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मध्यस्थता संस्थान स्थापित करना पर्याप्त नहीं: सीजेआई चंद्रचूड

नयी दिल्ली, सात जून (भाषा) प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि महज मध्यस्थता संस्थान स्थापित करना पर्याप्त नहीं है और यह सुनिश्चित करना होगा कि ये विवाद निवारण केंद्र एक विशेष समूह द्वारा नियंत्रित नहीं हो।...
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मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड। पीटीआई फाइल फोटो
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नयी दिल्ली, सात जून (भाषा)

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि महज मध्यस्थता संस्थान स्थापित करना पर्याप्त नहीं है और यह सुनिश्चित करना होगा कि ये विवाद निवारण केंद्र एक विशेष समूह द्वारा नियंत्रित नहीं हो।

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ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट में, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत जैसे देशों के लिए यह समय वाणिज्यिक मध्यस्थता को बढ़ावा देने और मध्यस्थता को संस्थागत करने का है, जो ‘ग्लोबल साउथ' की मध्यस्थता परंपरा को आगे बढ़ाएगा।

‘ग्लोबल साउथ' से तात्पर्य उन देशों से है जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित या अल्पविकसित कहा जाता है, जो मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में स्थित हैं।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि भारत में अदालतों पर मुकदमों का अत्यधिक बोझ है, जबकि हाई कोर्टों ने 2023 में 21.5 लाख मामलों का और जिला अदालतों ने 4.47 करोड़ मामलों का निस्तारण किया।

उन्होंने कहा, ‘‘ये आंकड़े भारत के लोगों द्वारा अपनी न्यायपालिका में जताये जाने वाले विश्वास को प्रदर्शित करते हैं। हमारी न्यायपालिका इस मंत्र पर काम करती है कि कोई मामला छोटा या बड़ा नहीं है। अदालतों का दरवाजा खटखटाने वाले हर पीड़ित व्यक्ति को राहत पाने का अधिकार है।''

उन्होंने कहा, ‘‘भारत में न्यायालय अपना संवैधानिक दायित्व निभाते हैं, लेकिन निश्चित रूप से हर मामले को न्यायालय में लाकर समाधान ढूंढने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मध्यस्थता विवाद समाधान के उभरते तरीके के रूप में स्वीकार्य हो रहे हैं।''

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हाल के वर्षों में, भारत में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्रों की स्थापना की गई तथा उनमें मध्यस्थता के मामलों का आना क्रमिक रूप से बढ़ा है।

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन केवल संस्थान स्थापित करना ही पर्याप्त नहीं है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि ये संस्थान खुद को बनाये रखने वाले समूह द्वारा नियंत्रित नहीं हों। ये संस्थान अवश्य ही पेशेवर कार्य प्रणाली और निरंतर मध्यस्थता प्रक्रियाएं उत्पन्न करने की क्षमता पर आधारित होने चाहिए।''

मध्यस्थता प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी की भूमिका पर जोर देते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि प्रौद्योगिकी मध्यस्थता कार्यवाही में एक बड़ी भूमिका निभाती है और यह किफायती एवं समय पर समाधान मुहैया कराती है।

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