नवीन पांचाल/हप्र
गुरुग्राम, 16 सितंबर
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को ताक पर रखकर सरकारी कस्टडी वाली जमीन की रजिस्ट्री प्राइवेट लोगों के नाम करने के मामले से भी आगे बढ़कर ऐसा खुलासा हुआ है जिसमें अफसरों व बिल्डर्स के गठजोड़ की पोल खुली है। जिस मानेसर जमीन घोटाले की जांच सीबीआई कर रही है, हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण ने उसी जमीन का करोड़ों रुपये का मुआवजा बिल्डर्स को बांट दिया। शिकायतकर्ता ने पत्र लिखकर बिल्डर्स को मुआवजा देने का विरोध करते हुए इसकी रिकवरी की मांग की है।
वर्ष 2014 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने नया भूमि अधिग्रहण कानून बनाया था। यह कानून एक जनवरी 2015 से लागू होना था लेकिन इससे एक दिन पहले ही गुरुग्राम-मानेसर अर्बन डेवेलपमेंट प्लान के तहत विवादित जमीन में से सड़क निर्माण के लिए अधिग्रहण का नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया जिसे बाद में अदालत ने खारिज कर अधिग्रहण नए कानून के अनुसार करने के आदेश दिए। इस अधिग्रहण के दायरे में विवादित एबीडब्ल्यू समेत कई बिल्डर्स की जमीन भी आ गई जिसके बदले में 24 मार्च 2017 को एचएसवीपी के एलएओ ने करोड़ों का मुआवजा बिल्डर्स को दे दिया।
गौर करने वाली बात यह है कि यह मुआवजा उस समय दिया गया जब करीब 400 एकड़ विवादित जमीन घोटाले की जांच सीबीआई और ईडी जैसी जांच एजेंसियां कर रही थीं। एलएओ की ओर से सबसे ज्यादा मुआवजा एबीडब्ल्यू व उसकी सहायक कंपनियों को दिया गया जिनकी संपत्ति को ईडी ने अपने अधीन ले रखा है।
सूत्रों की मानें तो मुआवजा राशि गुपचुप तरीके से बिल्डर्स को दी गई जिसके बाद इन कंपनियों के कई अधिकारी सीबीआई के राडार से ‘गायब’ हो गए। इसका खुलासा तब हुआ जब गांव के लोग किसी मामले को लेकर एलएओ कार्यालय पहुंचे।
घोटाले से संबंधित केस सीबीआई में दर्ज करवाने वाले मानेसर के ओमप्रकाश यादव सवाल उठाते हैं, ‘विवादित जमीन से संबंधित रिकार्ड सीबीआई व डीसी के पास था, इसके बाद भी उन बिल्डर्स को मुआवजा कैसे दे दिया जो सीबीआई के हाथ नहीं लगे।’यादव कहते हैं, ‘अधिग्रहण का भय दिखाकर बिल्डर्स ने किसानों की जमीन सिर्फ 15 से 22 लाख रुपये प्रति एकड़ तक खरीदी लेकिन सरकार ने इन्हें अधिग्रहण के बदले मुआवजा 5 करोड़ 45 लाख रुपये की दर से क्यों दिया।’ 12 मार्च 2018 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद करीब 400 एकड़ जमीन की कस्टडी फिलहाल हरियाणा राज्य इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवेलपमेंट काॅर्पोरेशन के पास है। इस बारे में जानकारी लेने के लिए अनेक दफा एचएसवीपी के एलएओ सतीश यादव से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
10 से ज्यादा बिल्डर्स को मिले करोड़ों रुपये
जमीन अधिग्रहण के बदले एलएओ ने 24 मार्च 2017 को दिव्या एंटरप्राइजेस 37 लाख 31 हजार, 12 लाख 49 हजार, शील बिल्डकाॅन को 81 लाख 41 हजार, 21 लाख 42 हजार, 3 करोड़ एक लाख, 89 हजार, 91 लाख 58 हजार, 3 लाख 39 हजार, 57 लाख 66 हजार व 57 लाख 67 हजार, बीटा इम्पोटर्स को 2 करोड़ 44 लाख 23 हजार, प्रोग्रेसिव बिल्डर्स को 3 करोड़ 42 लाख और जेसेम को 54 लाख 27 हजार रुपये मुआवजा के तौर पर दिए गए हैं।
मुआवजा सुनवाई के दिन रद्द कर दिया अधिग्रहण
एचएसवीपी ने मानेसर समेत आसपास के 5 गांवों की जमीन पर शहरी क्षेत्र विकसित करने के लिए अधिगृहीत की गई करीब 688 एकड़ जमीन का वर्ष 2007 में अवार्ड सुनाना था लेकिन इसी दिन चंडीगढ़ से आए आदेशों के बाद जमीन अधिग्रहण रद्द कर दिया। अगस्त 2004 में जमीन अधिग्रहण के लिए जारी सेक्शन 4 के नोटिस के बाद अवार्ड की तारीख तक बिल्डर्स ने किसानों को डराकर उनकी जमीन औने-पौने दामों (करीब 15 लाख रुपये प्रति एकड़) में खरीद ली। अधिग्रहण रद्द होने के बाद किसानों को अपने साथ हुए छल का आभास हुआ तो उन्होंने अदालत का रुख किया। हाईकोर्ट ने दिसंबर 2011 में किसानों को स्टे दे दिया लेकिन किसान हाईकोर्ट में मुकदमा हार गए। अपील करने पर सुप्रीम कोर्ट ने 24 अप्रैल 2015 को स्टे दे दिया। इस बीच सत्ता में भाजपा की सरकार आ गई जिसके बाद ओमप्रकाश यादव की शिकायत पर 12 अगस्त 2015 को मानेसर थाने में एफआईआर दर्ज कर उक्त मामला सरकार ने सीबीआई को सौंप दिया।