आपकी राय
जन संसद की राय है कि चुनाव पूर्व दल बदल राजनीति के मौसम विज्ञानियों का खेल है। सत्ता सुख की लालसा है। सभी राजनीतिक दल इस मामले में एक जैसे हैं। इस पर रोक की ईमानदार कोशिश नहीं होती। जनता ही सबक सिखाए।
लोकतंत्र विरोधी
विधानसभा चुनाव से पूर्व ही राज्यों में सत्ता दल छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल होने वाले नेता-मंत्रियों ने लोकतंत्र की हत्या करके तथा मूल्यों का उल्लंघन करते हुए जनता के विश्वास को ठेस पहुंचाई है। इतना ही नहीं, 5 साल तक जिस थाली में खाया उसी में छेद भी किया। इससे सत्तारूढ़ पार्टी की छवि अवश्य धूमिल हुई है। जनता जनार्दन को विधानसभा चुनाव में वोट की ताकत से विश्वासघाती दलबदलू उम्मीदवारों को भारी शिकस्त देकर घर बिठा देना चाहिए। चुनाव आयोग को भगोड़े उम्मीदवारों पर शिकंजा कसते हुए उन्हें अयोग्य करार देकर राजनीति से बाहर कर देना चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
गिरावट का परिचायक
नेताओं द्वारा चुनाव पूर्व दल बदल करना राजनीति में आई गिरावट का परिचायक है। यह कृत्य ऐसे मौकापरस्त नेता करते हैं जो राजनीति को लोक सेवा नहीं अपितु एक व्यवसाय के रूप में देखते हैं। ऐसे लोग केवल धनार्जन के लिये ही राजनीति में आते हैं। सेवा तो बिना लोकसभा अथवा राज्य विधानसभा का सदस्य बने भी की जा सकती है। ऐसे अनैतिक आचरण को रोकने के लिये ऐसा कानून बनाना चाहिए कि जो नेता चुनाव पूर्व दल बदल करे उसको कम से कम 5-6 वर्ष के लिये कोई भी चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया जाये।
अनिल कुमार शर्मा, चंडीगढ़
जनता सबक सिखाए
देश का सर्वोच्च न्यायालय तथा चुनाव आयोग वर्षों से चुनावी सुधारों की ओर प्रयत्नशील हैं, जिसमें कुछ सफलताएं भी प्राप्त हुई हैं। लेकिन चुनाव पूर्व दल बदल जैसी बीमारी पर बहुत कुछ करना शेष है। अधिकतर राजनेता और दल अपने स्वार्थ एवं सत्ता सुख के लिए इसमें कोई दिलचस्पी नहीं लेते बल्कि रुकावट पैदा करते हैं। इसलिए जनता का यह दायित्व बन जाता है कि वह चुनावों में ऐसे नेताओं का बहिष्कार करके और मतदान से सबक सिखाकर प्रजातंत्र को मजबूती प्रदान करे।
एमएल शर्मा, कुरुक्षेत्र
पतन की पराकाष्ठा
उत्तर प्रदेश में दल बदल की बयार बताती है कि राजनीति में वैचारिक प्रतिबद्धता का दौर बीते दिनों की बात है। दशकों तक नीति, सिद्धांत व कार्यक्रम के आवरण में लिपटी रही राजनीति अब पूर्णतया स्वार्थी हो गई है। जाति विशेष का दम भरने वाले पाला बदलकर 5 साल तक सत्ता का सुख भोगते रहे फिर चुनाव आया तो जातीय हितों की दुहाई देकर दूसरे दल में शामिल हो गए। प्रयोगवादी कहें या नाटकीय- इस कवायद से दलीय हित पर नेताओं की निजी राजनीति हावी होती दिख रही है, जिससे चुनावी मुद्दे पार्श्व में चले जाएंगे। नि:संदेह राजनीति में नैतिक मूल्यों के पतन की पराकाष्ठा ही है।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
अवसरवाद की हद
समकालीन राजनीति में दल बदल की बीमारी बेहद ज्वलंत मुद्दा है। इस बदलाव में अवसरवाद की झलक दिखने लगे तो यह न केवल अनैतिक, अपितु हास्यास्पद स्थिति का रूप ले लेता है। जितनी आसानी से नेता एक पार्टी को छोड़ कर दूसरी में समा जाते हैं, जनता के लिए विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि आखिर, नेताजी कल सच बोल रहे थे या फिर आज। आखिर, क्या कारण है कि पांच साल तक सत्ता का सुख भोगने के बाद अचानक ही नेता जी को अहसास होने लगता है कि वह जिस सरकार में थे, वह तो जनहित के साथ समझौता कर रही थी।
नितेश मंडवारिया, नीमच, म.प्र.
राजनीति के मौसम विज्ञानी
चुनाव पूर्व दल बदल का मूल सिद्धांत है सत्ता सुख भोगना और दल बदल विरोधी कानून से बचना। पार्टी की डूबती नैया, अकर्मण्यता के कारण कटता टिकट या विपक्षी होते हुए सत्ता दूर की कौड़ी लगने पर राजनीति के मौसम वैज्ञानिक विचारधारा से भटकाव, अकुशल नेतृत्व, पार्टी में दम घुटने, जनता की आवाज नहीं उठा पाने जैसे कुतर्क देकर पाला बदलते हैं। लोकतंत्र के हित में दलबदलुओं को सबक सिखाने का सही तरीका है कि हम दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर इन्हें वोट न दें। बंगाल विधानसभा चुनाव में ज्यादातर दलबदलुओं को हरा कर जनता ने उचित सबक सिखाया था।
बृजेश माथुर, बृज विहार, गाज़ियाबाद
पुरस्कृत पत्र
सत्ता मोह का रोग
चुनावी मौसम में राजनीति में दल बदल एक असाधारण स्थिति बनती जा रही है। सत्तर के दशक से शुरू हुआ यह रोग आज राजनीतिक नासूर बन गया है। कब, कौन, कहां पलटी मारेगा- कहना बड़ा मुश्किल है। इसका समाधान खुद राजनीतिक दलों को ही ढूंढ़ना होगा। हालांकि दल बदल कानून अस्तित्व में है, पर वही ढाक के तीन पात वाली बात। कौन किसको कोसेगा, हमाम में सारे नंगे हैं। सवाल उठता है कि यह खेल कब तक चलेगा? क्या यह राजनीति की नियति बन गई है? यूं भी नेताओं की स्वार्थपरता, सत्ता मोह एवं कुर्सी के लिए कुछ भी करेगा जैसे वाक्य हमेशा राजनीतिक गलियारों में जिंदा रहते हैं।
हर्ष वर्द्धन, पटना, बिहार
मानसिक उपचार
कोविड-19 से न स्वास्थ्य कर्मी उबर पा रहे हैं व न आमजन। कोरोना के बढ़ते मामलों ने स्वास्थ्य विभाग के छोटे कर्मियों नर्स, फार्मासिस्ट सहित अन्य कर्मियों के मानसिक स्वास्थ्य पर काफी असर डाला है। वे दूसरी लहर के दौरान अकल्पनीय मानसिक पीड़ा से गुजरे हैं। केंद्र व राज्य सरकारों को स्वास्थ्य कर्मियों सहित मानसिक रोगों से ग्रसित कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए एक अभियान चलाए जाने की जरूरत है ताकि कोरोना के नाम से जो भय व्याप्त है वह दूर हो जाए।
पंकज पंत, पिथौरागढ़
सकारात्मक हो सोच
गणतंत्र दिवस पर देश में विभिन्न क्षेत्रों की विशिष्ट हस्तियों को सम्मानित करने की परंपरा रही है। इस बार भी कई नामचीन हस्तियों को उनके कला कौशल के लिए सम्मानित किया गया। लेकिन कुछ कलाकारों ने सम्मान ठुकरा कर उसका अपमान किया बल्कि अपनी संकीर्ण सोच को भी जाहिर किया है। पुरस्कार कला अथवा योग्यता का सम्मान है, इसे विकृत नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए।
अमृतलाल मारू, धार, म.प्र.
