आपकी राय
लोकतंत्र के हित में
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारों और मनी लांड्रिंग एक्ट के संदर्भ में जो निर्णय दिए हैं वे स्वागतयोग्य है। सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारों को जायज ठहराते हुए, उसके अधिकारों की पैरवी भी की है। अगर ईडी के पास ये सब अधिकार नहीं होते तो पश्चिम बंगाल के एक कैबिनेट मंत्री के नजदीकी के घर से करोड़ों की बरामदगी कैसे की जाती?
राजेंद्र कुमार शर्मा, देहरादून, उत्तराखंड
निराशाजनक रवैया
जब भी रणवीर का ताजा एवं स्वच्छ छवि का चेहरा सब दर्शकों के सामने आता था तब हमेशा एक चुस्ती-फुर्ती वाले कलाकार की इमेज लोगों में बस जाती थी। परंतु आज के अखबारों में रणवीर ने जो तस्वीर दी है उससे उनके हजारों-लाखों प्रशंसकों को निराशा हुई है। आज कपिल देव जैसी स्वच्छ छवि वाले व्यक्तित्व को भी इसे देखकर काफी दुख हुआ होगा क्योंकि वे अपनी छवि को उनमें देखकर खुश होते थे।
एमएम राजावत राज, शाजापुर
जहरीला कारोबार
अवैध और जहरीली शराब का कारोबार कानून पर भारी पड़ता नजर आता है। गत दिनों गुजरात में अवैध शराब से बड़ी संख्या में लोगों की मौत और कइयों का मौत से जूझना, इसके दोषियों के लिए 10 साल की कैद और 5 लाख के जुर्माने के सख्त प्रावधान को भी ठेंगा दिखाता है। अब जबकि इस हादसे के बाद राज्य सरकार हरकत में आई है तो देखना यही है कि शराबबंदी का दौर कितने दिनों तक और चलेगा?
अमृतलाल मारू, महालक्ष्मी नगर, इंदौर
शर्मनाक टिप्पणी
कांग्रेसी सांसद अधीर रंजन चौधरी द्वारा राष्ट्रपति के संदर्भ में की गई टिप्पणी सभी भारतीयों को शर्मसार करने वाली घटना है। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को आगे आकर इस मुद्दे पर अपना वक्तव्य देना चाहिए। यदि सोनिया गांधी इस पर अफसोस प्रकट करती हैं तो न केवल कांग्रेस पार्टी की फजीहत कम होगी बल्कि अनावश्यक विवाद से बचा जा सकता है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
पर्यावरण की जिम्मेदारी
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस का मुख्य उद्देश्य प्रकृति के प्रति जागरूकता का प्रसार भी है। आज प्रकृति से खिलवाड़ का बुरा नतीजा हम मौसम के चक्र बदलाव और प्राकृतिक आपदाओं के रूप में देख रहे हैं। दिन-प्रतिदिन गर्मी बढ़ती जा रही है, हरेभरे वृक्ष घटते जा रहे और कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं। बढ़ती गर्मी इंसान के अस्तित्व के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण प्राणी जाति के लिए हानिकारक है। इसी कारण शायद कुछ प्रजातियां विलुप्त भी हो गई हैं। जरूरत इस बात की है कि बरसात के मौसम में अधिक से अधिक पौधे लगायें ताकि आने वाले संकट से बचा जा सके।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
कल्याण का भरोसा
सत्ताईस जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘आदिवासियों को मुख्यधारा से जोड़ना जरूरी’ देश की 15वीं राष्ट्रपति, आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू के पद ग्रहण के बाद आदिवासी लोगों की स्थिति में सुधार की आशा जगाने वाला था। वैसे तो भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू को महिला होने के साथ-साथ आदिवासी के तौर पर चयनित करके यह बताने की कोशिश की है कि भारत के संविधान के अनुसार किसी भी वर्ग का व्यक्ति राष्ट्रपति बन सकता है। वहीं श्रीमती मुर्मू ने पद ग्रहण करते हुए आदिवासियों का हरसंभव कल्याण करने का भरोसा दिलाया है।
शामलाल कौशल, रोहतक
निलंबन उचित नहीं
महंगाई और आवश्यक चीजों पर वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) लगाने पर बहस को लेकर संसद में सियासी रार और बढ़ गई। मानसून सत्र के दौरान लोकसभा के सदस्यों को निलंबित करना बिना किसी चेतावनी के उठाया गया कदम है। उन्हें सिर्फ इसलिए निलंबित किया गया कि वे करों में वृद्धि के खिलाफ थे। उनका निलंबन उचित नहीं कहा जा सकता। सरकार को कर वृद्धि पर उठाए गए सवालों का उत्तर देना चाहिए था।
पारुल गुप्ता, फतेहगढ़ साहिब
चीन के मंसूबे
बीते वर्षों में चीन ने पाक अधिकृत कश्मीर में एक ऐसी परियोजना पर काम शुरू किया है, जिससे वह अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करे। भारत के विदेश मामले के प्रवक्ता ने पाकिस्तान को कड़े शब्दों में चेताया है और कहा कि पीओके भारत और पाकिस्तान के बीच का आंतरिक मामला है। इसमें तीसरे देश की दखलंदाजी कतई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। वहीं, दूसरी ओर इस इलाके में चीन द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्य से इलाके में रहने वाले लोग भी नाराज हैं। ऐसे में यह देखना लाजिमी होगा कि भारत के इस जवाब के बाद पाकिस्तान और चीन पर कितना असर पड़ता है?
शशांक शेखर, नोएडा
विक्रमसिंघे की चुनौती
श्रीलंका के नये राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने विषम हालातों जिस तरह से सत्ता संभाली है उसके सुधरने में अभी लंबा वक्त लगेगा। श्रीलंका न सिर्फ आर्थिक दृष्टिकोण बल्कि राजनीतिक हालात से भी पूरी तरह पस्त है। ऐसे में भारत की तारीफ करनी होगी कि उसने बगैर देर किए मानवता के नाते संकटग्रस्त श्रीलंका को यथा योग्य मदद दी है। हर मोर्चे पर बुरी तरह फेल श्रीलंका के हालात रानिल की कड़ी परीक्षा लेंगे। ऐसे में उन्हें अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए देश को बचाना होगा।
अमृतलाल मारू, दसई धार, म.प्र.
सुरक्षा का मुद्दा
चौबीस जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में खबर ‘यूपी सहित पांच राज्यों के गैंगस्टर फेसबुक व सोशल मीडिया पर एक्टिव/सुरक्षा एजेंसियों ने दिया इनपुट...’ हरियाणा के लिए चेतावनीपूर्ण थी। सिद्धू मूसेवाले के कत्ल ने साबित कर दिया है कि गैंगस्टर जेलों के अंदर भी आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। हरियाणा में ऐसी गतिविधियां चिंता पैदा करने वाली हैं। विधायकों को मिलने वाली धमकी हरियाणा में गुप्तचर एवं सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक चुनौती है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
योग्यता पर सवाल
देश की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की प्रचंड जीत साबित करती है कि भारतीय लोकतंत्र में इतना सामर्थ्य है जो हर किसी आम आदमी को शीर्ष पद तक के अवसर उपलब्ध करा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि 15 सांसदों का वोट रद्द पाया गया है। माना तो यह जाएगा कि हमारे सांसदों को वोट तक डालना नहीं आता। सवाल उठता है कि जिन सांसदों को वोट तक डालना नहीं आता उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है। सांसदों का वोट रद्द होना संसद में उनके कार्यों की भूमिका पर सवाल उठाता है।
सोहन लाल गौड़, बाहमनीवाला, कैथल
महंगाई का दंश
रोजमर्रा के सामान की कीमतें इतनी ज्यादा हो गई हैं, बेकारी बढ़ गई है, आमदनी इतनी कम हो गई है कि लोगों के लिए गुजारा करना मुश्किल हो रहा है। निर्यात के मुकाबले में आयात में ज्यादा वृद्धि, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल की कीमतों में उछाल कीमत वृद्धि के कारण हैं। जीएसटी में दूसरी बार वृद्धि ने आग में घी का काम किया। सरकार को कीमतों को नियंत्रित करने के लिए तुरंत आवश्यक उपाय अपनाने चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
साहसिक यात्रा
भारत की नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने प्रथम संबोधन में अपनी साहसिक यात्रा के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि बेहद कठिन परिस्थितियों में रहकर वे इस मुकाम तक पहुंची हैं। उन्होंने राष्ट्रपति पद तक पहुंचने के सफर को व्यक्तिगत उपलब्धि न मानकर विनम्रता का परिचय दिया है। भारत के आदिवासियों व जनजातीय समाज के लिए यह गौरव का विषय है कि उनकी बेटी भारत के सर्वोच्च पद पर हैं।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
पेट्रोलिंग आसान
हरियाणा के मुख्यमंत्री द्वारा शुरू किए गए स्मार्ट ई-बीट सिस्टम से न केवल पुलिस बल्कि समाज को भी लाभ मिलेगा। पुलिस के लिए पेट्रोलिंग और सुरक्षा जांच करना अब और आसान हो जाएगा। सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उन्हें दी गई बाइक को ट्रैक किया जा सकता है, जिससे नागरिकों को तत्काल सहायता प्रदान करने में मदद मिलेगी।
राजबीर सिंह, शाहकोट
जांबाजों को नमन
आज ही के दिन देश के जांबाज सैनिकों ने पाकिस्तान को कारगिल युद्ध में करारी शिकस्त देकर, कारगिल की चोटियों पर भारत का तिरंगा फहराया था। पाकिस्तान ने जब-जब भी अपनी नापाक हरकतों की लक्ष्मण रेखा पार की है, तब-तब उसे हर युद्ध में मुंह की खानी पड़ी है। कारगिल के जांबाजों की शहादत को याद करते हुए, देश के हरेक नागरिक को अपने दिल में देश के प्रति प्रेम भरना चाहिए। ऐसे वीर, दृढ़निश्चयी कारगिल के जांबाजों को शत-शत नमन!
