नयी दिल्ली, 22 सितंबर (ट्रिन्यू)
विश्व बैंक द्वारा नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ माइकल लिनो ने भारत की किशनगंगा और रतले पनबिजली परियोजनाओं (एचईपी) पर इस्लामाबाद की तकनीकी आपत्तियों पर चर्चा करने के लिए वियना में भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों से मुलाकात की। विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, ‘तटस्थ विशेषज्ञ कार्यवाही अभी कुछ समय तक जारी रहने की उम्मीद है। भारत सिंधु जल संधि के प्रावधानों के अनुसार मुद्दों के समाधान का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है।’
जल संसाधन सचिव के नेतृत्व में भारत के एक प्रतिनिधिमंडल ने 20 और 21 सितंबर को वियना में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय में किशनगंगा और रतले मामले में तटस्थ विशेषज्ञ कार्यवाही में भाग लिया।
भारत की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे भी इस दौरान मौजूद रहे। भारत के अनुरोध पर विश्व बैंक ने दो साल पहले लिनो को तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त किया था। दिलचस्प है कि जब 2015 में विवाद चरम पर था, तो पाकिस्तान ही तटस्थ विशेषज्ञ चाहता था। इसके एक साल बाद ही उसने अनुरोध वापस ले लिया और मध्यस्थता न्यायालय की मांग की।
अक्तूबर 2022 में, विश्व बैंक ने मध्यस्थता न्यायालय बनाया और समानांतर में एक तटस्थ विशेषज्ञ भी नियुक्त किया। सीन मर्फी को सीओए का अध्यक्ष और लिनो को तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त किया गया। भारत ने मध्यस्थता न्यायालय की कार्यवाही को ‘अवैध’ बताते हुए इसमें भाग लेने से इनकार कर दिया है। इसमें कहा गया कि सिंधु जल संधि में दिए गए श्रेणीबद्ध तंत्र के अनुसार, केवल एक तटस्थ विशेषज्ञ ही इस समय मामले की जांच कर सकता है।