दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 7 मार्च
हरियाणा में बिना किसी स्टडी और ज्ञान के मानव रहित सब-स्टेशन स्थापित करना सरकार को महंगा पड़ा है। यह फैसला उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम ने लिया था। इससे सरकार को 11 करोड़ 14 लाख रुपये की चपत लगी, उपभोक्ताओं को परेशानी भुगतनी पड़ी सो अलग। निगम ने लापरवाही इस कदर बरती कि बाद में मानव रहित पावर स्टेशन की बजाय पुराने ढर्रे पर लौटना पड़ा।
इस पूरे मामले में किसी अधिकारी की जिम्मेदारी तय नहीं करने और सरकारी पैसे के नुकसान पर कैग ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ऑडिट के दौरान जब कैग ने सरकार को इस बारे में ऑब्जेक्शन भेजा तो रिपोर्ट पब्लिश होने तक भी उसका जवाब नहीं दिया गया। इसका भी उल्लेख कैग ने अपनी रिपोर्ट में किया है। दरअसल, राज्य सरकार ने बिजली सिस्टम में सुधार और नई तकनीक के नाम पर मानव रहित पावर सब-स्टेशन स्थापित करने का निर्णय लिया।
आमतौर पर जब भी नई तकनीक अपनाई जाती है तो पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर एक जगह से शुरूआती होती है लेकिन उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम ने एक साथ पंद्रह जगह पर मानव रहित सब-स्टेशन स्थापित किए। यह निर्णय करने से पहले न तो किसी तरह की स्टडी की गई और न ही इस तरह के किसी सब-स्टेशन के तकनीकी व आर्थिक पहलुओं की पड़ताल की गई। मार्च 2007 से अप्रैल-2012 के बीच ये सब-स्टेशन स्थापित किए गए। 33 किलोवाट के इस पावर स्टेशन पर 34 करोड़ 46 लाख रुपये खर्च किए गए।
इन सब-स्टेशनों को जनरल पैकेट रेडिया सर्विस राउटर्स का उपयोग करके एक रिमोट कंट्रोल मॉनिटरिंग स्टेशन से जोड़ा जाना था। राउटर्स एक वायरलेस डॉटा संचार सेवा है, जो निर्धारित दूरसंचार नेटवर्क की तुलना में उच्च डॉटा ट्रांसफर गति देता है। यह तुरंत कनेक्शन और डाटा ट्रांसफर प्रदान करता है। इससे मोबाइल पर इंटरनेट एप्लीकेशन का भी प्रावधान है। सॉफ्टवेयर के जरिये सब-स्टेशन को ऑन-ऑफ करने की सुविधा है।
इंजीनियर को नहीं था सिस्टम का ज्ञान
कैग ने स्पष्ट किया है कि इस सब-स्टेशनों की देखभाल और रखरखाव करने के लिए फील्ड कार्यालय में विशेषज्ञता की कमी थी। ऐसे में इस सब-स्टेशन में आने वाले फॉल्ट को दूर करने का उन्हें ज्ञान ही नहीं था। यही कारण रहे कि 6 करोड़ 22 लाख रुपये की लागत से बाद में निगम को छह मानव रहित सब-स्टेशन को पुराने सिस्टम यानी मानव संचालित सब-स्टेशन में बदलना पड़ा। कैग ने दो-टूक कहा है कि तकनीकी व आर्थिक अध्ययन के बिना लिए इस फैसले से सरकार को 11 करोड़ 14 लाख रुपये की चपत लगी।
मार्केट में नहीं मिला सामान
इन सब-स्टेशन को सुचारू रूप से चलाने के लिए विद्युत नेटवर्क को भी नई तकनीक में बदलना जरूरी था। निगम की ओर से दावा किया गया कि उसने इसकी कोशिश की लेकिन मार्केट में आधुनिक उपकरण नहीं मिले। जिस कंपनी ने सब-स्टेशन स्थापित किए थे, उसके रेट काफी अधिक थे। ऐसे में सब-स्टेशन में बार-बार ट्रिपिंग और ब्रेकडाउन की समस्या बढ़ गई। आखिर में सरकार को पुराने ढर्रे पर ही लौटना पड़ा।