हेमंत पाल
वृत्तचित्र ‘काली’ के एक पोस्टर ने लोगों को भड़का दिया। देवी की पोशाक में सिगरेट पीते एक अभिनेत्री के पोस्टर ने आग में घी का काम किया। भोपाल में इस फिल्म को लेकर शिकायत दर्ज कराई गयी है! उधर, पश्चिम बंगाल की एक सांसद ने इस मामले को नया रंग दे दिया, जिससे माहौल और गरमा गया। विरोध यहां तक बढ़ा कि फिल्म की डायरेक्टर लीना मणिमेकलई के खिलाफ कई और राज्यों में एफआईआर दर्ज हो गईं। फिर भी उन्होंने बजाय पीछे हटने के लोगों की भावनाओं के खिलाफ बयानबाजी की। क्योंकि, वे जानती हैं कि भारत की पुलिस के हाथ इतने लम्बे नहीं हैं कि वह कनाडा पहुंचकर उसके गिरेबान पर हाथ डाल सके।
यह तो विदेश में बसी फिल्मकार की बात है। चंद भारतीय फिल्मकार पहले भी कई फिल्मों में देवी-देवताओं को हास्यास्पद ढंग से पेश कर चुके हैं। कभी रामलीला के मंचन के दृश्यों से तो कभी महाभारत के दृश्यों के मंचन को भद्दे तरीके से फिल्माकर हास्य के नाम से यह खेल बरसों से चला आ रहा है। बरसों पहले आई फिल्म ‘जाने भी दो यारो’ में ऐसा ही एक प्रसंग था जिसमें दृष्टिहीन धृष्टराष्ट्र ‘ये क्या हो रहा है’ कहता रहता है और शेष पात्र मजाकिया अंदाज में अपमानजनक हरकतें करते दिखाई देते हैं। तब दर्शकों ने इसे मजे ले-लेकर देखा था। हो सकता है तब कथानक के मुताबिक फिल्मकार का उद्देश्य धार्मिक पात्रों का मजाक उड़ाना नहीं रहा हो, लेकिन दर्शकों का विरोध न होने से दूसरे फिल्मकारों के हौसले बुलंद होते चले गए। उन्होंने भगवान का मजाक उड़ाने के नाम पर पूरी की पूरी फिल्में ही बनाना शुरू कर दिया जिनमें पाताल भैरवी, लोक परलोक, ओ माय गॉड, गॉड तूसी ग्रेट हो और ‘पीके’ जैसी फिल्में बनी और खूब चलीं। यह बहस भी चल पड़ी है कि फिल्मों में हिंदू धर्म और देवी-देवताओं को मजाक बनाकर क्यों पेश किया जाता है। क्या कारण है कि दूसरे धर्मों के प्रति ऐसा नहीं किया जाता! ‘ओह माई गॉड’ और ‘पीके’ जैसी हिंदू आस्था पर चोट करने वाली फिल्मों के बारे में सेंसर बोर्ड पर आरोप लगाया जाता है, कि वह इसे मनोरंजन मानकर हरी झंडी क्यों दिखाता है। जबकि किसी और धर्म को लेकर की गई टिप्पणी को आपत्तिजनक मानकर उस पर कैंची चला दी जाती है। सेंसर की अपनी मजबूरियां और नियम-कायदे हो सकते हैं। लेकिन, यह भी ध्यान देने वाली बात है कि फिल्मों में न तो हिंदुओं को बख्शा जाता है न मुस्लिमों को! कुछ सालों से आतंकवाद पर फ़िल्में ज्यादा बनने लगीं, जिसमें मुस्लिम किरदार ही खलनायक दिखाए जाते हैं। वैसे भी फिल्मों में मुस्लिम किरदारों को जगह कम ही मिलती है। इसमें भी उनकी छवि लगभग तय होती है! वे या तो बहुत अच्छे इंसान होते हैं या बहुत बुरे, बीच में कुछ नहीं होता।
एक फिल्म बनी थी ‘… दुर्गा’ जिसके नाम में ही ईश निंदा के स्वर गूंज रहे थे। जब इसका विरोध आरंभ हुआ तो फिल्म का नाम तो बदल दिया, लेकिन निर्माताओं की मानसिकता नहीं बदली। फिल्म में इतने आपत्तिजनक दृश्य थे कि सेंसर ने इसमें दो दर्जन कट लगाने के बाद ही सर्टिफिकेट जारी किया था। अक्षय कुमार, धनुष और सारा अली खान की फिल्म ‘अतरंगी रे’ पिछले साल रिलीज हुई थी। इस फिल्म में ऐसे कई सीन और संवाद थे, जो हिंदू धर्म के देवी-देवताओं और धर्मग्रंथों पर तल्ख टिप्पणी करने वाले थे। फिल्म में भगवान शिव और हनुमान को लेकर अपशब्द बोले गए। साथ ही रामचरित मानस की भी आपत्तिजनक व्याख्या की गई है। फिल्म का एक सीन है जो ट्रेलर में भी दिखाया गया है जिसमें सारा अली खान कहती हैं ‘हनुमानजी का प्रसाद समझे हैं क्या हमें कि जो कोई हाथ फैलाएगा और हम मिल जाएंगे!’
