केवडिया (गुजरात), 25 नवंबर (एजेंसी)
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका संविधान के तहत परिभाषित अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत काम करने के लिए बाध्य हैं। लेकिन, कुछ फैसलों से प्रतीत होता है कि न्यायपालिका का हस्तक्षेप बढ़ा है। उन्होंने कुछ उदाहरण देते हुए कहा कि दिवाली पर पटाखों को लेकर फैसला देने वाली न्यायपालिका कॉलेजियम के माध्यम से जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका को भूमिका देने से इनकार कर देती है।
वह ‘विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण समन्वय- जीवंत लोकतंत्र की कुंजी’ विषय पर अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के 80वें सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। नर्मदा जिले के केवडिया गांव में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के निकट टेंट सिटी में आयोजित इस सम्मेलन में नायडू ने कहा कि तीनों अंग एक-दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप किए बगैर काम करते हैं और सौहार्द बना रहता है। इसमें परस्पर सम्मान, जवाबदेही और धैर्य की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से ऐसे कई उदाहरण हैं जब सीमाएं लांघी गईं। ऐसे कई न्यायिक फैसले किए गये, जिनमें हस्तक्षेप का मामला प्रतीत होता है। नायडू ने कहा कि कई बार विधायिका ने भी रेखा लांघी है। इसे लेकर उन्होंने राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के चुनाव को लेकर 1975 में किए गये 39वें संविधान संशोधन का जिक्र किया।
अनुशासन की उम्मीद करते हैं लोग : कोविंद
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सम्मेलन में कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को संसद और विधानसभाओं में स्वस्थ संवाद करना चाहिए। उन्होंने कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा सदन में असंसदीय भाषा के इस्तेमाल और अनुशासनहीनता से उनका चुनाव करने वाले लोगों की भावनाएं आहत होती हैं। निर्वाचित प्रतिनिधियों से यह उम्मीद की जाती है कि वे लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर प्रतिबद्ध रहेंगे।