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
सावधानी जरूरी
दुनिया को कोरोना महामारी से अभी मुक्ति भी नहीं मिली थी कि मंकीपॉक्स वायरस ने लोगों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। बीमारी के लगातार बढ़ते प्रकोप को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी मंकीपॉक्स वायरस को ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया है। जरूरी है कि समय रहते सरकार मंकीपॉक्स महामारी से निपटने के लिए सावधानी बरतना शुरू कर दे।
शशांक शेखर, नोएडा
जन संसद की राय है कि कोरोना महामारी से उपजे हालात ने श्रीलंका का मुख्य पर्यटन उद्योग ठप किया, लेकिन संकट की मूल वजह राजपक्षे परिवार का भ्रष्टाचार, अविवेकपूर्ण कर्ज नीति, लोकलुभावन नीतियां तथा सत्ता की संवेदनहीनता ही है।
लोकलुभावन राजनीति
आज श्रीलंका अपने शासकों की तुगलकी नीतियों व कोरोना संकट की त्रासदियों से इस कदर बदहाली पर पहुंच गया कि लोग भयावह महंगाई, खाद्यान्न संकट व जीवनयापन की मूलभूत जरूरतों को भी तरस गए हैं। देश दिवालिया होने की कगार पर है। श्रीलंका में गहराए राजनीतिक संकट के मूल में बड़ी वजह कुशासन, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और कोरोना संकट के बावजूद लोकलुभावन नीतियों को लेकर अनाप-शनाप शाही खर्च करना भी है। यह भारत जैसे देशों के लिए सबक भी है। देश के हुक्मरानों को सोचना होगा कि महज परिवर्तन का श्रेय लेने की होड़ में स्थापित व्यवस्थाओं से खिलवाड़ न करें।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
सबक लें
माना जा सकता है कि श्रीलंका के पर्यटन उद्योग पर कोरोना के कहर को एकदम रोकना संभव न था। लेकिन समय रहते लोकलुभावन नीतियों को बदलना, घटते विदेशी मुद्रा भंडार को काबू करना, रोजगार के अवसर बढ़ाना, फसलों की गिरती पैदावार को रोकना, रोजगार के अवसर बढ़ाना, जनता के कष्टों के प्रति संवेदनशील होना और कमाई अठन्नी व खर्चा रुपया जैसी नीतियों पर तो सरकार काबू पा ही सकती थी। इस जनक्रांति से सबक लेकर अन्य देशों को भी कर्जा लेकर घी पीने की नीतियों को छोड़ना पड़ेगा।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
भारी कर्ज का जाल
चीन के बहकावे में आकर श्रीलंका ने बिना सोचे-विचारे कर्ज लेकर आर्थिक व्यवस्था को इस तरह चकनाचूर कर दिया कि लोगों को भुखमरी, महंगाई और आर्थिक कठिनाई का मुंह देखना पड़ा। मजबूरन त्रस्त जनता को अराजकता का सहारा लेना पड़ा। वस्तुत: कर्जा उतना ही लिया जाये, जो समय पर चुकाया भी जा सके या देश के लिए हानिप्रद न हो। जरूरत है चीन के बहकावे में आए देशों को श्रीलंका से सबक लेना होगा और चीन की नीति और नीयत का खुला विरोध करना होगा ताकि अन्य देशों को भी चीन अपनी गिरफ्त में न ले सके।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
मनमाने फैसले
श्रीलंका में कोरोना संकट के कारण वहां की आय का प्रमुख स्रोत पर्यटन उद्योग ठप हो गया। विदेशी मुद्रा कम होने से जीवन उपयोगी वस्तुओं की आपूर्ति बंद हो गई। ईंधन, खाद्यान्न और कागज तक की भयंकर कमी हो गई, जिसके कारण बच्चों की परीक्षाएं तक स्थगित करनी पड़ीं। रासायनिक खादों का आयात रोक कर आर्गेनिक खेती करने की तुगलकी कृषि नीति से फसलों के चौपट होने पर खाद्यान्न संकट बढ़ा। सत्ताधीशों के मनमाने फैसलों से हालात बदतर होते गए। चुनाव जीतने के लिए इस प्रकार की नीति कतई अवांछित है। श्रीलंका में 2019 के चुनाव जीतने के लिए करों में भारी कमी की गई थी। परिणाम सब के सामने हैं।
शेर सिंह, हिसार
अलोकतांत्रिक कदम
श्रीलंका भारी आर्थिक संकट में आ चुका है। वहां जन आक्रोश फैल रहा है, हिंसा होने की भी खबरें आयीं। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के प्रति आमजन का गुस्सा सामने आया। यह गुस्सा जायज भी है, क्योंकि शीर्ष नेतृत्व की गलत नीतियों के कारण ही श्रीलंका आर्थिक संकट के दलदल में डूबा। वहीं महामारी कोरोना ने आर्थिक व्यवस्था को पूरी तरह चौपट कर दिया। आयात-निर्यात की प्रक्रिया को प्रभावित किया। भारत को भी श्रीलंका से सबक लेते हुए फिजूल के खर्चों को कम करना चाहिए।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
जनविरोधी नीतियां
श्रीलंका में जटिल आर्थिक संकट से हालात बड़े भयावह हो गए। असल में यह जनविरोधी गलत आर्थिक नीतियों का ही परिणाम है, जिससे शासक और शासित के बीच खाई बढ़ती गई और ऐसे हालात बने। संसाधनों तथा जनसंख्या में असंतुलन और रोजगार के अभाव में ही प्रायः ऐसा व्यापक असंतोष और आक्रोश होता है। रोजगार और जनवादी नीतियों से ही देश आर्थिक रूप से आगे बढ़ता है। आज वहां लालबहादुर शास्त्री जैसे ईमानदार, विश्वसनीय नेतृत्व का अभाव है। यही कारण है कि आज श्रीलंका आर्थिक संकट की भयावह स्थिति से गुजर रहा है।
वेद मामूरपुर, नरेला
पुरस्कृत पत्र
परिवारवादी राजनीति
श्रीलंका संकट का प्रमुख सबक है परिवारवादी राजनीति से तौबा। श्रीलंका की बर्बादी के लिए मुख्यतः भ्रष्ट राजपक्षे परिवार ही जिम्मेदार है। श्रीलंका की सत्ता में राजपक्षे परिवार का दखल अंग्रेज़ों के शासन में डॉन डेविड राजपक्षे से शुरू होकर वर्तमान समय में देश के 70 फीसदी बजट पर प्रत्यक्ष नियंत्रण तक पहुंच गया। परिवारवादी राजनीति से राजपक्षे परिवार ताकतवर और श्रीलंका कमजोर होता गया। भारत में भी राष्ट्रीय से लेकर क्षेत्रीय दलों तक में परिवारवाद हावी है। समय आ गया है कि देश की जनता नेताओं की पारिवारिक पृष्ठभूमि के बजाय उनकी विचारधारा, काम, समर्पण और नीतियों को प्राथमिकता दे।
बृजेश माथुर, गाजियाबाद
प्रभावशाली कहानी
सत्रह जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून लहरें अंक में वीणा सेठी की ‘ममता की कोख’ कहानी दिल को छूने वाली रही। कथा नायिका सपना का आदर्श व्यक्तित्व कुलीन-मर्यादित व्यावहारिकता की मिसाल कायम कर कथानक को अत्यंत प्रभावशाली बना गया। एक ओर अपने जिगर के टुकड़े को देने की चिंता उसे खाए जा रही थी, वहीं सपना के पति आशुतोष ने घरेलू सुख-शांति के लिए दूसरे को गोद न देने का इरादा कर बचा लिया। प्रभावशाली कहानी की प्रासंगिकता रोचकता बढ़ाने में कामयाब रही।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
ऋषि को लेकर उत्साह
ब्रिटेन में राजनीतिक अस्थिरता के बीच प्रधानमंत्री की खोज जारी है। सत्तारूढ़ कंजरवेटिव पार्टी के नए नेता के चुनाव में भारतीय मूल के ऋषि सुनक वोटिंग में आगे रहे हैं। भारतवंशी सुनक के आगे होने से हर भारतीय में उत्साह हैै। विचित्र संयोग है कि कभी भारत को गुलाम रखने वाला ब्रिटेन खुद उसी के बेटे को राजसत्ता सौंपेगा। निश्चित रूप से ऐसे क्षण हर भारतीय के लिए ऐतिहासिक रहेंगे।
अमृतलाल मारू, दसई धार, म.प्र.
