प्राकृतिक खेती के लिए सत्संग, जहर मुक्त होंगी फसलें : The Dainik Tribune

प्राकृतिक खेती के लिए सत्संग, जहर मुक्त होंगी फसलें

संत कंवर महाराज व गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत 23 को शुरू करेंगे बड़ी मुहिम

प्राकृतिक खेती के लिए सत्संग, जहर मुक्त होंगी फसलें

संत कंवर हुजूर महाराज, राज्यपाल आचार्य देवव्रत

अजय मल्होत्रा/हप्र

भिवानी, 17 मार्च

'बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।' तुलसीदास की इस चौपाई में संतों की संगत की महत्ता का वर्णन किया गया है जाे मन के जहर को निकालते हैं। अब एक बार फिर संतों का ऐसा ही समागम हरियाणा में होगा और मुद्दा है फसलों से जहर निकालने का, प्राकृतिक खेती का। असल में अत्यधिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से आज खाद्य पदार्थ ही जहरीले हो गए हैं। इनके इस्तेमाल से कैंसर जैसी घातक बीमरियां फैल रही हैं। इस जहर से 'मुक्ति' दिलाने एवं लोगों को प्राकृतिक खेती की ओर उन्मुख करने के लिए राधा स्वामी (दिनोद) के संत कंवर हुजूर महाराज एवं प्राकृतिक खेती के अग्रदूत गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत 23 मार्च को 11 हजार लोगों को जहर मुक्त प्राकृतिक खेती की शपथ दिलाएंगे। दोनों लोग भिवानी आश्रम में 108 कुंडीय सहस्त्र चंडी महायज्ञ में जहर मुक्त प्राकृतिक खेती के लिए आहूति देंगे। संत कंवर महाराज अपने सत्संगियों को भी इससे जोड़ रहे हैं।

असल में प्राकृतिक खेती में एक देसी गाय से 30 एकड़ जमीन को खाद का प्रबंध हो सकता है। एक एकड़ जमीन की खुराक तैयार करने के लिए गाय के एक दिन के गोबर एवं गौमूत्र की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त डेढ़ किलो बेसन, डेढ़ किलो गुड़ और 50 ग्राम मिट‍्टी को 6 से 7 दिन तक 200 लीटर के पानी के ड्रम में रखा जाता है। रासायनिक खेती से इतर यह प्रयोग प्राकृतिक एवं सस्ता है।

बढ़ेंगे पोषक तत्व

चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के सेवानिवृत्त प्रधान वैज्ञानिक स्टेट ट्रेनिंग एडवाइजर डाॅ. हरिओम का कहना है कि जीवामृत जब सिंचाई के साथ खेती में पहुंचते हैं तो इसमें विद्यमान जीवाणु भूमि में जाकर मल्टीप्लाई होने लगते हैं और इनमें से अनेक जीवाणु होते हैं जो वायुमंडल में मौजूद 78 प्रतिशत नाइट्रोजन को पौधों की जड़ों तक पहुंचा जाते हैं। इससे पोषक तत्व बढ़ते हैं और अच्छी खेती होती है।

'अत्यधिक कीटनाशक घातक'

कृषि उपनिदेशक डाॅ. आत्माराम गोदारा का कहना है कि कृषि में रासायनिक खाद व कीटनाशक के अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति घट रही है व कृषि उत्पाद की गुणवत्ता पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कृषि उत्पादों में रासायनिक तत्वों की प्रचुरता के कारण ही मनुष्य, पशु एवं पक्षियों में बीमारियां फैल रही हैं। कीटनाशकों के कारण पक्षियों की बहुत सी प्रजातियां तो लुप्त ही हो गई हैं और वातावरण भी दूषित हो रहा है।

'खत्म हो रही है भोजन की गुणवत्ता'

भिवानी के सीएमओ डॉ. रघुबीर शांडिल्य का कहना है कि फसलों में अत्यधिक रासायनिक खाद व कीटनाशकों के कारण बीमारियां निरंतर बढ़ रही हैं। खासतौर पर कैंसर और अन्य कई बीमारियां। उन्होंने कहा कि रासायनिक खादों से उपजे अनाज शरीर के विभिन्न अंगों को कई तरह से प्रभावित करते हैं। उन्होंने कहा कि भोजन की गुणवत्ता तो इनसे खत्म हो ही चुकी है। उन्होंने आगाह किया कि अगर यही हाल रहा तो आगे स्थिति और बिगड़ेगी।

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