान स्थिति को देखते हुए ऐसा लगता है जैसे बजट बगैर चर्चा के ही पारित किया जाएगा जो देश के लिए शुभ संकेत नहीं है। बजट सत्र में कुछ महत्वपूर्ण विधेयक भी पारित करने थे, अगर ऐसा नहीं होता तो नि:संदेह यह देश की जनता के साथ धोखा होगा। जनता सांसद को अपने क्षेत्र की समस्याओं को संसद में उठाने के लिए चुनती है न कि व्यवधान के लिए। जनप्रतिनिधियों को समय की नजाकत को समझते हुए अपने अड़ियल रवैये को छोड़ना चाहिए।
सोहन लाल गौड़, बाहमनीवाला, कैथल
जल है बचाना जरूरी
जल संचय के मामले में आज भी हम जीरो हैं। वाहन धोने में लाखों लीटर पानी रोज फिजूल बहाया जाता है। लोग गर्मियों में सड़कों पर भी पानी का छिड़काव बड़ी बेदर्दी से करते हैं। यदि समय रहते हम पानी का मूल्य नहीं समझेंगे तो भविष्य में हालात विकटतम होते जाएंगे। ग्राम पंचायत स्तर तक जल संचय के लिए मुफ्त तकनीक व सलाह की व्यवस्था की जाना चाहिए। कोई भी मुफ्त सरकारी सुविधा पाने के लिए हर कृषक व गृहस्थ को जल संचय का प्रमाणपत्र देने का नियम बनाया जाए तो लोग खुद ही जल संचय के लिए जाग्रत हो जाएंगे!
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म.प्र.
सावधानी ही बेहतर
बाईस मार्च के दैनिक ट्रिब्यून में डॉ. शशांक द्विवेदी का ‘कोविड की सीख से इनफ्लूएंजा वायरस का मुकाबला’ लेख इनफ्लुएंजा वायरस से सावधान रहने की नसीहत देने वाला था। इस प्रकार के वायरल का हर साल दो बार होना एक आम बात है लेकिन जिस तरह इनफ्लूएंजा लोगों को अपना शिकार बना रहा है इससे बचने के लिए कोरोना जैसी सावधानियों की जरूरत है। बच्चों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं, हृदय रोग, डायबिटीज आदि से पीड़ित व्यक्तियों को विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :- dtmagzine@tribunemail.com
असली वजह
अठारह मार्च के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘और भी वजहें हैं जनतंत्र के अपमान की’ राहुल गांधी द्वारा लंदन में दिए गए भाषण पर आपत्ति करते हुए सत्तापक्ष द्वारा माफी मांगने की बात का विश्लेषण करने वाला था। राहुल ने ऐसी कोई बात नहीं कही जिसके लिए उन्हें माफी मांगने की जरूरत है। सत्तापक्ष द्वारा स्वायत्त संस्थान जैसे इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, सीबीआई, ईडी आदि का विपक्ष के खिलाफ दुरुपयोग करना देश के लोकतंत्र को अपमानित करने वाला है। देश में जिस तरह बेकारी, गरीबी, प्रदूषण, भुखमरी, महिलाओं के खिलाफ अपराधिक मामले बढ़ रहे हैं, क्या उनसे देश की छवि के धूमिल होने का पता नहीं चलता।
शामलाल कौशल, रोहतक
नकल का मर्ज़
मध्य प्रदेश में शिक्षा का स्तर सुधारने में लगी सरकार के प्रयासों को बोर्ड परीक्षा पेपर के आउट होने से बड़ा झटका लगना स्वाभाविक है। पेपरों के परीक्षा से पूर्व बाजारों, इंटरनेट मीडिया आदि पर आ जाने से बड़ा झटका उन विद्यार्थियों को लगता है जो पूरे साल कड़ी मेहनत करते हैं। इस तरह की घटनाएं व्यवस्थाओं पर भी प्रश्न खड़े करती हैं। सरकार परीक्षा के समय पेपरों की सुरक्षा चाक-चौबंद करे। इस तरह के हथकंडे अपनाने वाले कर्मचारियों-अधिकारियों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई करे।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
शिकंजा कसें
पंजाब में कट्टरपंथियों की बढ़ती गैर-कानूनी गतिविधियों को लेकर राज्य सरकार के लिए मुसीबत पैदा हो गई है। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और पाकिस्तान में बैठे कट्टरपंथियों ने आतंकवाद को फिर से जीवंत करने की योजना बनाई है। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में हिन्दू मंदिरों में तोड़फोड़ की घटनाएं देखने को मिलीं। केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर ऐसे तत्वों पर सख्त शिकंजा कसने की जरूरत है।
कांतिलाल मांडोत, सूरत
तंग नजरिया
गत दिनों पाकिस्तान में कुछ लोग मस्जिद के गुम्बदों को हथोड़ों से तोड़ते देखे गये। बताया जाता है कि ये लोग कट्टरपंथी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक के थे और उनका निशाना बनी मस्जिद अहमदिया समुदाय की थी। जिसे पाकिस्तान ने 1974 में गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया था। आश्चर्य की बात है कि मस्जिदों को तोड़ते हुए इन कट्टरपंथियों के हाथ नहीं कांपते। पाकिस्तान में गैर-मुस्लिमों पर अत्याचार के किस्से सुनकर तो शोर मचता था पर मुस्लिम अहमदिया लोगों पर कट्टरपंथी मुस्लिमों के अत्याचार सुनकर ‘निंदा’ के शब्द ढूंढ़े नहीं मिलते।
अक्षित तिलक राज गुप्ता, रादौर
खतरनाक खिलौने
बच्चों के खिलौने बेहद खूबसूरत और लुभावने होते हैं, लेकिन इन्हीं खिलौनों में जहर भी मिला होता है। बच्चों के खिलौने अक्सर प्लास्टिक के होते हैं। प्लास्टिक के खिलौनों में जिन रंगों का इस्तेमाल किया जाता है वे बेहद हानिकारक होते हैं। इन्हें मुंह में डालने पर बच्चों को कई बीमारियां होती हैं। रंगों में कई ऐसे रसायन भी मौजूद होते हैं जिनसे कैंसर का खतरा हो सकता है।
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म.प्र.
