शारा
कोहिनूर फिल्म की कहानी कुछ और नहीं, बल्कि टिपिकल साठ के दशक की बॉलीवुड की फिल्मों जैसी ही है जिसमें एक राजा, रानी और एक दुष्ट मंत्री होता है, जिसने अपने राजा से दगा करना ही होता है और दूसरे दुष्ट राजा से संधि करनी ही होती है। यह सही मायनों में परियों की कहानी जैसी बॉलीवुड की फिल्म है, जिसमें राजा-रानी के अलावा तलवारें, घोड़े और राजनर्तकी के अलावा, वह सब कुछ है जो उस समय की फिल्मों के लिए लाजिमी होता है। लेकिन विरह की रानी यानी ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी यहां अलग ही भूमिका में नजर आयी हैं। वह बनी तो राजकुमारी हैं, लेकिन कॉमिक रोल में हैं। मीना कुमारी मुहब्बत, पीड़ा के अलावा इस तरह के रोल भी इतनी खूबसूरती से कर सकती हैं, यह मैंने कोहिनूर फिल्म देखकर ही जाना। उनके साथ हीरो हैं दिलीप कुमार। इसमें दिलीप कुमार ने भी जिंदगी की मुश्किलों से घबराकर उदास गीत नहीं गाये हैं बल्कि जीवन में ऊर्जा का संचरण करने वाले गीत गाये हैं। बताया जाता है उदास भूमिकाएं करते-करते वे तनाव में चले गये थे। तब वह डॉक्टर की शरण में गये। डॉक्टर ने उन्हें कुछ वक्त ऐसी भूमिकाओं से तौबा करने की सलाह दी थी। उसी सलाह पर अमल करते हुए उन्होंने जीवन में पहली बार ऐसी भूमिका अदा की, जिसमें संघर्ष और धोखे तो हैं, लेकिन धोखे खाने के बाद कोहिनूर का नायक रोता नहीं बल्कि परिस्थितियों से दो-दो हाथ करता है। इस फिल्म के सभी गीत शकील बदायूंनी ने लिखे हैं और धुनें दी हैं नौशाद ने। इनकी धुनें भी मुगले-आजम फिल्म के गीतों की तरह हैं जिन्होंने आज भी धूम मचा कर रखी है। इन गीतों में से एक गीत है ‘मधुवन में राधिका नाचे रे।’ इस गीत के लिए दिलीप कुमार ने कई महीनों तक सितार-वादन सीखा था। तभी वे तक धिनाधिन कर सके। शकील के लिखे इस गीत को वैसे ही फिल्माया गया, जिसका वह हकदार था। इसमें नृत्य भी कमाल का हुआ है। दोनों की जुगलबंदी देखते ही बनती है। खुद दिलीप कुमार को अपने जीवन का सबसे पसंदीदा यही गाना लगता है। टेक्नीकली यह फिल्म माशाल्लाह है जिसे परिवार के साथ बैठकर देखा जा सकता है। खासकर जो सीन अंडर-वाटर लिये गये हैं, निर्देशक की सोच की दाद देते हैं जो काफी आगे का सोचते थे। इसकी कहानी मिर्जा वजाहत ने लिखी है। वही मिर्जा वजाहत जिन्होंने गंगा-जमुना और यहूदी सरीखीं फिल्मों की पटकथा लिखी है। शकील बदायूंनी के इस गाने ‘मधुवन में राधिका…’ को ही आधार मानकर ही जावेद अख्तर ने लगान फिल्म के लिए ‘राधा किसलिए जले’ गीत लिखा था। बात यह है कि मूलभूत उर्दू में रचना करने वाले शकील और जावेद अख्तर की कलम से कितना खूबसूरत गीत लिखा गया वो भी शुद्ध हिंदी में। यह फिल्म सुपरहिट रही थी। इस समय ही इसने 1.5 करोड़ की विशुद्ध कमाई की थी जो आज की तारीख में 109 करोड़ रुपये के करीब बनते हैं। 1960 में रिलीज इस फिल्म में हीरो का बढ़िया रोल निभाने के लिए दिलीप कुमार को वर्ष 1961 का सर्वोत्तम हीरो का फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला था और मूसा मंसूर को बढ़िया संपादन के लिए सर्वोत्तम एडीटर का अवॉर्ड मिला था।
