मुंबई : शास्त्रीय संगीत के पुरोधा पंडित जसराज को बृहस्पतिवार को यहां उनके परिवार के सदस्यों और करीबी मित्रों की मौजूदगी में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदायी दी गयी। अमेरिका के न्यूजर्सी में मेवाती घराने के गायक का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। लॉकडाउन की घोषणा के समय वह अमेरिका में थे। विले पार्ले के पवन हंस श्मशान घाट पर 21 बंदूकों की सलामी के बाद पंडित जसराज के बेटे सारंग देव पंडित ने अंतिम संस्कार की रस्में निभाईं। कोरोना महामारी के कारण वहां सिर्फ 25-30 लोगों की मौजूदगी की इजाजत थी। परिवार के मीडिया संयोजक प्रीतम शर्मा के मुताबिक पोती श्वेता पंडित, संगीतकार जतिन पंडित, गायक अनूप जलोटा, कैलाश खेर और अन्य लोग अंतिम संस्कार के वक्त मौजूद थे। पंडित जसराज के तिरंगे में लिपटे पार्थिव शरीर को दर्शन के लिये उनके वर्सोवा स्थित आवास पर रखा गया था।
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।