मजबूत ढांचा
कड़ी सुरक्षा के बावजूद अपराधियों द्वारा मोबाइल-इंटरनेट सेवाओं के दुरुपयोग से आपराधिक गुटों में हत्याओं का क्रम सवालिया निशान लगाता है। जेलों में वीडियो कैमरे लगाकर कैदी गैंगस्टरों की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए। जेलों में जैमर लगाने से अपराधियों की मोबाइल सेवा बंद करने देनी चाहिए। गुप्तचर खुफिया एजेंसियों की चौकसी बढ़ा देनी चाहिए। अपराधी कैदियों को मिलने वाले लोगों की पूरी मशीनी चैकिंग करनी चाहिए। सुरक्षा ढांचे को मजबूत बनाना चाहिए। राजनीति से दूर निष्पक्ष तंत्र बनाने की जरूरत है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
ताक पर नियम
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जेलों में खूंखार या फिर रोब वाले कैदियों को कई तरह की रियायतें मुहैया करवाई जाती हैं। नियमों को ताक पर रखकर अतिरिक्त सुविधाएं उपलब्ध करवाना सरासर भ्रष्टाचार का मामला है। जेल प्रशासन की सांठगांठ से ही कैदी बाहर की दुनिया में अपना प्रभाव कायम रख पाते हैं। पुलिस सुधारों की बातें बहुत होती हैं। अधिकारियों द्वारा समाचारपत्रों में कैदियों के सुधार हेतु लेख लिखे जाते हैं, पर होता कुछ नहीं है। जब तक जेल को जेल और पुलिस को पुलिस नहीं बनाया जाएगा तब तक अपराधियों के लिए जेलें एक सैरगाह ही बनी रहेंगी।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
शिकंजा कसे
देश में रोजगार की कमी के चलते युवा अक्सर नशे और बंदूक माफियाओं के चंगुल में फंस जाते हैं। यहीं से ऐसे गैंग फलते-फूलते हैं। वहीं राज्यों की जेलों में कुख्यात गैंग के सदस्य अपने दबदबे को कायम रखने के लिए हत्याएं करवाते हैं। इस प्रकार की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए जरूरी है कि सर्वप्रथम बेरोजगार युवाओं को काम मिले ताकि रोजी-रोटी का प्रबंध हो सके। जेलों में भी सख्त नियम-कानून व सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध हों। भ्रष्ट अधिकारियों पर शिकंजा कसा जाये। अपराधियों से मिलने वालों की भी जांच हो। इससे जेलों को आपराधिक की सैरगाह बनने से रोका जा सकेगा।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़
ढील न दें
अक्सर जेलों से कैदियों के भागने एवं जेल में रहते अन्य अपराधों में संलिप्त रहने की शिकायतें मिलती रहती हैं। वहीं जेलों में प्रभावी अपराधी पूरी सुख-सुविधाएं लेते देखे जा सकते हैं। इन सबके पीछे भ्रष्ट अधिकारियों के साथ-साथ नेताओं का भी हाथ रहता है। वे अपने स्वार्थ हित साधने के लिए ऐसे खतरनाक अपराधियों का सहारा लेते हैं। जरूरी है कि ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों पर लगाम कसी जाये। वहीं जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाकर कैदी गैंगस्टरों की गतिविधियों पर सख्त निगरानी रखी जाये। कैदियों को सुधरने का मौका तो मिले लेकिन किसी प्रकार के नियम-कानूनों में ढील न दी जाये।
गणेश दत्त शर्मा, होशियारपुर
तंत्र की काहिली
सज़ा काट रहे अपराधियों द्वारा जेल के अंदर से ही अपराधों को अंजाम देना तंत्र की काहली को ही दर्शाता है। निश्चित रूप से जेल विभाग में मौजूद काली भेड़ों के बिना इस प्रकार की आपराधिक घटनाओं को अंजाम देना संभव नहीं है। अतः जरूरी है कि इस प्रकार के कार्यों में लिप्त व्यक्तियों का पता लगाया जाए। उन सबके विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए। इसके अतिरिक्त जेलों में बैठे आपराधिक गिरोहों पर भी शिकंजा कसा जाए व उनका पर्दाफाश कर जेलों को अपराधियों की सैरगाह बनने पर अंकुश लगाया जाना चाहिए।
सतीश शर्मा माजरा, कैथल
प्रिजन एक्ट नाकाफी
आपराधिक गिरोहों द्वारा जेल के भीतर से अपराधों को अंजाम देना बिना मिलीभगत, भ्रष्टाचार के संभव नहीं है। दरअसल, जेलों में मोबाइल फोन समेत अन्य प्रतिबंधित चीजों के इस्तेमाल पर प्रिजन एक्ट में जो प्रावधान किए गए हैं, वो नाकाफी हैं। वास्तव में जेल के अंदर कैदियों के मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के इस्तेमाल को संज्ञेय व गैर-जमानती अपराध होना चाहिए। इसके अलावा, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए जेलों की निगरानी व्यवस्था को चाक-चौबंद, सुरक्षित व दुरुस्त बनाना होगा। इसके अलावा प्रिजन एक्ट के अंतर्गत विभिन्न धाराओं के तहत दी जाने वाली सजा आरोपित के मूल अपराध की सजा से अतिरिक्त व सख्त हो।
सुनील कुमार महला, पटियाला, पंजाब
पुरस्कृत पत्र
कठोर नियम बनें
जेलों को अपराधियों की सैरगाह बनाने में सबसे बड़ी भूमिका भ्रष्टाचार और इनका पोषण करने वाले राजनीतिक दलों की है। पुलिस विभाग के कुछ भ्रष्ट कर्मचारी अपने कर्तव्य से खिलवाड़ करते हुए, ऐसे अपराधी गिरोहों को जेलों को सैरगाह बनाने में पूरी मदद करते हैं और उनकी सुख-सुविधाओं का पूरा ध्यान रखते हैं। ऐसे में पुलिस विभाग के सेवा-नियमों को सख्त किए जाने की जरूरत है। भ्रष्ट कार्यों में लिप्त कर्मचारियों को निलंबित नहीं, बल्कि बर्खास्त करने जैसे कठोर नियम बनाए जाने चाहिए। काहिल तंत्र को दुरुस्त करने के लिए सेना जैसे सेवा-नियमों की आवश्यकता है।
राजेंद्र कुमार शर्मा, देहरादून, उत्तराखंड
मानसिक दबाव
राजस्थान के कोटा शहर को कोचिंग का हब माना जाता है। एजुकेशन हब कहा जाने वाला कोटा शहर अब खुदकशी नगरी बनता जा रहा है। कोचिंग संस्थानों में मैरिट को लेकर बढ़ते हुए प्रेशर से नंबर रेस में भाग रहा स्टूडेंट इस तनाव को सह नहीं पाता। आधुनिक शिक्षा में मेरिट और अच्छे नंबरों का दबाव स्टूडेंट्स पर इतना बढ़ चुका है कि वे मानसिक रूप से उबर नहीं पा रहे हैं। इसी दबाव की नीति में स्टूडेंट हताश और तनावग्रस्त हो जाता है और आत्महत्या जैसा कदम उठाने पर मजबूर हो जाता है। कोचिंग संस्थानों को अपनी व्यवस्था में परिवर्तन लाना चाहिए।
