शारा
खानदान के नाम से एक मूवी 1942 में बन चुकी है, जिसे नूरजहां के पति शौकत हुसैन रिज्वी ने डायरेक्ट किया था। खुद इसमें नूरजहां ने भी अभिनय किया था जिसे डीएम पांचोली ने प्रोड्यूस किया था। आदित्य पांचोली के पिता वही थे। वही आदित्य पांचोली, जिनके बेटे सूरज पांचोली का नाम कभी उस हीरोइन के साथ जुड़ा था, जिसने निशब्द में अमिताभ बच्चन के साथ काम किया था और बताया जाता है कि सूरज द्वारा बेवफाई करने पर उसने आत्महत्या कर ली थी। बाप-बेटे पर खूब मुकदमेबाजी चली थी। बहरहाल, हम दूसरे खानदान की बात करते हैं जो उस साल सातवीं बड़ी कमाऊ मूवी साबित हुई। उसने उस जमाने में ही दो करोड़ 80 लाख की कमाई की, जिसमें से एक करोड़ 40 लाख विशुद्ध मुनाफा था। यह फिल्म तमिल फिल्म की रिमेक थी जिसे निर्देशित किया था ए. भीम सिंह ने। ए. भीम सिंह ने ही खुद पहले इस फिल्म को तमिल में बनाया था। फिल्म में पारिवारिक रोना-धोना और धर्म की लगी चाशनी से अभिभूत होकर दर्शकों ने खुले हाथों से इसका स्वागत किया, भीम सिंह को समझते देर नहीं लगी कि ऐसे विषयों का दर्शक बॉलीवुड में भी बहुतेरा है। यह भीम सिंह वही हैं जिन्होंने पूजा के फूल और राजा रानी, आदमी, साधु और शौतान जैसी फिल्में बनायीं। वह पारिवारिक फिल्में बनाने के लिये जाने जाते हैं। जोरू का गुलाम, गोपी जैसी फिल्में बनाने वाले भी भीम सिंह ही थे। लब्बोलुआब यह कि उनकी फिल्में विशुद्ध पारिवारिक होती थीं। इनकी अधिकांश फिल्मों में ओमप्रकाश होते थे। ओमप्रकाश को जो भदेस चेहरा दिया, भीम सिंह ने अपनी गोपी जैसी फिल्मों से दिया था, जिसमें दिलीप कुमार के सौतेले बड़े भाई बने थे। इस फिल्म में भी उनका रोल बड़ा धांसू है। साधारण-सी दिखने वाली इस फिल्म के किरदार तो सीधे-सादे हैं, मगर उन्होंने अपने मासूम अभिनय से दर्शकों को बांध लिया। शायद इसका एक बड़ा कारण रवि का संगीत रहा हो। वाकई बड़ा ही सुरीला संगीत दिया है उन्होंने राजेंद्र कृष्ण के लिखे गीतों को। खुद राजेंद्र कृष्ण को ‘तुम्हीं मेरे मंदिर, तुम्हीं मेरी पूजा’ के लिए फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ गीत रचयिता का पुरस्कार मिला था। इसी गीत को सुरीला स्वर देने के लिए लता मंगेशकर को भी सर्वश्रेठ पार्श्व गायिका का पुरस्कार मिला था। इसके अतिरिक्त, सुनील दत्त को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का और रवि को सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए फिल्म फेयर अवार्ड दिया गया। मंदिरों में होली के मौके पर गूंजने वाली ‘बड़ी देर भई नंदलाल’ भजन इसी फिल्म का है और किसानों को हिलाश्री देने के लिए ‘नील गगन में उड़ते बादल आ आ आ’ गीत भी इसी फिल्म से है। इसमें सुनील दत्त अपंग बने हैं। बांह से अपंग सुनील दत्त से शादी नूतन जैसी एक सुशील कन्या ही करेगी। दोनों की केमिस्ट्री खूब बन पड़ी है। फिल्म मिलन में भी यही जोड़ा था और वह फिल्म भी खूब हिट हुई थी। फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए पुरस्कार सुनील दत्त को खानदान फिल्म की बदौलत मिला था। फिर रेशमा और शेरा के लिए मिला था। इसमें ओमप्रकाश की पत्नी बनी हैं ललिता पवार। ललिता पवार यानी अनाड़ी फिल्म की मिसेज डीसा। ललिता पवार चरित्र भूमिकाएं करने से पूर्व मुख्य भूमिकाएं अदा करती थीं। लेकिन बताया जाता है कि फिल्म के दौरान एक सहकर्मी कलाकार द्वारा ललिता पवार को मारे गये चांटे से उनकी आंखें जाती रहीं। इसीलिए उन्होंने कानी औरत की भूमिकाएं अभिनीत करनी शुरू कर दीं। वह मराठी फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री थीं।
