अरुण नैथानी
रुड़की (उत्तराखंड), 13 सितंबर
श्रीमद्भगवत गीता को जितनी बार पढ़ा जाये, जीवनदर्शन की समझ उतनी ही समृद्ध होती है। विद्वानों का मानना है कि गीता में वेद व उपनिषदों का सार है। साधारण व्यक्ति संस्कृत भाषा की रचना होने के कारण इस उच्चकोटि के ज्ञान से वंचित न रह जाये। इसके लिये देश-दुनिया में लाखों लोग निरंतर जीवनोपयोगी ज्ञान के अध्ययन-मनन में जुटे हैं। इस अभियान में उत्तराखंड रुड़की के एक शिक्षक अभिनव तरीके से शामिल हुए हैं। वह खुद खरीदकर गीता घर-घर पहुंचाने में जुटे हैं। वह शिक्षक के गुरुतर दायित्व के अलावा हर साल नि:शुल्क गीता वितरण के अभियान में सक्रिय हैं। प्रवीण कुमार रुड़की के निकट राजकीय माध्यमिक विद्यालय, बेहड़की, इकबालपुर, जनपद हरिद्वार में शिक्षक हैं। शिक्षिका मां के पुत्र प्रवीण को घर में बचपन से धार्मिक वातावरण मिला। फिर वह भारतीय संस्कृति-जीवन संवर्धन से जुड़े संगठनों मसलन- योगदा सोसाइटी, संस्कार भारती आदि में सक्रिय हुए। उन्हें लगा कि आज भौतिक जीवन की जद्दोजहद में जुटे लोग देववाणी गीता के व्यावहारिक लाभ से वंचित हो रहे हैं तो उन्होंने इसे घर-घर पहुंचाने का मन बनाया। उन्होंने फैसला किया कि अपनी आय से करीब सवा लाख रुपये की भगवद्गीता को गीता प्रेस से खरीदकर जन-जन को इसकी महिमा से परिचित कराएंगे।
आध्यात्मिक रुझान के प्रवीण को कालेज में पढ़ाई के दौरान स्वामी विवेकानंद के शिकागो संबोधन के सौ साल पूरे होने पर हुए विशेष कार्यक्रम से जुड़ने का अवसर मिला। उनका साहित्य पढ़ा और राजयोग-कर्मयोग आदि का अध्ययन-मनन किया। अध्यात्म की ओर गंभीरता बढ़ी। आध्यात्मिक गुरु वीके आनन्द के सान्निध्य में यह दृष्टि और समृद्ध हुई। फिर हरिद्वार में योगदा सोसाइटी के अंतर्गत केशवाश्रम से जुड़ने का मौका मिला। योगदा सोसाइटी में सपत्नीक दीक्षा ली। ओशो, श्रीश्री रविशंकर के अभियान से जुड़ने के साथ तमाम धार्मिक यात्राएं की और गीता ज्ञान के प्रति अगाध श्रद्धा उत्पन्न हुई। उनका मानना है कि गीता हमें जीवन व मृत्यु के यथार्थ का बोध कराती है।
दरअसल, कोरोना महामारी के दौरान स्कूल व सामाजिक जीवन से दूर रहने को अवसर बनाते हुए उन्होंने गीता का गहन-विशद् अध्ययन किया। फिर इस अद्भुत ज्ञान को अंगीकार करके इसे जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लिया।