महानायक का स्मरण
‘महानायक के विचार ही सच्चा स्मारक’ लेख नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विचारों-आदर्शों का मिश्रित विश्लेषण था। आजादी के 75 वर्ष बाद इंडिया गेट पर सुभाष चंद्र बोस की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण उनके योगदान को गौरवान्वित करता है। राजनीतिक धरातल पर उनकी उच्च विचारशील अभिव्यक्ति राष्ट्र को पथ प्रदर्शक के रूप में प्रेरणा देती रहेगी।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
विचार अपनायें
26 जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का ‘महानायक के विचार ही सच्चा स्मारक’ नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कम महत्व दिए जाने वाले भ्रम को दूर करने वाला था। हमें सुभाष चंद्र बोस की इंडिया गेट पर प्रतिमा लगाकर उन्हें सम्मान देने के साथ-साथ देश के प्रति उनके विचारों पर भी अमल करना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
शिक्षा में खोट
आज के समय में देश का प्रत्येक युवा सरकारी नौकरी चाहता है। अगर कोई युवा निजी क्षेत्र में कार्य करके अपना जीविकोपार्जन कर रहा है तो उसे कम महत्व दिया जाता है। दूसरा कारण शिक्षा प्रणाली, जो युवाओं के अंदर कौशल का विकास नहीं करती। कौशल के नाम पर सिर्फ किताबी ज्ञान दे दिया जाता है। इसी वजह से देश के युवा सरकारी नौकरी की तैयारी करते हैं क्योंकि सरकारी नौकरी ही किताबी ज्ञान पर आधारित होती है। भारतीय युवाओं की तुलना अगर चीन, जापान और पश्चिमी देशों के युवाओं से की जाए तो बहुत बड़ा अंतर देखने को मिलता है। वहां के युवाओं को शिक्षा के साथ इतना काबिल बना दिया जाता है कि छात्रों को किसी तरह के आंदोलनों की जरूरत नहीं पड़ती।
हरि मुख मीना, कठहैडा, राजस्थान
मुफ्त का रोग
चुनाव से पूर्व मुफ्त बंदरबांट का जो लालच मतदाताओं को दिया जाता है वह नैतिकता के दायरे में नहीं आता। यह अपने आप में दुखद और शर्मनाक बात है। हैरानी की बात है कि आज तक चुनाव आयोग ने भी इसे कभी गलत नहीं माना और कभी खुद संज्ञान नहीं लिया। दिल्ली में तो चलन चल ही रहा है, बिजली-पानी फ्री दिया ही जा रहा है। बसों में महिलाओं को मुफ्त सेवा दी जा रही है। हैरानी की बात है कि किसी भी महिला संगठन ने इसका आज तक विरोध नहीं किया। सरकारें पहले से ही क़र्ज़ के बोझ तले दबी होती हैं। यदि ये खर्च भी उन पर डाल दिया जायेगा तो राज्य सरकारें कैसे चलेंगी।
चंद्र प्रकाश शर्मा, दिल्ली
पर्यावरण हितैषी
पेट्रोलियम पदार्थों के बढ़ते दामों से आम आदमी के बजट पर प्रभाव पड़ा है। अब विकल्प के तौर पर लोगों का इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ झुकाव बढ़ता जा रहा है। लेकिन कार और दुपहिया वाहनों के लिए चार्जिंग स्टेशन नहीं होने की वजह से इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद थम गयी। हमें ईंधन की बचत के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद करने का लक्ष्य रखना चाहिए। देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में बढ़ोतरी होती है तो पर्यावरण संरक्षण की तरफ लोग प्रेरित होंगे।
कांतिलाल मांडोत, सूरत
एक बार धृतराष्ट्र ने विदुर जी से पूछा, ‘महात्मन्! हमें सभी वेदों में यह ज्ञान मिलता है कि इंसान की आयु 100 वर्ष है। लेकिन मैंने यह जाना है कि कुछ ही लोग सौ वर्ष या इसके करीब आयु तक पहुंच पाते हैं। क्या इससे वेद में लिखा हुआ असंगत सिद्ध नहीं होता?’ जवाब में विदुर ने कहा, ‘महाराज! इस संसार में अत्यंत अभिमान, अधिक बोलना, त्याग का अभाव, क्रोध, अपना ही पेट पालने की चिंता और मित्रद्रोह आदि ये छह तीखी तलवारें हैं, जो देहधारियों की आयु को कम करती हैं।’ ये ही मनुष्य की समय से पहले मृत्यु का कारण भी बनती हैं, मृत्यु नहीं। जो मनुष्य इन छह बातों से बचकर रहता है, वह निश्चय ही लंबी आयु तक जीता है। प्रस्तुति : राजेश कुमार चौहान
विषमता के खतरे
22 जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का ‘बढ़ती आर्थिक असमानता के खतरे समझें’ लेख पिछली तथा वर्तमान सरकार की गलत नीतियों तथा कोरोना महामारी के मद्देनजर देश में बढ़ती आर्थिक असमानता, रिकॉर्ड तोड़ बेकारी तथा महंगाई को लेकर सरकार को कटघरे में खड़ा करने वाला था। धन तथा संपत्ति का केंद्रीकरण कुछ गिने-चुने कारपोरेट घरानों तक सीमित हो गया है। ऐसे में प्रधानमंत्री का वर्ल्ड इकोनामिक फोरम, दावोस में देश की अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर दिखला कर निवेश के लिए आमंत्रित करना सच्चाई से मुंह मोड़ना है। समाजवादी आर्थिक ढांचे की स्थापना के लिए प्रयत्न होना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
शहादत का स्मरण
25 जनवरी का संपादकीय ‘शहादत की ज्योति’ ज्ञानवर्धक लेख लगा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के 125वें जन्मदिन पर इंडिया गेट पर उनकी प्रतिमा के होलोग्राम का अनावरण, देश के महान सपूत को एक अविस्मरणीय श्रद्धांजलि है। वहीं अमर जवान ज्योति और राष्ट्रीय युद्ध स्मारक ज्योति का विलय होना, उन सभी शहीदों को कृतज्ञ राष्ट्र का नमन है, जिन्होंने स्वतंत्र भारत की आन के लिए युद्ध लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की। यह स्मारक हमारी आने वाली पीढ़ियों को देशभक्ति का पाठ पढ़ाता रहेगा।
योगिता शर्मा, सुधोवाला, देहरादून
प्रेरणादायक पहल
इंडिया गेट पर नेताजी की प्रतिमा लगाने की घोषणा के बाद देश में ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों की खोज करनी चाहिए जिन्होंने गुमनामी में रहकर अंग्रेजों से लोहा लिया और स्वतंत्रता आंदोलन में जान फूंकी। आजादी हमें यूं ही नहीं मिली। कई वीरांगनाओं के सपूत और पति शहीद हुए हैं तब जाकर हम आजादी की सांस ले पा रहे हैं। जब तक राष्ट्र पर मर मिटने वाले ऐसे वीर बलिदानियों की शहादत को नई पीढ़ी के सामने नहीं लाया जाएगा तब तक स्वतंत्रता का स्वाद फीका ही रहेगा। स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्तियां लगाने से युवाओं में राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा जगेगी।
अमृतलाल मारू, धार, म.प्र.
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :- dtmagzine@tribunemail.com
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती को देशभर में पराक्रम दिवस के रूप में मनाया गया। यकीनन नेताजी भारत की आज़ादी के महानायक थे। वे भारत के स्वाधीनता संग्राम के ऐसे स्वर्णिम नायक हैं, जिनके बिना आज़ादी का इतिहास अधूरा है। उन्होंने अपने असाधारण राष्ट्रप्रेम, अदम्य साहस व ओजस्वी वाणी से विदेशी शासन की चूलें हिला दीं। नेताजी का संपूर्ण जीवन भारत के गौरव, स्वाभिमान और स्वतंत्रता के लिए समर्पित था। नेताजी के उत्कृष्ट विचार आज भी प्रासंगिक हैं।
नीरज मानिकटाहला, यमुनानगर
उत्सव धर्मिता को विस्तार
24 जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून अंक में दीपांकर गुप्ता का ‘शहरीकरण से उत्सव धर्मिता को विस्तार’ लेख शहरी विकास प्राधिकरण के सामाजिक, धार्मिक व विकासशील आयामों की सविस्तार जानकारी देने वाला था। पुरजोर नवीन रंग-रंगत के बावजूद शहरी रीति-रिवाज, रहन-सहन परंपराओं में सौहार्द, भाईचारे का संबल है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
मेडिकल इमरजेंसी लगे
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बीच ओमीक्रोन के बढ़ते खतरे के चलते चुनाव में नेताओं, कार्यकर्ताओं तथा चुनाव अधिकारियों की सक्रियता के फलस्वरूप महामारी बढ़ सकती है। अभी इन पांच राज्यों में सभी ने वैक्सीन की दोनों डोज़ नहीं लगवाई। बेशक चुनाव आयोग ने 21 जनवरी तक रैलियों, रोड शो आदि पर रोक लगा दी है लेकिन इसके बावजूद कोरोना को रोकने की गाइडलाइंस की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। ऐसे में देश में मेडिकल इमरजेंसी लगाकर कम से कम 6 महीने के लिए इन राज्यों के साथ-साथ देश के सभी भागों में चुनावों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
संवैधानिक जरूरत
पांच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों के प्रचार आदि के दौरान ओमीक्रोन संक्रमण की बड़ी चुनौती है। नयी विधानसभा का गठन करना है व कोरोना के दुष्प्रभावों से जनता को बचाना भी आवश्यक है। ऐसे में जो संवैधानिक व्यवस्था बनी हुई है उसके अनुरूप चुनाव नियम-कानूनों के दायरे में संपन्न कराने के प्रयास होने चाहिए। चुनाव केंद्रों पर भीड़ न हो, इसकी व्यवस्था करनी होगी। फिलवक्त बड़ी रैलियों, जनसभाओं पर रोक लगाना न केवल न्यायसंगत है, बल्कि जनता-जनार्दन के हित में है।
युगल किशोर शर्मा, फरीदाबाद
आपातकालीन मर्यादा
देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है, वहीं चुनाव आयोग देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव करवा रहा है। चुनाव कराने के लिए बड़ी संख्या में प्रतिनिधि, अधिकारी, पुलिसकर्मी लगते हैं। ऐसे में चुनाव में वोट डालने वाली जनता को संक्रमण की संभावना ज्यादा रहेगी। अच्छा होता यदि चुनाव की तारीखें आगे बढ़ा दी जातीं। आपात स्थिति में चुनाव नहीं होते हैं तो राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। यदि चुनाव प्रचार होना ही है तो रेडियो, टीवी, सोशल मीडिया द्वारा अधिक से अधिक प्रचार किया जाए। वर्चुअल मीटिंग हो, वैक्सीनेशन तेज की जाये, भीड़ एकत्रित नहीं होने दी जाए। चुनाव समय पर सुरक्षित तरीके से हो।
भगवानदास छारिया, इंदौर, म.प्र.
