
प्रतीकात्मक
डॉ. वर्तिका नन्दा
दिल्ली के कररावल नगर थाने में इंस्पेक्टर उपेंद्र सोलंकी ने अपने प्रयासों से एक लाइब्रेरी तैयार कर दी है। नाम दिया है, 'उम्मीद।' यहां आकर इलाके के गरीब घऱों के बच्चे यूपीएससी की तैयारी करते हैं। यह थाना इस इलाके के लिए शिक्षा की उम्मीद बन रहा है।
54 साल के राजीव अपनी ड्यूटी के बाद महीने में कम से कम एक बार दिल्ली के एम्स औऱ सफदरजंग अस्पताल के बाहर इंतजार कर रहे लोगों के लिए भाेजन का प्रबंध करते हैं। इसके लिए वह अपने आसपास के परिवारों को कुछ दिन पहले सूचना देते हैं, ढाई सौ घरों से भोजन जमा करते हैं और एक दिन में कम से कम एक हजार लोगों को भोजन करवाते हैं।
इंसानियत से लबरेज इन कहानियों को सामने लाने का काम किया है- दिल्ली पुलिस के नए पॉडकास्ट 'किस्सा खाकी का' ने। पूरे देश के किसी भी पुलिस विभाग का यह पहला पॉडकास्ट है जो पुलिस स्टाफ और अधिकारियों के संवेदना से भरे हुए योगदान को आवाज के जरिए पिरो रहा है। कहानियां लोगों को जोड़ने का काम करती हैं। इस बात को पुलिस ने भी समझा।
जनवरी 2022 में जब 'किस्सा खाकी का' की शुरुआत हुई, तब किसी को भी इस बात का इल्म नहीं था कि देखते ही देखते कहानियों का यह पिटारा पुलिस स्टाफ का मनोबल बढ़ाएगा। लोग भी इसे सराहने लगे। अब तक हुए तमाम अंकों में हर बार किसी ऐसे किस्से को चुना गया जो किसी अपराध के सुलझने या मानवीयता से जुड़ा हुआ था। अपनी बनावट और बुनावट के अनूठे अंदाज से यह कड़ी पुलिस जैसे सख्त महकमे में नरम अहसासों को भऱ रही है। इन किस्सों की स्क्रिप्ट औऱ आवाज मेरी है।
आवाज की उम्र चेहरे की उम्र से ज्यादा लंबी होती है। तिनका तिनका जेल रेडियो जेलों की आवाजों को आगे लाने का काम एक लंबे समय से कर रहा है। तिनका तिनका जेल रेडियो और किस्सा खाकी का- दोनों की सफलता की कुंजी इनके नएपन, सकारात्मकता और गतिमयता में है। यही वजह है कि शॉट्स की भीड़ और मसालेदार खबरों के शोर में इंसानियत की आवाजें उठने लगी हैं।
(दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज में पत्रकारिता विभाग की प्रमुख वर्तिका नन्दा 'किस्सा खाकी का' की कथावाचक हैं।)
पुलिस के सकारात्मक किस्सों को आकाशवाणी ने भी दिया मंच
दिल्ली पुलिस अपने सोशल मीडिया के विविध मंचों पर हर रविवार को दोपहर दो बजे एक नयी कहानी रिलीज करती है। अब तक 60 से ज्यादा प्रसारित हो चुकी हैं। आकाशवाणी भी अब इन पॉडकास्ट को अपने मंच पर सुनाने लगा है। दिल्ली पुलिस ने अपने मुख्यालय में किस्सा खाकी का एक सेल्फी पाइंट बना दिया है ताकि स्टाफ यहां पर अपनी तस्वीरें ले सके और प्रेरित हो सके। दिल्ली पुलिस की पहली महिला जनसंपर्क अधिकारी सुमन नलवा व्यक्तिगत तौर पर इन कहानियों की चयन प्रक्रिया में जुटती हैं।
छवि बदली और मिला सम्मान
इसी साल जब 'किस्सा खाकी का' को एक साल हुआ तो दिल्ली पुलिस के कमिश्नर संजय अरोड़ा ने पूरी टीम को सम्मानित किया। इस मौके पर कई पुलिसकर्मी पहली बार अपने परिवार के साथ पुलिस मुख्यालय पहुंचे। कुछ तो रिटायर भी हो चुके थे। उनके लिए यह अविस्मरणीय लम्हा था। अब किस्सा खाकी का एक कॉफी टेबल बुक के रूप में भी प्रकाशित हो चुका है। जेल और पुलिस- दोनों का परिचय अंधेरे से है। दोनों के साथ पारंपरिक तौर से नकारात्मकता की छवियां जुड़ी हैं। अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही इन क्रूर छवियों को तोड़ना चुनौती है। बहरहाल, समय की गुल्लक में ऐसी कहानियों का जमा होना तिनका भर उम्मीद को बड़ा विस्तार तो देता ही है। यह कहानियां अपनी गति से शोर भरे समाज में अपनी दस्तक देने लगी हैं।
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