चंद्र प्रकाश शर्मा, दिल्ली
किसान की कराह
इस साल मंदी ने आलू किसान की कमर तोड़कर रख दी। लागत पूरी न होने के कारण कई किसानों ने तो आलू को सड़कों पर फेंका है। किसानों का कहना है कि आलू की कीमतों में भारी गिरावट से उन्हें भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। आलम यह है कि किसानों ने आलू को मंडी में लाना ही बंद कर दिया है। आलू उत्पादकों की यह दुर्दशा देखने के बाद सरकार की कृषि नीतियों पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। खंड स्तर पर किसानों को मुफ्त भंडारण सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए ताकि वह आलू और प्याज जैसे सूखी सब्जियों का भंडारण कर सके और बाज़ार के रुख अनुसार उन्हें बेच सके। दूसरा, न्यूनतम समर्थन मूल्य केवल कागजों में नहीं रहना चाहिए, किसान की जेब में जाना चाहिए।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
अनुचित मुहिम
देश में एक बार फिर समलैंगिक विवाह को कानून बनाने के मुद्दे पर विवाद हो रहा है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है, जिसमें वह समलैंगिक विवाह को कानून बनाने की मान्यता का विरोध कर रही है। धार्मिक मान्यता के अनुसार समलैंगिक विवाह को स्वीकृति नहीं है। गौरतलब है कि समलैंगिक विवाह को कानून बनाने का विरोध न सिर्फ केंद्र सरकार बल्कि साधु-संत भी कर रहे हैं।
निधि जैन, लोनी, गाजियाबाद
बढ़ती अश्लीलता
सोशल साइट्स पर परोसी जा रही अश्लीलता समाज को दूषित कर रही है। यह बच्चों व पूरे समाज के लिए बहुत घातक है। डार्क वेब वह कोना है जहां हजारों वेबसाइट गुमनाम रहकर कई तरह के काले बाजार चलाती हैं। इन्हीं के चलते अक्सर बच्चे यौन शोषण का आसानी से शिकार हो जाते हैं। वैसे बाल यौन शोषण मामले की जांच के लिए सीबीआई ने एक विशेष यूनिट बनाई है। ये ऐसी तमाम वेबसाइटों पर निगरानी रखती है, जो बाल यौन शोषण के मामलों का प्रचार-प्रसार करते हैं। इन मामलों के तार 100 से ज्यादा देशों से जुड़े हुए हैं। सरकार को शिकंजा कसने की जरूरत है।
भूपेंद्र सिंह, पानीपत
समर्पित हिंदी प्रेमी
पंद्रह मार्च के दैनिक ट्रिब्यून में नरेश कौशल का लेख ‘हिंदी का वैश्विक आकाशदीप विलुप्त’ डॉक्टर वेद प्रताप वैदिक के आकस्मिक निधन पर संवेदना व्यक्त करने वाला था। डॉ. वैदिक बचपन से ही हिंदी भाषा के समर्थक रहे हैं। वह पहले ऐसे शख्स थे जिन्होंने हिंदी में अपना पीएचडी का शोध कार्य किया। उनके प्रधानमंत्री, नरसिम्हा राव तथा अनेक मुख्यमंत्रियों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध थे। डॉक्टर वेद प्रताप वैदिक के निधन से एक समर्पित हिंदी प्रेमी तथा निडर, निष्पक्ष तथा परिपक्व पत्रकार की कमी हमेशा खलती रहेगी।
शामलाल कौशल, रोहतक
सारगर्भित लेख
चौदह मार्च का संपादकीय ‘सचमुच नाचा देश’ सही मायनों में समुचित सम्पादकीय लगा। तापमान से बाधित वर्षाचक्र के अन्तर्गत ‘चिंता की बात है अल-नीनो की वापसी’ व ठोस नीति से ही संभव स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य विचारणीय लगे। प्रथम पृष्ठ व विविध में भी नाटु-नाटु से सम्बन्धित सारगर्भित समाचार प्रेरणादायक लगे। इसके अलावा ‘प्राकृतिक खेती से मालामाल होंगे किसान’ आदि समाचार ध्यान आकृष्ट करते हैं।
रवि कुमार, बिलासपुर, हि.प्र.
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अपूरणीय क्षति
हिन्दी के महान पैरोकार, निर्भीक, अनुभवी और बेबाक पत्रकार डाक्टर वेद प्रताप वैदिक का अकस्मात निधन सभी हिन्दी प्रेमियों व उनके पाठकों के लिए अपूरणीय क्षति है। आजादी के बाद हिन्दी को सम्मान दिलाने में उनका बहुत बड़ा योगदान माना जाएगा। वैदिक की बेबाकी से बड़े-बड़े नेता कन्नी काटते नजर आते थे। उन जैसी निष्पक्ष पत्रकारिता का पर्याय मिलना मुश्किल है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पक्षपाती रवैये से वैदिक बहुत ही खिन्न थे। वैदिक के जाने से केवल पत्रकारिता ही नहीं पूरे हिन्दी जगत को आघात पहुंचा है।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
प्रभावी सोच
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रतिनिधि अधिवेशन में शीर्ष नेतृत्व ने छुआछूत और जातिवाद पर प्रहार करते हुए इनको खत्म करने का आह्वान किया है। इसका परिणाम सुखद होगा। आज भी जातीय श्रेष्ठता का दंभ भरने वालों की कमी नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यह पहल सराहनीय एवं सार्थक पहल साबित होगी। यह जिम्मेदारी केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक की ही नहीं है बल्कि देश के तमाम धार्मिक, शैक्षणिक, बौद्धिक एवं वैचारिक संगठनों की भी होनी चाहिए।
वीरेंद्र कुमार जाटव, देवली, दिल्ली
इमरान को सबक
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ दो मामलों में गैर-जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी किये गये हैं। वहीं पाक में पीटीआई के समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन किया। ज्ञातव्य हो कि पीटीआई पार्टी के अध्यक्ष इमरान खान के खिलाफ पिछले साल अगस्त में एक रैली में उनकी टिप्पणी को लेकर मामला दर्ज किया गया था। इमरान खान कानून की बड़ी-बड़ी बातें कर दुनिया को नसीहत देते रहते हैं। लेकिन उनके ही देश में उनके खिलाफ दर्ज केस में पुलिस पर हमला करवा रहे हैं। कोई कितने दिन कानून को धत्ाा देता रहेगा। इमरान खान कानून को अपनी जागीर समझने लगे हैं।
कांतिलाल मांडोत, सूरत
चीन से सतर्कता
