दैनिक ट्रिब्यून 7 जनवरी के अंक में प्रकाशित पार्थसारथी का ‘चीनी कर्ज जाल में छटपटाती पाक संप्रभुता’ लेख में चीनी कर्ज तले दबती पाक सरकार का विश्लेषण करने वाला था। कैसे चीन, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे में 62 खरब डॉलर का निवेश कर रहा है। इस गलियारे के माध्यम से चीन के समुद्र तटविहीन प्रांतों की पहुंच फारस की खाड़ी तक पहुंचाना है। पाकिस्तान कर्ज चुकाने की एवज में चीन की भूराजनीतिक महत्वकांक्षाओं में सहयोगी बनने को तैयार है। 1970 में भी शक्सगम घाटी चीन को उपहार के रूप में दी थी। भविष्य में पाकिस्तान जल्द ही चीनी ऋण के नीचे दबा हुआ देखने को मिलेगा।
नवज्योत सिंह, ऊना
जाग्रत विपक्ष
13 जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून मे गुरबचन जगत का ‘जीवंत लोकतंत्र को चाहिए जाग्रत विपक्ष’ लेख देश की राजनीति पर विचार-विमर्श करने वाला था। लेखक ने बड़े ही स्पष्ट शब्दों मे सामान्य जनता की बात को सामने रखा है। देश के लोकतंत्र को जरूरत है एक मज़बूत और जाग्रत विपक्ष की। मौजूदा समय में सरकार के खिलाफ विरोध करने वाले की आवाज़ को अक्सर दबा दिया जाता है, मगर वही बात विपक्ष दल करे तो उसका गहरा प्रभाव पड़ता है। देश को आवश्यकता है सशक्त विपक्ष की जो आम जनता के सही विषयों पर चर्चा करे।
आकाश धीमान, अम्बाला कैंट
मर्मस्पर्शी कथा
दस जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून के अध्ययन कक्ष पृष्ठ में वनमाली की ‘संतरे वाली’ कहानी रोमांचकारी जीवन की प्रस्तुति रही। कथानायिका चंदा का रोबिला व्यक्तित्व बाह्य पक्ष की पहचान कराते हुये विषय वस्तु को प्रभावशाली बना रहा था। अबनि और चंदा का मिलन निर्लेप-निष्काम भावना का एकीकरण दर्शा रहा था। पाठक हृदयग्राही जिज्ञासा, अतृप्त, अनुत्तरित प्रश्न लिये आंतरिक पक्ष संभालते तब तक नायिका अपने घर के दरवाजे पर ताला लगा गायब हो जाती है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल