Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

पीयू सीनेट भंग किए जाने पर मचा सियासी बवाल

फेरबदल को विपक्ष ने बताया तानाशाही का रवैया, केंद्र ने कहा जरूरी सुधार

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) की 59 साल पुरानी निर्वाचित सीनेट और सिंडिकेट को भंग करने के केंद्र सरकार के कदम ने राजनीतिक तूफ़ान खड़ा कर दिया है। पंजाब भर के विपक्षी दलों ने इसे अवैध, तानाशाही और लोकतंत्र पर हमला बताया है। इस संबंध में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने उच्च शिक्षा संयुक्त सचिव रीना सोनोवाल कौली के हस्ताक्षरों के साथ एक आधिकारिक राजपत्र अधिसूचना जारी की, जिसमें विश्वविद्यालय के शीर्ष निर्णय लेने वाले निकायों का पुनर्गठन किया गया और उनके चुनाव-आधारित ढांचे को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया गया।

भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने इसे शैक्षणिक स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए अपेक्षित सुधार बताया। गौर हो कि नए ढांचे के तहत, स्नातक निर्वाचन क्षेत्र को समाप्त कर दिया गया है और सीनेट की सदस्य संख्या 90 से घटाकर 31 कर दी गई है, जिसमें 24 नामित और सात पदेन सदस्य शामिल हैं। सिंडिकेट का नेतृत्व अब कुलपति करेंगे और इसमें कुलाधिपति और केंद्र के नामित सदस्यों के अलावा पंजाब और चंडीगढ़ दोनों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे। केंद्र ने पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 की धारा 72 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए पीयू अधिनियम, 1947 में व्यापक बदलावों को अधिसूचित किया।

Advertisement

चंडीगढ़ से कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने इस कदम को स्पष्ट रूप से अवैध और कानूनी उपहास बताया। पंजाब के शिक्षा मंत्री हरजोत सिंह बैंस ने इसे पंजाब के गौरव पर एक हमला बताया। पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन बंसल ने इसे लोकतांत्रिक शिक्षा के लिए झटका करार दिया। उधर, नए उपराष्ट्रपति और कुलाधिपति सीपी राधाकृष्णन द्वारा सुधारों को मंजूरी दिए जाने के साथ, केंद्र का कहना है कि पुनर्गठन कानूनी, तार्किक और आवश्यक है।

Advertisement

Advertisement
×