तेरह मार्च के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘शी की ताजपोशी’ शी जिनपिंग द्वारा चीन का तीसरी बार राष्ट्रपति बनने का वर्णन करने वाला था। जिनपिंग ने अपनी स्थिति को इतना मजबूत कर लिया है कि कोई और दूसरा नेता उसके सामने टिक नहीं सकता। अमेरिका, ताइवान, रूस यूक्रेन युद्ध, भारत के साथ लद्दाख में सीमा विवाद, दुनिया की सबसे बड़ी पीएलए का मुखिया होने तथा कई देशों को उधार के जाल में फंसा कर उनके संसाधनों का शोषण करना आदि बातें जिनपिंग के पक्ष में जाती हैं। बेशक भारत ने अपनी आर्थिक तथा सैनिक शक्ति को चीन के मुकाबले में काफी सुधार लिया है। फिर भी चीन से सतर्क रहने की जरूरत है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
सख्त कदम
राजस्थान में अपराध बढ़ते जा रहे हैं। राजस्थान सरकार कानून व्यवस्था में कमजोर साबित हुई है। अपराधियों को पुलिस और प्रशासन का कोई डर नहीं है। अपराधी पुलिस प्रशासन को धता बताकर अपराध के बाद फरार हो जा रहे हैं। हाल ही में जंगलों में शिकार करने के लिए घूम रहे तीन बदमाशों को पुलिस ने गिरफ्तार किया। वहीं गहलोत सरकार का ध्यान इस वर्ष होने वाले चुनाव की तरफ है। राजस्थान में बढ़ते अपराध को अंकुश में लेने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाने होंगे।
कांतिलाल मांडोत, सूरत
बचाव में सुरक्षा
बारह मार्च के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित एक खबर ‘मौसमी बुखार, खांसी संबंधी इनफ्लुएंजा पर विशेषज्ञ बोले...’ इनफ्लुएंजा के मामलों से सावधान रहने की सलाह देने वाला था। कर्नाटक तथा हरियाणा में एक-एक रोगी के मर जाने से लोगों में चिंता व्याप्त है। हालांकि चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि क्योंकि देश के अधिकांश लोगों ने कोरोना का टीका लगवा रखा है इसलिए पहले की तरह यह इनफ्लुएंजा घातक साबित नहीं हो सकता। फिर भी बचाव में ही सुरक्षा है।
शामलाल कौशल, रोहतक
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तापमान की चुनौती
एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने अपने अध्ययन में चेताया है कि सन् 2030 तक मई-जून में गर्मी ज्यादा बढ़ जाएगी और लोगों को उसे सहन करना मुश्किल होगा। वहीं लू से मरने वालों की संख्या में वृद्धि होगी। वैज्ञानिक मानव द्वारा प्रकृति के अत्यधिक दोहन को लेकर चेतावनी देते रहे हैं। आज ग्लेशियर पिघल रहे हैं। समुद्र के पानी का स्तर बढ़ रहा है। जल वायु प्रदूषण अपनी उच्चतम सीमा पर है। प्रदूषण को लेकर दुनिया भर में भारी शोरगुल है। मगर इसमें सुधार के लिए किए जाने वाले प्रयास नगण्य हैं।
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम, म.प्र.
शर्मनाक घटना
देश की राजधानी में जापानी महिला पर्यटक के साथ होली के अवसर पर कुछ युवाओं द्वारा की गई शर्मनाक घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। केंद्र सरकार एवं सभी राज्य सरकारों द्वारा ‘अतिथि देवो भव’ की संकल्पना को ध्यान में रखकर योजनाएं तैयार की जा रही हैं। ऐसे में किसी विदेशी पर्यटक के साथ घटित अप्रिय घटना मन को विचलित करने वाली है। ऐसी घटनाओं से ही देश में पर्यटन को धक्का लगता है और देश की छवि खराब होती है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
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बिचौलियों पर लगाम
सरकारों का दायित्व है कि वे अन्नदाता की मदद करने के साथ-साथ बंपर पैदावार का भी सदुपयोग करने का तंत्र विकसित करें। किसान को लाभकारी मूल्य मिले और उपभोक्ता को सस्ता मिले इसके लिए बिचौलियाें को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। सरकार किसान से लाभकारी मूल्य पर फसल ख़रीदे और उपभोक्ता को उचित मूल्य पर वितरित करवाए। मुफ्त राशन के साथ जरूरतमंदों को व मिड डे मील में सब्जियां भी प्रदान करे। वहीं गर्भवती महिलाओं को भी राशन के साथ हरी सब्जियां बांट सकते हैं। निर्यात की संभावनाएं भी तलाशनी चाहिए। इस प्रकार बंपर पैदावार पर किसान का घाटा रुक सकता है। शेर सिंह, हिसार |
![]() किसान कीमतों में भारी गिरावट के बाद आलू-प्याज आदि फसल खुद ही नष्ट करने लगे हैं। इस समस्या पर कोई ध्यान देने को राजी नहीं। किसानों की दुर्दशा पर चिंता भी दिखाई नहीं देती है। मांग-आपूर्ति असंतुलन के नाम पर किसान को घाटा बर्दाश्त करना पड़ता है। विदेशों की तरह सरकार को ऐसा तंत्र विकसित करना होगा कि दाम लागत से कम होने पर किसानों की मदद की जा सके। कृषि क्षेत्र में मौजूद इस गंभीर समस्या का दोष आसानी से मांग-आपूर्ति समीकरण पर लगाते रहना गवारा नहीं कर सकते। पूनम कश्यप, नयी दिल्ली |
![]() देखने में आ रहा है कि किसानों को उनकी आलू-प्याज की पैदावार के दाम लागत से भी कम मिल रहे हैं। वे अपनी उपज नष्ट करने पर मजबूर हो रहे हैं। किसानों की कड़ी मेहनत का मजाक उड़ रहा है। लोग हाड़तोड़ मेहनत से उपज तो बढ़ा रहे हैं लेकिन बाजार के परजीवी न तो काश्तकारों को लाभ दे रहे हैं और न ही उपभोक्ताओं को सस्ते खाद्य पदार्थ। सरकार को यदि उनकी आय सचमुच दोगुनी करनी है तो किसानों काे होने वाला ऐसा घाटा रोकना भी जरूरी है। एेसा एमएसपी पर सरकारी खरीद करके भी संभव है। देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद |
भरपाई योजना अन्नदाता के लिए अपेक्षित सरकारी प्रयास नहीं किये जा रहे हैं। अमेरिका जैसे देशों में अगर किसी कृषि पदार्थ की कीमत लागत से कम हो जाती है तो सरकार उसे खरीद कर उसका वैकल्पिक प्रयोग करती है और किसानों की भरपाई करती है। भारत में भी सभी कृषि पदार्थों की एमएसपी निर्धारित कर देनी चाहिए। लागत से कीमत कम होने पर सरकार को मंडी दखल योजना के तहत किसानों की सहायता करनी चाहिए। पर्याप्त संख्या में तापमान नियंत्रित भंडारण सुविधाएं बनानी चाहिए। इसके साथ ही मूल्यह्रास भरपाई योजना लागू करनी चाहिए। सारा दोष मांग-आपूर्ति तंत्र पर नहीं लगाया जा सकता। शामलाल कौशल, रोहतक |
