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दलाई लामा बोले- पुनर्जन्म के बारे में नहीं सोच रहा

तिब्बती धर्मगुरु के उत्तराधिकारी को लेकर सवाल

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अजय बनर्जी/ ट्रिन्यू

नयी दिल्ली, 17 जून

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अपने उत्तराधिकारी को लेकर अनुमानों के बीच 14वें दलाई लामा ने सोमवार को कहा कि वह पुनर्जन्म (अगले दलाई लामा की नियुक्ति की प्रक्रिया) के बारे में नहीं ‘सोच’ रहे हैं।

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तिब्बतियों द्वारा घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रखी जा रही है क्योंकि दलाई लामा चीन से स्वायत्तता की मांग को लेकर लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं। वहीं, चीन उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति में हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहा है।

जुलाई में 89 वर्ष के हो रहे दलाई लामा से चुनिंदा मीडियाकर्मियों के एक समूह ने बातचीत के दौरान प्रश्न किया कि तिब्बती समुदाय पुनर्जन्म की पवित्रता को कैसे बनाए रखेगा। इस पर उन्हाेंने कहा, ‘मैं पुनर्जन्म के बारे में नहीं सोच रहा हूं। महत्वपूर्ण बात यह है कि जब तक मैं जीवित हूं, मुझे अपनी ऊर्जा का उपयोग अधिक से अधिक लोगों की मदद करने के लिए करना चाहिए।’

दलाई लामा निर्वासित तिब्बती सरकार के आध्यात्मिक प्रमुख हैं, जिसका मुख्यालय धर्मशाला में है। पुनर्जन्म उत्तराधिकारी की नियुक्ति की एक पारंपरिक बौद्ध पद्धति है। देहांत से पहले दलाई लामा संकेत छोड़ते हैं कि उनका पुनर्जन्म कहां होगा। इन संकेतों का पालन एक धार्मिक समिति द्वारा उस बच्चे का पता लगाने के लिए किया जाता है, जिसके बारे में माना जाता है कि उसका जन्म अगले दलाई लामा के रूप में हुआ है। वर्तमान दलाई लामा का चयन 1940 में किया गया था, जब वे पांच वर्ष के थे।

वर्षों से, चीन की सरकार ने दावा किया है कि दलाई लामा के पुनर्जन्म को चीनी कानून का पालन करना होगा। यह दावा विदेशी हस्तक्षेप के बिना दलाई लामा को चुनने के तिब्बतियों के इतिहास के खिलाफ है।

तिब्बती चीन को बाहर रखना चाहते हैं। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के प्रवक्ता तेनज़िन लेक्शे कहते हैं, ‘चीनियों ने कभी तिब्बत के बारे में नहीं सोचा, बल्कि केवल अपने बारे में सोचा। बीजिंग के पास कोई वैध अधिकार नहीं है और अगले दलाई लामा की नियुक्ति पर उनसे परामर्श करने की आवश्यकता नहीं है।’

अमेरिका भी बीजिंग को इस चयन प्रक्रिया से बाहर रखना चाहता है और उसने ‘तिब्बती नीति और समर्थन अधिनियम 2020’ भी पारित कर दिया है। यह अमेरिका की आधिकारिक नीति है कि दलाई लामा का उत्तराधिकार एक पूर्णतः धार्मिक मुद्दा है, जिस पर केवल वह और उनके अनुयायी ही निर्णय ले सकते हैं। भारत भी तिब्बतियों की इच्छा का पालन करना चाहता है।

दलाई लामा ने अतीत में कहा था, ‘जब मैं लगभग 90 वर्ष का हो जाऊंगा, तो तिब्बती बौद्ध परंपराओं के उच्च लामाओं, तिब्बती जनता और अन्य संबंधित लोगों से परामर्श करूंगा और पुनर्मूल्यांकन करूंगा कि दलाई लामा संस्था को जारी रहना चाहिए या नहीं।’

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