सतर्कता बरतें
कोरोना की वजह से पांच राज्यों में चुनाव कराने में थोड़ी दिक्कत तो है लेकिन यह कार्य असम्भव नहीं। चुनाव आयोग कुछ बंदिशों के साथ चुनाव करवा रहा है लेकिन राजनीतिक पार्टियां उन बंदिशों में नहीं रहती और अपनी रैलियों में काफी भीड़ जमा करने का प्रयास करती हैं। पार्टियों को मालूम है कि चुनाव आयोग सख्त नहीं है इसलिए कोरोना गाइडलाइन का भी उल्लंघन किया जाता है। कोरोना काल में चुनाव कराना बीमारी को न्योता देना है लेकिन संवैधानिक बाध्यता के कारण चुनाव कराना मजबूरी भी है। इसलिए राजनीतिक पार्टियों का दायित्व है कि सतर्कता बरतें और बिना भीड़भाड़ जमा किए ही चुनावी प्रचार किए जाए।
जफर अहमद, मधेपुरा, बिहार
वक्त की मांग
वैश्विक महामारी कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में चुनाव आयोग द्वारा अनेक पाबंदियों के साथ पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा लोकतांत्रिक ही नहीं, संवैधानिक व्यवस्था की जरूरत भी है। चुनावी राज्यों सहित समस्त राष्ट्र में सरकार, समाज, सामान्य नागरिकों और विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा कोरोना अनुरूप व्यवहार ही सुरक्षा कवच है। आयोग चुनाव से जुड़े हुए सभी लोगों को कोरोना अनुरूप व्यवहार का सख्त अनुपालन सुनिश्चित करे। चुनाव के लोकतांत्रिक पर्व को सफल बनाने का संकल्प लेकर राष्ट्रधर्म का निर्वहन करना समय की मांग है।
सुखबीर तंवर, गढ़ी नत्थे खां, गुरुग्राम
जीवन से खिलवाड़
कोरोना संकट में चुनाव कराने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता। ऐसे आपातकाल में तो लोगों का जीवन बचाना जरूरी है न कि चुनाव। चुनावी गतिविधियों में सक्रियता रहने से ओमीक्रोन की संक्रमण दर के तीव्र गति से बढ़ने की आशंका है, जिसके चलते लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है। जीने के अधिकार से खिलवाड़ करके चुनाव कराना उचित नहीं है। पिछले चुनावों से सबक लेकर चुनाव आयोग को भी मौजूदा हालात में राष्ट्रहित में चुनाव की तार्किकता का संज्ञान अवश्य ही लेना चाहिए।
सतपाल मलिक, सींक, पानीपत
पुरस्कृत पत्र
समाधान की राह
महामारी के संकट को देखते हुए लोगों का जीवन सुरक्षित रखने हेतु चुनाव टाले जा सकते थे, परन्तु प्रजातंत्र को स्वस्थ व प्रवाहमान बनाए रखने के लिए समय पर चुनाव कराना भी आवश्यक है। ऐसे में महामारी से बचने हेतु उपाय करने होंगेे। जनसभा व रोड शो पर चुनाव आयोग ने बंदिश लगा दी है। चुनाव केंद्रों पर भीड़ न हो, इसकी व्यवस्था करनी होगी। वोटिंग मशीनों को सुरक्षित रूप से छूने हेतु दस्ताने, सैनिटाइजर्स, साबुन और पानी की व्यवस्था करनी होगी। बुजुर्गों, दिव्यांगों व कोरोना पीड़ित वोटरों के लिए पोस्टल वोटिंग की व्यवस्था की जानी चाहिए। उम्मीदवारों से आचार-संहिता का पालन करवा पाना भी चुनाव आयोग के लिए कड़ी परीक्षा होगी।
शेर सिंह, हिसार
आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति
अगले महीने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इन चुनावों में जीत के लिए सभी राजनीतिक दल अपने ढंग से एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। राजनीतिक दलों को देशहित को सर्वोपरि रखकर चुनाव प्रचार तथा वक्तव्य जारी करने चाहिए। उत्तर प्रदेश में विभिन्न राजनीतिक दल हिंदू-मुस्लिम, दलित, ओबीसी आदि के आधार पर लोगों में भेदभाव पैदा करके आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं उससे समाज में भय तथा अनिश्चितता की स्थिति पैदा होती है। चुनाव प्रचार एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के बिना होना चाहिए। लेकिन गैर-जिम्मेदार बयानों द्वारा होने वाला नुकसान समाज पर हमेशा भारी पड़ता है।
शामलाल कौशल, रोहतक
विराट संभावना
विराट कोहली द्वारा क्रिकेट के तीनों प्रारूपों से कप्तानी छोड़ने के पीछे बोर्ड से विवाद काे कारण बताया जा रहा है। चाहे जो भी हो, विराट ने अपनी लाजवाब बल्लेबाजी से क्रिकेट में अपनी धाक जमाई है। भले ही पिछले कुछ दिनों से उनका प्रदर्शन प्रभावित हुआ है लेकिन उनकी निरंतरता पर ब्रेक नहीं लग सकती। विराट पुनः अपनी आक्रामक बल्लेबाजी से न केवल आलोचकों को बल्कि विपक्षी टीम के गेंदबाजों को भी जवाब देंगे। विराट ने समय की शिला पर जो सशक्त हस्ताक्षर किए हैं वह भुलाने योग्य नहीं हैं।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
आत्मनिर्भर भारत
मिसाइल निर्माण के क्षेत्र में लगातार की जा रही मेहनत आखिरकार रंग ला रही है। देश में तो इसे सुरक्षित माना ही जा रहा है विदेशियों ने भी इसे स्वीकारा है। इस दिशा में एक नतीजा मिला है। फिलीपींस द्वारा ब्रह्मोस का बड़ा ऑर्डर देश के शस्त्र निर्माताओं को और आगे बढ़ने को प्रेरित करता है। मिसाइल निर्माण के क्षेत्र में फिलीपींस ने हाल ही में 2780 करोड़ की ब्रह्मोस मिसाइल का ऑर्डर भारतीय कंपनी ब्रह्मोस एयरोस्पेस लिमिटेड को दिया है। इस ऑर्डर ने आत्मनिर्भर भारत की नई तस्वीर तैयार की है।
अमृतलाल मारू, धार, म.प्र.
नाटकीय राजनीति
15 जनवरी को दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित राजकुमार सिंह का लेख ‘विचारशून्य राजनीति की नाटकीयता’ में लेखक का मानना है कि चुनावों की घोषणा, दलों के नाटकीय आवरण को उघाड़कर रख देती है। नैतिकता का यह क्षरण उनकी खोखली सोच का ही परिचायक है। उत्तर प्रदेश में हो रही दल बदल की उठापटक लोकतंत्र का चीरहरण ही है। वर्ग और जातियों के नाम पर जीत का दावा ठोकने वाले इन अवसरवादियों का जो भी इलाज हो, जनहित में होना चाहिए। सवाल है कि यदि शीर्ष नेता, दलित और पिछड़ों का ध्यान नहीं रख रहे थे तो ये अब तक क्या करते रहे? आलेख में गहन विश्लेषण से मथकर यह निकलता है कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश ‘बबुआ’ की छवि से अभी नहीं निकले हैं और पिछले चुनावों में भाजपा और सपा में वोट प्रतिशत का फासला भी अधिक है। पंजाब में पेंच और भी बड़ा है। सिद्धू या चन्नी? समग्र में, यह विचारशून्य राजनीति क्या नया गुल खिलाएगी? गहरे विश्लेषण के लिए साधुवाद!
मीरा गौतम, जीरकपुर
सत्ता की तिकड़में
उत्तर प्रदेश की राजनीति को लेकर आकलन लगाना मुश्किल नजर आता है कि कौन नेता किस ओर अपना झुकाव बना लेगा। कुछ दिनों पहले भाजपा के अंदर भूचाल-सा आ गया था, जब एक के बाद एक नेता पार्टी छोड़ रहे थे। अब समाजवादी पार्टी के अंदर सेंधमारी का काम भाजपा ने कर दिया। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की बहू को अपनी पार्टी में जगह देकर पलड़ा अब सत्तासीन पार्टी का भारी दिखना शुरू हो गया है।
शशांक शेखर, नोएडा
अनुशासन से राहत
17 जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून अंक में सुरेश सेठ का ‘जीवन का अनुशासन देगा महामारी से मुक्ति’ लेख सटीक व महामारी के उपचार, निदान का गहराई से विश्लेषण करने वाला था। कोरोना के परिणामों को देख अनसुना न करते हुए सावधानी आवश्यक है। लेखक द्वारा बताए गए अनुशासन के नियमों का पालन भविष्य में मानवीय जीवन हेतु रामबाण साबित हो सकता है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
बाल-मजदूरी
भारत में बाल-श्रम और बंधुआ मजदूरी में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। खासकर उत्तरी राज्यों में जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, उन परिवारों के बच्चों को बड़ी संख्या में बड़े शहरों में कारखानों, लघु उद्योगों में लगा दिया जाता है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस समय करीब 2 करोड़ से अधिक बच्चे भारत में बाल श्रमिक हैं। सरकार द्वारा कानून एवं योजनाएं लाने के बावजूद इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। वहीं महामारी से अर्थव्यवस्था पर कुप्रभावों के कारण बड़ी संख्या में बच्चे बाल श्रम की तरफ धकेले जा रहे हैं। सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
रितेश सिंह चंचल, आजमगढ़
एक युग का अवसान
कथक सम्राट व पद्मविभूषण पंडित बिरजू महाराज का अनंत में विलीन होना कला जगत के एक युग का अवसान है। उनके जाने से भारतीय संगीत की लय थम गई, सुर मौन व भाव शून्य हो गए। देश की सांस्कृतिक धरोहर कथक नृत्य की सुगंध को विश्वपटल पर बिखेरने वाले पंडित बिरजू महाराज के लिए सम्पूर्ण प्रकृति ही संगीतमय थी। उनके लिए जीवन का हर रंग एवं उसका हर भाव ही नृत्य से सराबोर था। बेहतरीन तबला बजाने का हुनर भी उन्हें हासिल था। कथक नर्तक के पर्याय रहे माता सरस्वती के पुत्र को उनकी चिर यात्रा पर शत-शत नमन!
