नये लोगों में खूब टेलेंट है... : The Dainik Tribune

बातचीत- पंकज त्रिपाठी

नये लोगों में खूब टेलेंट है...

नये लोगों में खूब टेलेंट है...

रेणु खंतवाल

पंकज त्रिपाठी ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत पटना में थिएटर से की। उसके बाद वे दिल्ली आ गए और एनएसडी से अभिनय की पढ़ाई की। फिल्मों में काम करने का सपना लेकर मुंबई आ गए। शुरुआती संघर्ष के बाद धीरे-धीरे सफलता मिलने लगी। फिल्म 'रन' से जो खाता खुला तो फिर सफल फिल्मों की लाइन लग गई। अपहरण, ओमकारा, आक्रोश, अग्निपथ, गैंग्स ऑफ वासेपुर, दबंग, रंगरेज, फुकरे, सिंघम रिटर्न्स, बरेली की बर्फी जैसी दर्जनों हिट फिल्में उनके नाम हैं। हाल ही में जननायक अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन पर बनने वाली फिल्म ‘मैं अटल हूं‘का लुक जारी हुआ तो लोगों ने खूब पसंद किया।

अपने पुराने संस्थान एनएसडी आने और छात्रों से रू-ब-रू होने का अनुभव कैसा रहा?

बहुत ही अच्छा रहा। कुछ पल के लिए उस स्टेज पर फिर आया जिस पर हमने न जाने कितने नाटक खेले थे। दरअसल यहां आना मेरे लिए भावुक पल रहा। मैंने तीन साल यहां बिताए थे जो मेरी जिंदगी के खुशनुमा साल रहे। बहुत कुछ सीखा है यहां से। जब भी मैं दिल्ली आता हूं तो मेरी कोशिश रहती है कि एनएसडी जरूर आऊं।

आप लंबे समय से थिएटर नहीं कर रहे हैं। क्या अब मन नहीं करता कि थिएटर करूं?

फिल्मों में व्यस्त होने की वजह से मैं थिएटर नहीं कर पा रहा हूं। लेकिन आज मैं यहां आया हूं तो सच में मेरा थिएटर करने का बहुत मन होने लगा है। मैं महसूस कर रहा हूं कि मुझे थिएटर करना चाहिए। मेरी कोशिश रहेगी कि मैं जल्दी ही रंगमंच पर दिखूं।

पिछले दिनों आपकी फिल्म मैं अटल हूं में आपका लुक सामने आया, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा। यह फिल्म कब तक देखने को मिलेगी?

फिल्म पर काम चल रहा है। मेरी शूटिंग का पार्ट अभी जल्दी शुरू होगा। लेकिन अभी थोड़ा समय लगेगा इसे बनने में।

जब आप एनएसडी में थे तो रोल मॉडल कौन थे?

मेरे रोल मॉडल यहां से पास आउट बड़े कलाकार रहे हैं। इरफान खान, पंकज कपूर, आशुतोष राणा आदि। जब पढ़ाई पूरी करने वाला था तो लगने लगा था कि अब फिल्मों में ही जाना है। क्योंकि बिहार में रंगमंच आर्थिक रूप से मजबूत नहीं। खासतौर पर हिंदी इलाकों में रंगमंच के सहारे जीवन बहुत मुश्किल है।

दिल्ली और मुंबई के रंगमंच में पको क्या अंतर लगता है ?

मुंबई का रंगमंच व्यावसायिक है। वहां लोग थिएटर देखने के लिए 500-1000 रुपए जेब से निकाल लेते हैं। दिल्ली में थिएटर अभी भी सरकारी अनुदान के सहारे ही ज्यादा है।

आपका शुरुआती दौर मुश्किल भरा रहा। कभी किसी को स्ट्रगल करता देख क्या उसकी मदद कर पाते हैं?

हां जरूर। लेकिन मैं ऐसे किसी का नाम नहीं लेता। मुझे अच्छा नहीं लगता किसी की मदद करने के बाद उसका प्रचार करना। हां, जो काम संस्थागत हो तो अलग बात है। जैसे मैंने जिस प्राइमरी स्कूल से शिक्षा प्राप्त की उस स्कूल को मैंने गोद लिया है। उसे इतना बढ़िया तैयार किया है कि वह किसी प्राइवेट स्कूल को टक्कर देता है।

आज जो यंग टैलेंट फिल्मों में आ रहा है। उसके काम को कैसे देखते हैं?

आज की युवा पीढ़ी अपने काम को लेकर बहुत गंभीर है। वे बड़ी तैयारी के साथ इंडस्ट्री में कदम रख रहे हैं। वे जानते हैं कि अच्छे लुक और फिजीक के साथ बेहतर एक्टिंग स्किल होना भी बहुत जरूरी है। मैं कई यंग आर्टिस्ट हैं जिनके साथ काम कर रहा हूं। नए लोगों में भी खूब टेलेंट है।

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