कीमतों की निगरानी देश में अन्न हो, सब्जियां हों या फिर फल हों, सबकी काफी पैदावार होती है। इसके बावजूद इनके दाम कभी-कभार बहुत ज्यादा हो जाते हैं। वहीं कभी इन्हीं आलू-प्याज जैसी सब्जियों के दाम धड़ाम से गिर जाते हैं। इस कारण किसानों को इनकी उत्पादन लागत भी पूरी नहीं मिलती। सरकार को इन सब्जियों, फलों आदि के उन देशों में निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए जहां ये बहुत महंगे हैं या इनकी पैदावार नहीं होती। सरकार को निगरानी भी करनी चाहिए कि कोई किसानों से फल-सब्जियां या अनाज सस्ते में खरीद कर महंगे दामों में तो नहीं बेच रहा है। राजेश कुमार चौहान, जालंधर |
खरीद का सिस्टम अमेरिका में बंपर पैदावार होने पर भी यदि भाव गिरते हैं तो वहां मुआवजा भुगतान तंत्र द्वारा किसानों को वित्तीय मदद मिलती है। भारत में भी मूल्य ह्रास भरपाई क्रियान्वयन तंत्र की ऐसी ही योजना लागू करना होगी। कोल्ड स्टोरेज बनाने होंगे जिससे बंपर पैदावार होने पर अनाज का भंडारण कर सकें। सरकार को किसानों के उत्पाद पर लागत मूल्य में उनके लाभ को जोड़कर अनाज खरीदने का सिस्टम बनाना होगा जिससे किसान का घाटा पूरा हो सके। अभी तो किसान को अपने उत्पाद बेचने पर होने वाले नुकसान से उन्हें बर्बाद करना ज्यादा फायदेमंद लगता है। भगवानदास छारिया, इंदौर |
पुरस्कृत पत्र
किसानों को बंपर पैदावार से होने वाले नुकसान से बचने के लिए विभिन्न प्रकार के अलग-अलग फल-सब्जी एवं अनाज का उत्पादन करना चाहिए। वे बिचौलियों के माध्यम से अपनी फसलें बेचने से बचें। सीधे मंडियों में ही अपनी उपज बेचें। सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य पर अपनी उपज बेचने हेतु समय पर पंजीयन कराने से भी घाटे से बचा जा सकता है। भेड़चाल में शामिल होने की बजाय किसानों को खेती में नवाचारों को अपनाना चाहिए। खेती के आधुनिक तरीकों को अपनाकर भी किसान अपनी उपज का वाजिब मूल्य प्राप्त कर सकते हैं। ललित महालकरी, इंदौर, म.प्र. |
बड़ी हो लकीर
दस मार्च के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘बड़ी लकीर खींचने की हो राजनीति’ राहुल गांधी द्वारा इंग्लैंड में एक यूनिवर्सिटी तथा सदन में मोदी सरकार के खिलाफ दिए गए भाषण के साथ-साथ वर्तमान सरकार के बदले में अपनी नीतियां स्पष्ट करने की आवश्यकता पर बल देने वाला था। लेखक का मत है कि राहुल गांधी को इंग्लैंड में सरकारी नीतियों की आलोचना के साथ-साथ यह भी स्पष्ट करना चाहिए था कि अगर वे लोग सत्ता में आए तो आम जनता के लिए क्या-क्या करेंगे। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि देश की समस्याएं हमारा आंतरिक मामला है हम इसमें किसी विदेशी ताकत का हस्तक्षेप नहीं चाहते।
शामलाल कौशल, रोहतक
लोकोत्सव की झांकी
पांच मार्च के दैनिक ट्रिब्यून लहरें अंक में राजकिशन नैन का 'हंसी ठिठोली हुड़दंग टोली कहे जमकर खेलेंगे होली' लेख हरियाणवी होली पारंपरिक रीति-रिवाजों की गरिमा का सचित्र वर्णन करने वाला रहा। सप्तरंगी पर्व में आपसी सौहार्द, स्नेहिल संबंधों की मर्यादित शैली, ठेठ ग्राम्य सांस्कृतिक अंचल की जीवन झांकी की प्रस्तुति मन-मस्तिष्क में उभरती है। डॉ. रविंद्र गासो का लेख ‘पराक्रम की उमंग का रंगोत्सव होला महल्ला’ से जुड़ी ऐतिहासिक कथा का वर्णन करने वाला था।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
स्थायी हो समाधान
महानगरों में आवारा पशुओं की समस्या बढ़ती जा रही है। आवारा पशुओं की आवाजाही के कारण यातायात बाधित होता है तथा किसी की भी जान जा सकती है। ऐसी ही घटना अलीगढ़ में घटित हुई जहां एक मासूम बच्चे को सांड ने उठाकर पटक दिया। बच्चा जिंदगी और मौत से जूझ रहा है। महत्वपूर्ण यह है कि नगर निगम तभी एक्शन में आती है जब कोई बड़ी दुर्घटना हो जाती है। आवारा पशु अक्सर हिंसक हो जाते हैं जिससे बाजारों में अफरा-तफरी का माहौल बन जाता है। आवारा पशुओं का सरकार को कोई स्थायी हल निकालना चाहिए।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
दुरुपयोग का आरोप
छह मार्च के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित ‘केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप...’ खबर प्रधानमंत्री को विपक्षी दलों के खिलाफ स्वायत्त संस्थाओं के दुरुपयोग को लेकर लिखे गए पत्र का वर्णन करने वाली थी। पत्र में प्रधानमंत्री को उन लोगों के नाम भी बताए गये जिनके खिलाफ जांच के मामले चल रहे थे लेकिन उनके भाजपा ज्वाइन करते ही उनके खिलाफ कार्रवाई रोक दी गई। अदानी का नाम लिए बिना इस पत्र में एक कंपनी द्वारा गड़बड़ी किए जाने की बात भी कही गई है। भाजपा को यह याद रखना चाहिए कि समय-समय पर सरकारें बदलती रहती हैं।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
तस्करी पर लगाम
गुजरात के तट पर ईरान से लाया जा रहा 425 करोड़ रुपये का नशीला पदार्थ पकड़ा गया। करोड़ों रुपये की ड्रग्स पकड़े जाने के बाद पुलिस को और ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। दरअसल, पाकिस्तान हेरोइन सप्लाई करता है। ऐसा कर उसका इरादा भारतीय अर्थव्यवस्था पर सीधी चोट करने का ही रहता है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान ड्रग्स सप्लाई के मुख्य केंद्र बिंदु हैं। जरूरी है कि बंदरगाहों पर सुरक्षा और अधिक कड़ी की जाये ताकि इस प्रकार की अवैध तस्करी को रोका जा सके।
कांतिलाल मांडोत, सूरत
दूर की कोड़ी
भाजपा को सत्ताविहीन करने के लिए विपक्ष भले ही एकजुट होने की कवायद करता दिखता हो लेकिन वास्तविकता कुछ अलग ही है। विपक्षी एकता का मतलब सबकी अपनी अपनी डफली अपना अपना राग है। सभी क्षेत्रीय दल अपने-अपने गढ़ में मजबूत हैं जहां कांग्रेस का वजूद ही नहीं है या फिर इन दलों के सामने कहीं नहीं टिकती। कांग्रेस इस तथ्य को स्वीकार करने को तैयार ही नहीं कि उसकी हैसियत पहले जैसी नहीं रही जो वो अपनी पहले वाली चौधराहट दिखा सके। जब तक सभी विपक्षी दल अपने-अपने अहम को तिलांजलि नहीं देंगे तब तक विपक्षी एकता दूर की कोड़ी है।
चंद्र प्रकाश शर्मा, दिल्ली
विसंगति का आईना
चार मार्च के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘विकास की विसंगति से उपजी बदहाली’ सरकार द्वारा भारत की विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था होने के दावे की पोल खोलने वाला था। अगर कोई वैश्विक संगठन भारत की अर्थव्यवस्था की कमियां बताए तो उन्हें दूर करने के लिए सरकार को प्रयत्न करने चाहिए। पूछा जा सकता है कि अगर देश में सब कुछ ठीक-ठाक है तो हर साल लगभग एक लाख लोग भारत छोड़कर विदेशों में क्यों बसने लगे हैं। सरकार को कमरतोड़ महंगाई, बेरोजगारी, कुपोषण, भुखमरी, महंगी शिक्षा प्रणाली, आमदनी में कमी आदि समस्याओं को हल करने की कोशिश करनी चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
क्षेत्रवादी संकीर्णता
तमिलनाडु में बिहार के मजदूरों के साथ कथित मारपीट बेहद संवेदनशील घटना है। बिहार में विपक्षी दलों द्वारा इस मुद्दे पर सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया गया है, वहीं तमिलनाडु में भी विपक्षी पार्टियों ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। यह संतोषप्रद है कि इस कथित घटना पर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने फोन पर बात करके राज्यों के लोगों में विश्वास बढ़ाने का काम किया है। सभी राज्य सरकारों को चाहिए कि मजदूरों के साथ अत्याचार न हों। यह पहला अवसर नहीं है, इससे पहले भी ऐसा महाराष्ट्र में हिंदीभाषी ड्राइवरों और मजदूरों को मारपीट का सामना करना पड़ा था।
वीरेन्द्र कुमार जाटव, दिल्ली
गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार
ब्रिटेन में राहुल गांधी ने अपने भाषण में भारत सरकार की विदेश नीति की आलोचना की थी। यह पहली बार नहीं है जब गांधी ने विदेशी धरती पर सरकार के कार्यों की आलोचना की हो। इस तरह का व्यवहार अनुचित और गैर-जिम्मेदाराना है। पुतिन से लेकर बाइडेन और मेक्रों तक दुनियाभर के नेताओं ने मोदी की विदेश नीति के पक्ष में बात की है। राहुल को विदेशी धरती पर सरकार की आलोचना करने से बचना चाहिए। ऐसा करके वे अपनी पार्टी की छवि को धूमिल कर रहे हैं।
यश पाल राल्हन, जालंधर
गंभीर चुनौती
जिन लोगों ने 1980 से 1995 के दौर में पंजाब को नजदीक से देखा है, उनका पंजाब की वर्तमान परिस्थितियों से चिंतित होना लाजिमी है। बेरोजगारी के इस परिवेश में युवाओं का नशे की गिरफ्त में चले जाना ऊपर से धार्मिक भावनाओं को भड़काना कानून व्यवस्था को अधिक बिगाड़ सकता है। विदेशों में बैठे खालिस्तान समर्थक पंजाब के बिगड़ते इन हालातों का भरपूर फायदा उठा सकते हैं। ऐसे में हालातों पर काबू पाने के लिए राज्य पुलिस नाकाफी है। इससे पहले कि पाकिस्तान से सटे पंजाब का युवा विदेशियों के बहकावे में आए केंद्र सरकार को चाहिए कि अधिकाधिक सुरक्षा बल पंजाब में भेजे जाएं।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
ठोस विकल्प हो
कश्मीर में आतंकवादी कश्मीरी पंडितों को मार रहे हैं। वे किसी भी सूरत में कश्मीर में विकास की गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं करना चाहते। उनका मकसद कश्मीर को अशांत करना है। सरकार को कश्मीर में आतंकवादियों से निपटने के लिए कश्मीर में सुरक्षित कॉलोनियां बनानी चाहिए। इन कॉलोनियों में पूर्व सैनिक और पुलिस अधिकारियों को हथियार सहित बसाना चाहिए।
चंद्र प्रकाश शर्मा, दिल्ली
![]() आज संरक्षण कृषि व शुष्क कृषि को प्राथमिकता देने की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन के मद्देनज़र गेहूं फसल रोपण सारिणी में करीब एक पखवाड़े का बदलाव करके फसल की उत्पादन गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है। इसके साथ ही किसानों को किसान हैल्पलाइन नम्बर, ई-मौसम ऐप आदि से भी मौसम के पूर्वानुमान की सटीक जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि का अधिक प्रयोग करना चाहिए। पौधरोपण द्वारा भी जलसंकट, खाद्यान्न संकट से निपटने में सहायता मिल सकती है। रवि कुमार, बिलासपुर, (हि.प्र.) |
![]() ग्लोबल वार्मिंग की चुनौती से निपटने के लिए कृषि वैज्ञानिकों को खेत-खलिहान में जाकर स्थिति का आकलन करना पड़ेगा। सरकार को भी हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने, प्रकृति चक्र में मानवीय हस्तक्षेप कम करने की तरफ कदम बढ़ाने होंगे। प्रदूषण चाहे धार्मिक हो या कल-कारखानों का, उस पर सख्ती से नकेल डालनी होगी। कृषि प्रधान देश की कृषि नस्ल और फसल को बचाने के लिए जलवायु परिवर्तन के हिसाब से बीज तैयार करने तथा किसानों में भी जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है। जगदीश श्योराण, हिसार |
![]() प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करने का नतीजा है कि ग्लोबल वार्मिंग का गहरा असर हमारे जीवन पर पड़ रहा है। इसका सबसे ज्यादा असर कृषि पर पड़ा है जो हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। समय पर बारिश नहीं होना और ज्यादा गर्मी होने के कारण फसलों पर बुरा असर पड़ता है। खेती पर ग्लोबल वार्मिंग के असर को देखते हुए पानी की बर्बादी को रोकने और वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। परंपरागत खेती के स्थान पर वैज्ञानिक तरीके से खेती पर बल देने की जरूरत है। जफर अहमद, मधेपुरा, बिहार |
![]() आज जलवायु परिवर्तन के चलते फसलों, आबोहवा तथा जलस्रोतों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग संकट प्रभाव खाद्यान्न सुरक्षा के लिए भी चुनौती पैदा कर रहा है। ऐसे में हरित ऊर्जा को बढ़ावा, जीवाश्म ऊर्जा से परहेज़ तथा प्रकृति अनुकूल नीतियां बनानी चाहिए। हमारी उपभोक्तावादी संस्कृति और प्रकृति के चक्र में मानवीय हस्तक्षेप ने समस्या को जटिल बनाया है। ऐसे में हमें पौधे लगाने तथा हरित इलाके के विस्तार को प्राथमिकता देनी होगी, जिससे तापमान में वृद्धि होने से बचा जा सके। गेहूं, दलहन और तिलहन पर असर पड़ने का प्रभाव कम होगा। जयभगवान भारद्वाज, नाहड़, रेवाड़ी |
![]() कृषि अनुसंधान वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन प्रभावों से रहित नये किस्म के बीजों का आविष्कार कर कृषि क्षेत्रों में पहुंचाना चाहिए। किसानों को वैकल्पिक फसलों को उगाकर सीमित जलस्रोतों के उचित संरक्षण की ओर ध्यान देना चाहिए। अधिक उत्पादन व मुनाफे के लिए महंगे-खर्चीले रासायनिक उर्वरकों की अपेक्षा देसी खादों का उपयोग भी सहायक हो सकता है। प्रकृति से सामंजस्य बनाते हुए अधिक से अधिक पौधे लगाकर उनके उचित संरक्षण की जिम्मेदारी निभानी चाहिए ताकि ग्लोबल वार्मिंग से कुछ सीमा तक बचा जा सके। अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल |
![]() कार्बनिक ईंधन के जलने, वाहनों से निकलने वाला धुएं, दलदल क्षेत्रों में होने वाले अपघटन जैसी क्रियाएं ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं। पृथ्वी के बढ़ते तापमान का कुप्रभाव जंतुओं के साथ-साथ हमारे फसल उत्पादन पर भी हो रहा है। ऐसे में जहां एक ओर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने की जरूरत है, वहीं दूसरी ओर फसल उत्पादन को सुनिश्चित करने के लिए ऐसी फसलों का चयन करना होगा जो उच्च तापमान में भी अधिक उत्पादन प्रदान कर सकें। मिश्रित फसल, अंतर फसल जैसी खेती-विधियां अपनाकर पूर्ण उपज असफलता को रोका जा सकता है। राजेंद्र कुमार शर्मा, देहरादून, उत्तराखंड |
पुरस्कृत पत्र
खेती को ग्लोबल वार्मिंग से बचाने के लिए हमें इस्राइल की बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली को अपनाना होगा। वाटर हार्वेस्टिंग के साथ ही पानी को फसलों के लिए संगृहीत करने के लिए विभिन्न व्यवस्थाएं भी करनी होंगी। खेती में ऐसी उन्नत तकनीक व विज्ञान का प्रयोग करना होगा जो पानी की बचत कर सके। खेती में ऐसे नये बीजों, फसलों का विकास करना होगा जो सूखे और अधिक तापमान को झेल सकें तथा पानी, उर्वरकों की आवश्यकता भी कम हो। जलवायु शोध एवं प्रबंधन संस्थान कृषि शोध संस्थानों के आसपास स्थापित करने होंगे। सुनील कुमार महला, पटियाला, पंजाब |
जनाधार को विस्तार
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में से दो राज्यों में ‘मोदी मैजिक’ बरकरार रहा। त्रिपुरा एवं नगालैंड में भाजपा ने पुन: राजनीतिक रुतबा हासिल किया। जबकि, मेघालय में भाजपा अपना जलवा कायम नहीं रख पायी। त्रिपुरा एवं नगालैंड में सूपड़ा साफ होने से कांग्रेस इन राज्यों से हाशिये पर नजर आ रही है। मेघालय में एनपीपी ने सबसे अधिक सीट हासिल की है। हालांकि यहां किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला लेकिन भाजपा एनपीपी के साथ मिलकर सरकार बनाएगी। भाजपा पूर्वोत्तर में अपना जनाधार बढ़ाकर अब छह राज्यों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों पर भी अपनी पैनी नजर गढ़ाए हुए है।
ओम प्रकाश उनियाल, देहरादून
संवेदनाओं की कहानी
छब्बीस फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून अध्ययन कक्ष अंक में डॉ. प्रदीप उपाध्याय की ‘नीम का पेड़’ कहानी दिल की गहराइयों में उतरने वाली रही। बुजुर्ग माता-पिता की सेवा से विमुख होती वर्तमान युवा पीढ़ी स्वार्थवश उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचाने में संकोच नहीं करती। वे भूल जाते हैं कि उन्हें भी एक दिन इस दौर से गुजरना है। सूखते नीम के प्रति कथा नायक की चिंता अपने-अपनों से बिछुड़न अहसास की अंतरंग अभिव्यक्ति है। गद्यात्मक छाया शैली के परिप्रेक्ष्य में संदीप जोशी के चित्रांकन से कहानी मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ती है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
समरसता जरूरी
दो मार्च के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘समरसता की शर्त’ केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आगे कुछ ऐतिहासिक नामों में परिवर्तन करने की प्रार्थना को अस्वीकार किए जाने का विश्लेषण करने वाला था। पुराने शहरों, सड़कों, इमारतों आदि के नाम का परिवर्तन राजनीतिक लाभ प्राप्ति के लिए करना समाज में असहिष्णुता की भावना पैदा करेगा। इतिहास को नए सिरे से नहीं लिखा जा सकता। सामाजिक समरसता के लिये सामंजस्य स्थापित करना ही होगा।
शामलाल कौशल, रोहतक
महाधिवेशन के निहितार्थ
अठाईस फरवरी का संपादकीय ‘आशावाद की कसौटी’ पढ़ा। कांग्रेस की स्थिति दयनीय है लेकिन लगातार हार का सामना कर रही कांग्रेस को 85वें महाधिवेशन से बड़ी उम्मीद बंधी है। आने वाले चुनावों में पार्टी ने खुद को भाजपा का मजबूत विकल्प बताया है जिसकी चुनावों में परख अधिवेशन की सफलता जाहिर करेगी। अधिवेशन में जिस तरह राहुल गांधी की यात्रा को लेकर उत्साह नजर आया वह तात्कालिक लाभ तो नहीं पर पार्टी के लिए च्यवनप्राश का काम करेगा। चुनावी समर में सत्ता की संभावनाएं तलाशते इस अधिवेशन से अगर कांग्रेस को विपक्ष का मुखिया बनने का मौका मिलता है तभी असली मायने में इसकी सफलता आंकी जा सकती है।
अमृतलाल मारू, इंदौर
भाजपा को लाभ