कहानी इस प्रकार है-कैलाशनगर के राजा चंद्रभान की मृत्यु होने पर रियासत का जनरल वीर सिंह, धीवेन्द्र प्रताप बहादुर को रियासत का नया नरेश घोषित करता है। जनरल वीर की पत्नी ने धीवेन्द्र को अपने बेटे सुरेंद्र की तरह पाला है। ताजपोशी होने के बाद सुरेंद्र चाहता है कि धीवेन्द्र राजगढ़ की राजकुमारी चंद्रमुखी से शादी कर ले। जब राजगढ़ के राजा को यह बात पता चली तो वे फूले नहीं समाये। उन्होंने खुश होकर अपनी बेटी चंद्रमुखी को कैलाशनगर के लिए रवाना कर दिया। रास्ते में उसकी अपनी रियासत के जनरल ने राजकुमारी का अपहरण कर लिया और तब तक अपनी हिरासत में रखने की शर्त रखी जब तक वह जनरल से शादी के लिए राजी नहीं हो जाती। धीवेंद्र राजकुमारी को किसी तरह सुरक्षित बचा लेता है। राजकुमारी और धीवेंद्र प्यार में पड़ जाते हैं। लेकिन जनरल के आदमियों ने उसे फिर हिरासत में ले लिया और धीवेंद्र की खासी पिटाई की। राजकुमारी को बचाने की खातिर धीवेंद्र बुरी तरह घायल हो जाता है। लेकिन किसी तरह जनरल के गुंडों की गिरफ्त से बच निकलता है। वह राजगढ़ की राजनर्तकी राजलक्ष्मी के यहां शरण लेता है जो उसकी काफी सेवा करती है। लेकिन साथ में ही उसे धीवेंद्र से इश्क हो जाता है। वह किसी तरह राजलक्ष्मी से पीछा छुड़ाता है। तभी उसे पता चलता है कि जनरल ने अभी तक राजकुमारी चंद्रमुखी को हिरासत में रखा है। वह राजकुमारी को तो उसकी हिरासत से छुड़ा लेता है, मगर खुद फंस जाता है। उसे हिरासत में देखकर राजलक्ष्मी उस पर जुल्म करती है और बदले की आग में जलते हुए धीवेंद्र की आंखें अंधी कर देती है। वह एक तरह से चंद्रमुखी को अल्टीमेटम देती है कि या तो वह जनरल से शादी कर ले या फिर धीवेंद्र की गिरफ्तारी के लिए तैयार रहे। अब आगे कहानी कौन-सा मोड़ ले लेती है? यह पाठक बताएंगे लेकिन वे तभी बता पाएंगे जब वे कोहिनूर देखेंगे।
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर : डॉ. वीएन सिन्हा
निर्देशक : एसयू सन्नी
पटकथा : मिर्जा वजाहत
गीत : शकील बदायूंनी
संगीत : नौशाद
संपादन : मूसा मंसूर
सितारे : दिलीप कुमार, मीना कुमारी, बीना, कुमकुम, टुनटुन
गीत
मधुवन में राधिका नाचे : मोहम्मद रफी, नियाज खान
दिल में बजी प्यार की शहनाइयां : लता मंगेशकर
तन रंग लो आज मन रंग लो : रफी, लता
जादूगर, कातिल हाजिर है : आशा भोसले
जरा मन की किवड़िया खोल : मोहम्मद रफी
चलेंगे तीर जब दिल पे : रफी, लता
यह क्या जिंदगी है : लता मंगेशकर
ढल चुकी शाम-ए-गम : मोहम्मद रफी
दो सितारों का जमीं पे है मिलन : लता, मोहम्मद रफी
कोई प्यार की देखे जादूगरी : मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर