नयी दिल्ली, 7 सितंबर (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब किसी प्राथमिकी में देरी होती है तो अदालतों को सतर्क रहना चाहिए। शीर्ष अदालत ने साक्ष्यों का सावधानी से परीक्षण पर जोर दिया। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने 1989 में दर्ज एक मामले में हत्या के अपराध के लिए दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा के मामले में उन दो लोगों को बरी कर दिया जिनकी सजा को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि बिलासपुर जिले में 25 अगस्त 1989 को संबंधित व्यक्ति की कथित हत्या के मामले में आरोपियों पर मुकदमा चलाया गया, जबकि प्रकरण में प्राथमिकी अगले दिन दर्ज की गई थी। पीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘जब उचित स्पष्टीकरण के अभाव में प्राथमिकी में देरी होती है, तो अदालतों को सतर्क रहना चाहिए और अभियोजन की कहानी में चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए जाने की संभावना को खत्म करने के लिए साक्ष्यों का सावधानीपूर्वक परीक्षण करना चाहिए, क्योंकि देरी से विचार-विमर्श और अनुमान लगाने का अवसर मिलता है।’