दमखम पर भरोसा
राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने वाले खिलाड़ियों के मनोबल को बढ़ाते हुए देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘जमकर खेलो, तनाव के बिना खेलो, जी भर के खेलो।’ नि:संदेह, प्रधानमंत्री के संबोधन से इन खिलाड़ियों का न केवल मनोबल बढ़ा है बल्कि दुगने उत्साह से राष्ट्रमंडल खेलों में शानदार प्रदर्शन करेंगे। हम भारतवासियों को अपने खिलाड़ियों के दमखम पर पूरा भरोसा है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
सुरक्षा का सवाल
दुखद है कि खनन अपराधियों को आत्मसमर्पण करने के लिए कहने वाले पुलिस अफसर की बेरहमी से हत्या कर दी गई। यह दर्शाता है कि अपराधी कानून-व्यवस्था से कितना डरते हैं। सवाल उठता है यदि पुलिस सुरक्षित नहीं है तो राज्य कैसे सुरक्षित हो सकता है। सरकार को पुलिस कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
पारुल गुप्ता, फतेहगढ़ साहिब
खनन माफिया
शायद ही कोई राज्य ऐसा हो जहां अवैध खनन न हो रहा हो । खनन माफिया किस कदर बेखौफ हो इस अवैध कारोबार को अंजाम देते हैं इसका अंदाजा हरियाणा में डीएसपी की डंपर से कुचलकर की गई हत्या से लगाया जा सकता है। कानून के शासन को चुनौती देने वाली इस घटना के बदले केवल खनन माफियाओं पर ही कार्रवाई से कुछ होने वाला नहीं है बल्कि उन कारणों तक जाने की जरूरत है जिसके चलते ये खनन माफिया इतनी दुस्साहसी घटना को अंजाम देने से भी नहीं घबराते।
निक्की सचिन जैन, मुजफ्फरनगर
कानून व्यवस्था को चुनौती
बीस जुलाई को दैनिक ट्रिब्यून में सम्पादकीय ‘खूनी खनन’ तावड़ू की दर्दनाक घटना तथा शासन की खनन माफिया के प्रति ढुलमुल नीति और प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति पर सटीक चोट करने वाला था। इसमें कोई संदेह नहीं कि एनजीटी व अन्य कई संस्थाएं समय-समय पर अनेक घटनाओं की जानकारियां सरकार एवं प्रशासन तक पहुंचाती हैं परन्तु तंत्र पर जूं तक नहीं रेंगती, जिसकी परिणति जांबाज अफसरों व कर्मियों की हत्या के रूप में होती है।
एमएल शर्मा, कुरुक्षेत्र
बारिश वरदान भी
वर्षा ऋतु में भारी बारिश से लोगों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा रहा है। कहीं जलभराव तो कहीं बाढ़ ने कहर बरपाया है। लेकिन इस सब के बावजूद बरसात वरदान भी है। यदि बरसात के मौसम में पर्याप्त बारिश नहीं होगी तो भूमिगत जलस्तर ऊपर नहीं उठेगा, जिससे आने वाले समय में पीने के पानी के साथ-साथ सिंचाई जल की उपलब्धता बहुत कम हो जाएगी। अतः बरसात का मौसम भारी मुश्किलों के साथ-साथ एक वरदान भी है। इसलिए इस पानी को व्यर्थ न जाने दें, संगृहीत करें।
नरेन्द्र कुमार शर्मा, जोगिंद्र नगर
विकास के लिए घातक
सत्रह जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित ‘रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिए घातक : मोदी’ खबर चुनावों में मतदाताओं को भरमाने-लुभाने के लिए मुफ्त की सुविधाएं देने आदि का विश्लेषण करने वाली थी। निश्चित रूप से सरकारी खजाने पर बोझ पड़ता है। सरकारों का बहुत सारा पैसा इन सुविधाओं के जुटाने में लग जाता है। परिणामस्वरूप सरकार को नए टैक्स लगाने पड़ते हैं या फिर ऋण लेकर काम चलाना पड़ता है। इस तरह की परिपाटी को राजनीतिक भ्रष्टाचार ही कहा जाएगा। ऐसे रेवड़ी कल्चर से बहुत सारी सरकारें दिवालियेपन के नजदीक पहुंच गई हैं।
शामलाल कौशल, रोहतक
पोषक आहार की कमी
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की पांचवीं रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि देश में बच्चों में कुपोषण और मोटापा बढ़ता जा रहा है। इससे पहले भी राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ है कि देश में अशिक्षित या गरीब परिवारों के बच्चे ही नहीं, बल्कि शिक्षित और अमीर घरानों के बच्चे भी पोषक आहार से दूर होते जा रहे हैं। देश में बच्चों का खानपान उचित न होने के कारण उनकी सेहत खराब हो रही है। भारतीय परंपरा में जो खानपान और जीवनशैली अपनाने की शिक्षा है वो हमारे रोगमुक्त, सादगी से जीवन व्यतीत करने के लिए बेहद जरूरी है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
महंगाई का दंश
देश में महंगाई की मार लगातार जारी है। आलम यह है कि आम लोग अपनी जेब ढीली करके अपने उपयोग की जरूरी वस्तुएं खरीद रहे हैं। ऐसे में पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे आम जन को एक बार फिर से सरकार ने झटका दिया है। अब डिब्बा बंद सामग्रियों पर जीएसटी लगा कर कीमतें बढ़ा दी हैं। यह आम नागरिकों के लिए दोहरे झटके से कम नहीं है। सरकार को बढ़ती महंगाई पर काबू पाने का प्रयास करना चाहिए।
शशांक शेखर, नोएडा
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :- dtmagzine@tribunemail.com
संकीर्ण मानसिकता
देवी-देवताओं की खिल्ली उड़ाकर सस्ती लोकप्रियता हासिल करना आज आम बात हो गई है। चाहे वह फिल्म कलाकार हो या चित्रकार या अन्य कोई। इन दिनों भारतीय मूल की लीना मणिमेकलाई की अपनी फिल्म प्रचार में मां कालिका के चित्र को लेकर देश में बवाल हुआ है। विदेश ही नहीं, देश में भी इस तरह की घटनाएं सामने आती है लेकिन उन्हें उचित दंड न मिलने के कारण सारा मामला विरोध तक ही सीमित रहता है। चित्र में इस तरह प्रस्तुत कर लीना मणिमेकलाई ने संकीर्ण मानसिकता का परिचय दिया है।
अमृतलाल मारू, दसई धार, म.प्र.
चीन को जवाब
पन्द्रह जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में विवेक काटजू का ‘घात और बात की चीनी रणनीति के खतरे’ लेख भारत के प्रति चीन की कथनी और करनी का पर्दाफाश करने वाला था। चीन भारत के साथ संबंध सुधारने के पक्ष में नहीं है। चीनी नेताओं की विस्तारवादी नीति के चलते भारत समेत 18 अन्य देशों के साथ सीमा विवाद चल रहा है। भारत बेशक समस्याओं के हल होने की उम्मीद करता है लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकलता। इसके जवाब में भारत को आर्थिक तथा सैनिक दृष्टि से अधिक ताकतवर बनने की जरूरत है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
मौसम का मिजाज
मानसून के लगातार सक्रिय होने से कई राज्यों में मूसलाधार वर्षा से जानमाल की क्षति हुई है, वहीं वर्षा न होने से कई राज्यों में सूखे की स्थिति बनी हुई है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और बंगाल समेत कई और राज्यों में सूखे का संकट है। इन राज्यों के कई क्षेत्रों में वर्षा के अभाव में धान की रोपाई तक नहीं हो पाई। मौसम का यह परिवर्तन मानव की गलतियों का परिणाम है। ऐसे में हमें प्रकृति के साथ ताल-मेल बिठाकर चलने की आवश्यकता है।
श्याम मिश्रा, दिल्ली
जीवटता की मिसाल
फिनलैंड में आयोजित वर्ल्ड मास्टर्स एथलीट चैंपियनशिप में हरियाणा की 94 वर्षीय भगवानी देशवाल ने 100 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीता और अन्य प्रतियोगिता में भी दो ब्रॉन्ज मेडल जीतकर भारत का नाम रोशन किया है। धावक भगवानी का यह साहसिक अभियान कुछ भी कर गुजरने की एक राह दिखाता है। इस उम्र में तमाम धारणाओं को दरकिनार करके भगवानी देवी डागर आज इस मुकाम पर पहुंची हैं, जिसके पीछे एक जीवटता की सोच है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
जांच-पड़ताल जरूरी
जिस तरह से देश में भावनाओं को भड़काने में सोशल मीडिया में कई कंटेंट ने रोल अदा किया, उसे एंटी सोशल कहना ही उचित होगा। सोशल मीडिया द्वारा कई बार ऐसे समाचार व वीडियो वायरल होते हैं जिनके सही या गलत होने की पुष्टि भी करने की कोई जरूरत नहीं समझी जाती। पोस्ट करने से पूर्व सूचनाओं की सत्यता की जांच जरूरी है। अब सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन कर, आम जनता से राय लेकर एंटी हेट स्पीच कानून बनाने जा रही है। इसी तरह सरकार अनुचित इंटरनेट सामग्री पर भी सख्त कार्रवाई करे। तभी सोशल मीडिया का नियमन हो पाएगा।
भगवानदास छारिया, इंदौर, म.प्र.
