अभी तक बेशक यही पढ़ा और सुना गया था कि 1857 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की चिंगारी मेरठ से फूटी थी, लेकिन अब इतिहासकार भी यह मान गए हैं कि बगावत के सुर मेरठ से भी 10 घंटे पहले अंबाला कैंट से उठने शुरू हो गए थे। यहां ब्रिटिश सेना में शामिल भारतीय सैनिकों ने चर्बी वाले कारतूस का इस्तेमाल करने से इंकार कर अपने हथियार छोड़ दिए थे। इतना ही नहीं, अंग्रेजों पर एक ही साथ हमला करने की प्लानिंग भी सैनिकों व स्वतंत्रता सेनानियों ने गोपनीय तरीके से कर ली थी।
अहम और रोचक पहलू यह है कि इसी दिन यानी 10 मई, 1857 की शाम को साढ़े पांच बजे के लगभग मेरठ में भी जवानों ने बगावत शुरू कर दी थी। अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की शुरूआत अंदरखाने काफी साल पहले ही शुरू हो गई थी। नाना साहब, रानी झांसी, तांत्या टोपे, कुंवर जगजीत सिंह, बहादुर शाह जफर, राव तुलाराम, मौलवी अहमद उल्ला शाह सहित कई क्रांतिकारी अंग्रेजों से खुलकर लोहा ले रहे थे। वे अंग्रेजी सेना में शामिल भारतीयों को भी लामबंद कर रहे थे।
बगावत की चिंगारी उस समय तेज हो गई जब ब्रिटिश राज ने नये कारतूस देश की विभिन्न छावनी में सैनिकों के इस्तेमाल के लिए भेजे। चर्बी लगे इन कारतूस के बारे में जब सैनिकों को पता लगा कि इसमें गाय और सुअर की चर्बी लगी है तो उन्होंने इसके इस्तेमाल से इंकार कर दिया। इधर अंग्रेजों का जुल्म बढ़ रहा था और उधर सैनिकों का गुस्सा अंदरखाने हिचकोले ले रहा था। बगावत शुरू करने के लिए उस समय ‘कोड वर्ड’ तय किया हुआ था। भारतीय सैनिकों के पास रोटी और कमल का फूल भेजा जाता था। जिस भी पलटन और सैनिक ने रोटी और कमल के फूल को स्वीकार कर लिया तो यह मान लिया जाता था कि वह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत के लिए तैयार है। अंग्रेजों द्वारा विदेश से मंगवाए गए चर्बी वाले कारतूस तीन जगहों – दमदमा, श्रीनगर और अंबाला कैंट में भेजे गए। इन्हीं जगहों से आसपास के एरिया में इन्हें भेजा जाता था। अंबाला कैंट में भी जब आसपास की रियासतों की कंपनियां कारतूस लेने आती थीं तो यहां मौजूद भारतीय सैनिक उन्हें इस बारे में बताते थे कि ये चर्बी वाले कारतूस हैं।
भारतीयों ने इसे उनका ‘धर्म भ्रष्ट’ करने की साजिश माना। इसी के चलते कारतूस की सप्लाई के दौरान भी अंदरखाने सैनिकों को विद्रोह के लिए तैयार करने की शुरूआत हो गई थी। अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारी हर रविवार को इकट्ठे होकर एक चर्च पर जाते थे। 10 मई, 1857 को भी संडे था। अंबाला कैंट के सैनिकों ने इस दिन के लिए पहले से ही प्लानिंग की हुई थी। उन्हें पता था कि संडे के दिन अंग्रेज किस चर्च में इकट्ठा होंगे। उन पर एक साथ ही हमला करके मारने और भगाने की योजना थी।
भारतीय सैनिकों व स्वतंत्रता सेनानियों की इस योजना की भनक अंग्रेजों को पहले ही लग गई। ऐसे में उन्होंने संबंधित चर्च में इकट्ठा होने की योजना को बदल दिया। इस वजह से वे बच गए, लेकिन बगावत की चिंगारी फूट चुकी थी। अंबाला कैंट में हुए विद्रोह के लगभग 10 घंटे बाद मेरठ की छावनी में भी भारतीय सैनिकों ने बगावत शुरू कर दी। इसके बाद देश के अनेक हिस्सों में अंग्रेजों के खिलाफ विरोधी सुर बुलंद हो गए और ब्रिटिश हुकूमत बैकफुट पर आई।
