कुमार मुकेश/ हप्र
हिसार, 14 अगस्त
सोलह पैसे में एक एकड़ जमीन और सोने से भी महंगा नमक मिले तो इसे क्या कहेंगे। आपके पास शायद इसका जवाब नहीं होगा, क्योंकि ऐसा आजकल संभव नहीं है। लेकिन, परतंत्र भारत में अंग्रेजी शासन की ज्यादतियों के बीच हिसार में ऐसा हुआ था। अंग्रेजों के सितम के कारण नीलाम हुए हिसार के गांवों के ग्रामीण आज भी यह बोलते हैं कि ‘यहां सोलहा पिस्यां म्ह खेत अर कुंदण जिसो नूण बिक्यो है’ और आज इसका गवाह है अभिलेखागार विभाग। इस विभाग में दर्ज आंकड़ों के अनुसार हिसार के 4 गांवों को 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने नीलाम कर दिया था।
अभिलेखागार विभाग के ही दस्तावेजों के अनुसार स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भिवानी के बापौड़ा गांव में 17 अप्रैल, 1930 को नमक बनाकर कानून तोड़ने के प्रदर्शन में करीब 300 ग्राम नमक बनाकर उसके चार पैकेट (75-75 ग्राम के) बनाए गए थे। इनमें से एक पैकेट 25 रुपये और तीन पैकेट 10-10 रुपये में स्वतंत्रता सेनानियों ने बोली में खरीदे थे।
रोहनात में है दूसरा जलियांवाला कुआं
अभिलेखागार विभाग के सहायक निदेशक पद से सेवानिवृत्त डॉ. आरके श्रीवास्तव ने बताया कि विभाग के रिकार्ड के अनुसार अमृतसर में हुए जलियांवाला कांड जैसी घटना हिसार जिले के रोहनात गांव में भी हुई थी, जिसके कारण उसे दूसरा जलियांवाला कुआं के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजों के अत्याचार का सामना करते हुए कई क्रांतिकारी इस कुएं में गिर कर शहीद हो गए थे।
ऐसे हुए थे सौदे
- जिले के जमालपुर गांव को 20 जुलाई, 1858 में अंग्रेजों ने मात्र 700 रुपये में नीलाम किया था और इसे हिसार के जमींदार भगतराम, पुत्र शिवलाल ने खरीदा था। इस गांव में उस समय 5 हजार 152 एकड़ भूमि थी, जिसमें से 4 हजार 107 एकड़ जमीन कृषि योग्य थी। इस प्रकार एक एकड़ जमीन सोलह पैसे (15.58 पैसे) में बिक गई।
- रोहनात गांव को 4 सितंबर, 1858 को 8100 रुपये में उमरां गांव के हंसराज व अन्य ने खरीदा था। इस गांव में उस समय 4 हजार 315 एकड़ जमीन थी, जिसमें से 2 हजार 234 एकड़ कृषि योग्य थी।
- रिकार्ड के अनुसार मंगाली झारा गांव को 21 जुलाई, 1858 को हांसी के जमींदार पैनी बारलो ने 4 हजार 125 रुपये में खरीदा था, जिसमें 2 हजार 656 एकड़ जमीन थी।
- हाजमपुर गांव को 20 जुलाई, 1858 को उमरां गांव के हंसराज व अन्य ने 1200 रुपये में खरीदा था। इस गांव में 774 एकड़ कृषि भूमि सहित एक हजार 795 एकड़ जमीन थी।