नियम लागू हों
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाने में सोशल मीडिया की भूमिका जहां अहम है वहीं इसका गलत उपयोग राष्ट्र की प्रगति-विकास, अमन-चैन में बाधक भी है। देश में अस्थिरता पैदा करने वाले विरोधी तत्वों से दूर रहकर धार्मिक भाईचारा कायम रखने में सोशल मीडिया को लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। किसी वर्ग विशेष, जाति, धर्म के खिलाफ प्रचार पर सोशल मीडिया व टीवी चैनलों पर आचार-संहिता के नियमों को लागू करना चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
जिम्मेदारी समझें
वर्तमान युग सोशल मीडिया का है। इसके कंटेंट से लोग लाभान्वित हो रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स और इंटरनेट के चलते यह फल-फूल रहा है। लेकिन सोशल मीडिया का नकारात्मक पक्ष भी है। इसके माध्यम से नफरत, जातिवाद, वर्ग भेद, वैमनस्य एवं हिंसा प्रोत्साहित करने का कुचक्र भी कुछ लोग चला रहे हैं। लेकिन स्वतंत्रता के नाम पर ‘सब कुछ चलेगा’ वाली नीति त्याज्य है। निश्चित सीमा के पश्चात सोशल मीडिया पर शासकीय नियंत्रण जरूरी है। आदर्श स्थिति तो यह होनी चाहिए कि इसका उपयोग करने वाले ही अपनी जिम्मेदारी समझकर सतर्कता बरतें। आधुनिक संचार साधन उपयोग करने वाले लोग नवीन भारत के निर्माण में सहयोगी की ही भूमिका निभाएं।
ललित महालकरी, इंदौर, म.प्र.
कड़े नियम बनें
सोशल मीडिया के जरिए ही हमें अपनों की जानकारी भी मिलती है। लेकिन कई बार सोशल मीडिया के जरिए ऐसी फेक न्यूज और जानकारियां भी प्रसारित होती हैं जिनसे समाज में वैमनस्य फैलता है। कुछ लोग दूसरों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले पोस्ट करते हैं। सोशल मीडिया पर इस तरह के पोस्ट पर नकेल कसने की सख्त जरूरत है। अधिकांश सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म विदेशी कंपनियों द्वारा संचालित हैं। इनके लिए भारत में कड़े नियम बनने चाहिए, साथ ही उन नियमों की पालना को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
नितेश मंडवारिया, वाराणसी, उ.प्र.
नियमन जरूरी
सोशल मीडिया का कार्य दैनिक घटनाओं की सूचना व विचार लोगों तक पहंुचाना है। इस दायित्व को निभाने के लिए जरूरी है कि सोशल मीडिया का रवैया निष्पक्ष हो। सोशल मीडिया किसी भी कारण से कभी लक्ष्मण रेखा पार न करे, इसके लिए नियमन जरूरी है ताकि आम जनता तक जो सूचना पहंुचे वह सही हो, तथ्यों पर आधारित हो। यदि सोशल मीडिया एक नियामक संस्था की देखरेख में कार्य करेगा तो इससे तथ्यों की प्रामाणिकता कायम रहेगी। इसके साथ-साथ टीआरपी व लाइक्स को बढ़ाने के लिए जारी अंधी दौड़ पर भी अंकुश लगना चाहिए।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
कानून बने
संचार माध्यमों में आये बदलाव ने जीने का तरीका बदल दिया। इंसानी जज्बातों को सोशल मीडिया की शक्ल में एक नई दुनिया मिल गयी। मगर अपने देश में कहने-सुनने की आज़ादी की लक्ष्मण रेखा ही सवालों में आ गयी। यह पूरी तरह सच है कि सोशल मीडिया के लगभग सारे मंच विदेशी मुल्कों के कब्जे में हैं जो या तो हमारे रीति-रिवाजों से अपरिचित हैं या व्यावसायिक लाभ के लिए अनदेखी करते हैं। नतीजतन सामाजिक वैमनस्य का दायरा नियंत्रण से बाहर हो चला है। ऐसे में सोशल मीडिया के लिए सख्त नियमन का होना जरूरी हो जाता है। जनता के संवैधानिक हक़ को प्रभावित किये बगैर देश में सख्त सोशल मीडिया नियमन क़ानून होना आवश्यक है।
एमके मिश्रा, रांची, झारखंड
पुरस्कृत पत्र
जवाबदेही तय हो
सोशल मीडिया का प्रयोग दिनो-दिन बढ़ता जा रहा है। ऐसे में इसका दुरुपयोग होना स्वाभाविक है। भारत की एकता और अखंडता कायम रखने के लिए सोशल मीडिया पर अंकुश अति आवश्यक है। मीडिया चाहे कोई भी हो लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी एक सीमा निर्धारित की जानी चाहिए। सोशल मीडिया पर यह बात अधिक लागू होती है क्योंकि इस माध्यम के उपयोगकर्ताओं की जवाबदेही नगण्य है। सख्त कानून बनाकर पोस्ट एवं टिप्पणी करने वालों की जवाबदेही तय की जा सकती है।
सुरेंद्र सिंह बागी, महम
शब्दों पर प्रतिबंध
इस बार का मॉनसून सत्र कई मायनों में ख़ास है। फिर चाहे वह राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हों या फिर देश में घट रही घटनाओं को लेकर सरकार से सीधे सवाल-ज़वाब। इतिहास में ऐसा पहली बार होगा जब संसदीय सभ्यता को बरकरार रखने के लिए कुछ शब्दों पर प्रतिबंध लगाए जायेंगे, यकीनन यह सब संवैधानिक दायरों में होंगे। 18 जुलाई से शुरू हो रहा मॉनसून सत्र 12 अगस्त तक चलेगा। देखना यह होगा कि किन मुद्दों को संसद में उठाया जा रहा और किस विधेयक को पारित किया जाएगा।
अमन जायसवाल, दिल्ली
खतरे की घंटी
दस जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून लहरें अंक में मुकुल व्यास का 'प्राणवायु जीवनदायी पानी, धरती पर आने की कहानी' लेख ज्ञानवर्धक, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का जीवंत सचित्र विश्लेषण करने वाला रहा। दैनिक जीवन में घरेलू व कृषि कार्यों में आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पानी का उपयोग करते हैं, वहीं अज्ञानतावश अधिक फिजूलखर्ची से उद्गम स्रोतों का जलस्तर गिरता जा रहा है, जो मानवता के भविष्य के लिए खतरे की घंटी है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
मदद की दरकार
देश में असम समेत कई राज्यों में बाढ़ की वजह से लोग परेशान हैं। असम में बाढ़ का कहर जारी है और इस वजह से लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है। हालात इस कदर खराब हो चुके हैं कि लोगों को हाइवे पर शरण लेने को मजबूर होना पड़ा है। वैसे असम सरकार ने इस विषय पर ध्यान देते हुए सीएम रिलीफ फंड से आम जनता के लिए मदद पेश कर दी है। फिर भी आज असम में जितने भी बाढ़ से पीड़ित लोग हैं, उन लोगों की बेहतर ढंग से मदद नहीं हुई है। वैसे असम के मुख्यमंत्री बाढ़ से पीड़ित लोगों की घर-घर जाकर खबर ले रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए उचित कदम उठाएगी।
चंदन कुमार नाथ, गुवाहाटी, असम
बदहाल श्रीलंका
सरकारी नीतियों पर जनता के आक्रोश, अस्थिरता, राजनीतिक उठापटक व आर्थिक बदहाली से जूझ रहे श्रीलंका में खेती और पर्यटन का अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है। लेकिन सरकार की नीतियों के कारण इस देश मे भयानक आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है। कृषि उत्पादन आधे से भी कम हो गया और खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो गया। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि देश की करीब एक-तिहाई आबादी को खाने के सामान के मामले में सहायता की जरूरत है। वहीं इस हालत का चीन भी जिम्मेवार है। विदेशी कर्ज बेतहाशा बढ़ चुका है। श्रीलंका जिस मुहाने पर है वहां से वापस लौटना फिलहाल बहुत मुश्किल है।
नरेंद्र कुमार शर्मा, भुजड़ू, जोगिंद्र नगर
महज विरोध के लिए
जब से संसद भवन निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई है तब से विपक्ष इसे रोकने की लगातार चेष्टा में लगा है। सुप्रीम कोर्ट तक संसद भवन और सेंट्रल विस्टा के निर्माण पर रोक लगाने की मांग की गई। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका ठुकरा दी। अब जबकि संसद भवन का काम पूर्ण होने को है उसके ऊपर लगाई गई अशोक स्तंभ की मूर्ति के शेरों की भावभंगिमा पर प्रश्न उठाए जा रहे हैं। वास्तव में विपक्ष के पास सरकार को घेरने का कोई मुद्दा नहीं है। जनता सब जानती है और समझ रही है।
अतिवीर जैन, पराग, मेरठ
संविधान सर्वोपरि
