हरीश लखेड़ा/ट्रिन्यू
नयी दिल्ली, 2 सितंबर
संसद के आगामी मानसून सत्र में प्रश्नकाल नहीं होगा। सरकार ने कोरोना संकट का हवाला देते हुए प्रश्नकाल रद्द करने का फैसला किया है, जबकि शून्यकाल को लेकर अभी निर्णय नहीं हुआ है। प्राइवेट मेंबर बिल के लिए भी विशेष दिन तय नहीं किया गया है। प्रश्नकाल रद्द करने संबंधी सरकार के फैसले पर विपक्ष आग बबूला हो गया है।
संसद की नियमावली के तहत सत्र के दौरान रोजाना प्रश्नकाल का प्रावधान है, लेकिन विशेष सत्र अथवा शार्ट टर्म सत्र के दौरान प्रश्नकाल पहले भी नहीं होता रहा है। इसके अलावा कई बार सत्र के दौरान उसकी अवधि बढ़ाए जाने पर बढ़े दिनों में भी प्रश्नकाल नहीं होता रहा है।
इस बार मोदी सरकार ने कोरोना महामारी के चलते इसे रद्द करने का फैसला किया है। कोरोना काल में मानसून सत्र 14 सितंबर से शुरू होकर बिना किसी अवकाश के एक अक्तूबर तक चलेगा। प्रश्नकाल रद्द करने पर विपक्ष के ऐतराज पर केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा कि संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी विपक्ष से बात कर रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस, टीएमसी समेत विभिन्न दलों ने कड़ा विरोध किया है। इन दलों के सांसदों ने सरकार के इस फैसले को लोकतंत्र की हत्या की कोशिश तक कह दिया है। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने ट्वीट कर कहा कि संसदीय लोकतंत्र में सरकार से सवाल पूछना एक ऑक्सीजन की तरह है, लेकिन सरकार अपने बहुमत को रबर स्टम्प के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। जिस एक तरीके से अकाउंटबिलिटी तय हो रही थी, उसे भी किनारे किया जा रहा है। टीएमसी के डेरेक ओ ब्रायन ने तो इसे लोकतंत्र की हत्या तक
कह दिया।
आगामी सत्र में बिना किसी अवकाश के दोनों सदनों की कुल 18 बैठकें होंगी। प्रत्येक दिन पहले 4 घंटे राज्यसभा काम करेगी और अगले 4 घंटे लोकसभा। हालांकि सत्र के पहले दिन सुबह लोकसभा की बैठक होगी क्योंकि नियमों के तहत स्पीकर ओम बिड़ला को औपचारिक रूप से सदन के सदस्यों से अनुमति लेनी होगी ताकि अपने सदन कक्ष का इस्तेमाल किसी अन्य प्रयोजन के लिए किया जा सके। इस तरह इस कक्ष में भी राज्यसभा का कामकाज हो सकेगा।
सत्र से पहले सभी सांसदों, उनके परिजनों व स्टाफ का कोरोना टेस्ट किया जाएगा।
संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि संसद के कामकाज की नियमावली में विशेष परिस्थितियों में प्रश्नकाल स्थगित करने का प्रावधान है। लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप कहते हैं कि 1942 में तथा 70 के दशक में भी ऐसा हो चुका है, जब प्रश्नकाल नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण यह सत्र एक विशेष सत्र की तरह बुलाया जा रहा है, क्योंकि सरकार को 6 माह के भीतर संसद सत्र बुलाना आवश्यक है, इसलिए यह फैसला किया होगा। लोकसभा और दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा कहते हैं कि संसद की नियमावली के अनुसार सदन की बैठक का पहला घंटा प्रश्नकाल के लिए होता है, लेकिन यह भी कहा गया है कि यदि स्पीकर चाहे तो सदन की अनुमति से उस दिन प्रश्नकाल को स्थगित कर अन्य मामलों को सदन में ला सकते हैं। लोकसभा के पूर्व विशेष सचिव देवेंद्र सिंह कहते हैं कि सदन में पहला घंटा प्रश्नकाल के लिए है, लेकिन स्पीकर यदि सभी दलों से सहमति ले लेते हैं तो प्रश्नकाल स्थगित किया जा सकता है।
सवालों से सरकार को जवाबदेह बनाते हैं सांसद
प्रश्नकाल में सांसद विभिन्न मंत्रालयों से संबंधित प्रश्न पूछकर सरकार को जवाबदेह बनाते हैं। आजादी से पहले 1921 से अंग्रेजों के शासनकाल में संसद में प्रश्न पूछने की परंपरा शुरु हुई। प्रश्नकाल एक घंटे का होता है। दोनों सदनों में पहले सुबह 11 बजे से प्रश्नकाल होता था, लेकिन पिछले कुछ समय से राज्यसभा में इसका समय बदल कर 12 बजे कर दिया गया है। प्रश्न का जवाब तैयार करने में संसद से लेकर मंत्रालयों में काफी समय लगता है। कम से कम 15 दिन पहले प्रश्न दिए जाते हैं। संसद में पूछे जाने वाले प्रश्न 4 प्रकार के होते हैं- तारांकित, अतारांकित, अल्प सूचना प्रश्न और गैर सरकारी सदस्यों से प्रश्न। यह स्पीकर व सभापति के विवेक पर निर्भर करता है कि वह किस प्रश्न को किस श्रेणी में रखते हैं।
प्रश्नकाल से कतराते हैं मंत्री
संसद में मंत्री सबसे ज्यादा किसी बात से डरते हैं तो संभवत: वह है प्रश्नकाल। इसमें किसी भी मंत्री की योग्यता, आत्मविश्वास, उसका कामकाज, तैयारी, व्यवहार, कार्य के प्रति समर्पण और वाकपटुता आदि सभी गुण दिख जाते हैं। इसी तरह शून्यकाल में सांसद अपने संसदीय क्षेत्र के जनहित के मामले भी उठाते हैं, ताकि सरकार का ध्यान उस तरफ दिलाया जा सके। प्रश्नकाल के तुरंत बाद शून्यकाल होता है। शाम 6 बजे के बाद भी ये मामले उठाए जा सकते हैं। संसद में शून्यकाल का आरंभ 1960 के दशक में हुआ।
तब बिना पूर्व सूचना के जनहित के महत्वपूर्ण विषय उठाने की प्रथा विकसित हुई। प्राइवेट मेंबर बिल के तहत सांसद अपना बिल पेश करते हैं। इसके लिए शुक्रवार का दिन तय है। इस तरह के बिलों के पास होने की संभावना नहीं रहती लेकिन संबंधित मुद्दों पर सरकार का ध्यान बंटाया जाता है।