शारा
पता नहीं क्या वजह रही होगी कि दो बार जुगनू नाम से फिल्में बनीं और दोनों बार लोकप्रियता को लेकर इतिहास रचा, बॉक्स ऑफिस पर बेकाबू भीड़ इकट्ठी की और फिल्म बनाने वालों के खजाने मालामाल कर दिये। 1973 में धर्मेंद्र, हेमामालिनी अभिनीत फिल्म ने गीतों, संवादों और कहानी के अलावा संगीत ने फिल्म को ऊंचा उठाया। 1947 में रिलीज जुगनू तो एक तरह से और भी उम्दा थी। यह वही फिल्म थी, जिसके रिलीज होते ही फिल्म की हीरोइन व गायिका नूरजहां अपने पति शौकत अहसान के साथ पाकिस्तान चली गयीं थी। फिल्म के प्रोड्यूसर व डायरेक्टर भी शौकत अहसान रिज्वी थे। फिल्म ने बेहतर कहानी के कारण खूब कमाई की। ऊपर से फिरोज निजाम का संगीत और नूरजहां का सुर-सभी फिल्म समालोचकों ने फिल्म की भूरि-भूरि तारीफें कीं। उस वक्त देश आजाद हुआ ही था, लेकिन फिल्म ने उस रद्दोबदल वाले वक्त में 50 लाख रुपये की कमाई की जो आज के लिहाज से 363 करोड़ रुपये बनते हैं। यह वही फिल्म थी, जिसने दिलीप कुमार को हिटमैन बनाया। यह उनकी पहली हिट व कमाऊ फिल्म थी जिसने राजकपूर के साथ वाली फिल्म को भी पीछे छोड़ दिया। जी, पाठक ठीक समझे नूरजहां ने इसी फिल्म के लिए ‘हमें तो शामे-गम में काटनी है जिंदगी’ जैसे मशहूर गाने गाये थे।
फ्लैश बैक में 1973 की जुगनू की बात करते-करते कुछ ज्यादा ही फ्लैश बैक का गोता लग गया। शायद नाम में ही कुछ असर है। धर्मेंद्र और हेमामालिनी की इस फिल्म को प्रमोद चक्रवर्ती ने प्रोड्यूस किया था। एसडी बर्मन का संगीत तो इसकी कामयाबी की वजह थी ही, आनंद बख्शी के हल्के-फुल्के गीतों के अलाव सचिन भौमिक के चुटीले संवादों ने भी इसे लोकप्रिय बनाया। बानगी देखिये, ‘बाप के नाम का सहारा कमजोर लोग लेते हैं।’
सन 1973 धर्मेंद्र के लिए बड़ा ही लकी रहा। सिवाय इसके कि एक तरफ तो एंग्रीमैन के रूप में सिनेमा जगत में उतरे अमिताभ को वे टक्कर देते तो दूसरी ओर हीमैन बनकर रोमांटिक हीरो राजेश खन्ना के पीछे लगी प्रशंसक लड़कियों को अपनी ओर खीचंते। सीधा-सादा, देसी चेहरा लेकिन मांस पेशियों से भरा-पूरा शरीर वाला जट्ट पुत तब के दर्शकों को खूब भाया। उन दिनों जेम्स बांड का नशा युवावर्ग पर तारी था। इसीलिए दर्शकों ने धर्मेंद्र को उस समय हाथोंहाथ लिया। हालांकि, इससे पूर्व उनकी फिल्में यादों की बारात, कहानी किस्मत की तथा लोफर भी खूब हिट हुईं, लेकिन ‘जुगनू’ में दर्शकों ने उनके उस रूप को ज्यादा ही सराहा। दर्शक अपने हीरो के इस रूप पर टूट पड़े और साथ में हेमामालिनी हो तो सोने पे सुहागा। दोनों की ऑन स्क्रीन केमिस्ट्री के तो दर्शक दीवाने थे। बॉबी के बाद सुपर-डुपर हिट का खिताब लेने वाली उस साल यही फिल्म थी। यह फिल्म लगातार 50-50 हफ्ते बॉक्स ऑफिस पर भीड़ इकट्ठी करने में कामयाब रही। इस फिल्म में महमूद का रोल भी देखने लायक है। मजेदार बात यह है कि पहले वाली जुगून में महमूद के पिता मुमताज अली ने काम किया था और इस वाली में महमूद ने। पहली वाली फिल्म में नूरजहां जुगनू बनी थी और 1973 वाली फिल्म में धर्मेंद्र। इस फिल्म की सारी शूटिंग मुंबई के नटराज स्टूडियो में हुई थी। फिल्म की कहानी गुलशन नंदा के उपन्यास पर आधारित थी, जिसकी पटकथा लिखी थी सचिन भौमिक ने। इस फिल्म को बाद में तमिल में भी गुरू के नाम से बनाया गया था। कुला मिलाकर इस फिल्म में वे सभी मसाले थे जो इसे जुबली हिट बनाये (जिसे आज 100 करोड़ क्लब की मूवीज कहा जाता है)। एक्शन, ड्रामा, सस्पेंस, क्रिस्पी डायलॉग के साथ गजब की सिनेमैटोग्राफी जो वीके मूर्ति ने की थी। इस फिल्म की स्टोरी हालांकि किसी न किसी रूप में बाद की फिल्मों में भी इस्तेमाल की गयी, लेकिन जुगनू की कहानी कमाल की है। यह ऐसे नामी अपराधी की कहानी है जो अपराध करने के बाद अपने नाम का रैपलिका छोड़ जाता है और पुलिस अंदाजे लगाती रहती है। वह आज के जमाने का रॉबिन हुड है जो बड़ी-बड़ी डकैतियां (चलती ट्रेन में) करता है। उसका सहयोग करता है महेश (महमूद)। इस जुगनू का एक और अवतार भी है—अशोक। सभ्य समाज का नामी चेहरा है अशोक जो अपनी मां के नाम से नि:शुल्क स्कूल चलाता है, गरीबों को दान करता है। वह यह सब समाज के भेड़िये (सुजीत कुमार) घनश्यामदास जागीरदार के यहां बंदी पड़ी मां को छुड़ाने के लिए करता है। अशोक के हाथों बलात्कारी का खून हो जाता है। वह कानून के शिकंजे से बचने के लिए भूमिगत हो जाता है और जुगनू के रूप में समाज के भेड़ियों को सजा देता है। इस बीच उसे आईजी पुलिस की लड़की सीमा (हेमामालिनी) से प्यार हो जाता है। एक दिन जुगनू गैर-राष्ट्र गतिविधियों से जुड़े बॉस (अजित) के संपर्क में भी आता है। उसका रमेश (प्रेम चोपड़ा) से भी सामना होता है जो अपने आप को श्याम का वारिस बताता है। सीमा से प्यार के दौरान उसे मालूम होता है कि सीमा उसी व्यक्ति की बेटी है, जिसका कत्ल उसने किया था। इसीलिए वह सब कुछ छोड़कर दूसरे शहर में चला जाता है ताकि खुद से सीमा को बचा सके। दूसरे शहर में जाने से पूर्व वह अंतिम डाका डालता है। यह बहुत बड़ा डाका है, मगर भनक लगने के कारण पुलिस नाकेबंदी करती है, वह भागता है। छिपते-छिपते वह प्रोफेसर श्याम के संपर्क में आता है जो कि असल में अशोक का सगा पिता है। अंत में अशोक की मां उसके जालसाज बाप के बारे में सच बता देती है और अशोक की असलियत व बेकसूर होने के सबूत के बारे में भी। आखिर में सभी एक-दूसरे को मिल जाते हैं। अशोक भी सीमा से और फिल्म खत्म हो जाती है। दर्शक एक ऐसी उहापोह में पड़े हुए घर लौटते हैं कि एक ऐसा उम्दा कलाकार फिल्मफेयर और दूसरे सरकारी पुरस्कारों से महफूज रहा, जिसने जेम्स बांड के चेहरे को भारतीय चेहरा दिया।
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर व निर्देशक : प्रमोद चक्रवर्ती
मूल कथा : गुलशन नंदा
पटकथा : सचिन भौमिक
संवाद : एहसान रिज्वी
संगीत : सचिन देव बर्मन
गीत : आनंद बख्शी
सिनेमैटोग्राफी : वीके मूर्ति
सितारे : धर्मेंद्र, हेमामालिनी, प्रेम चोपड़ा, महमूद, प्राण आदि
गीत
दीप दिवाली के : किशोर कुमार, सुषमा श्रेष्ठा
प्यार के इस : किशोर कुमार
जाने क्या : लता मंगेशकर
वो अपनी याद : लता
जब बागों में जुगनू : लता
गिर गया झुमका : किशोर कुमार, लता मंगेशकर
मेरी पायलिया गीत : लता