नीरज मानिकटाहला, यमुनानगर
दोस्ती की बात
पाकिस्तान ने अपनी नई सुरक्षा नीति में ‘भारत के साथ एक सौ वर्ष तक दोस्ती निभाने की बात’ की। लेकिन उससे पहले पाक को कश्मीर का राग तथा आतंकवादी विचारधारा छोड़नी होगी। संपादकीय ‘हकीकत से अक्ल’ में सही कहा गया है कि पाक को अहसास हो गया है कि भारत से दोस्ती में जो लाभ मिल सकते हैं, वे दुश्मनी पालने में संभव नहीं हैं। भारत की आंतरिक सुरक्षा में सेंध लगाते तथा मुंह की खाते-खाते पाक की जर्जर अर्थव्यवस्था हो चुकी है। फिर भी उसकी बातों पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :- dtmagzine@tribunemail.com
नाटकीय राजनीति
15 जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में राजकुमार सिंह का लेख ‘विचार शून्य राजनीति की नाटकीयता’ पांच राज्यों की विधानसभा चुनावों की स्थिति का विश्लेषण करने वाला था। पांच साल तक मलाई मार पद पर मौज करने के बाद तीन मंत्रियों तथा लगभग आधा दर्जन विधायकों ने इस शिकायत के साथ इस्तीफा दे दिया कि भाजपा सरकार युवाओं, बेरोजगारों, दलितों तथा उनके वर्ग के लोगों के लिए कुछ नहीं कर रही। असल में आजकल राजनीति में सत्ता सिंहासन मुख्य मुद्दा बना हुआ है। इसी प्रकार की असमंजस की स्थिति पंजाब में अत्यधिक महत्वाकांक्षी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने पैदा कर रखी है। अब आगामी चुनावों में ऊंट किस करवट बैठेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता।
शामलाल कौशल, रोहतक
काबिलेतारीफ
16 जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून अंक के अंतिम पृष्ठ पर समाचार ‘चालक को दौरा पड़ा, महिला ने 10 किमी तक चलाई बस’ पढ़ा। शिक्षण-प्रशिक्षण जीवन में कब और कहां काम आ जाए कोई नहीं जानता। ऐसा ही वाकया हुआ जब बस ड्राइवर की बिगड़ी हालत देख दिलेर महिला योगिता सावट ने स्वयं बस चलाकर ड्राइवर को अस्पताल में प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध करवाई तथा अन्य यात्रियों को सुरक्षित घरों तक पहुंचाया जो काबिले तारीफ है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
जानलेवा डोर
जब से देश में चाइना डोर आई है, तब से वह गला काटकर मौत के मुंह में पहुंचा रही है। उज्जैन में 18 वर्षीय छात्रा की चाइना डोर से मौत होना दुखद है। वहीं यही डोर पक्षियों के लिए भी घातक सिद्ध हो रही है। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस पर न केवल खेद प्रकट किया है, बल्कि चाइना डोर को लेकर कड़े निर्देश दिए हैं। उक्त हादसों से सबक लेते हुए, केंद्र सरकार को इस डोर को प्रतिबंधित कर देना चाहिए।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
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विचार शून्य राजनीति
15 जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में राजकुमार सिंह का लेख ‘विचार शून्य राजनीति की चुनावी नाटकीयता’ जहां उत्तर प्रदेश की राजनीति में दल-बदल की भगदड़ की मूल वजह को दर्शाता है, वहीं इसी समस्या के कारणों पर भी रोशनी डालता है। एक पक्ष यह भी है कि जनाधार खो चुके राजनेता दलबदल करके अपनी ‘जमीन’ बचाने की कोशिशों में लगे हैं। इसका मकसद उ.प्र. में होने वाले चुनावों में सत्ता की बंदरबांट में भूमिका तलाशना है। दरअसल, राजनीतिक दलों के प्रति जनता में गहरा अविश्वास बना हुआ है। ऐसे में इन राजनेताओं से वैचारिक राजनीति की उम्मीद करना बेमाने है। सचेतक लेख के लिये साधुवाद!
मधुसूदन शर्मा, रुड़की, उत्तराखंड
सोचने का वक्त
जिन पांच प्रांतों में चुनाव होने वाले हैं वहां दल-बदलुओं की मंडी लगी है। जिसे अपनी वर्तमान पार्टी से टिकट नहीं मिलता वह अगला सूरज देखे बिना किसी दूसरी पार्टी में चला जाता है। चुनावों में मतदान से पहले अब जनता सोचे कि जो किसी के वफादार नहीं, जिनका कोई सिद्धांत नहीं, जिनका कोई राजनीतिक आदर्श नहीं उनको वोट देकर हम कितना बड़ा अपराध करते हैं।
लक्ष्मीकांता चावला, अमृतसर
पाठकों को आमंत्रण
विधानसभा चुनावों में नेता पाला बदल रहे हैं। उ.प्र. सरकार में पांच साल तक सत्ता के सुख भोगने के बाद कुछ मंत्रियों ने पार्टी को तबाह करने की धमकी देकर दल बदल लिया। क्या यह उन मतदाताओं के साथ धोखा नहीं है, जिनके वोट लेकर वे विधायक-मंत्री बने? वे पांच साल क्यों खामोश होकर सत्ता सुख भोगते रहे। एेसी ही स्थिति अन्य राज्यों व दलों में भी है। 31 जनवरी की जन संसद का विषय होगा—‘चुनाव पूर्व दल बदल की तार्किकता।’ आपके विचार हमें 25 जनवरी तक मिलें। सर्वोत्तम विचार भेजने वाले पाठक को पुरस्कार स्वरूप एक पुस्तक भेजी जाएगी। विचार इस पते पर भेजें :-
जन संसद/दैनिक ट्रिब्यून,
सेक्टर 29-सी,
चंडीगढ़-160030.
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :-
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जन संसद की राय है कि तीर्थ स्थलों पर होने वाली दुर्घटनाएं जहां प्रबंधन की चूक की देन है, वहीं श्रद्धालु भी संयम व अनुशासन का परिचय नहीं देते। लोगों में येन-केन-प्रकारेण जल्दी दर्शन करने की होड़ होती है। जल्दबाजी में ही भगदड़ मचने से दुर्घटनाएं होती हैं।
सबक लें
माता वैष्णो के परिसर में मची भगदड़ में 12 श्रद्धालुओं की मृत्यु तथा लगभग 15 श्रद्धालुओं का घायल होना चिंता का विषय है। शासन-प्रशासन की मुस्तैदी से राहत-बचाव, दर्शनार्थियों को धैर्य से दीर्घा में प्रतीक्षारत होने की मिसाल पेश करनी चाहिए। प्रबंधन समिति ट्रस्ट को सोशल डिस्टेंसिंग व शांति-सुरक्षा नियमों का पालन करने की जिम्मेवारी लेनी चाहिए ताकि भविष्य में जानलेवा हादसों की पुनरावृत्ति न हो। दुर्घटना से सबक लेते हुए व्यवस्था सुरक्षित बनानी चाहिए। दर्शनों के लिए ऑनलाइन बुकिंग सेवा प्रारंभ करते हुए श्रद्धालुओं की संख्या भी निश्चित कर देनी चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
प्रबंधन की चूक
तीर्थों पर होने वाली दुर्घटनाओं के प्रति जितनी जवाबदेही शासन व प्रशासन की बनती है, उतनी ही हमारी भी बनती है। वैष्णो देवी में भीड़ की भगदड़ के कारण श्रद्धालुओं की मौत अत्यंत दुखदायी है। कोरोना महामारी के संकट के दौरान वहां भारी भीड़ का जमा हो जाना प्रबंध तंत्र की विफलता ही कहा जायेगा। ऐसी दुर्घटनाएं दोबारा न हों, इसके लिए जरूरी है कि प्रबंध-तंत्र को मजबूत किया जाए। इसके साथ-साथ तीर्थ-स्थलों पर जाने वाले सभी श्रद्धालु भी संयम व अनुशासन का परिचय दें तथा प्रबंध-तंत्र का सहयोग करें। दर्शन के लिए जल्दबाजी नहीं, बल्कि प्रतीक्षा करें।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
सतर्कता जरूरी
वैष्णो देवी मंदिर परिसर में दुर्घटना का कारण नि:संदेह सुरक्षा प्रबंधन में कमी रहा। पिछले लगभग दो सालों से कोरोना महामारी के कारण भी लोगों ने मंदिरों में दर्शन नहीं किए, नया साल लोग भगवान के दर्शन कर खुशियों के साथ मनाना चाहते हैं, लेकिन उस अनुरूप व्यवस्थाएं नहीं की जा सकीं। यदि प्रबंधन अच्छा हो, हमारा व्यवहार मर्यादित व संयमित हो तो कोई कारण नहीं कि हम ऐसी दुर्घटनाओं को न टाल सकें। हमारी सतर्कता, हमारा संयम ऐसी दुर्घटनाओं के मामले में ढाल बन सकते हैं।
सुनील कुमार महला, पटियाला, पंजाब
धैर्य और संयम
वैष्णो देवी में भीड़ की भगदड़ से श्रद्धालुओं की मौत दुखद है लेकिन इससे अब तक कोई सबक नहीं लिया गया। कुछ दिनों के लिए तो व्यवस्था दुरुस्त की जाती है परन्तु फिर वही ढाक के तीन पात वाली बात हो जाती है। प्रश्न उठता है कि कोरोना काल में इतनी भीड़? अनुमति क्यों दी गई? प्रशासन कहां था? एक बात और देखने में आती है कि हम स्वयं भी सारी व्यवस्था को तोड़ देते हैं और भगदड़ मच जाती है। हमें चाहिए कि व्यवस्था के अनुरूप अपनी बारी का शांति से इंतजार करें। धैर्य बनाए रखें। संयम का परिचय दें। शासन-प्रशासन का सहयोग करें।
सत्यप्रकाश गुप्ता, खलीलपुर, गुरुग्राम
ताकि पुनरावृत्ति न हो
आपदा प्रबंधन और भीड़ नियंत्रण को लेकर हम लोग अब तक जागरूक नहीं हुए हैं। संयम और अनुशासन आज भी भीड़ के लिए दूर की कौड़ी है। प्रश्न वैष्णो देवी प्रकरण का है तो यह सरासर लापरवाही का प्रतिफल है। आखिर क्या कारण है कि श्रद्धालुओं के बीच झगड़े के कारण बिगड़ी स्थिति को समय रहते नहीं संभाला? क्या माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड को अनुमान नहीं था कि नववर्ष में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आयेंगे? कुल 25 हजार की तय सीमा से कहीं ज्यादा लोगों के लिए वही तैयारी एक आपराधिक कृत्य से कम नहीं है। वक्त का तकाजा है कि हम सबक लें ताकि ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति न हो।
हर्षवर्द्धन, पटना, बिहार
मानसिकता बदलें
बीते दिनों वैष्णो देवी के मंदिर में भगदड़ मचने से हुई 12 लोगों की मौत दुखद घटना है। आखिर ऐसा क्यों हुआ? यह समस्या बार-बार क्यों आती है? इन सवालों का हल ढूंढ़ना जरूरी है। कुछ लोग तीर्थ यात्राओं में धनबल का उपयोग कर स्वयं को श्रेष्ठ साबित करना चाहते हैं तो कुछ पहले दर्शन करना चाहते हैं। इससे आम जन में आक्रोश पनपता है और यही आक्रोश क्रोध बनकर अव्यवस्था का रूप ले लेता है। साथ ही प्रशासनिक ढील के कारण भगदड़ जैसे हालात बनते हैं। हमें मानसिकता बदलने की जरूरत है। प्रशासनिक तंत्र को भी सुदृढ़ करना होगा।
नितेश मंडवारिया, नीमच, म.प्र.
