डॉ़ हितेश खुराना
बुढ़ापा जीवन का एक शाश्वत पड़ाव है और यह अवस्था हम सब पर आयेगी। युवा उम्र को सेहतमंद मानकर सकारात्मक रूप से देखा जाता है लेकिन जब बुढ़ापे के दौर को अक्सर बीमारी और निर्भरता के तुल्य मानते हैं। इस आयु में व्यक्ति विभागीय काम से सेवानिवृत्त हो जाता है, आय कम हो जाती है और वित्तीय जरूरतों, गतिशीलता और स्वास्थ्य समस्याओं सहित लगभग हर चीज के लिए दूसरों पर निर्भरता बढ़ जाती है। भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति वृद्धावस्था को 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के रूप में परिभाषित करती है।
बुजुर्ग आबादी में महिलाएं ज्यादा
भारत के लिए बुजुर्ग आबादी बहुत चिंता का विषय है। वे आबादी का लगभग 8 फीसदी िस्सा हैं और साल 2050 तक 19 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है। ध्यान देने योग्य है कि इस चरम उम्र में लिंग अनुपात भी उलट जाता है। हम इसकी कल्पना इस तथ्य से कर सकते हैं कि हमारे घरों में भी हम में से अधिकांश की दादी-नानी होंगी। भारत में प्रत्येक 1000 बुजुर्ग पुरुषों के अनुपात में 1033 बुजुर्ग महिलाएं हैं। हमारे देश में महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति अभी भी पर्याप्त नहीं है। इसके चलते भारत में बुढ़ापा एक गंभीर सामाजिक समस्या है और हमें इससे पार पाने की आवश्यकता है।
समस्याओं की भरमार
अधिकांश समय विभिन्न अंगों की शिथिलता से संबंधित समस्याएं व्यक्तियों के लिए सीमाएं पैदा करती हैं। दृष्टि और श्रवण दोष आमतौर पर बुजुर्गों में सामान्य समस्याएं हैं। वहीं जोड़ों की समस्याएं और मांसपेशियों का कमजोर होना वृद्धों का आना-जाना सीमित कर देता है। अधिकांश लोग इन्हें शारीरिक समस्याओं या बीमारी के रूप में पहचानते हैं और इलाज के लिए उचित कदम उठा सकते हैं। हालांकि ये केवल शारीरिक समस्याएं नहीं हैं, बल्कि ये लोगों को अकेलापन भी महसूस कराती हैं क्योंकि वे प्रभावी ढंग से बातचीत नहीं कर सकते हैं।
मनोवैज्ञानिक और सामाजिक चुनौतियां
भारत में तकनीकी व आर्थिक प्रगति के साथ ही सामाजिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। इसका सर्वाधिक असर पारिवारिक ढांचे पर है। एकल परिवार संयुक्त परिवारों की जगह ले रहे हैं जिससे बुजुर्गों की देखभाल करने के लिए कम लोग बचते हैं। नतीजतन, बुजुर्ग या तो उपेक्षित हो जाते हैं या निर्भरता के कारण असहज रिश्ते में रहते हैं।
अकेलेपन का जाल
बुजुर्गों में अकेलापन खतरनाक गति से अपना जाल फैला रहा है। अधिकांश युवा अब आजीविका-रोजगार के लिए विभिन्न शहरों या देशों की ओर पलायन कर रहे हैं। लेकिन बुजुर्गों के लिए प्रवास की समस्या है। वहीं युवाओं की तकनीक की लत ने बुजुर्गों को और भी अकेला बना दिया है। परिवारों में लोग बातचीत करने के बजाय अपने फोन और लैपटॉप में व्यस्त हैं| ‘लिबर्टी इन लाइफ ऑफ ओल्ड पीपल 2022 पैन हेल्थकेयर’ शीर्षक के हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, इस साल 65 प्रतिशत से अधिक बुजुर्ग इन दूरियों से जूझ रहे हैं। इससे उनकी कमजोरियां बढ़ जाती हैं क्योंकि जरूरत पड़ने पर उन्हें मदद नहीं मिल पाती है।
परेशानियां ऐसे होंगी विदा
बुजुर्गों को चाहिये कि वे प्रौद्योगिकी से परिचित हों। खरीदारी, भुगतान आदि के लिए स्मार्टफोन, लैपटॉप का उपयोग करना सीखें। यह यात्रा के कारण होने वाली परेशानी से बचाता है। वहीं सेवानिवृत्त व्यक्तियों को सक्रिय जीवन जीने की जरूरत है। वे समाज सेवा समूहों में शामिल हो सकते हैं। अपनी मित्र मंडली बनाएं, पार्क जाएं और दोस्तों के साथ विचार साझा करें। फेसबुक, व्हाट्सएप के माध्यम से भी सामाजीकरण संभव है। अकेले रहना और कुछ न करना निराशा पैदा करता है। रचनात्मकता और मनोरंजन में रुचि विकसित करना सबसे आसान तरीकों में से एक है| संगीत व लेखन सीखने में संलग्न हो सकते हैं या युवाओं की भागीदारी में कुछ समाजोपयोगी गतिविधि का आयोजन कर सकता है। अध्ययनों के आधार पर डब्ल्यूएचओ ने प्रति सप्ताह 150 मिनट मध्यम शारीरिक गतिविधियों की सिफारिश की है। चलना या हलका व्यायाम अक्सर पर्याप्त होता है। इससे व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है। वहीं संतुलित आहार लेना जरूरी है।
परिवार की जिम्मेदार भूमिका
घर के बच्चे व युवा बुजुर्गों के साथ बैठकर बातचीत करने का विशेष समय निकालें। यह अकेलेपन को रोकेगा और उन्हें अपनी बात कहने के लिए प्रोत्साहित करेगा। युवाओं को बुजुर्गों से उपयोगी सुझाव भी मिल सकते हैं। अच्छा रहेगा यदि परिजन मोबाइल, कंप्यूटर आदि का प्रभावी उपयोग करने में वृद्धों की मदद करें| ऐसे ही बुजुर्ग को अकेले भोजन परोसने के बजाय, सभी को एक साथ भोजन करने के लिए एक ही स्थान पर बैठना चाहिए। बड़े सदस्य बच्चों को बुजुर्गों की विशेष जरूरतों के बारे में बताएं और उन्हें इस बारे संवेदनशील बनाएं। इससे उन्हें सहानुभूति रखने और देखभाल को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
लेखक आईएमएच, रोहतक में प्रोफेसर हैं।