संकल्प स्तम्भ होगा स्थापित
राज्य के कारीगरों को बढ़ावा देने के मद्देनजर इस स्मारक में विभिन्न ऐसी वस्तुओं को भी दर्शाया जाएगा, जो हरियाणा के देहात में विभिन्न कारीगरों द्वारा तैयार की जाती हैं। स्मारक में डिजिटल संकल्प स्तंभ स्थापित होगा ताकि आने वाले लोग देशभक्ति के प्रति एक संकल्प लेकर जाएं। संकल्प स्तंभ अपनी तरह का अलग डिजिटल स्तंभ होगा, जिसमें विभिन्न प्रकार की लाइटों के प्रकाश का उजाला संकल्प लेते समय निकलेगा। चित्रकारों के दुर्लभ चित्र भी स्मारक की दीवारों पर लगेंगे।
-दिनेश भारद्वाज
स्मारक के लिए गठित होगी कमेटी
प्रदेश के गृहमंत्री अनिल विज अपने इस ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ की खुद मॉनिटरिंग कर रहे हैं। पब्लिक रिलेशन डिपार्टमेंट ओवरआल इस प्रोजेक्ट का इंचार्ज है। शहीद स्मारक को लेकर विभिन्न विभागों, संस्थाओं व विश्वविद्यालयों से संबंधित अधिकारियों की एक प्रदेश स्तरीय कमेटी गठित होगी। शहीद स्मारक को तैयार करने के लिए इतिहास की पुख्ता वस्तुओं व कहानियों को दिखाने के लिए 1857 से संबंधित इतिहासकारों की एक कमेटी भी गठित होगी। इसमें वे अपने अध्ययन के अनुसार सुझाव देंगे। इन सुझावों को स्मारक में विभिन्न कलाकृतियों, आर्ट, लाइट एंड साउंड आदि के माध्यम से आंगुतकों के ज्ञान के लिए दर्शाया जाएगा। वहीं पंडित लख्मीचंद स्टेट यूनिवर्सिटी आफ परफोरर्मिंग एंड विज्युल आर्ट्स के अधिकारियों की भी एक टीम का गठन होगा ताकि वे स्मारक स्थल का निरीक्षण कर विभिन्न सुझाव राज्य स्तर पर बनाई जाने वाली कमेटी को दे सकें। टीम स्मारक की विभिन्न प्रदर्शित वस्तुओं के रखरखाव व मूल्यांकन के लिए अपने सुझाव भी देगी।
अंग्रेजों के घरों-दफ्तरों में लगा दी थी आग
अम्बाला कैंट में भारतीय सैनिकों ने बगावत की शुरूआत करते हुए अंग्रेजों के घरों व दफ्तरों में आग भी लगा दी थी। यह घटना 10 मई, 1857 को हुए विद्रोह से दो-तीन दिन पहले की है। इससे जुड़े सरकारी दस्तावेज भी मिले हैं, जो सरकार के पास सुरक्षित हैं। इसके बाद ही अंबाला कैंट के अलावा मेरठ, नई दिल्ली सहित भारत के कई हिस्सों में अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय सैनिकों ने हथियार उठा लिए थे।
अनसंग योद्धाओं को समर्पित होगा स्मारक
अम्बाला कैंट में नेशनल हाईवे पर बनाया जा रहा शहीदी स्मारक उन अनसंग असंख्य योद्धाओं व स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित होगा, जिनका इतिहास में कहीं नाम भी नहीं है। हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज का कहना है कि ऐसे योद्धाओं के बलिदान को याद करने और युवा पीढ़ी को उनके बारे में बताने में यह स्मारक अहम भूमिका निभाएगा। 22 एकड़ भूमि पर बन रहे इस स्मारक पर 300 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होंगे।
