श्रीहरिकोटा, 29 मई (एजेंसी)
इसरो ने जीएसएलवी के जरिए दूसरी पीढ़ी के नौवहन उपग्रह एनवीएस-01 का सोमवार को सफल प्रक्षेपण किया और फिर इसे सफलतापूर्वक भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षा (जीटीओ) में स्थापित कर दिया। चेन्नई से करीब 130 किलोमीटर दूर यहां स्थित श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से 51.7 मीटर लंबे तीन चरणीय जीएसएलवी रॉकेट ने 27.5 घंटे की उल्टी गिनती समाप्त होने पर उड़ान भरी। यह पूर्व निर्धारित समय पूर्वाह्न 10 बजकर 42 मिनट पर साफ आसमान में अपने लक्ष्य की ओर रवाना हुआ। यह उपग्रह अपनी दूसरी पीढ़ी के नौवहन उपग्रहों की शृंखला में पहला है। यह देश की क्षेत्रीय नौवहन प्रणाली को मजबूत करेगा और सटीक एवं तात्कालिक नौवहन सेवाएं मुहैया कराएगा। इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने इस मिशन के ‘उत्कृष्ट परिणाम’ के लिए पूरी टीम को बधाई दी। उन्होंने अगस्त 2021 में प्रक्षेपण यान में पैदा हुई विसंगति का जिक्र करते हुए कहा कि आज की सफलता जीएसएलवी एफ10 की ‘विफलता’ के बाद मिली है।
एनवीएस-01 अपने साथ एल-1, एल-5 और एस बैंड उपकरण लेकर गया है। जीएसएलवी-एफ12/एनवीएस-01 मिशन निदेशक एनपी गिरि ने कहा कि जीएसएलवी में बड़े उपकरण वाले उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की क्षमता है। यूआर राव उपग्रह केंद्र (यूआरएससी) के निदेशक एम शंकरन ने कहा कि नौवहन उपग्रह के सफल प्रक्षेपण के बाद सौर पैनल लगाये गये और उपग्रह ऊपर की कक्षा में पहुंचने के अगले अभियान के लिए तैयार है। इसरो ने विशेषकर नागरिक विमानन क्षेत्र और सैन्य आवश्यकताओं के संबंध में अवस्थिति, नौवहन और समय संबंधी जानकारी से जुड़ी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ‘नाविक’ प्रणाली विकसित की है। ‘नाविक’ को पहले ‘भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली’ के नाम से जाना जाता था।
यह दूसरी पीढ़ी का उपग्रह है, जिसमें कई अतिरिक्त क्षमताएं।
इससे नाविक (जीपीएस की तरह भारत की स्वदेशी नौवहन प्रणाली) सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित होगी।
यह भारत एवं मुख्य भूमि के आसपास लगभग 1,500 किलोमीटर के क्षेत्र में तात्कालिक स्थिति और समय संबंधी सेवाएं देगा।
नाविक को इस तरह डिजाइन किया गया है कि संकेतों की मदद से यूजर्स की 20 मीटर के दायरे में स्थिति और 50 नैनोसेकंड के अंतराल में समय की सटीक जानकारी मिल सकती है।
इससे मिलने वाले संकेत अधिक सुरक्षित होंगे और इसमें असैन्य फ्रिक्वेंसी बैंड उपलब्ध कराये गए हैं। यह इस प्रकार के 5 उपग्रहों में से एक है।
इसमें स्वदेशी रूप से विकसित रुबिडियम परमाणु घड़ी भी होगी। यह तकनीक कुछ ही देशों के पास है।