पुरस्कृत पत्र
गिरेबान में झांकें
विडंबना है कि हम ऐसा तंत्र विकसित नहीं कर पाए कि किसी सीमित व संवेदनशील भूभाग पर स्थित धार्मिक स्थलों पर भी अचानक भीड़ बढ़ जाने पर अनुशासित व्यवस्था कर पाएं। मगर सरकार को कोसते समय अपने गिरेबान में झांक कर भी देख लेना चाहिए कि समस्या के निदान में हमारी भी कोई जिम्मेदारी बनती है। आस्था के केंद्रों पर हर नागरिक का कर्तव्य बनता है कि वह शालीनता, संयम व सहनशीलता का व्यवहार करे। नैतिकता के धरातल पर यदि प्रत्येक व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझे तो ऐसे हादसे की रोकथाम की जा सकती है।
पूनम कश्यप, बहादुरगढ़
मरहम लगायें
चौदह जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में संपादकीय ‘मारक महंगाई’ लोगों की कम होती आमदनी, बढ़ती बेकारी, गिरती विकास दर तथा महंगाई पर चिंता व्यक्त करने वाला था। ओमीक्रोन की अनुमान से ज्यादा तेजी से बढ़ती गति ने बेकारी तथा कीमतों में वृद्धि को लेकर चिंता पैदा कर दी है। इस महामारी को रोकने के लिए विभिन्न सरकारों ने जो आंशिक प्रतिबंध के कदम उठाए हैं, उससे अर्थव्यवस्था की गति धीमी, बेकारी के बढ़ने तथा आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में और वृद्धि होने की संभावना है। सरकार को आगामी वर्ष का वित्तीय बजट बनाते समय रोजगार में वृद्धि तथा कीमतों पर नियंत्रण रखने की नीतियों को जरूर बनाना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
सस्ता इलाज मिले
नौ जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून लहरें अंक में प्रमिला गुप्ता का ‘सर्वाइकल कैंसर निदान में इनका बड़ा योगदान’ लेख विश्लेषण करने वाला था। वर्तमान में खान-पान की बदलती तस्वीर ने मानव को शारीरिक- मानसिक बीमारियों का शिकार बनाया है। भले ही इस बीमारी के उपचार को स्वदेशी करार दिया जाए। लेकिन महंगी दवाइयों, निजी अस्पतालों के खर्च को झेल पाना आमजन की पहुंच से बाहर है। सरकार को स्वास्थ्य सेवाएं सस्ती एवं सुलभ बना देनी चाहिए। तभी अनमोल जीवन के संरक्षण की संभावना संदेह रहित रहेगी।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
मतदाताओं से धोखा
विधानसभा चुनावों की घोषणा के बाद तेजी से बदल रहे सियासी समीकरण ने चर्चाओं का बाजार गरम कर दिया है। चुनाव का मौसम आया है, तो दलबदल और पालाबदल भी स्वाभाविक है। इस तरह चुनाव के वक्त नेताओं के दल बदल से स्पष्ट हो गया है कि राजनीति में सिद्धांतों का कोई मतलब नहीं रह गया है। इस तरह दल बदल करना, जीतने वाली पार्टी से गठजोड़ कर फिर सत्ता में पहुंचने के प्रयास मतदाताओं के साथ धोखाधड़ी है।
विभूति बुपक्या, आष्टा, म.प्र.
बदलाव की आहट
उ.प्र. के भाजपा खेमें में सबसे बड़ी उठापटक देखने को मिल रही है। भाजपा के बड़े नेता, मंत्री, विधायक, दूसरे दलों का दामन थाम रहे हैं। एक महीनों के अंदर पार्टी के अनेक नेताओं ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण की है। कहीं ये संकेत एक बड़े बदलाव की तरफ इशारा तो नहीं कर रहे हैं। हाल ही में समाजवादी पार्टी से सिरसागंज के विधायक हरिओम यादव एवं पूर्व विधायक धर्मपाल यादव तथा कांग्रेस विधायक नरेश सैनी भाजपा में शामिल हुए हैं। लेकिन भाजपा तो कह रही है कि टिकट कटने के डर से विधायकों का पलायन हो रहा है।
शिवेन्द्र यादव, कुशीनगर, उ.प्र.
लोकतंत्र की परीक्षा
10 जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून अंक में अश्विनी कुमार का ‘लोकतांत्रिक सीमाओं की क्षमता की परीक्षा’ लेख पांच राज्यों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में दलों के निहित राजनीतिक स्वार्थ एवं कोरोना महामारी के संक्रमित केसों की संख्या में हो रहे इजाफे के प्रति सचेत करने वाला था। मतदान की सार्थकता मास्क लगाने, सोशल डिस्टेंसिंग और टीकाकरण में ही है। परीक्षा की यह घड़ी सियासती मुश्किलों के वक्त की नहीं अपितु सभ्य जागरूक नागरिक के कर्तव्यों की है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
जीवन महत्वपूर्ण
कोविड-19 मामलों में वृद्धि और चुनावी मौसम में रैलियों के साथ कोरोना की तीसरी लहर चिंताजनक है। फिर से वही गलतियां दोहराई जा रही हैं, जिन्होंने देश में कोरोना की दूसरी लहर के वक्त नुकसान किया। सर्वप्रथम महत्वपूर्ण क्या है लोकतंत्र, चुनाव या नागरिकों का जीवन? कायदे से तो चुनाव स्थगित होते और राजनेता इंतजार करते।
आयुषी उपाध्याय, चंडीगढ़
जांच की दिशा
प्रधानमंत्री की पंजाब यात्रा पर हुई सुरक्षा चूक पर जांच के लिए अंततः सुप्रीम कोर्ट को एक कमेटी गठित करनी पड़ी है। लेकिन कुछ लोगों का यह मानना है कि जांच का परिणाम शायद सार्वजनिक न हो। यदि ऐसा होता है तो यह अधिक चिंतनीय होगा। सर्वप्रथम महत्वपूर्ण है कि जांच कब तक पूरी होती है।
वेद मामूरपुर, नरेला
युवाओं पर भरोसा
राष्ट्रीय युवा दिवस भारत के सबसे बड़े आयु वर्ग को याद करवाता है कि स्वामी विवेकानंद ने उनको कितना महत्व दिया था। आज के युवा होशियार एवं बुद्धिमान हैं और जिंदगी जीने, कमाने, आगे बढ़ने, समय व्यतीत करने के लिए नए तरीके ढूंढ़ते हैं। वे अपने जीवन के हर क्षण का भरपूर सदुपयोग करना जानते हैं। लेकिन इस वैश्वीकृत संसार में खुद को ढालते हुए वह कई बार अंधाधुंध पश्चिमी संस्कृति का अनुसरण करने लगते हैं। युवा देश और समाज का भविष्य हैं। स्वामी विवेकानंद जैसे महान विचारक ने युवाओं पर जो भरोसा जताया था, उन्हें उस पर खरे उतरते हुए, भारतीय समाज को आगे लेकर जाना चाहिए।
डिंपी भाटिया, नई दिल्ली
आज भी प्रासंगिक
स्वामी विवेकानंद जी का मानना था कि किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए उसकी युवा पीढ़ी की खास भूमिका होती है। लिहाजा राष्ट्र को चिंतक व अच्छे विचार वाले युवाओं की आवश्यकता है। नर सेवा को ही नारायण सेवा मानना उनके आदर्शों में शुमार था। उनका कहना था कि भारतीय संस्कृति में मूल्यों की अहमियत है। इस श्रेष्ठ संस्कृति को विश्व पटल पर अंकित करने का श्रेय उन्हें जाता है। आज के सामाजिक परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय संत स्वामी विवेकानंद का जीवन-दर्शन, सिद्धांत व आदर्श हर वर्ग-आयु के लिए प्रासंगिक हैं।
नीरज मानिकटाहला, यमुनानगर
बड़ा संकट
देश में अब कोरोना वायरस महामारी से संक्रमित लोगों की संख्या भयानक रूप लेती जा रही है। इन दिनों दिल्ली और महाराष्ट्र में कोविड-19 के संक्रमण में आने वाले लोगों की संख्या को देखते हुए अब मन में प्रश्न उठ रहा है कि कहीं फिर से देश में लॉकडाउन न लग जाए? देश में कोरोनारोधी टीकाकरण की प्रक्रिया चालू है। वैक्सीन के जरिए भावी खतरे से अवश्य बचा जा सकता है। फिर भी मास्क लगाने, सोशल डिस्टेंसिंग और जागरूकता में ही बचाव है।
चंदन कुमार नाथ, गुवाहाटी, असम
कोरोना में चुनावी लहर
आठ जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में राजकुमार सिंह का ‘कोरोना कहर के बीच चुनावी लहर’ लेख नेताओं की सत्ता की भूख की हकीकत दर्शाता है। यह सोचने पर मजबूर करता है कि देश की राजनीति कितनी संवेदनहीन और निर्मम हो गई है। कैसे-कैसे हथकंडे अपनाकर सत्ता के लिये तड़प रहे हैं। सभी दल इस बात पर सहमत हैं कि चुनाव होने चाहिए। कोरोना की लहर से पीड़ित जनता की सुध लेना वाला कोई दल नहीं है। सवाल यह भी है कि जब फिजिकल डिस्टेंसिंग की बात हो रही है तो रैलियां, रोड शो क्यों? आपने बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठाया कि लाखों लोगों के जीवन पर संकट से बड़ा कोई आपातकाल हो सकता है?