अब चलते हैं फिल्म की कहानी की ओर। पिता रामसरूप लाल का निधन हो जाने से उनकी विरासत उनके बेटों जीवनदास लाल व शंकर दास लाल के बीच बांट दी गयी। यहां पर शंकर दास बने हैं मनमोहन कृष्ण जीवनदास यानी ओमप्रकाश के छोटे भाई। मनमोहन कृष्ण का ही बेटा गोविंद लाल यानी सुनील दत्त हैं। जीवनदास नि:संतान हैं लेकिन उनकी जान गोपाल में बसती है। उनकी पत्नी भगवंती देवी यानी ललिता पवार हैं। अब ललिता पवार कैसी पत्नी का रोल अदा करती हैं? पाठक समझ ही गये होंगे। मनमोहन कृष्ण यानी शंकरदास की पत्नी पार्वती यानी सुलोचना चटर्जी हैं, जिनके दो बेटे हैं एक तो ओमप्रकाश के जीवन का चिराग सुनील दत्त यानी गोविंदलाल और दूसरे बेटे का नाम है श्यामलाल यानी सुदेश कुमार। राधा यनी नूतन गोविंद की पत्नी है और नीलिमा यानी मुमताज श्याम की पत्नी है। कहानी को ट्विस्ट देने के लिए इसमें हेलेन और प्राण भी हैं। क्योंकि गोविंद बड़ा है, अनपढ़ है और अपंग भी है, इसलिए वह घरबार संभालता है, जबकि श्याम शहर में पढ़ने के लिए जाता है। इसे पढ़ाई के लिए उसे भेजता है गोविंद। जब श्याम पढ़कर वापस आता है तो अच्छे-खासे परिवार को दो परिवारों में विभक्त पाता है जो एक-दूसरे को शक की निगाह से देखते हैं। जीवनदास अपनी पत्नी भगवंती, श्याम, नवरंगी नीलिमा एक तरफ तथा शंकरदास उसकी पत्नी पार्वती, गोविंद तथा उसकी पत्नी राधा व उसका बेटा दूसरी तरफ। बात तब बिगड़ती है जब शंकरदास इस बार अपने छोटे बेटे से ज्यादा पैसा उधार ले लेते हैं ताकि गोविंद और राधा के बेटे नवजीवन दास को जन्मदिन पर हाथी का तोहफा दे सकें लेकिन नवरंगी एक स्टेज शो करता है जहां पानी की टंकी में गोविंद और राधा के बच्चों को गिराने की कोशिश करता है लेकिन राधा और गोविंद किसी तरह बच्चे को बचा लेते हैं। बच्चे को बचाने में लगे गोविंद पर नवरंगी हमला करता है। गोविंद अपनी अपंगता की अनदेखी कर नवरंगी को जान से मारने की कोशिश करता है तभी सीन में श्याम अपने तमाम परिवारजनों के साथ पहुंचता है। तभी उसे पता चलता है कि नवरंगी ने ही दोनों भाइयों के बीच कांटे बोने का काम किया है। उसने ही दो परिवारों को अलग किया है। नवरंगी को पुलिस उसके काले कारनामों के कारण गिरफ्तार कर लेती है। श्याम दोनों परिवारों के बीच खड़ी दीवार गिरा देता है जो सचमुच घर में खड़ी थी। अब फ्लैशबैक के पाठकों के लिए सवाल यह नवरंगी कौन है?
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर : वासु मेनन
निर्देशक, पटकथा : ए. भीम सिंह
सिनेमैटोग्राफी : वी. बालासाहिब
गीत : राजेंद्र कृष्ण
संगीत : रवि
सितारे : सुनील दत्त, नूतन, ओमप्रकाश, ललिता पवार, मनमोनह कृष्ण आदि
गीत
तुम्ही मेरे मंदिर : लता मंगेशकर
बड़ी देर भई नंद लाला : मोहम्मद रफी
कल चमन था आज इक सहरा हुआ : मोहम्मद रफी
मैं सुनाता हूं, तुझे एक कहानी : मोहम्मद रफी
नील गगन पर उड़ते बादल : आशा भोसले, रफी
ओ बल्लो, सोच के मेले जाना : आशा, मोहम्मद रफी
आ डांस करें, थोड़ा रोमांस करें : रफी, आशा भोसले
मेरी मिट्टी में मिल गयी जवानी : उषा मंगेशकर, आशा