जी सी पठानिया/निस
धर्मशाला, 2 सितम्बर
निर्वासित तिब्बत सरकार के अध्यक्ष डॉ. लोब्सांग सांग्ये ने कहा है कि तिब्बती समुदाय को लोकतंत्र सिर्फ धर्मगुरु दलाई लामा के संघर्ष और उनके प्रयासों से ही मिला है। उन्होंने कहा कि दलाई लामा की ओर से किए अथक प्रयासों से आज हमें अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था मिली है। डॉ. सांग्ये ने यह बात बुधवार को निर्वासित तिब्बती सरकार के लोकतंत्र के 60 वर्ष पूर्ण होने पर मैक्लोड़गंज में आयोजित एक कार्यक्रम में कही।
डा. सांग्ये ने कहा कि पिछले साठ वर्षों में तिब्बती समुदाय की निर्वासन की परिस्थिति, राजनीतिक, धर्म-संस्कृति व भाषा संरक्षण सहित तिब्बत की आजादी को लेकर भारत देश ही नहीं बल्कि अन्य देशों ने जो कदम उठाए हैं, इसके लिए तिब्बती समुदाय उनका भी आभारी है। उन्होंने कहा कि चीन विश्व में शांति की बात कर रहा है, यदि चीन वास्तव में शांति चाहता है तो दलाई लामा के दूतों से बातचीत करे और तिब्बत के लोगों को आजादी देने के रास्ते खोले।
इस दौरान दलाई लामा की ओर से तिब्बत की आजादी को लेकर अब तक उठाए गए कदमों का जिक्र करते हुए उनकी लंबी आयु की प्रार्थना भी की गई।
गौर हो 14वें दलाई लामा ने छोटी उम्र में तिब्बत के अाध्यात्मिक नेता व प्रमुख के रूप में अपना उत्तरदायित्व संभाला था। तिब्बत में चीन के कब्जे केे बाद बढ़ते हस्तक्षेप के चलते दलाई लामा को 1959 में तिब्बत छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी थी। भारत आने के बाद निर्वासित जीवन व्यतीत करते हुए दलाई लामा ने तिब्बत की राजनीतिक व्यवस्था को लोकतांत्रिक व्यवस्था में बदलने को लेकर कई कदम उठाए। पहले वह खुद तिब्बती लोकतांत्रिक व्यवस्था को देखते रहे लेकिन वर्ष 2011 में धर्मगुरू ने राजनीतिक गतिविधियों को खुद से दूर कर चुनाव प्रक्रिया के तहत निर्वासित तिब्बती सरकार का मुखिया चुनने का अधिकार निर्वासित तिब्बती समुदाय को देकर सिर्फ धार्मिक गुरू बने रहने का निर्णय लिया।