चौदह जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का ‘असहनशीलता छोड़ समरसता हो स्वीकार’ लेख इस समय देश में चल रहे उन्माद को आपसी भाईचारे, संकीर्णता को छोड़ने, समरसता को अपनाने तथा अपने को भारतीय कहलाने से हल करने का सुझाव देने वाला था। भारतीय संविधान सभी धर्मों को समान मानता है और कुछ मौलिक अधिकार देता है। मौलिक अधिकारों में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। देश संविधान के अनुसार चलता है।
शामलाल कौशल, रोहतक
स्वागत योग्य फैसला
भारत के उच्चतम न्यायालय का महाराष्ट्र प्रकरण के संदर्भ में आगे की सुनवाई के लिए संविधान पीठ के गठन से संबंधित फैसला एक स्वागत योग्य कदम है। इस फैसले से राजनीतिक स्थिरता का माहौल बनेगा और सरकार का ध्यान जनता के कल्याणकारी कार्यों पर केंद्रित हो सकेगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार अब शिंदे गुट एवं उद्धव गुट के विधायकों पर लटकी तलवार भी हट चुकी है। विधायकों की योग्यता संबंधी अदालत का फैसला उद्धव गुट के विधायकों के लिए बड़ी राहत के रूप में देखा जाना चाहिए।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
सजगता जरूरी
जमीनी सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था के साथ ही राष्ट्रीय हितों के लिए समुद्री सुरक्षा भी बेहद जरूरी है। बदलते हालात में उसकी अनदेखी महंगी पड़ सकती है। इसके लिए जरूरी है कि आंतरिक सुरक्षा में समन्वय हो। जिस तेजी से दुनिया में परिवेश बदल रहा है उससे सुरक्षा को लेकर चिंता भी मुखरित हुई है। हिंद महासागर में जिस तरह की गतिविधियां नजर आती हैं उसके मद्देनजर इस मामले में सतर्कता जरूरी है। चीन पहले से ही अपने प्रभुत्व के लिए कुटिल चाल चलता आया है। वह हिंद महासागर में अपना वर्चस्व कायम करने के लिए लगातार साजिशों को अंजाम देता रहता है।
अमृतलाल मारू, दसई, म.प्र.
असहमति पर प्रहार
जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की गोली मारकर हत्या निंदनीय कृत्य है। समाचारों के अनुसार जिस शख्स ने गोली मारी वह शिंजो से असंतुष्ट था। विडंबना है कि आजकल असहमत विचार रखने वालों पर प्रहार किया जाता है जो जंगलराज को दर्शाता है। दुनिया में जापान की गिनती अच्छी शिक्षा, अनुशासन, राष्ट्र व कर्तव्य के प्रति समर्पण, तकनीकी क्षमता तथा शांतिमय देश के रूप में की जाती है। प्रधानमंत्री ने सही कहा है कि ‘उन्होंने सच्चा मित्र खो दिया है’।
हेमा हरि उपाध्याय, उज्जैन
गलत नीतियों का परिणाम
ग्यारह जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में संपादकीय ‘श्री विहीन लंका’ श्रीलंका में मूलभूत सुविधाओं की कमी के चलते आपातकालीन कर्फ्यू के बावजूद आम नागरिकों का राष्ट्रपति निवास में तोड़फोड़ करने और प्रधानमंत्री निवास को आग लगाने का विश्लेषण करने वाला था। यह सब सरकार की गलत नीतियों के कारण सार्वजनिक इकाइयों को निजी हाथों में बेचने का परिणाम है। दिवालिया हुए श्रीलंका को ऐसे समय में कोई देश या अंतर्राष्ट्रीय संस्था उधार देने के लिए तैयार नहीं है। समय रहते अगर देश में उचित नीतियां न अपनायी गईं तो श्रीलंका जैसी आर्थिक नौबत आ सकती है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
भारत मदद करे
भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका इस वक्त दोहरे संकट से गुज़र रहा है। पहला राजनीतिक अस्थिरता व दूसरा गहन आर्थिक संकट। इसका जिम्मेदार राजपक्षे परिवार को ही ठहराया जा सकता है। इन्होंने लोकतांत्रिक व्यवस्था को राजवंश की सत्ता समझ रखा था। गोटाबाया की नीतियों ने अर्थव्यवस्था काे डुबो कर रख डाला। विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो चुका है, बिजली नहीं है, खाद्य सामग्री नहीं है। ऐसे में जनता बुरी तरह त्रस्त हो चुकी थी और आपातकाल के बावजूद मजबूरन सड़कों पर उतर आई। इस समय श्रीलंका को भारत की मदद की जरूरत है।
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म़ प्र
कारगर हल निकालें
दो साल बाद कांवड़ यात्रा हो रही है। अधिकतर राज्यों के भक्त इस दौरान गंगा नदी से पवित्र जल लाएंगे। इस कांवड़ यात्रा के दौरान योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा नॉन-वेज की दुकानों को बंद रखने के लिए कहा गया है। एेसे में सरकार को उन लोगों के लिए समाधान ढूंढ़ना चाहिए जो इस अवधि के लिए अपनी दुकानें बंद रखेंगे। ताकि इन लोगों को वित्तीय स्थिति का सामना न करना पड़े।
पारुल गुप्ता, फतेहगढ़ साहिब
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :- dtmagzine@tribunemail.com
महंगाई का राज
महंगाई की आग में पहले से जल रहे आम आदमी को अब रसोई गैस सिलेंडर की तपिश भी झेलनी पड़ेगी। रसोई गैस के बढ़ते दाम मध्यम परिवारों के बजट पर बुरा असर डाल रहे हैं, लेकिन दाम घटने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। वहीं गांव के लोग अब फिर चूल्हा जलाने को मजबूर हैं। आरबीआई पहले ही कह चुका है कि महंगाई दर लगातार बढ़ती जा रही है जो अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में रसोई गैस के दामों का इस तरह बढ़ते रहना आरबीआई की महंगाई के खिलाफ लड़ाई को भी कमजोर बनाता है।
शैलेन्द्र चौहान, जयपुर
असुरक्षित यात्रा
यह चौंकाने वाला तथ्य है कि 18 दिनों के अंदर ही स्पाइसजेट के तकनीकी गड़बड़ी के कई मामले सामने आ चुके हैं। वास्तव में यह मुद्दा हवाई यात्रियों की जान-माल से जुड़ा हुआ है। डीजीसीए को सिर्फ नोटिस जारी कर चुप नहीं बैठना चाहिए। जब तक इन कंपनियों के विमान पूर्ण रूप से ठीक न हों, तब तक उड़ानों पर रोक लगा देनी चाहिए।
अतिवीर जैन, पराग, मेरठ
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समाज की जिम्मेदारी
वर्तमान सोशल मीडिया के दौर में युवा पीढ़ी का पुस्तकों के प्रति मोह भंग होना गहन चिंता व चिंतन का विषय है। हिमाचल के राज्यपाल द्वारा विद्यार्थियों में पुस्तकों के प्रति रुचि पैदा करने के लिए जो कार्यक्रम चलाया गया है वह अत्यन्त सराहनीय कदम है। इस कदम से युवाओं में पुस्तक संस्कृति पनपेगी। पुस्तकों से दूरी के कारण ही युवा पीढ़ी संस्कारों से भी दूर होती जा रही है। युवा पीढ़ी में पुस्तकों को पढ़ने के संस्कार डालने की जिम्मेवारी केवल शिक्षकों, बच्चों के माता-पिता की ही नहीं बल्कि पूरे समाज की है।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
ज्ञान ही शक्ति
पुस्तकें अनमोल धरोहर हैं क्योंकि लेखकों ने इनमें अमूल्य उपहार बिखेर रखे हैं, बस इन्हें सही से पढ़कर खोजने वाला चाहिए। पुस्तकों के पढ़ने से ही इंसान के ज्ञान और अनुभव में वृद्धि होती है जिससे वह सुसंस्कृत और सभ्य होकर प्रगति की ओर आगे बढ़ता है। वह समाज और राष्ट्र में अलग ही दिखाई देता है। समाज सुधार भी इसी से संभव है। यह दुखद है कि आज युवा पीढ़ी इससे निरंतर विमुख हो रही है। इसके सोशल मीडिया के साथ अन्य कई कारण हैं, जिससे उसका सही विकास ही नहीं हो पा रहा है और वह पिछड़ ही रहा है। इसलिए हम सबको मिलकर पुस्तकों से आनंद और लाभ लेना होगा तभी हम आगे बढ़ सकते हैं क्योंकि ‘ज्ञान ही शक्ति’ है।
वेद मामूरपुर, नरेला
सर्वांगीण विकास जरूरी
हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल की पहल बहुत सराहनीय है कि वे स्कूलों में विद्यार्थियों को पुस्तकें देकर प्रेरित करते हैं। वैसे तो स्कूली पाठ्यक्रम की हिंदी और संस्कृत विषय की पुस्तकों में भी युवाओं को प्रेरित करने वाली बहुत सामग्री होती है। लेकिन कम शिक्षक ऐसे होंगे जो अपने विद्यार्थियों को इन विषयों को इस उद्देश्य से पढ़ाते होंगे कि इससे भावी पीढ़ी में नैतिकता, मानवता और देशप्रेम की भावना प्रफुल्लित हो। शिक्षा का असली मकसद विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास भी होता है। शिक्षकों को चाहिए कि वे भावी पीढ़ी को धार्मिक, देशभक्ति और अन्य प्रेरक पुस्तकों को पढ़ने के लिए भी प्रेरित करें।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