अमिताभ बच्चन, रणबीर कपूर और आलिया भट्ट अभिनीत ‘ब्रह्मास्त्र’ 9 सितंबर को प्रदर्शित होने वाली है। उसके तो ट्रेलर ने ही विवादों को जन्म दे दिया। इस फिल्म में मंदिर के अंदर रणवीर सिंह जूते पहने हुए दिख रहे हैं। वे जूते पहनकर मंदिर की घंटियां बजाते हैं। ऐसे में लोग रणबीर के साथ करण जौहर को भी ट्रोल कर रहे हैं, जो फिल्म के निर्माता हैं। सोशल मीडिया पर तो फिल्म का बायकॉट करने की मांग उठ रही है।
आमिर खान की फिल्म ‘पीके’ (2014) में भगवान शिव के रूप में एक किरदार को दिखाया गया था। वह एलियन से डरकर टॉयलेट में भागता है। इस दृश्य को देखने के बाद फिल्म की जमकर आलोचना हुई। आमिर की इस फिल्म का कई लोगों ने बायकॉट भी किया था। इसके बावजूद फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही थी। अक्षय कुमार की फिल्म ‘लक्ष्मी’ का नाम पहले ‘लक्ष्मी…’ नाम था। विरोध होने के बाद इसे ‘लक्ष्मी’ नाम से प्रदर्शित किया गया। अनुराग बसु जैसे संजीदा फिल्मकार भी देवी-देवताओं का अपमान करने में पीछे नहीं रहे। उनकी फिल्म ‘लूडो’ के एक दृश्य में ब्रह्मा ,विष्णु और महेश को सड़क पर नाचते और दूसरे दृश्य में भगवान शंकर और महाकाली के वेश धारियों को कार को धक्का मारते दिखाया गया था।
फिल्में ही नहीं, ओटीटी पर दिखाये जाने वाले कंटेंट में भी यह बीमारी घर कर गई है। ‘सूटेबल बॉय’ में तो हद ही कर दी थी। इसके एक दृश्य में मंदिर के प्रांगण में अश्लील दृश्य फिल्माया गया था। इस फिल्म का भी जमकर विरोध हुआ था। नतीजा यह हुआ कि इसे देखने वाले तक नहीं मिले। यह मामला सोशल मीडिया के विरोध तक ही नहीं थमा, बल्कि यूपी सरकार ने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वालों के खिलाफ मामला दर्ज करने का आदेश दिया। अमेजॉन प्राइम ने भी इस सीरीज को लेकर बड़े कदम उठाए और विवादित कंटेंट को लेकर कड़े नियम बनाए।
अमेजॉन प्राइम पर पिछले साल प्रदर्शित वेब सीरीज ‘तांडव’ में भी एक ऐसा सीन था जिसे देखकर लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची थी। एक स्टेज शो के दौरान अभिनेता जीशान अय्यूब भगवान शिव के रूप में नजर आते हैं। वेब सीरीज में जीशान को यूनिवर्सिटी के एक छात्र शिवा शेखर के किरदार में दिखाया गया है। इस नाटक में वह हाथ में त्रिशूल और डमरू लेकर मंच पर आते हैं, लेकिन इस दौरान दर्शक आजादी-आजादी के नारे लगते हैं, लेकिन जीशान अय्यूब इस जगह पर एक आपत्तिजनक शब्द बोलते हैं। भगवान शिव के रूप में ऐसे शब्द मुंह से निकालने पर जीशान के साथ फिल्म निर्माताओं को भी जनता ने जमकर फटकार लगाई। बाद में जब इस पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सवाल -जवाब किए तो निर्माताओं ने माफी मांग कर अपमानजनक दृश्यों को हटाया था।
जनता सजग हुई है…
ऐसी बात नहीं है कि फिल्मों या ओटीटी पर प्रदर्शित सामग्रियों में इस तरह के दृश्य अनजाने में शामिल हो जाते हैं। इन्हें देखकर साफ पता चल जाता है कि इन्हें खास मकसद से जानबूझकर डाला गया है। किसी भी वेब सीरीज या फिल्म को बनाने से पहले के पीछे कई महीनों की मेहनत होती है, हरेक सीन पहले से तैयार होता है, हर एक डायलॉग लिखा जाता है। ऐसा नहीं कि कोई भी सीन ऑन द स्पॉट तैयार किया जाता है। यानी कि फिल्म में ऐसे सीन जान-बूझकर डाले जाते हैं, ताकि लोग उस पर उंगली उठाएं और फिल्म या वेब सीरीज को सुर्खियों में आए। हालांकि, अच्छी बात यह है कि बॉलीवुड के इस निम्न स्तर की मानसिकता के विरुद्ध धीरे-धीरे ही सही जनता में जागरूकता बढ़ी है।
फिल्मकार भी समझें
उदाहरण के तौर पर पिछले वर्ष सेक्युलरिज़्म के नाम पर एक वर्ग को अपमानित करने वाली फिल्में जैसे कलंक, व्हाई चीट इंडिया जैसी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरीं, तो वेब सीरीज ‘सेक्रेड गेम्स’ का प्रदर्शन पहले सीज़न के मुक़ाबले काफी फीका रहा है। ‘अतरंगी रे’ भले हिट हुई हो, पर इसके कंटेंट को लेकर कई लोगों ने आपत्ति की। जब इस तरह की फिल्म का विरोध होने लगे और फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर दम तोड़ने लगें तो शायद फिल्मकारों को अक्ल आए और इस तरह के दृश्यों से वे तौबा करने लगें! लेकिन, जिन फिल्मकारों का मकसद ही दर्शकों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना है, उनके लिए तो सूचना एवं प्रसारण विभाग को ही कोई सख्त गाइडलाइन तैयार करनी होगी। मनोरंजन के नाम पर किसी भी धर्म का मजाक न बनाया जाए! अभी तक जो होना था, वो हो गया!