तीन राज्यों त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय के विधानसभा चुनाव के परिणाम स्पष्ट संकेत हैं कि भारतीय जनता पार्टी का जलवा कायम है। त्रिपुरा में भाजपा एवं सहयोगियों को पूर्ण बहुमत मिला है और त्रिपुरा में किए गए भाजपा द्वारा कार्यों पर मोहर लगाई है। नगालैंड में एनडीपीपी गठबंधन जिसमें बीजेपी भी शामिल है, सरकार बनाने में कामयाब रहेगी। मेघालय में एनपीपी और बीजेपी अलग चुनाव लड़े लेकिन एनपीपी के नेतृत्व में वहां पर सरकार बनने की संभावना है जिसमें बीजेपी शामिल हो सकती है। तीनों राज्यों में एक बात स्पष्ट है कि कांग्रेस को नार्थ ईस्ट में आशा अनुरूप कामयाबी नहीं मिली।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
सांप्रदायिकता घातक
देश के कई राज्यों में गोभक्ति के नाम पर सांप्रदायिक कट्टरता को बल दिया जा रहा है। गोरक्षा के लिए कानून पर्याप्त है, जिसकी अनुपालना पुलिस विभाग को करवानी होती है। लेकिन कुछ लोगों द्वारा कानून को हाथ में लेकर मानवता को शर्मसार किया जा रहा है। हरियाणा में हालात चिंतनीय हैं। धार्मिक क्षेत्रवाद प्रदेश ही नहीं राष्ट्र के लिए भी घातक है। देश में सभी धर्मों का सम्मान होना चाहिए।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
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सज़ा दर बढ़े
पहली मार्च के दैनिक ट्रिब्यून में आलोक मित्तल का ‘गंभीर अपराधों में सजा दर बढ़ाना जरूरी’ लेख गंभीर विषय पर चर्चा करने वाला था। देश में अपराधों में निरंतर वृद्धि हो रही है। उसके बहुत सारे कारणों में एक कारण दोषसिद्धि दर में कमी, मुकदमों का लंबे समय तक चलते रहना, गंभीर अपराधों की उसी के मुताबिक सजा न दिया जाना, गवाहों का मर जाना अथवा मुकर जाना, महिला यौन-शोषण मामलों का दर्ज न होना आदि हैं। इन सब बातों से जनता का न्यायतंत्र की प्रणाली में विश्वास कम होता है। इसके अलावा न्यायालयों में जजों की कमी से भी गंभीर अपराधों के लिए सख्त सजा देने में देरी हो जाती है। अगर न्यायिक व्यवस्था में विश्वास कायम रखना है तो अपराधों की गंभीरता के अनुसार अपराधी को जल्द से जल्द सज़ा देनी चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
सुरक्षा पुख्ता हो
बीते दिनों कश्मीर में एक कश्मीरी पंडित की गोली मारकर हत्या की गई। सरकार ने दावा किया है कि कश्मीर में हरेक व्यक्ति की सुरक्षा के लिए सुरक्षाकर्मियों का बंदोबस्त है। हालांकि जम्मू-कश्मीर में चुनाव प्रक्रिया शुरू हो रही है। विघटनकारियों में बौखलाहट बढ़ती जा रही है। देश-विदेश से मिलने वाली फंडिंग समाप्त हो गयी है। वहीं पाकिस्तान के खस्ताहाल से आतंकियों की नींद उड़ गई है। बौखलाहट में वे कश्मीरियों को अपना निशाना बना रहे हैं। सेना भी जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम कर रही है। सरकार कश्मीर पंडितों की सुरक्षा को पुख्ता बनाये।
कांतिलाल मांडोत, सूरत
जनधन पर विलासिता
खबरों की मानें तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने पिछले 4 माह में सरकारी आवास पर खाने पर दो करोड़ 38 लाख रुपए का खर्च किया है। महाराष्ट्र के विपक्षी दल सरकार पर निशाना साध रहे हैं। आम जनता को खाने के लाले पड़े हुए हैं। सरकार 80 करोड़ गरीबों को अनाज दे रही है। कई किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। महंगाई, बेरोजगारी ने कमर तोड़ रखी है। ऐसे में इस प्रकार के विलासी भोज वाकई में निंदनीय है।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
पाक को आईना
गीतकार एवं शायर जावेद अख्तर ने पाकिस्तान की सर-जमीन पर लाहौर में भारत का पक्ष जोरदार ढंग से रखा है। फैज महोत्सव के दौरान 26/11 के मुंबई आतंकी हमले का जिक्र करते हुए पाकिस्तान की सरकार को घेरते हुए कहा कि आज भी इस घटना में लिप्त आतंकी पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहे हैं। भारत में मेहदी हसन और नुसरत फतेह अली खान जैसे पाकिस्तानी फनकारों का जोरदार स्वागत किया जाता है लेकिन भारत की महान गायिका लता मंगेशकर का एक भी कार्यक्रम पाकिस्तान में नहीं किया गया है, नि:संदेह उन्होंने पाकिस्तान को आईना दिखाया है। सभी भारतीयों को अपनी मातृभूमि पर फक्र होना चाहिए। इसी अंदाज में विरोधी ताकतों के समक्ष अपनी बात रखनी चाहिए।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
एकजुटता जरूरी
बाईस फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘सिद्धांत वादी राजनीति की हो ईमानदार कोशिश’ विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा आपसी मतभेद तथा महत्वाकांक्षा को तिलांजलि देकर एकजुटता पर बल देने वाला था। विपक्षी दलों को केवल सत्ता के लिए नहीं बल्कि नीतियों तथा जनहित विचारों की राजनीति करनी चाहिए। नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी तथा तेलंगाना के चंद्रशेखर राव देशहित के बदले में स्वयं प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब देख रहे हैं। इन्हें अपनी महत्वाकांक्षा अहंकार को त्याग कर एकजुटता दिखानी चाहिए। सभी जानते हैं कि कोई भी अकेला नेता या दल मोदी का मुकाबला नहीं कर सकता।
शामलाल कौशल, रोहतक
नीतियों का निर्धारण
कांग्रेस ने 85वें महाधिवेशन के बाद आने वाले चुनावों में खुद को भाजपा का मजबूत विकल्प बताया है। जिसकी चुनावों में परख अधिवेशन की सफलता जाहिर करेगी। अधिवेशन में जिस तरह राहुल गांधी की यात्रा को लेकर उत्साह नजर आया वह तात्कालिक लाभ तो नहीं पर पार्टी के लिए च्यवनप्राश का काम करेगा। कांग्रेस को देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार भी अपनी नीतियों का निर्धारण करना होगा।
अमृतलाल मारू, इंदौर
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :- dtmagzine@tribunemail.com