मधुसूदन शर्मा, रुड़की, हरिद्वार
सजग रहें
डेढ़ साल की बंदिशों के बाद देश में अनलॉक की प्रक्रिया के बाद कोरोना के मामलों में गिरावट शुरू हुई थी, जिससे रुकी हुई जिंदगी फिर से पटरी पर आ गई। लेकिन ओमीक्रोन ने फिर से चिंताजनक स्थिति पैदा कर दी है। देश में ओमीक्रोन के मामले बढ़ते जा रहे हैं जिसे देखते हुए नाइट कर्फ्यू और लॉकडाउन की स्थिति फिर से पैदा हो गई है। यह सब हमारी लापरवाही का ही परिणाम है।
लवनीत वशिष्ठ, मोरिंडा
पाठकों को आमंत्रण
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही चुनाव आयोग ने जनसभा व रोड शो पर बंदिश भी लगायी है, लेकिन मानवता पर महामारी के संकट को देखते हुए चुनाव कराने जरूरी थे? सीमित बंदिशों के बावजूद चुनाव में नेताओं, कार्यकर्ताओं, चुनाव प्रबंधन से जुड़े अधिकारियों-कर्मचारियों की सक्रियता रहती है। क्या मेडिकल इमरजेंसी घोषित नहीं हो सकती थी? चुनाव जरूरी है या लोगों का जीवन? 24 जनवरी की जन संसद का विषय होगा—‘कोरोना संकट में चुनाव का औचित्य।’ आपके विचार हमें 18 जनवरी तक मिलें। सर्वोत्तम विचार भेजने वाले पाठक को पुरस्कार स्वरूप एक पुस्तक भेजी जाएगी। विचार इस पते पर भेजें :-
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जन संसद की राय है कि लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाना प्रगतिशील कदम है। इससे जहां परिपक्वता आएगी, वहीं पढ़ाई व करिअर बनाने का समय मिलेगा। वहीं छोटी उम्र में मां बनने से होने वाली कुपोषण की समस्या दूर होगी। लोगों को पहले मानसिक तौर पर तैयार करना होगा।
राष्ट्र हित में
राष्ट्रहित को ध्यान में रख समय की जरूरत अनुसार सामाजिक रीति-रिवाज, परंपराओं में भी परिवर्तन करना होता है, तभी राष्ट्र सही दिशा में गतिशील बना रहता है। लड़कियों की विवाह की उम्र 21 वर्ष करना भी ऐसा ही राष्ट्र व समाज हितकारी कदम है। इससे लड़कियों की शारीरिक व मानसिक क्षमताओं का विकास होगा, ताकि वे सहज रूप से मातृत्व धर्म ग्रहण करने का उत्तरदायित्व वहन कर सकें। इस उम्र में उनकी समझदारी भी विकसित होने लगती है। इससे वे उच्च शिक्षा भी प्राप्त कर सकेंगी। इसके साथ ही बढ़ती आबादी में भी कमी आयेगी।
दिनेश विजयवर्गीय, बूंदी, राजस्थान
सोच बदलना जरूरी
लड़कियों के विवाह की उम्र बढ़ाने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता। इस तरह के कानून केवल कागजों तक सिमट कर रह जाते हैं, धरातल पर लागू नहीं होते। देश में क्या कोई ऐसी संस्थाएं हैं जो 137 करोड़ जनसंख्या वाले देश में होने वाले प्रत्येक विवाह की जांच कर सकें? विवाह पंजीकरण अनिवार्य होने के बावजूद अब भी वे केवल शहरों में ही पंजीकृत करवाये जाते हैं। मात्र विवाह की आयु बढ़ाने से महिलाओं के जीवन में कोई अंतर नहीं आने वाला, जब तक कि हमारी सोच नहीं बदलती तथा शिक्षा, स्वाबलम्बन के प्रति दिशाएं सकारात्मक नहीं होतीं।
कविता सूद, पंचकूला
आर्थिक विषमता
केंद्र सरकार ने लड़कियों की शादी की उम्र 18 वर्ष से 21 वर्ष करने का फैसला किया है लेकिन सामाजिक मान्यताओं, गरीबी व विसंगतियों के चलते यह कानून प्रभावी होगा इसमें संदेह है। आज भी भारत की आबादी का बहुत बड़ा भाग ऐसा है जो कि सामाजिक व आर्थिक कारणों से लड़कियों की शादी कम उम्र में करने के लिए विवश है। जरूरत उनकी सोच में परिवर्तन लाने की है। उन्हें प्रेरित किया जाए कि वह बेटियों को पढ़ा-लिखा कर स्वाबलंबी बनाएं। ऐसे लोगों की सोच में परिवर्तन लाने पर ही यह कानून कारगर होगा।
श्रीमती केरा सिंह, नरवाना
बेटियों का सशक्तीकरण
लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष करने का केंद्र का निर्णय स्वागतयोग्य है। इससे बेटियों का सशक्तीकरण होगा। वे अपनी पढ़ाई और करिअर के उचित अवसर प्राप्त कर पाएंगी। उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और वे सही निर्णय ले पाएंगी। वे अपने आप को और अपने बच्चों को कुपोषण से बचा पाएंगी। वहीं शिशु व मातृ मृत्यु दर में कमी आएगी। जनसंख्या वृद्धि की दर में भी कमी आएगी, जिससे प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम होगा। इसके साथ ही जीवन साथी का सही चुनाव कर पाने से पारिवारिक झगड़ों में कमी आएगी। परिवारों का आर्थिक, शैक्षिक व सामाजिक स्तर ऊंचा उठेगा। इसके लिए शिक्षा और सामाजिक जागरूकता की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।
शेर सिंह, हिसार
समय की मांग
सरकार द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाना आज के समय की मांग है। शारीरिक रूप से मजबूत और मानसिक रूप से सक्षम व्यक्ति देश के विकास में मददगार साबित हो सकता है। लड़कियों की वैवाहिक आयु 18 वर्ष होने के कारण उन पर बेहतर करिअर के बजाय ज़ल्द विवाह करने का दबाव ज़्यादा रहता है। वे न ढंग से पढ़ाई कर पाती हैं और न ही मनचाहे क्षेत्र में अपना भविष्य बना पाती हैं। स्वास्थ्य समस्याएं अलग होती हैं। वैवाहिक उम्र 21 वर्ष होने से वे न केवल अधिक सक्षम हो पाएंगी बल्कि मां बनने संबंधी निर्णय भी परिपक्वता के साथ ले पाएंगी। वहीं जनसंख्या विस्फोट पर लगाम लगेगी।
अनिल कुमार पाण्डेय, पंचकूला
क्रांतिकारी बदलाव
लड़कों के समान लड़कियों की शादी की उम्र 21 वर्ष करना एक क्रान्तिकारी कदम है। वर्तमान में लड़कियों का सशक्तीकरण करने के लिये उनका न केवल शिक्षित होना बल्कि अपने पांवों पर खड़ा होना भी आवश्यक है। इसके लिए उनको अपना करिअर चुनना और उसमें उत्कृष्ट होना अत्यावश्यक है। यदि लड़कियों को 18 वर्ष में ही शादी के बंधन में बांध दिया जाये तो उनके लिए अपना करिअर चुनने और उसमें आगे बढ़ने की संभावनाएं कम हो जाएंगी। सरकार के इस क्रांतिकारी कदम का स्वागत किया जाना चाहिए।
अनिल कुमार शर्मा, चंडीगढ़
पुरस्कृत पत्र
तार्किक आधार
विवाह के लिए 21 वर्ष की आयु लड़कियों को शारीरिक एवं मानसिक परिपक्वता के साथ एक स्वस्थ सोच भी प्रदान करती है। यही परिपक्वता और स्वस्थ सोच ही मजबूत एवं खुशहाल वैवाहिक जीवन का आधार बनती है। इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि वह अपने उच्च शिक्षा प्राप्त करने और स्वावलंबी बनने के सपनों को साकार कर पाएंगी। वहीं उसका स्वालंबन परिवार को आर्थिक सहायता भी प्रदान करेगा। कम उम्र में मातृत्व की जिम्मेदारी उन्हें कुपोषण का शिकार बना देती है। लड़कियों के विवाह की उम्र बढ़ाने का निर्णय पूर्णत: तर्कसंगत एवं उचित है।
योगिता शर्मा, सुधोवाला, देहरादून
दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम
प्रधानमंत्री की पंजाब यात्रा के दौरान प्रदर्शनकारियों ने उनका काफिला एक पुल पर राेका। यहां यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि वे देश का नेतृत्व और पूरे विश्व में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। सुरक्षा में चूक के कारण हम एक प्रधानमंत्री और एक पूर्व प्रधानमंत्री खो चुके हैं। प्रधानमंत्री के सामने अपनी मांगों को रखना एक अलग बात है, पर उनका रास्ता रोकना किसी अपराध से कम नहीं कहा जा सकता। क्या पंजाब सरकार और पंजाब पुलिस के पास सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने के लिए पर्याप्त समय नहीं था?
