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धारा 370 पर संविधान पीठ की सर्वसम्मति

सुप्रीम कोर्ट ने दशकों पुराने सियासी विवाद पर लगाया विराम

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नयी दिल्ली में सोमवार को फैसला सुनाती 5 जजों-चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की संविधान पीठ। -प्रेट्र
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नयी दिल्ली, 11 दिसंबर (एजेंसी)

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को सोमवार को सर्वसम्मति से बरकरार रखा और केंद्र शासित प्रदेश (जम्मू-कश्मीर) का राज्य का दर्जा ‘जल्द से जल्द’ बहाल करने एवं अगले साल 30 सितंबर तक विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने दशकों पुरानी बहस पर विराम लगाते हुए तीन अलग-अलग, लेकिन सर्वसम्मति वाले फैसले सुनाए। इनमें 1947 में भारत संघ में शामिल होने पर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करने वाली संवैधानिक व्यवस्था को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखा गया। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने और जस्टिस बीआर गवई एवं जस्टिस सूर्यकांत की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था और राष्ट्रपति के पास तत्कालीन राज्य की संविधान सभा की गैरमौजूदगी में इसे रद्द करने की शक्ति है।

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जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस संजीव खन्ना ने इस मामले पर अलग-अलग, किंतु सर्वसम्मत फैसले लिखे। शीर्ष अदालत ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर से केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को अलग करने के फैसले की वैधता को भी बरकरार रखा। केंद्र सरकार ने इसी दिन अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था और पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख में विभाजित कर दिया था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के इस बयान का जिक्र किया कि केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के गठन को छोड़कर, जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘इस बयान के मद्देनजर हमें यह निर्धारित करना आवश्यक नहीं लगता कि जम्मू-कश्मीर राज्य का दो केंद्र शासित प्रदेशों-लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में पुनर्गठन अनुच्छेद तीन के तहत स्वीकार्य है या नहीं।’ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हम स्पष्टीकरण एक के साथ अनुच्छेद तीन (ए) को पढ़े जाने के मद्देनजर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के निर्णय की वैधता को बरकरार रखते हैं, जो किसी भी राज्य से एक क्षेत्र को अलग करके केंद्र शासित प्रदेश बनाने की अनुमति देता है।’ उन्होंने अपने फैसले में कहा कि भारत का संविधान संवैधानिक शासन के लिए एक पूर्ण संहिता है। उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति के पास संविधान सभा की सिफारिश के बिना भी अनुच्छेद 370(3) को रद्द करने की घोषणा करने वाली अधिसूचना जारी करने का अधिकार है। राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 370(1) के तहत अपनी शक्ति का निरंतर इस्तेमाल इंगित करता है कि संवैधानिक एकीकरण की क्रमिक प्रक्रिया जारी थी।’

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अदालत ने कहा, ‘हम निर्देश देते हैं कि भारत का निर्वाचन आयोग 30 सितंबर, 2024 तक पुनर्गठन अधिनियम की धारा 14 के तहत गठित जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने के लिए कदम उठाए। राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए।’ उन्होंने कहा कि विलय पत्र के क्रियान्वयन और 25 नवंबर, 1949 की वह उद्घोषणा जारी होने के बाद, जिसके जरिए भारत के संविधान को अपनाया गया था, पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य की ‘संप्रभुता का कोई तत्व’ बरकरार नहीं रहा।

उन्होंने कहा, ‘उद्घोषणाओं को चुनौती पर फैसला सुनाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि चुनौती मुख्य रूप से उन कार्रवाइयों को लेकर दी गई है, जो उद्घोषणा जारी होने के बाद की गई थीं।’ उन्होंने कहा, ‘अनुच्छेद 356 के तहत उद्घोषणा जारी होने के बाद राष्ट्रपति द्वारा शक्ति का इस्तेमाल न्यायिक समीक्षा के अधीन है। जस्टिस कौल ने सरकार और सरकार से इतर तत्वों द्वारा कम से कम 1980 के बाद से किये गए मानवाधिकार के उल्लंघनों की जांच के लिए ‘निष्पक्ष सत्य-एवं-सुलह आयोग’ गठित करने का निर्देश दिया। जस्टिस खन्ना ने अपने अलग फैसले में चीफ जस्टिस एवं जस्टिस कौल से सहमति जताई और निष्कर्ष के लिए स्वयं के कारण बताए।

फैसला स्वीकारना होगा : गुलाब नबी आजाद

डीपीएपी के अध्यक्ष गुलाम नबी आजाद ने फैसले को ‘दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि ‘हमें इसे स्वीकार करना होगा’। जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा तत्काल बहाल हो : कांग्रेस : सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा तत्काल बहाल किया जाए और विधानसभा चुनाव भी फौरन करवाये जाएं। पार्टी के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि कांग्रेस इस बात से निराश है कि शीर्ष अदालत ने जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटे जाने का विषय खुला छोड़ दिया है।

ऐसे चला घटनाक्रम

20 दिसंबर 2018 : जम्मू-कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। इसे तीन जुलाई 2019 तक बढ़ाया गया।

5 अगस्त 2019 : केंद्र ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त कर दिया।

6 अगस्त 2019 : अनुच्छेद 370 को हटाने के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देते हुए पहली याचिका दायर की।

10 अगस्त 2019 : नेकां ने एक याचिका दायर करते हुए कहा कि राज्य के दर्जे में किए गए बदलावों ने उसके नागरिकों के जनादेश के बिना उनके अधिकार छीन लिए हैं।

24 अगस्त 2019 : भारतीय प्रेस परिषद ने संचार पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र और जम्मू कश्मीर प्रशासन के फैसले का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

28 अगस्त 2019 : सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकारों पर लागू प्रतिबंधों को हटाने के लिए कश्मीर टाइम्स के संपादक की याचिका पर केंद्र सरकार, जम्मू कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी किया।

28 अगस्त 2019 : तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ ने मामले को 5 सदस्यीय संविधान पीठ को भेजा।

19 सितंबर 2019 : 5 सदस्यीय संविधान पीठ का गठन किया गया।

2 मार्च 2020 : सुप्रीम कोर्ट ने चुनौती देने वाली याचिकाएं 7 सदस्यीय वृहद पीठ को भेजी।

2 अगस्त 2023 : सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में याचिकाओं पर रोज सुनवाई शुरू की।

5 सितंबर 2023 : अदालत ने 23 याचिकाओं पर 16 दिन तक सुनवाई करने के बाद मामले पर फैसला सुरक्षित रखा।

11 दिसंबर 2023 : सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के सरकार के फैसले को बरकरार रखा।

अदालत का फैसला ऐतिहासिक : पीएम मोदी

‘अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला ऐतिहासिक है और संवैधानिक रूप से 5 अगस्त 2019 को भारत की संसद द्वारा लिए गए निर्णय को बरकरार रखने वाला है। न्यायालय ने अपने गहन विवेक से एकता के उस सार को मजबूत किया है, जिसे हम भारतीय होने के नाते सबसे ऊपर मानते हैं। ’

- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर लिखा

‘निराश हूं, लेकिन हतोत्साहित नहीं हूं। संघर्ष जारी रहेगा।’

उमर अब्दुल्ला, नेकां उपाध्यक्ष

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