अयोध्या, 20 मार्च (एजेंसी)श्रीलंका में भारत के उच्चायोग ने बताया कि श्रीलंका स्थित सीता एलिया के पत्थर का अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में इस्तेमाल किया जाएगा और यह भारत एवं श्रीलंका के संबंधों की मजबूती का स्तम्भ बनेगा। ऐसा माना जाता है कि माता सीता को रावण ने श्रीलंका में इसी स्थान पर बंदी बनाकर रखा था। उम्मीद की जा रही है कि भारत में श्रीलंका के उच्चायुक्त मिलिंडा मोरागोडा इस पत्थर को भारत लाएंगे। श्रीलंका में भारतीय उच्चायोग ने बृहस्पतिवार को ट्वीट किया, ‘अयोध्या में राम मंदिर के लिए श्रीलंका स्थित सीता एलिया के पत्थर का इस्तेमाल भारत और श्रीलंका के संबंधों की मजबूती का स्तम्भ बनेगा। भारत में श्रीलंका के मनोनीत उच्चायुक्त मिलिंदा मोरागोडा को उच्चायुक्त की मौजूदगी में म्यूरपति अम्मान मंदिर में यह पत्थर सौंपा गया।’ सीता एलिया में माता सीता का एक मंदिर है और ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर लंकापति रावण ने उन्हें बंदी बनाकर रखा था और यहीं माता सीता भगवान राम से प्रार्थना किया करती थीं कि वह उन्हें बचा कर ले जाएं। श्रीलंका स्थित हकगला गार्डन के रास्ते में पड़ने वाले इस मंदिर को सीता अम्मन मंदिर के रूप में जाना जाता है। एक नदी के पार एक पहाड़ की चोटी पर गोल चिह्न हैं और माना जाता है कि ये रावण के हाथी के पदचिह्न हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल अयोध्या में राम मंदिर का ‘भूमि पूजन’ किया था। इसी के साथ भाजपा की वह ‘मंदिर मुहिम’ पूरी हो गई, जो 3 दशक तक उसकी राजनीति का अहम हिस्सा रही और जिसने उसे सत्ता में शीर्ष पर पहुंचाया।
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।