नयी दिल्ली, 11 अगस्त (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को व्यवस्था दी कि पुत्रियों को समता के उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है और संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति में उनका समान अधिकार होगा, भले ही हिन्दू उत्तराधिकार संशोधन कानून, 2005 बनने से पहले ही उसके पिता की मौत हो गयी हो।
जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि हिन्दू उत्तराधिकार कानून, 1956 की धारा 6 के प्रावधान में बदलाव के बाद भी इस संशोधन के पहले या इसके बाद जन्म लेने वाली पुत्रियों की सहदायिकी का दर्जा पुत्र के अधिकारों और दायित्वों की तरह ही रहता है। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि 9 सितंबर, 2005 से पहले जन्मी बेटियां धारा 6 (1) के प्रावधान के तहत 20 दिसंबर, 2004 से पहले बेची गयी या बंटवारा की गयी संपत्तियों के मामले में इन अधिकारों पर दावा कर सकती हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मुद्दे पर विभिन्न हाईकोर्ट और अधीनस्थ अदालतों में लंबे समय से अपील लंबित हैं और परस्पर विरोधी फैसलों की वजह से उत्पन्न कानूनी विवाद के कारण इस मामले में पहले ही काफी विलंब हो चुका है। पीठ ने कहा, ‘हम अनुरोध करते हैं कि सभी लंबित मामलों का यथासंभव 6 महीने के भीतर फैसला कर दिया जाये।’