सुरेश एस डुग्गर
जम्मू, 28 सितम्बर
एलओसी से सटे मनकोट की रूबिना कौसर की बदस्मिती यह थी कि पाक गोलाबारी से बचने की खातिर उसके घर के आसपास कोई बंकर नहीं था। नतीजतन उसके दो बच्चे और वह खुद भी मौत की आगोश में इसलिए सो गई क्योंकि पाक सेना ने रिहायशी बस्तियों को निशाना बना गोले बरसाए थे। रूबिना की तरह 814 किमी लंबी भारत-पाकिस्तान को बांटने वाली एलओसी पर अभी भी ऐसे हजारों परिवार हैं जो उन सरकारी 14 हजार से अधिक बंकरों के बनने की प्रतीक्षा कर रहे हैं जिनके प्रति घोषणाएं दर घोषणाएं अभी भी रुकी नहीं हैं।
लोगों का कहना है कि पिछले करीब 2 वर्षों से 14,460 के करीब व्यक्तिगत तथा कम्युनिटी बंकरों को बनाने की प्रक्रिया कछुआ चाल से चल रही है। यह कितनी धीमी है अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि इस अवधि में 102 बंकर ही राजौरी तथा पुंछ में तैयार हुए और तकरीबन 800 इंटरनेशनल बार्डर के इलाकों में। एक बंकर में 10 से अधिक लोग एकसाथ नहीं आ सकते। हालांकि एलओसी के इलाकों में रहने वालों ने अपने खर्चों पर कुछ बंकरों का निर्माण किया है पर वे इतने मजबूत नहीं कहे जा सकते। इंटरनेशनल बार्डर के इलाके में बनाए जाने वाले आधे से अधिक बंकरों में अक्सर बारिश का पानी घुस जाता है। जिन बंकरों में बारिश का पानी अक्सर घुस कर जान के लिए खतरा पैदा करता है उसके लिए जांच बैठाई गई तो साथ ही यह फैसला हुआ था कि अब आगे का निर्माण रक्षा समिति के अंतर्गत होगा।