नयी दिल्ली, 2 सितंबर (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि लोन के पुनर्गठन के लिए बैंक स्वतंत्र हैं, लेकिन वे कोरोना के दौरान किस्तों को स्थगित करने (मोरेटोरियम) की योजना के तहत ईएमआई भुगतान टालने के लिए ब्याज पर ब्याज लेकर कर्जदारों को दंडित नहीं कर सकते।
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने लोन स्थगन अवधि के दौरान स्थगित किस्तों पर ब्याज लेने के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान कहा कि ब्याज पर ब्याज लेना, कर्जदारों के लिए ‘दोहरी मार’ है। याचिकाकर्ता गजेंद्र शर्मा ने वकील के माध्यम से किस्त स्थगन की अवधि के दौरान भी ब्याज लेने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा,’आरबीआई यह योजना लाया और हमने सोचा कि हम किस्त स्थगन अवधि के बाद ईएमआई का भुगतान करेंगे, बाद में हमें बताया गया कि चक्रवृद्धि ब्याज लिया जाएगा। यह हमारे लिए और भी मुश्किल होगा, क्योंकि हमें ब्याज पर ब्याज देना पड़ेगा।’
याचिकादाता ने आगे कहा, ‘उन्होंने (आरबीआई ने) बैंकों को बहुत अधिक राहत दी हैं और हमें सच में कोई राहत नहीं दी गई।’ साथ ही उन्होंने कहा, ‘मेरी (याचिकाकर्ता) तरफ से कोई चूक नहीं हुई है और एक योजना का हिस्सा बनने के लिए ब्याज पर ब्याज लेकर हमें दंडित नहीं किया जा सकता।’ याचिकादाता ने दावा किया कि भारतीय रिजर्व बैंक एक नियामक है और ‘बैंकों का एजेंट नहीं है’ तथा कर्जदारों को कोरोना के दौरान दंडित किया जा रहा है। ‘अब सरकार कह रही है कि ऋणों का पुनर्गठन किया जाएगा। आप पुनर्गठन कीजिए, लेकिन ईमानदार कर्जदारों को दंडित न कीजिए।’ कॉन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (क्रेडाई) की ओर से पेश वरिष्ठ वकील ने पीठ से कहा कि किस्त स्थगन को कम से कम 6 महीने के लिए बढ़ाया जाना चाहिए।