अनुभवों का भंडार
आज के मोबाइल दौर में युवा पीढ़ी पुस्तकों से दूर भागती नज़र आती है। उनकी जिज्ञासा और खोज गूगल तक सिमट रही है। पुस्तकें ज्ञान-विज्ञान से परिचित कराती हैं। विद्वान होने से सम्मान पाने तक की यात्रा पुस्तक संस्कृति से ही संभव है। पुस्तकें अनुभवों का भंडार हैं। चरित्र निर्माण की आधारशिला है। हमें सकारात्मक ऊर्जा देती हैं। पुस्तक पढ़ने से हमारा शब्दकोश समृद्ध बनता है। हमें अपने विचारों और भावों को आत्मविश्वास के साथ प्रस्तुत करने का हौसला देती हैं। पुस्तकें सचमुच नदी के समान हैं, जो प्यास भी बुझाती हैं और पवित्र भी करती हैं।
नरेन्द्र सिंह नीहार, नयी दिल्ली
अध्यापक स्वयं भी पढ़ें
पुस्तकें ज्ञान का भंडार होती हैं। विभिन्न पुस्तकों में संचित ज्ञान के आधार पर ही हमें इतिहास, भूगोल, संस्कृति, आध्यात्मिकता, विज्ञान तथा देश-प्रदेश के लोगों के बारे में पता चलता है! विभिन्न कक्षाओं में पढ़ाया गया पाठ्यक्रम ही काफी नहीं। परंतु आजकल अन्य पुस्तकें पढ़ने का रिवाज खत्म होता जा रहा है। इस संदर्भ में हि.प्र. के गवर्नर का विद्यार्थियों में पाठ्यक्रम के अलावा अन्य पुस्तकें पढ़ने के लिए दिलचस्पी पैदा करने का प्रयास काबिलेतारीफ है। यह भी कि अध्यापक ही पाठ्यक्रम की पुस्तकों के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें नहीं पढ़ते। उन्हें स्वयं भी अन्य पुस्तकें पढ़नी चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
सराहनीय प्रयास
आज टीवी, कंप्यूटर मोबाइल की दुनिया में पुस्तक पठन संस्कृति सिमटती जा रही है। इसी के चलते विद्यार्थी पाठ्य पुस्तकों के अलावा अन्य ज्ञानवर्धक पुस्तकों के अध्ययन से दूर है। विद्यालयों में पुस्तकालय से भी नहीं के बराबर शिक्षक एवं विद्यार्थी पुस्तक लेकर पढ़ते हैं। वह प्रायः रंगीन पत्र-पत्रिकाओं को देखने-पढ़ने तक सिमट कर रह गया। आज शिक्षक व माता-पिता युवाओं को पाठ्यक्रम से हटकर पुस्तक पढ़ने की सलाह नहीं देते। ऐसे में युवाओं को पुस्तक भेंट कर पढ़ने के प्रति कोई जागरूक करता है तो यह प्रयास प्रशंसनीय है।
दिनेश विजयवर्गीय, बूंदी, राजस्थान
पुरस्कृत पत्र
आनलाइन जीवनशैली का अंग
आजकल के युवा व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम ,टेलीग्राम, शेयर चैट आदि में ज्ञानार्जन, मनोरंजन एवं सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए उलझे रहते हैं। इससे प्रतीत होता है कि छात्र-छात्राओं का अध्ययन संबंधी पुस्तकों के प्रति रुझान कम है। सोशल मीडिया, गूगल पर भी पुस्तकें जेपीजी, पीडीएफ अथवा अन्य फॉर्मेट में उपलब्ध हैं। ऑनलाइन अध्ययन एवं ऑनलाइन सिलेबस कोरोना काल में प्राथमिकता से जीवनशैली का अंग बन गए हैं। फिर भी विद्यार्थियों का पुस्तक प्रेम कम नहीं होने देना चाहिए। साहित्यिक रचनाओं, रचनाकारों एवं संबंधित पाठ्यक्रम का अध्ययन करना अब उतना लोकप्रिय नहीं रहा है। फिर भी पठन-पाठन से ज्ञानवर्धन होता है।
युगल किशोर शर्मा, फरीदाबाद
महंगाई की सरकार
सरकार ने रसोई गैस सिलेंडर के दाम 50 रुपये प्रति सिलेंडर बढ़ा दिये हैं। गैस सिलेंडर पर सब्सिडी पहले ही बंद कर चुकी है। वहीं कुछ पार्टियां अपने चुनाव मेनिफेस्टो में मुफ्त की बिजली देकर वोट बटोरकर सत्ता हासिल कर रही हैं। सरकार पहले ही पैक किए हुए दूध, दही, अनाज, आटा, तेल, दालों पर जीएसटी लगाकर दाम बढ़ा चुकी है। इन सब चीजों के महंगे होते दाम से ज्यादा प्रभावित गरीब और मध्यम वर्ग होता है। बढ़ती महंगाई ने इस वर्ग की कमर तोड़ कर रख दी है।
अतिवीर जैन, पराग, मेरठ
संयम की यात्रा
श्रावण मास में कांवड़ यात्रा का शिव भक्तों में काफी उत्साह रहता है। 14 जुलाई से शुरू हो रही कांवड़ यात्रा के लिए उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड को विशेष इंतजाम करने होंगे। यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी तरह के भड़काऊ पोस्टर्स न लगे। सोशल मीडिया पर किसी तरह की अमर्यादित और भड़काऊ टिप्पणी को रोकना होगा। समाज के सभी वर्गों में धार्मिक यात्रा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा किया जाए तथा किसी भी दृष्टि से धार्मिक यात्रा शक्ति का प्रदर्शन न हो।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
प्रेरक पहल
उत्तर प्रदेश सरकार लगातार अपने कार्यों और फैसले लेने के कारण मशहूर है। आजकल उ.प्र. माॅडल को देश के सभी राज्यों में अपनाया जा रहा है। यही कारण है कि उ.प्र. में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अनुशासन, सुशासन के लिए और कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। उ.प्र. मॉडल के कारण ही बदमाशों और देश विरोधियों की सक्रियता भी बहुत कम हुई है।
समराज चौहान, कार्बी आंग्लांग, असम
आस्था संग पर्यावरण
तीन जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून के लहरें अंक में सुरेश एस. डुग्गर का ‘आस्था संग पर्यावरण धर्म निभाने का संकल्प’ लेख बर्फानी बाबा अमरनाथ के पावन धाम दर्शनों की यात्रा घर बैठे कराने में सफल रहा। आस्था-विश्वास की सीढ़ियों पर बढ़ते हुए बाबा अमरनाथ के दर्शन प्रेरणा उत्साह जगा रहे थे।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
आर्थिक सुरक्षा में समन्वय
छह जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में तरुण दास का लेख ‘विदेशी निवेश और आर्थिक सुरक्षा में हो समन्वय’ विदेशी निवेश आमंत्रित करते समय कुछ उद्देश्यों को ध्यान में रखने की सलाह देने वाला था। भारत भी विकासात्मक कार्यों के लिए विदेशी निवेश को आमंत्रित कर रहा है। हमारी आवश्यकता 100 डॉलर प्रति व्यक्ति करने की है, तभी देश में उत्पादन, रोजगार, आमदनी तथा उन्नत तकनीक प्राप्त होगी। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए लेखक ने कुछ सुझाव दिए हैं इनमें से कुछ के ऊपर गंभीरता से गौर किया जा सकता है। यह सारा कुछ करते समय आर्थिक सुरक्षा के उद्देश्य को जरूर ध्यान में रखना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
हादसे और सुरक्षा
हाल ही में हिमाचल प्रदेश के कुल्लू ज़िले के सैंज क्षेत्र के पास बस हादसे में कई लोगों की जानें चली गईं। इस हादसे का चाहे कोई भी कारण रहा हो, लेकिन भविष्य में ऐसे हादसों को रोकने के लिए क्या किया जाना चाहिए, इस पर विचार करना चाहिए। पहाड़ी क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण करने के लिए जिन साधनों का प्रयोग किया जाता है, उनसे पहाड़ों की नींव कमजोर पड़ जाती है। राज्य और केंद्र सरकारों को ऐसे रास्तों और पहाड़ों का निरीक्षण करवाना चाहिए। ऐसे हादसों के लिए वे लोग भी जिम्मेदार हैं जो यातायात के नियमों का पालन मात्र चालान कटने के डर से कभी-कभार करते हैं।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
मुद्दों से भटकाव
अभी नूपुर शर्मा का विवाद थमा ही नहीं था कि अब काली के पोस्टर को लेकर विवाद चरम पर है। लगता है देश में जनता से जुड़े हुए बुनियादी मुद्दे खत्म हो गए हैं। बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा व स्वास्थ्य का गिरता स्तर और नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताएं जैसे मुद्दे नहीं रहे हैं। आखिर धर्म के नाम पर आस्थाओं से खेलने वाले अपने नापाक इरादों से बाज क्यों नहीं आ रहे हैं?