अम्बाला था विद्रोह का जनक : इतिहासकार
आमतौर पर यही माना जा रहा कि 1857 के विद्रोह की पहली चिंगारी मेरठ से फूटी थी लेकिन बाद में इतिहासकार भी यह मानने को तैयार हो गए कि इसकी शुरूआत अम्बाला कैंट से हुई थी। दरअसल, 2000 में इनेलो-भाजपा की गठबंधन सरकार के समय अम्बाला कैंट से विधायक अनिल विज ने विधानसभा में यह मुद्दा उठाया था। उन्होंने अंबाला कैंट में शहीदी स्मारक बनाए जाने की मांग उठाई। उस समय सदन में सीएम होते हुए ओमप्रकाश चौटाला ने इसके लिए अध्ययन करवाने का ऐलान किया था। इसके बाद 2005 में जब भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता में आई तो विज ने फिर से विधानसभा में यह मुद्दा उठाया। विज की मांग पर उस समय के सीएम हुड्डा ने शहीदी स्मारक बनाने का ऐलान किया। उन्होंने विज द्वारा रखे गए तथ्यों को वेरिफाई करवाने की बात भी कही। इसके बाद कई इतिहासकारों ने स्वीकार किया कि बगावत का बिगुल अम्बाला कैंट से बजा था। 2014 में भाजपा जब पहली बार पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई तो विज के सपनों को पंख लग गए। खट्टर सरकार ने शहीदी स्मारक बनाने का फैसला लिया।
लेजर लाइट-शो से दिखेगी बगावत
अम्बाला कैंट में 1857 की बगावत कब और कैसे शुरू हुई, इसका चित्रण ‘लेजर लाइट एंड साउंड-शो’ के जरिये होगा। इसके लिए शहीदी स्मारक में 2000 लोगों के बैठने की क्षमता का ओपन एयर थियेटर बन रहा है। शहीदी स्मारक में लेक भी बनाई जा रही है, जिसमें बोटिंग की भी सुविधा होगी। बहादुर शाह जफर को रंगून में दफनाने के सीन तक इस शो में दिखाए जाएंगे। अम्बाला कैंट के विद्रोह से रंगून तक की पूरी स्टोरी का चित्रण होगा। स्मारक में हेलीपेड भी बनाया गया है। स्क्रिप्ट लिखने का जिम्मा बॉलीवुड के स्क्रिप्ट राइटर पुष्पंत को सौंपा है। स्मारक में फूड कोर्ट भी स्थापित होगी। यह देश का अपनी तरह का पहला ऐसा शहीदी स्मारक होगा, जिसमें आने के बाद पर्यटक लगभग पूरा दिन यहां बिताने को मजबूर होंगे। यहां आने वाले पर्यटकों को यह भी समझने में मदद मिलेगी कि हरियाणा में 1857 की क्रांति कहां-कहां लड़ी गई। तीसरे चरण में यह बताया जाएगा कि हिंदुस्तान में कहां-कहां आजादी की लड़ाई लड़ी गई। झांसी की रानी, बहादुरशाह जफर, राव तुलाराम व अन्य क्रांतिकारियों की भूमिका के बारे में बताया जाएगा।
अम्बाला कैंट में बनाए जा रहे शहीदी स्मारक को अगले साल के आखिर तक पूरा करने की योजना है। यह अपनी तरह का देश का पहला इतना बड़ा शहीदी स्मारक होगा। इतिहासकार ही नहीं, अब राज्य सरकार के पास भी ऐसे दस्तावेज हैं, जो यह साबित करते हैं कि 1857 के विद्रोह की चिंगारी अंबाला कैंट से ही फूटी थी। शहीदी स्मारक उन अनसंग असंख्य योद्धाओं व स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित होगा, जो देश की आजादी के लिए लड़े और शहीद हो गए, लेकिन इतिहास में उनका नाम तक दर्ज नहीं है। मैं आभारी हूं कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने मेरी इस मांग को तुरंत माना और इस पर काम भी शुरू हुआ।
-अनिल विज, गृह मंत्री