नयी दिल्ली : कोरोना काल में भले ही दुनियाभर में आवाजाही कम हुई, लेकिन इस बार की होली की रंगत कुछ और रही। कई देशों में अब भी इसके कार्यक्रम चल रहे हैं। जैसा कि भारत के कई राज्यों में होली के कई दिनों बाद तक भी होली मिलन कार्यक्रम चलता रहता है, उसी तरह स्विटजरलैंड में भी होली मिलन कार्यक्रम जारी हैं। यहां की उत्तराखंडी असोसिएशन ऑफ़ स्विट्ज़रलैंड ने इस होली मिलन समारोह का आयोजन किया है। कार्यक्रम से जुड़े लोगों का कहना है कि होली मिलन कार्यक्रम जैसे अनेक आयोजनों को इस उद्देश्य से किया जाता है कि पहाड़ के अप्रवासी बंधुजनों को आपस में मेल-मिलाप के जरिये न केवल भारतीय होने के अहसास को महसूस किया ज़ाया, बल्कि पहाड़ी मिट्टी की गंध भी देश से इतर फैलायी जाए। पहाड़ी खाने की महक के साथ साथ पहाड़ी लोक संगीत भी इन वादियों में फैले। आयोजकों ने बताया कि इस कार्यक्रम के संचालाक विनोद बिष्ट के विशेष प्रयास से इस साल से इस तरह का विशेष पहाड़ी समारोह आरंभ होगा। पिछले साल दिवाली समारोह के आयोजन से उत्साही लोगों ने आगामी 26 मार्च को स्विट्जरलैंड की वादियों में उत्तराखंड की होली के जरिये अपने वादियों को याद किया है।
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।