कुलदीप प्रजापति, नरड़, कैथल
नारी सशक्तीकरण
दो जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून अध्ययन कक्ष अंक में ललित उपमन्यु की ‘लोग क्या कहेंगे’ कहानी सामाजिक कुरीति दहेज के लालची लोगों का पटाक्षेप करने वाली थी। कथानायिका कजरी की सामाजिक मान-मर्यादाओं की आदर्श नारी के रूप में प्रस्तुति अनुकरणीय है। वहीं कथांत सहानुभूतिपूर्ण एवं मार्मिक रहा। लालची लोगों को सख्त सजा निश्चित होनी चाहिए। महिला सशक्तीकरण के लिए समुदायों को आगे आकर नारी सुरक्षा के लिए उचित कदम उठाने चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
जागना होगा
कोरोना महामारी की तीसरी लहर का खतरा बढ़ता जा रहा है। देश कोरोना से बचाव हेतु लॉकडाउन का सामना करने को तैयार नहीं है। लगातार दो बार के लॉकडाउन से न केवल अर्थव्यवस्था जर्जर हुई, बल्कि जनता जनार्दन की जेबों की हालत खराब की व काम-धंधे व्यापार-व्यवसाय भी प्रभावित हुए। ऐसे में हमें स्वयं जागना होगा। सरकार व डॉक्टरों द्वारा जारी की जा रही गाइडलाइन का पालन स्वेच्छा से हर हाल में करना ही होगा। वरना स्थिति भयावह हो सकती है।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
जान की कीमत
एक तरफ कोरोना, दूसरी तरफ पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव । दोनों ही अपने चरम पर हैं। देश की सत्ताधारी पार्टी सहित सभी राजनीतिक दलों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वे पूरे जोरों-शोरों से पांचों राज्यों में अपने प्रचार अभियान और बड़ी बड़ी रैलियां करने में जुटे हैं। आज कई राज्यों में स्कूल, कॉलेज बंद कर दिए। दफ्तरों में 50 प्रतिशत कर्मचारियों के साथ बुलाने या वर्क फ्रॉम होम के साथ काम करने के आदेश जारी हो गए हैं। सरकारी जगहों पर जाने पर वैक्सीन सर्टिफिकेट दिखाना आवश्यक हो गया है। क्या चुनावी रैलियां भी ऑनलाइन मोड में आयोजित नहीं की जा सकती? क्या देश की जनता की जान की कीमत कुछ नहीं है?
विकास बिश्नोई, हिसार
जीवन बचाएं
मौजूदा परिदृश्य में, सुरक्षा सर्वोपरि है लेकिन छात्रों के समग्र विकास के लिए सभी शिक्षकों और छात्रों को स्वास्थ्य नियमों के तहत प्रतिबद्ध किया जाना चाहिए। सुरक्षा उपायों के रूप में, टीकाकरण अभियान को छात्रों के बीच सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके अलावा, विशेषज्ञों द्वारा महामारी की तीसरी लहर के मद्देनजर पूरा ध्यान बच्चों सहित सभी के शीघ्र टीकाकरण पर केंद्रित होना चाहिए। इसके अलावा, स्वच्छता रखना और अनुचित सामाजिक मेल-मिलाप से बचना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
गायत्री भान, चंडीगढ़
सुरक्षा की प्राथमिकता
चीन से सीमा विवाद के बावजूद दोनों देशों के बीच व्यापारिक गतिविधियां रिकॉर्ड स्तर पर कायम हुई हैं। चीनी वस्तुओं के बहिष्कार के बावजूद सामानों से मोह भंग न होना दर्शाता है कि चीनी वस्तुओं की होली जलाने के मायने क्या हैं? अगर आंकड़ों पर गौर करें तो ऐसा लगता है चीन का विरोध हमारा महज एक शिगूफा है। बजाय व्यापार घटने के यहां रिकॉर्ड तोड़ वृद्धि हो रही है। ऐसे में यह तय करना जरूरी हो जाता है कि या तो हम अपनी सुरक्षा का ख्याल करें या आर्थिक पहलू की चिंता करें।
अमृतलाल मारू, दसई, धार, म.प्र.
डिजिटल करेंसी
चार जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में भरत झुनझुनवाला का लेख ‘बिटकॉइन की चुनौती और डिजिटल करेंसी’ इस पर चर्चा करने वाला था। बिटकॉइन या क्रिप्टो करेंसी कुछ कम्प्यूटर इंजीनियरों की दिमागी सोच का परिणाम है जो कि आजकल संसार के बहुत सारे देशों में लोकप्रिय हो रही है। जिस पर किसी बैंक या सरकार का नियंत्रण नहीं है। लेकिन इसका दोष यह है कि इसे हैक किया जा सकता है और आतंकवादी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। यह केन्द्रीय बैंक या सरकारी नीतियों के खिलाफ भी काम कर सकती है। लेखक के इस सुझाव से सहमत हैं कि क्रिप्टोकरेंसी के बदले में डिजिटल करेंसी बेहतर है।
शामलाल कौशल, रोहतक
सार्थक पहल
सरकार द्वारा 15 से 18 वर्ष तक के किशोरों-किशोरियों के लिए आरंभ किया गया टीकाकरण समय का सही निर्णय है। भारत बायोटेक के कोवैक्सीन के 2 से 18 वर्ष तक के बच्चों पर किए गए प्रयोग भी उत्साहवर्धक रहे हैं। सरकार अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही है। अब समय है हमें अपनी जिम्मेदारी सही ढंग से निभाने का। वैज्ञानिकों का मानना न्यायसंगत हो सकता है कि बच्चों में संक्रमण कम होता है पर वे संक्रमण के वाहक बन सकते हैं। लापरवाही भारी पड़ सकती है।
राजेन्द्र कुमार शर्मा, रेवाड़ी
भविष्य की सुरक्षा
26 दिसंबर के दैनिक ट्रिब्यून के लहरें अंक में प्रमोद जोशी का ‘उम्मीदें जगा कर विदा होता साल’ लेख कोरोना महामारी, लॉकडाउन, महंगाई, धरने प्रदर्शन, आंदोलन आदि का खुलासा करने वाला था। बीता साल इतिहास की बड़ी चुनौतियों का मुकाबला करने की प्रेरणा, नि:स्वार्थ सेवा, एकता की भावना मन में कूट-कूट कर भर गया। अब तीसरी लहर ओमीक्रोन के प्रति जागरूकता का संदेश भविष्य की सुरक्षा है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
गहरे निहितार्थ
पहली जनवरी दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित ‘दलों-नेताओं का भविष्य भी बतायेगा नव वर्ष’ लेख में स्पष्ट है कि यह वर्ष अपने आरंभ और अंत में होने वाले चुनावों से 2024 में होने वाले महाचुनाव का भविष्य भी तय करेगा। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव 2024 का सेमीफाइनल माने जा सकते हैं। पंजाब में सियासी अविश्वास, दांव-पेच जारी हैं। उत्तराखंड में एंटी इनकंबेंसी मामला है। मुख्यमंत्री बदले जा रहे हैं। यूपी में प्रियंका महिला वोट पाने की जुगत में हैं। मायावती चुप-सी हैं। सपा छोटे दलों से हाथ मिला रही है। लेख में विश्लेषण से चुनावों में बदली हुई परिस्थितियों से राजनीतिक संभावनाओं के खुलने वाले दरवाजों का अंदाजा हो रहा है। किसान आंदोलन और कोरोना भी एक पक्ष है?
मीरा गौतम, जीरकपुर
सजगता की जरूरत
जम्मू में वैष्णो देवी मंदिर हादसा कैसे हुआ, यह जांच का विषय है। यही कारण है कि आज लोग भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचते हैं। इससे पहले भी अनेक धार्मिक स्थलों पर भगदड़ मचने से अनेक लोग हताहत हुए हैं। भक्तों की भीड़ और संकीर्ण रास्ते, रात को समुचित प्रकाश न होना भी हादसे का कारण बनते हैं। प्रशासन को ऐसे भीड़भाड़ वाले धार्मिक स्थलों पर विषम परिस्थितियों में निकलने के लिए वैकल्पिक उपाय करना चाहिए।
कुलदीप प्रजापति, नरड़, कैथल
दिन की बंदिशें
कुछ राज्यों में रात्रि कर्फ्यू का निर्णय काफी सराहनीय है। लेकिन क्या कोरोना वायरस रात में फैलता है? अतः ज्यादातर पाबंदियां रात के बजाय दिन में लगाने की जरूरत है। दिन में हर व्यक्ति घर से बाहर निकलता है तब वह भीड़भाड़ में भी जाता है। ऐसे में दिन में ज्यादा सुरक्षा अपनाने की जरूरत है। देश में टीकाकरण का महा अभियान चल रहा है। अतः हर नागरिक को, हर समाज के व्यक्ति को टीकाकरण में भाग लेकर अपना टीकाकरण अवश्य कराना चाहिए।
मनमोहन राजावत, शाजापुर
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नेताओं की किस्मत
एक जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में राजकुमार सिंह का लेख ‘दलों-नेताओं का भविष्य भी बताएगा नववर्ष’ आगामी विधानसभा चुनाव के गहरे अर्थों को बताने वाला था। आम लोग यही सोचते हैं कि आने वाले दिनों में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं। मगर ये चुनाव कई दलों और नेताओं का भविष्य भी तय करेंगे। इसके साथ-साथ 2024 के आम चुनाव की तस्वीर भी उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम से उभरेगी। सार्थक लेख के लिए साधुवाद!
