कीमतें कम हों
आर्थिक संकट किसी भी देश पर आ सकता है। इसके लिए हमें सदैव तैयार रहना चाहिए। बात आती है आर्थिक प्रबंधन की। हाल ही में भारत के कुछ राज्यों में वोट बटोरने के लिए बिजली-पानी मुफ्त जैसी घोषणाएं कर जो राजनीति की गई वह बिल्कुल भी सही नहीं है। जब भी हम कुछ मुफ्त लेते हैं तो उस व्यवस्था का पूरा ढांचा तहस-नहस हो जाता है। हमें मुफ्त की आदत पड़ जाती है। इसलिए सरकार को कुछ भी मुफ्त करने की बजाय उसकी कीमतों में कमी करनी होगी। तभी देश आगे बढ़ेगा न कि वोट के लिए सब कुछ मुफ्त करने पर।
सतपाल सिंह, करनाल
अर्थव्यवस्था को चोट
राजनीतिक दल चुनावों को जीतने के लिए जनता को मुफ्त सुविधाएं देने के जो वादे कर रहे हैं वह न केवल आम जनता को ठगने वाला फैसला है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाने का भी प्रयास है। वास्तव में मुफ्त कुछ नहीं मिलता है। वोट देने समय मतदाता को अपने विवेक का प्रयोग करते हुए राष्ट्रहित में मतदान करना चाहिए। न्यायपालिका ऐसे सभी राजनीतिक दलों को अपना घोषणापत्र न्यायालय में प्रस्तुत करने को कहे जिसमें भविष्य में आय-व्यय का ब्योरा भी संलग्न हो।
सुरेन्द्र पाल वरी, गोहाना, सोनीपत
भविष्य में किल्लत
जब पैसा नहीं देना तो बिजली का बल्ब, पंखा आदि कोई क्यों बंद करेगा? पानी की बर्बादी की चिंता कौन करेगा? इससे बिजली-पानी जैसे कीमती संसाधनों, जिनकी देश में किल्लत है, की बर्बादी बढ़ेगी। अभी जो संसाधन प्रचुरता में हैं, दुरुपयोग से भविष्य में उनकी भी किल्लत हो जाएगी। कुशल आर्थिक प्रबंधन के लिए जरूरी है कि सभी उपलब्ध संसाधनों का मूल्य संवर्धन, लाभप्रद उपयोग एवं न्यूनतम बर्बादी हो। राजस्व का तर्कसंगत दरों पर संग्रह हो और हर एक पैसा राष्ट्रीय परिसंपत्तियों के निर्माण और विकास में खर्च हो। इससे समृद्धि बढ़ेगी जबकि रियायतों और मुफ्तखोरी से श्रीलंका जैसे संकट की राह खुलेगी।
बृजेश माथुर, गाजियाबाद
विकास प्रभावित
राष्ट्र की आर्थिक मजबूती व खुशहाली विकास का परिचायक है। आर्थिक संकट का दौर उसके आर्थिक कुप्रबंधन व नीतियों में कमी को दर्शाता है। देश के राजनीतिक दल भी इस बीमारी से अछूते नहीं हैं। मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनावी स्टंट जैसे मुफ्त बिजली-पानी, शिक्षा, बस यात्रा, खाद्यान्न आदि रियायतें देने की घोषणाओं से संसाधनों की कमी पड़ जाती है। परिणामतः विकास योजनाएं भी प्रभावित होती हैं। देश में उत्पादन की धीमी गति से बेरोजगारी, महंगाई में इजाफा होता है। आर्थिक घाटा पूरा करने के लिए टैक्स वृद्धि का सहारा लेना राजनीति साधने का प्रभावी तरीका है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
स्वावलंबी बनाएं
हमारे पड़ोस के कुछ देश आर्थिक संकट में से गुजर रहे हैं, जिसका मुख्य कारण कुशल आर्थिक प्रबंधन का अभाव है। यह बीमारी इस देश में भी शुरू हो चुकी है। विभिन्न राजनीतिक दल चुनावों के समय मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा, लैपटॉप, मुफ्त बस यात्रा की सुविधाएं आदि का वादा करते हैं। ये रियायतें देने के लिए संसाधनों की कमी पड़ जाती है। आर्थिक विकास के बहुत सारे काम रह जाते हैं, उत्पादन कम होने के कारण बेकारी और कीमतों में वृद्धि होती है। यह मुफ्त की सुविधाओं की राजनीति का ही प्रभाव है कि आज तक लोगों को खाने-पीने के मामले में भी स्वावलंबी नहीं बनाया जा सका है।
शामलाल कौशल, रोहतक
कुशलता से प्रबंधन हो
आर्थिक प्रबंधन सिर्फ व्यक्तिगत ही नहीं, समाज व देश, के लिए भी जरूरी है। बिना इसके उचित प्रबंधन के दैनिक खर्चों का सही तरीके से हिसाब नहीं रख सकते हैं और एक दिन जिस तरह दीमक लकड़ी को खा जाती है वैसे ही आर्थिक स्थिति चाहे प्रदेश की हो या देश की हो जाती है। मुफ्त की घोषणाएं, रियायतें, बिना मेहनत के मेहनताना, ऋण माफी ये सब दीमक की तरह ही हैं। इसलिए आर्थिक प्रबंधन को कुशलता से संभालना चाहिए, अन्यथा लंका जैसे हालात भारत में भी हो सकते हैं। वैसे ही कोरोना काल में आर्थिक स्थिति बिगड़ी है।
भगवानदास छारिया, सोमानी नगर, इंदौर
पुरस्कृत पत्र
विकास में बाधक
देश के नेतागण सत्ता प्राप्ति के लिए रियायत, छूट के नाम पर मतदाताओं को प्रलोभन देने में लगे हुए हैं। जिन क्षेत्रों से भी उपभोक्ता महंगाई की मार झेल रहा है वहीं वे रियायत देने का वादा कर देते हैं। आम जनता भी समझ नहीं पाती कि एक क्षेत्र में रियायत से उन्हें न जाने और कितने क्षेत्रों में महंगाई की मार झेलनी पड़ेगी। बहुत से उद्योग एक-दूसरे पर आश्रित होते हैं। हमें हर क्षेत्र में कुछ इस तरह से निवेश करना चाहिए कि अर्थव्यवस्था में संतुलन बना रहे। ताकि न ही मंदी और न ही महंगाई की मार झेलनी पड़े। अर्थव्यवस्था के असंतुलित होने से देश के विकास का मार्ग अवरुद्ध होता है।
ऋतु गुप्ता, फरीदाबाद