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद उज्जैन
मजबूत कानून बने
बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की एमआईएम के 4 विधायकों को आरजेडी ने अपने पाले में खींच कर सीमांचल में पार्टी मजबूत बेशक कर ली हो लेकिन यह धर्मनिरपेक्षता का नारा लेकर चलने वाले राजनीतिक दलों की आपसी खींचतान का एक नतीजा है। दल बदल कानून के लचीलेपन का फायदा उठाकर सभी राजनीतिक दल अपनी पार्टियों को मजबूत करने में लगे हुए हैं लेकिन लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं। आखिर यह कब तक चलेगा कि अपनी पार्टी में से विधायकों का एक ग्रुप बना लो, दूसरी पार्टियों से सांठगांठ करो और सत्ता पर काबिज हो जाओ।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
घाटे में परिवहन
हि.प्र. सरकार ने ‘नारी को नमन’ योजना के अंतर्गत सरकारी बसों में महिलाओं को किराये में 50 प्रतिशत की छूट देने की घोषणा की गई है। हो सकता है कि इससे कमोबेश घरेलू बजट में कुछ मुनाफा हो जाए तथा सरकारी बसों की तरफ लोगों का रुझान बढ़े या सरकार आगामी चुनाव में महिलाओं को अपने पक्ष में करके सुर्खियां बटोरे। लेकिन ऐसे समय में सुर्खियां बटोरना मात्र काफी न होगा। प्रदेश का लगातार कर्ज में डूबना एवं घाटे में चल रहे पथ परिवहन निगम पर अतिरिक्त बोझ डालना क्या सही कदम है?
सुनील चौहान, शिमला, हि.प्र.
मुफ्त की रेवड़ियां
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुजरात दौरे के दौरान पंजाब और दिल्ली की तरह मुफ्त बिजली देने का वादा किया है। इन दिनों पार्टियों ने सत्ता में आने के लिए मुफ्त सुविधाएं और अवसर प्रदान करने का नया शिगूफा शुरू किया है। पार्टियों को यह समझने की जरूरत है कि कई राज्य कर्ज में डूबे हुए हैं। पार्टियों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि कर्ज को किस तरह समाप्त किया जाए। वहीं भ्रष्टाचार, गरीबी, बेरोजगारी जैसे प्रमुख मुद्दों पर कैसे काम हो।
पारुल गुप्ता, फरीदाबाद
भेदभाव न हो
पांच जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में क्षमा शर्मा का ‘लैंगिक भेदभाव से मुक्त कानून’ लेख पुरुषों के साथ होने वाले अन्याय का वर्णन करने वाला था। देखा गया है कि बहुत से मामलों में महिलाओं के पक्ष में बनाए गए कानूनों को लेकर पुरुषों के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज किए जाते हैं। कई बार महिलाएं बदले की कार्रवाई के चलते संपत्ति या पैसा लेने के लिए पुरुष पक्ष तथा उसके परिवार वालों पर झूठे मुकदमे डालती हैं। दहेज, बलात्कार, महिला उत्पीड़न आदि के अनेक झूठे मामले भी सामने आए हैं। आवश्यकता इस बात की है कि वर्तमान कानूनों में संशोधन करके लैंगिक संतुलन कायम किया जाए ताकि इनका दुरुपयोग न हो सके।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
जल निकासी संकट
हाल ही में रोहतक में हुई भारी बारिश ने प्रशासन की तैयारी की कलई खोल दी। भारी बरसात के कारण शहर में सब तरफ पानी ही पानी हो गया। शहर के प्रसिद्ध मेडिकल कॉलेज तक में पानी घुस गया। पिछले कई सालों में कई सरकारें आईं और गईं लेकिन रोहतक शहर को बरसात के पानी की समस्या से कोई निजात नहीं दिला सका। प्रशासन की ओर से पानी की निकासी के लिए और सीवरेज लाइन बिछाई जानी चाहिये। इसके साथ ही बूस्टिंग पंप लगाए जाएं।
शामलाल कौशल, रोहतक
राजनीति न हो
नूपुर शर्मा के बयान के बाद देश के कई हिस्सों में आगजनी व हिंसक घटनाएं हुईं। सुप्रीम कोर्ट ने भी इन घटनाओं के लिए नूपुर शर्मा को ही जिम्मेदार ठहराया है। किसी भी धर्म का अपमान करना संविधान के खिलाफ है। वहीं सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना मतलब अपनी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना है। ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर किसी को भी राजनीति चमकाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
नरेन्द्र कुमार शर्मा, भुजड़ू, जोगिंद्र नगर
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :- dtmagzine@tribunemail.com
सकारात्मक प्रयास हों
हाल ही में उदयपुर में हुई बर्बर हत्या के घाव सूखे नहीं थे कि महाराष्ट्र के अमरावती में दवा व्यवसायी की हत्या का मामला सबके सामने आया। अगर देश में ऐसे ही चलता रहा तो यह सिलसिला थमने वाला नहीं है। ऐसी घटनाओं के बाद सोशल मीडिया पर आग उगलने वाली पोस्टें व वीडियो कम नहीं हो रहे हैं। यह समय नफरत व जहरीली सोच को रोकने का है। इसके लिए चाहे कोई भी वर्ग हो, उनके सर्वे सर्वा व प्रगतिशील सोच वाले लोगों को आगे आकर सकारात्मक सामूहिक प्रयास करने होंगे।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
समुचित निकासी
मानसून के आगमन के साथ ही कई शहरों में विभिन्न क्षेत्र जलभराव की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इससे न केवल डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों की आशंका बढ़ती है बल्कि दुर्घटनाओं का भी अंदेशा बना रहता है। प्रशासन को पानी की समुचित निकासी सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय करने चाहिए।
वंशिका भसीन, पंचकूला
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युवाओं के साथ अन्याय
अग्निपथ को लेकर देश के युवाओं का क्षुब्ध और राजनीति का गर्म होना स्वाभाविक है क्योंकि अग्निपथ के तहत जब युवा नौकरी के लायक रहेंगे तभी उन युवाओं को सेवानिवृत्ति दे दी जाएगी। सवाल यह उठता है कि राजनेता कभी भी अपनी सेवानिवृत्ति की बात नहीं करते बल्कि जितनी बार विधायक आदि बनते हैं उतनी ही बार उन्हें पेंशन दी जाती है। क्या देश में सिर्फ युवाओं के लिए ही आयु सीमा तय है। अगर अग्निपथ के तहत युवाओं को सेवानिवृत्ति देकर पेंशन बंद करने की योजना है तो राजनेताओं को भी सेवानिवृत्ति देकर पेंशन बंद कर दी जाए। राजनीति में भी केवल युवाओं को ही मौका दिया जाना चाहिए।
सतपाल सिंह, करनाल
अपेक्षाओं पर खरी नहीं
रोजी-रोजगार की तलाश में नौजवानों के सुनहरे सपनों पर हुए हमले से तिलमिलाना जायज है। अग्निवीरों को लुभाने में सरकार और सेना खूब पसीना बहा रही है, मगर जवानी की दहलीज़ पर खड़े युवा भारत को बुढ़ापे की मुहर लगाते अग्निपथ से उपजे सुलगते सवालों का जवाब मिलना बाकी है। बेरोज़गारी से निपटने की सरकारी योजना चाहे जितनी भी अच्छी हो, मगर अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरती। संभवतः अग्निपथ योजना आधुनिक सैन्य शक्ति के रूप में देशहित में है, मगर वर्तमान व्यवस्था को कुछ दिनों तक जारी रखना अच्छा विकल्प हो सकता था। बेहतर होता नयी योजना से पहले सेना में नयी नियुक्तियों की बहाली के लंबित मामले सुलझा लिये जाते।
एमके मिश्रा, झारखंड
चार साल बहुत कम
भारतीय सेना में युवा सैनिकों की भर्ती के लिए अग्निपथ योजना कार्यान्वित हो रही है। इसके साथ यदि अनुभव को भी महत्व दिया जाए तो अत्यधिक कारगर होगा। दरअसल, चार साल में तो युवा अपने आपको एक सैनिक के रूप में ढालता है। अब चाहे अनुशासन, तकनीकी, ट्रेनिंग, युद्धाभ्यास, मरुस्थल एवं पर्वतीय क्षेत्रों के युद्धाभ्यास का अनुभव इन सब क्रियाकलापों के लिए चार साल बहुत कम हैं, इसलिए तीन वर्ष और जुड़ने चाहिए। इसमें अनुभव और युवाओं का सामंजस्य है, पारिवारिक सुरक्षा है और देशभक्ति की भावना है।
जय भगवान भारद्वाज, नाहड़
अतार्किक बात
सेना में अल्पकालिक भर्ती प्रक्रिया को लेकर युवा क्षुब्ध हैं। राजनीति भी गर्म है। सत्ता-पक्ष के नेता, मंत्री और जनप्रतिनिधि इस योजना के लाभ बताने में दिन-रात एक किए हुए हैं। विपक्ष इस को युवा-वर्ग और देश के लिए एक छलावा सिद्ध करने में लगा हुआ है। बेरोज़गारी के संकट से जूझ रहे देश में नौकरी का मतलब ही एक जीवन होता है। इसी के सहारे वैवाहिक जीवन व परिवार की जिम्मेदारी निभाई जाती है। नौकरी पूरी होने पर पेंशन बुढ़ापे का सहारा बनती है। इस योजना में नौकरी तलाशने की 20-25 वर्ष की उम्र में युवाओं का एक बड़ा वर्ग रिटायर होकर नये रोज़गार की तलाश करेगा। बिना पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य सेवा लाभों के रिटायर हो जाने की बात अतार्किक प्रतीत होती है।
शेर सिंह, हिसार
मजबूत सेना
अग्निपथ योजना के तहत भारतीय सेना की औसत आयु में गिरावट आयेगी और युवा सेना का आधुनिकीकरण तेजी से किया जा सकेगा। इस प्रकार सेना और मजबूत हो सकेगी। सेना में सैनिकों की संख्या में भी विस्तार होगा और देश की युवा पीढ़ी में देश के प्रति समर्पण भाव भी बढ़ेगा। वहीं अग्निपथ योजना केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की दशा और दिशा दोनों को बदल देगी और भारत को विश्व में एक मजबूत राष्ट्र के रूप में स्थापित करने का काम करेगी। इस योजना के अंतर्गत युवाओं को सेना से जोड़ने की प्रक्रिया प्रारम्भ होगी। इस प्रकार की योजनाएं यदि सफल रहती हैं तो देश सशक्त होकर विश्वगुरु के रूप में पुनः स्थापित कर सकेगा।
नितेश मंडवारिया, वाराणसी, उ.प्र.