मधुसूदन शर्मा, रुड़की, हरिद्वार
आप की संभावनाएं
एक जनवरी को दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित राजकुमार सिंह के लेख में उत्तर भारत के राज्यों में 2022 के दौरान राजनीतिक परिणाम का आलोचनात्मक विश्लेषण किया है। लेकिन पंजाब और उत्तराखंड में विशेष रूप से आप पार्टी के उदय को पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया है। चंडीगढ़ नगर निगम के हालिया नतीजों को देखते हुए यह पार्टी पंजाब राज्य में चौतरफा मुकाबले में अन्य सभी को पीछे छोड़ सकती है।
शेर सिंह सांगवान, रोहतक
पाठकों को आमंत्रण
वैष्णो देवी में भीड़ की भगदड़ से श्रद्धालुओं की मौत ने विचलित किया। प्रश्न है कि कोरोना संकट में इतनी भीड़ को अनुमति क्यों? आखिर प्रबंधतंत्र हर बार क्यों चूकता है? क्या हम तीर्थ स्थलों में संयम, धैर्य व अनुशासन का परिचय देते हैं? क्यों जल्दबाजी में दर्शन की होड़ होती है? क्या हम जरूरी मर्यादित व्यवहार करते हैं? यदि हम अपनी बारी की प्रतीक्षा करें तो न कोई विवाद होगा और न ही भगदड़। 17 जनवरी की जन संसद का विषय होगा—‘तीर्थों में दुर्घटनाएं और हमारी जवाबदेही।’ आपके विचार हमें 11 जनवरी तक मिलें। सर्वोत्तम विचार भेजने वाले पाठक को पुरस्कार स्वरूप एक पुस्तक भेजी जाएगी। विचार इस पते पर भेजें :-
जन संसद/दैनिक ट्रिब्यून,
सेक्टर 29-सी,
चंडीगढ़-160030.
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जागरूकता उपचार
कोरोना संक्रमण ने जनजीवन को बेहद प्रभावित किया है। देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा तो बेरोजगारी भी बढ़ी है। वैक्सीनेशन पर जोर देकर सरकार ने तीसरी लहर का सामना करने के लिए देश को तैयार किया लेकिन साल के अंत में कोरोना के नए वेरिएंट ओमीक्राेन ने दस्तक दी। यदि सभी राजनीतिक दल, केंद्र व राज्य सरकारें अपना स्वार्थ त्याग कर नई आशा व नए संकल्प से तैयारी करें तो कोरोना को बेअसर किया जा सकता है। यदि सामान्य जीवन को प्रभावित करके चुनावी रैलियां होती हैं तो देश को तीसरी लहर का सामना करना पड़ेगा। नियम पालन के प्रति जागरूकता जरूरी है।
सोहन लाल गौड़, बाहमनीवाला, कैथल
चुनौती स्वीकारें
वर्ष 2021 में कोरोना महामारी के कारण हमें कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। 2021 के जाते-जाते कोरोना का नया स्वरूप ओमीक्रोन साल 2022 में विरासत के रूप में मिल रहा है। इसको एक चुनौती के रूप में स्वीकार करना होगा। इस महामारी से निपटने के लिए हमें यह संकल्प करना होगा कि सरकार द्वारा जारी निर्देशों का सख्ती से पालन करें। इस वर्ष 15-18 साल तक के बच्चों को कोविड रोधी टीके की पहली डोज लगनी शुरू होगी। देश के नागरिकों की जिम्मेदारी बनती है कि वे इस टीकाकरण में बढ़-चढ़कर भाग लें ताकि इस महामारी से बचा जा सके।
संदीप कुमार वत्स, चंडीगढ़
कोरोनारोधी जागरूकता
कोरोना की तीसरी लहर के मद्देनजर समाज और सरकार दोनों के लिए एहतियाती तौर पर सजगता एवं जिम्मेदार व्यवहार अपनाना जरूरी हो गया है। ओमीक्रोन की तीव्र संक्रमण दर को रोकने में सजगता एवं सतर्कता ही प्राथमिक उपचार है। पिछली लहरों से सबक लेकर चिकित्सा तंत्र को भी चाक-चौबंद तैयारी के साथ सख्त कदम उठाने की जरूरत है। जब तक प्रत्येक नागरिक कोविड नियमों का जिम्मेदारी से निर्वहन नहीं करता तक तक न तो समाज में कोरोना रोधी जागरूकता पैदा हो सकती है और न ही नववर्ष के संकल्प कोरोना मुक्त भारत की कामना पूरी हो सकती है।
सतपाल मलिक, सींक, पानीपत
मुकाबला करें
गत वर्ष की कोरोना महामारी की दूसरी लहर की घातकता और भीषणता से सभी परिचित हैं। अब 2022 के आरंभ में ही इसके नये वेरिएंट ओमीक्रोन की दस्तक चौंकाने वाली है। दूसरी तरफ, लगातार गिरती अर्थव्यवस्था, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी भी एक चुनौती है। जरूरत है सरकार और नागरिकों के संयुक्त प्रयास की ताकि दृढ़ संकल्प होकर इस कठिन समय से देश को निकाला जा सके। बहरहाल, इस विकट घड़ी में हमें देश के प्रवाह को रुकने नहीं देना है। नयी दृढ़ इच्छाशक्ति से व जागरूक होकर परिस्थिति का मुकाबला करना है।
रवि नागरा, नौशहरा, साढौरा
संकल्प का मंत्र
बीता वर्ष कोरोना महामारी का वर्ष साबित हुआ। अब हमें ओमीक्रोन के प्रभाव से भी देश को मुक्ति दिलानी है। नये संकल्पों से जीवन में खुशियां लाने का उद्यम करना है। यह हमारा संकल्प होगा, जिसका कोई विकल्प नहीं होगा। संकल्प ही हमारे लिए जीवन मंत्र होगा। जागरूक होकर समस्याओं का हल निकालना होगा। पारदर्शिता से, शांति और सौहार्द के साथ जीत का उत्सव मनाने की तैयारी करने का प्रयास करें। नवोन्मेष, प्रयोग, अनुसंधान और मेहनत से विजय प्राप्त करने के लिए मजबूती से संकल्प लेना होगा।
अशोक, पटना
बचाव का प्रण
बेशक कोरोना का ओमीक्राेन वेरिएंट पहले से ज्यादा संक्रामक है लेकिन अपने पिछले अनुभव से, सरकारी प्रयत्न और लोगों के सहयोग के फलस्वरूप इस पर भी काबू पा लिया जाएगा। जरूरत है कि प्रत्येक नागरिक जागरूकता के साथ कोरोना रोधी दो डोज वैक्सीन अवश्य लगवाए। बच्चों का टीकाकरण भी यथाशीघ्र होना चाहिए। घर से बाहर निकलते समय मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग की अनुपालना करे। लापरवाही करने से बचे। नियम पालन की जागरूकता कोरोना से बचाव वर्ष 2022 के यही संकल्प होने चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
आंतरिक मजबूती
कोरोना विषाणु का नया स्वरूप ओमीक्रोन एक चुनौती के रूप में सामने है। व्यक्तिगत स्तर पर हमें सरकार पर अपनी निर्भरता कम कर स्वयं को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूत बनाने का संकल्प लेना होगा। यह एक संयमित जीवनशैली, योग और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थों से मिल सकता है। हमारी आंतरिक शक्ति ही हमें हर कठिनाई और रोग पर विजय दिलवाएगी। वहीं सरकार को दूसरी लहर की भयावहता को देखते हुए चिकित्सा तंत्र में मूलभूत सुधार और उसे सुदृढ़ करने का संकल्प लेना होगा। प्रत्येक देशवासी इस रोग के साथ रहकर भी अपना जीवन सुचारु रूप से चला सके, उसमें सरकार को अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना होगा।
राजेंद्र कुमार शर्मा, रेवाड़ी
भीड़भाड़ रोकें
31 दिसंबर के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित खबर ‘एक दिन में ओमीक्रोन के सर्वाधिक 180 मामले’ चेतावनी देने वाला था। ऐसा लगता है कि लोगों ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जनमानस की बड़ी बर्बादी से कुछ नहीं सीखा। देश के विभिन्न भागों में दोनों वैक्सीन डोज लगवाने के बावजूद 3 गुना ज्यादा खतरनाक वेरिएंट फैल रहा है। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, चुनाव आयोग को चाहिए कि वह विभिन्न राजनीतिक दलों को चुनाव प्रचार के लिए भीड़भाड़ में प्रचार के बदले वर्चुअल प्रचार करने के लिए कहे। सरकार महामारी को रोकने के लिए सख्त कदम उठाये।
शामलाल कौशल, रोहतक
सस्ता पेट्रोल
एक समाचार के अनुसार ‘झारखंड में पेट्रोल राशनकार्ड पर सस्ता मिलेगा’ पढ़कर सुखद अनुभूति हुई। घोषणा के अनुसार 26 जनवरी से राशनकार्ड पर दोपहिया वाहन चालकों को पेट्रोल 25 रुपए सस्ता मिलेगा। जरूरी है कि योजना में पारदर्शिता हो एवं पात्र लोगों को ही योजना का लाभ मिले। इसके साथ ही पेट्रोलपंप मालिकों को सख्त हिदायत हो कि योजना का दुरुपयोग न हो। झारखंड सरकार का निर्णय अन्य सरकारों के लिए भी एक अभिनव उदाहरण है।
योगिता शर्मा, सुधोवाला, देहरादून
सरकार चेते
नीट पीजी परीक्षा के खिलाफ रेजिडेंट डॉक्टरों का आंदोलन तथा डॉक्टरों और पुलिस के बीच झड़प चिंताजनक है। इसका परिणाम ठीक नहीं कहा जा सकता। देश में कोविड मामलों की संख्या बढ़ रही है, ऐसे में डाक्टरों की हड़ताल चिंता का विषय है। सरकार को आगामी चुनौती से लड़ने के लिए डॉक्टरों के साथ सहयोग बनाए रखना चाहिए और प्रवेश प्रक्रिया शुरू करने की उनकी मांग पूरी करनी चाहिए।
आयुशी उपाध्याय, चंडीगढ़