विवेक शुक्ला
‘चलो बुलावा आया है…’ और ‘तूने मुझे बुलाया शेरांवालिए…’ जैसे भक्ति गीत गाने वाले लोकप्रिय भजन गायक नरेंद्र चंचल का शुक्रवार को नयी दिल्ली एक निजी अस्पताल में स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं के कारण निधन हो गया। वह 80 वर्ष के थे। सूत्रों ने बताया कि चंचल ने दिल्ली के अपोलो अस्पताल में दोपहर 12:15 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। सूत्रों के अनुसार 27 नवंबर को उन्हें दक्षिणी दिल्ली के अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
मस्तिष्क संबंधी बीमाारियों से पीड़ित होने के बाद उनका निधन हो गया। 1940 में अमृतसर के नमक मंडी में एक पंजाबी परिवार में जन्मे चंचल ने 2009 में अपनी आत्मकथा ‘मिडनाइट सिंगर’ जारी की थी, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के शुरुआती संघर्षों और कठिनाइयों से लेकर अपनी उपलब्धियों तक का वर्णन किया है।
गायक की मौत पर शोक व्यक्त करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि चंचल ने अपनी आवाज के साथ भक्ति संगीत के क्षेत्र में अपने लिए एक अनूठी जगह बनाई थी। एक ट्वीट में प्रधानमंत्री ने गायक के परिवार और प्रशंसकों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की। गायक दलेर मेहंदी, अभिनेता मनोज बाजपेयी, अभिनेता रणवीर शौरी, संगीतकार विशाल डडलानी समेत कई जानी-मानी
हस्तियों ने चंचल की मौत पर शोक व्यक्त किया। गुरु की नगरी अमृतसर के नमक मंडी इलाके से निकलकर अपनी आवाज के जादू से सारी दुनिया में अपने करोड़ों फैन बनाने वाले नरेन्द्र चंचल ने पिछले साल 10 अक्तूबर को अपने कुछ मित्रों को अपने राजधानी के सर्वप्रिय विहार स्थित घर में बुलाया था। मौका था उनका 80वां जन्मदिन। पर उन्होंने कुछ देर के बाद ही अतिथियों से विदा ले ली थी। उनकी तबीयत खराब चल रही थी। पर ये तब किसी ने नहीं सोचा था कि बेशक मंदिर-मस्जिद तोड़ो… (बॉबी), मैं बेनाम हो गया… (बेनाम), बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई… ( रोटी कपड़ा और मकान), चलो बुलावा आया है… (अवतार) और तूने मुझे बुलाया …(आशा) जैसे सदाबहार गीतों और भजनों को गाने वाले नरेन्द्र चंचल कुछ महीनों के बाद संसार से विदा ले ले लेंगे। नरेन्द्र चंचल ने फिल्मी नगरी मुंबई से दूर दिल्ली में अपना आशियाना बनाया था। यहां पर उन्होंने सैकड़ों जगरातों और माता की चौकियों में भजन गाए थे।
नरेंद्र खरबंदा से नरेंद्र चंचल
नरेन्द्र चंचल का असली नाम नरेन्द्र खरबंदा था। उनके नरेन्द्र चंचल बनने की एक कहानी है। दरअसल वे स्कूल में बेहद शरारती थे। इसलिए उनके हिन्दी के अध्यापक शास्त्री उन्हें नरेन्द्र चंचल कहकर बुलाने लगे। उन्हें नया नाम पसंद आ गया और उन्होंने इसे ही अपना लिया। ये कहानी उन्होंने ही एक बार सुनाई थी। चंचल के पिता चेतराम खरबंदा अमृतसर में छोटे से व्यापारी थे। पर नरेन्द्र चंचल ने कभी व्यापार में जाने की इच्छा नहीं जताई। उनकी बचपन से ही संगीत में दिलचस्पी थी। उन्होंने अमृतसर के शास्त्रीय गायक प्रेम त्रिखा से संगीत की बारीकियों को सीखा था। शास्त्रीय संगीत सीखते हुए ही उन्होंने भजन गाने शुरू कर दिए थे। वे शादी-ब्याह में एक रुपए में एक गाना भी गाने लगे।
राजकपूर ने बदल दी जिंदगी
चंचल की जिंदगी बदली जब उन्हें राजकपूर ने मुंबई में सुना। वहां वे मुंबई एक कार्यक्रम में भाग लेने गए थे। दिन था 13 अप्रैल 1973। उन्हें राज कपूर ने बुल्ले शाह की रचनाओं को गाते सुना तो उन्हें बॉबी फिल्म में बेशक मंदिर-मस्जिद तोड़ो गीत को गाने का मौका दिया। उसके बाद अम़ृतसर के चंचल ने पीछे मुढ़कर नहीं देखा। बहरहाल,नरेंद्र चंचल ने कोरोना वायरस महामारी के भारत आने के बाद इस पर भी भजन गाया था। यही उनका आखिरी भजन था।