राजनीति न हो
सेना में एक सीमित समय के लिए भर्ती के विरुद्ध तोड़फोड़, प्रदर्शन और सरकारी संपत्ति की हानि दिखाई दी, जिसके पीछे केवल देश के युवा नहीं है बल्कि निम्न स्तरीय राजनीति भी है। किसी भी दल की सरकार हो, सरकार की नीतियों का राजनीतीकरण नहीं होना चाहिए। दूसरी ओर, यह भी जरूरी है कि सरकार जब भी कोई नया प्रोग्राम लेकर आए पहले उसका प्रचार-प्रसार होना चाहिए ताकि जनमत का थर्मामीटर मापा जा सके। लोक सेवा में अस्थाई भर्ती कोई नई बात नहीं है। पहले भी शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य विभागों में कच्चे कर्मचारी लगाए जाते थे। अगर यही प्रयोग सरकार सेना में करना चाहती है तो इसे स्वीकारना चाहिए।
श्रीमती केरा सिंह, नरवाना
पुरस्कृत पत्र
सुरक्षित भविष्य की दरकार
सेना में भर्ती की अग्निपथ योजना के खिलाफ युवाओं में रोष है। यह स्थिति युवाओं के सपने दरकने और इससे उपजे आक्रोश को दर्शाती है। लंबे समय से सेना में भर्ती की आस लिए नौजवानों को इस योजना ने मायूस किया। सेना किसी भी राष्ट्र का महत्वपूर्ण अंग है, यह राष्ट्र की संप्रभुता की रक्षा करती है। ऐसे में अपने कर्तव्यों के प्रति स्थाई भावना होना आवश्यक है जो कि 4 साल की नियुक्ति में संभव नहीं दिखता। सेना में भर्ती नौजवान अपने कर्तव्य का पालन और मातृभूमि की सेवा तभी कर पाएगा जब उसका और उसके परिवार का भविष्य सुरक्षित होगा।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
प्रतीकों की राजनीति
उनतीस जून के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का ‘जमीनी हकीकत भी बदले प्रतीकों की राजनीति’ लेख राष्ट्रपति के चुनाव के लिए सत्ताधारी दल द्वारा राजनीतिक नफे-नुकसान को ध्यान में रखकर उम्मीदवार खड़ा करने का पर्दाफाश करने वाला था। ऐसा प्रतीत होता है जैसे राष्ट्रपति पद के लिए अनुकंपा की जा रही हो। अतीत में भी किसी विशेष वर्ग पर मेहरबानी करने का ढोंग किया जाता रहा है। इस बार भी द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाकर आदिवासी समाज को उन पर कृपा दृष्टि करने की बात महसूस होती है। हमें प्रतीकों की राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार को चुनना पड़ेगा।
शामलाल कौशल, रोहतक
महाराष्ट्र का मुख्य नाथ
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी ने फिर सिद्ध कर दिया है कि यदि इंसान में योग्यता, बुद्धि और राजनीतिक चातुर्य का समावेश हो तो वो शतरंज की चाल में अपने मोहरे इस तरह चलता है जिससे सामने वाला मात खा जाता है। यही किया एकनाथ शिंदे ने, जब उद्धव ठाकरे ने अपनी ही पार्टी के नेताओं को नजरअंदाज करके कांग्रेस के नेताओं को महत्व देना शुरू किया तो शिंदे ने शिव सेना के विधायकों को लेकर जो पासा फेंका, उससे उद्धव खेमा चारों खाने चित हो गया। अतः समझदारी भरी चाल और भाजपा के समर्थन ने जमीन से जुड़े एकनाथ को महाराष्ट्र प्रदेश का मुख्य नाथ बना दिया।
भगवानदास छारिया, इंदौर
सिद्धांतों की बलि
कई दिन तक महाराष्ट्र में राजनीतिक उठापटक चली है। जुबान में बढ़ती कटुता ने पहले भाजपा-शिवसेना गठबंधन को स्वाह किया और अब इन्हीं कड़वे बोलों से शिवसेना के कर्णधार अपनी ही पार्टी का नुकसान करने पर तुले हैं। शिवसेना को आत्ममंथन करने की आवश्यकता है कि अचानक ढाई साल में ऐसा क्या हुआ कि वे पचपन से 14-15 ही रह गए। विचारधारा, सिद्धांतों की बलि देना उचित नहीं कहा जायेगा।
सतप्रकाश सनोठिया, रोहिणी
आप की चुनौती
पिछले छह महीनों में आम आदमी पार्टी की गतिविधियां दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में तेजी से बढ़ी हैं। पंजाब में मिला प्रचंड बहुमत और सरकार के बनने पर उत्साहित आम आदमी पार्टी ने हिमाचल और गुजरात में पूरी ताकत झोंक दी है। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के लगातार गुजरात और हिमाचल चुनावी दौरे जोरदार उपस्थिति दर्ज कराने के लिए बेताब दिखाई देते हैं। गुजरात एवं हिमाचल में भाजपा और कांग्रेस के सामने आम आदमी पार्टी एक चुनौती बनेगी यह तो भविष्य ही बताएगा।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
बरसात के लिये तैयारी
बरसात का मौसम शुरू हो चुका है। इस मौसम में बीमारियों के फैलने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए इन दिनों साफ-सफाई पर विश्ोष ध्यान रखने की जरूरत होती है। घर की सफाई करके कूड़ा-कर्कट सही जगह पर डालें। नगर निगम को भी चाहिए कि हर मोहल्ले में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखे। जहां पर सीवरेज जाम है उन्हें खुलवाने को प्राथमिकता दें। वहीं पीने वाले पानी की व्यवस्था को भी सुचारु और साफ रखने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
सराहनीय कदम
सरकार ने ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ पर प्रतिबंध लगा दिया है। वहीं हिमाचल प्रदेश सरकार छात्रों से प्लास्टिक कचरा खरीदने और बदले में उन्हें कुछ पैसे देने की पहल कर रही है। सरकार द्वारा उठाया गया कदम सराहनीय है। सवाल उठता है कि हिमाचल में तो प्लास्टिक पर पहले से ही प्रतिबंध था। इस अर्थ यह हुआ कि इसका उपयोग अधिक मात्रा में किया जाता था। वहीं सरकार द्वारा कोई कठोर कदम नहीं उठाया गया था। फिलहाल उस कचरे का उपयोग सड़क बनाने के काम में लिया जा सकता है।
वंशिका भसीन, पंचकूला