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असंध में कांग्रेस के गोगी का मुकाबला करने को आतुर तीन भाजपा नेता

रमेश सरोए/हप्र करनाल, 30 अगस्त असंध में इनेलो-बसपा गठबंधन की ओर से बसपा ने पूर्व प्रत्याशी नरेंद्र राणा के बेटे गोपाल राणा को प्रत्याशी घोषित कर दूसरों दलों खासकर भाजपा पर जल्द ही प्रत्याशी घोषित करने का दबाव बना दिया...

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रमेश सरोए/हप्र

करनाल, 30 अगस्त

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असंध में इनेलो-बसपा गठबंधन की ओर से बसपा ने पूर्व प्रत्याशी नरेंद्र राणा के बेटे गोपाल राणा को प्रत्याशी घोषित कर दूसरों दलों खासकर भाजपा पर जल्द ही प्रत्याशी घोषित करने का दबाव बना दिया है। कांग्रेस की ओर से मौजूदा विधायक शमशेर सिंह गोगी को सबसे मजबूत टिकटार्थी माना जा रहा है। हालांकि गोगी के सामने भी कांग्रेस के कई चेहरे टिकट के लिए लॉबिंग कर रहे हैं।

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भाजपा की ओर से टिकट के 3 मजबूत दावेदार जबरदस्त लॉबिग कर रहे हैं। इनमें पूर्व विधायक सरदार बख्शीश सिंह, पूर्व विधायक जिलेराम शर्मा व भाजपा जिलाध्यक्ष योगेंद्र राणा शामिल हैं। जिलेराम शर्मा पूर्व की हुड्डा सरकार में मुख्य संसदीय सचिव भी रह चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल के नेतृत्व में उन्होंने भाजपा ज्वाइन की थी। बख्शीश सिंह विर्क पहली बार 2014 में असंध से विधायक बने थे। भाजपा के ये तीनों ही टिकटार्थी राजनीतिक रसूख वाले हैं, जो धरातल पर लगातार सक्रिय रहे हैं।

हालांकि टिकट के लिए भाजपा के कई अन्य नेता भी भागदौड़ कर रहे हैं, लेकिन राजनीतिक जानकारों की माने तो तीनों नेताओं में से किसी एक को टिकट मिलेगा। चूंकि तीनों ही नेता केंद्रीय मंत्री व पूर्व सीएम मनोहर लाल व वर्तमान सीएम नायब सैनी के करीबी माने जाते हैं।

असंध सीट प्रदेश की ऐसी सीट हैं, जहां किसी भी पार्टी के बड़े नेता को जीत आसानी से नसीब नहीं होती। चूंकि सीट पर जातीय समीकरण प्रत्याशी की जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। जिस भी पार्टी का जातीय समीकरण या चुनाव के दौरान छोटी-सी चूक हुई नहीं कि जीतते हुए प्रत्याशी को दूसरे नंबर पर पहुंचने में देर नहीं लगती। सीट पर 15 सालों का इतिहास रहा है कि हर बार विजेता को जीत के लिए नाकों चने चबाने पड़े हैं।

असंध सीट पर कांग्रेस, भाजपा के अलावा बसपा भी ताकत और जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर दमदार तरीके से चुनाव लड़ती हैं। इसकी बदौलत हर बार मामूली से अंतर से सीट को गंवा देती हैं। जो पार्टी धरातल पर न दिखे, फिर भी चुनाव में कांटे टक्कर देते हुए मामूली अंतर से हार जाए। इसे देखकर अन्य पार्टियों के नेतागण भी चौक जाते हैं। यही नहीं, निर्दलीय प्रत्याशी भी मजबूती से चुनाव लड़ते रहे हैं। जिनकी बदौलत सीट पर हार जीत का अंतर बहुत कम रहता हैं।

यही वजह है कि जिस भी पार्टी का जातीय समीकरण सही रहता हैं, जीत उस ही प्रत्याशी को नसीब होती है।

2019 को हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी शमशेर गोगी बसपा प्रत्याशी नरेंद्र राणा से मात्रा 1703 वोटों के मामूली अंतर से जीते थे। 2014 के विधानसभा में भी बीजेपी के सरदार बख्शीश सिंह, बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी मराठा वीरेंद्र वर्मा से करीब 2 हजार वोटों के मामूली अंतर से विजयी हुए थे। 2009 के चुनाव में बसपा प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहा था। सीट की खास विशेषता है कि अन्य प्रत्याशियों में भी एक-दूसरे के बीच मामूली अंतर ही रहता है। इससे सीट पर रोचक चुनावी टक्कर होती रही है। इस बार भी चुनावी फिजा किस ओर जाएगी, आगामी विधानसभा चुनावों में तस्वीर साफ होंगी।

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