फ्लैशबैक
शारा
‘दिल बेकरार सा है, हमको खुमार सा है। जब से तुम्हें देखा सनम…’ अपने ज़माने का लोकप्रिय गाना इसी इशारा फिल्म का है। यह फिल्म उस ज़माने की है जब इशारों-इशारों में जिंदगीभर साथ निभाने की कसमें खायीं जाती थीं। ‘इशारा’ 1964 में रिलीज हुई थी, जिसे निर्देशन से सजाया था अलिफ लैला और बारादरी फिल्मों के निर्देशक के. अमरनाथ ने। यह फिल्म के. अमरनाथ ने ही प्रोड्यूस की थी। मज़रूह सुलतानपुरी द्वारा कलमबद्ध कुछ गाने लोकप्रिय हुए, जिनमें उपरोक्त गीत भी शामिल है। यह जॉय मुखर्जी और वैजयंती माला जैसे मंजे कलाकारों की मूवी है और ब्लैक एंड व्हाइट है। पाठक जानते ही होंगे कि फिल्म के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर के. अमरनाथ पंजाबी पुत्र थे और मिय्यांवाली के रहने वाले थे। फिल्मों के लिए जुनून उन्हें बम्बई खींच लाया। वह अभी 17 साल के ही थे जब वह घर से भाग गये। चार साल कलकत्ता में जद्दोजहद की। तब कलकत्ता छोटी-बड़ी फिल्मों की टकसाल हुआ करती थी। छोटी उम्र में ही फिल्मी दुनिया में सिक्का जमाने के लिए राजकपूर को ही याद किया जाता है, मगर के. अमरनाथ ने 21 साल की उम्र में पहली फिल्म ‘मतवाली जोगन’ डायरेक्ट की। शक्लो-सूरत और कद-काठी में भी वह किसी हीरो को टक्कर देते थे। उनका पूरा नाम अमरनाथ खेतरपाल था लेकिन नाम को ज्यादा स्टाइलिश बनाने के लिए उन्होंने अपना नाम के. अमरनाथ रख लिया। तदोपश्चात अलग-अलग प्रोड्क्शन हाउस की मूवीज़ निर्देशित करने के बाद उन्होंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी खोल दी। वह सिर्फ फिल्में ही डायरेक्ट नहीं करते थे बल्कि वह अच्छे पटकथा लेखक भी थे। निर्देशक के रूप में उन्होंने हर जॉनर की मूवी निर्देशि की ओर नये-नये चेहरों को फिल्मों में लाये। सलमान के पिता सलीम खान (सलीम-जावेद जोड़ी) को फिल्मों में डेब्यू करवाने वाले के. अमरनाथ ही थे। बारात फिल्म उन्होंने सलीम को लेकर ही बनाई थी, जिसमें वह साइड हीरो थे। हेलेन जो सलीम खान की दूसरी पत्नी है, को भी उन्होंने ब्रेक दिया। उनकी दो फिल्मों में नूरजहां ने भी काम किया। पुरानी फिल्मों के लिहाज़ से इशारा फिल्म अच्छी बन पड़ी है लेकिन उतनी अच्छी नहीं जितनी बारादरी बन पड़ी है। किशोरावस्था में ही बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने के बाद 10 साल के बाद घर लौटी माया बनी वैजयंती माला को घर में सब कुछ बदला-बदला सा लगा। उसकी विधवा मां ने अमीर व्यक्ति खेमचंद से शादी कर ली थी। विवाह के बाद घर में सिर्फ खेमचंद ही नहीं आये थे बल्कि उनके साथ भरा पूरा परिवार भी आया था। खेमचंद की बेटी और दो बेटे उसके डैडी द्वारा बनाये गये भव्य मकान में रहते थे। खेमचंद किसी इंश्योरेंस कंपनी में ब्रोकर था और उसका गैर-कानूनी धंधा खूब चल रहा था। इसी दौरान सरकार ने इश्योरेंस कंपनियों का सरकारीकरण कर दिया, अवैध धंधे के आरोप में खेमचंद को पुलिस गिरफ्तार करके ले गयी और उसके खिलाफ चले केस में सात साल की जेल हो गयी। नतीजतन पूरा परिवार सड़कों पर आ गया। जहां उनकी मदद के लिए एक गरीब कलाकार विजय आगे आया। विजय को माला से प्यार हो जाता है लेकिन किन्ही परिस्थितिवश दोनों जुदा हो जाते हैं। माला जिसके कंधों पर परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी आ चुकी थी, परिस्थितिवश विजय की मदद लेने से इनकार कर देती है और कहीं दूर जाकर डांस ट्रुप ज्वाइन कर लेती है। विजय उसे ढूंढ़ लेता है तब माला उसे बताती हैं कि वह बच्चे की मां बनने वाली है लेकिन विजय उसका बाप नहीं है। लाख टके का सवाल है कि ऐसे हालात में विजय माला को स्वीकार कर लेता है या नहीं। इसके लिए पाठकों को फिल्म देखनी पड़ेगी। जिस समय यह फिल्म बनी थी, उस वक्त समाज बिना ब्याही मां जैसी आधुनिकता को सवालिया नजरों से देखता था। यही इशारा की कहानी का प्रगतिशील बिंदु है।
टीम
प्रोड्यूसर व निर्देशक : के. अमरनाथ
पटकथा व संवाद लेखन : एस.के. प्रभाकर
सिनेमैटोग्राफी : केकी मिस्त्री
गीतकार : मजरूह सुलतानपुरी
संगीतकार : कल्याणजी आनंद जी
सितारे : जॉय मुखर्जी, वैजयंती माला, प्राण, आगा आदि
गीत
नहीं जहां में नादान : लता मंगेशकर
दिल बेकरार सा है : मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर
चल मेरे दिल : मुकेश
हे अब्दुल्ला नागिन वाले : लता मंगेशकर
चोरी हो गयी रात नैन की निंदिया : महेंद्र कपूर, लता मंगेशकर
तोसे नैना लगाके : मंगेशकर