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पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का ‘सुपर बुधवार’, एक ही दिन 3 बड़े फैसले; अदालत ने दिखाई न्याय की असली धार

पूरन कुमार केस सीबीआई को नहीं, गोवंश कानून पर नोटिस, वक्फ बोर्ड पर फटकार
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पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के गलियारों में न्याय की गूंज कुछ और ही थी। एक तरफ आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार की आत्महत्या मामले में सीबीआई जांच की मांग ठुकरा दी गई। दूसरी ओर, हरियाणा गोवंश संरक्षण कानून की संवैधानिक वैधता पर अदालत ने सवाल उठा दिए। तीसरी तरफ पांच साल से लटका वक्फ बोर्ड गठन विवाद आखिरकार अदालत के सख्त निर्देश से सुलझ गया।

यह दिन हरियाणा की न्यायिक व्यवस्था के लिए सिर्फ सुनवाई का दिन नहीं था। यह न्याय, जवाबदेही और संवैधानिक मर्यादा का सशक्त प्रदर्शन था। हरियाणा के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार की आत्महत्या से जुड़ी जनहित याचिका पर अदालत ने साफ कहा कि इस जांच में न देरी है, न लापरवाही। ऐसे में सीबीआई जांच की कोई गुंजाइश नहीं।

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मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति संजीव बेरी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की मांग को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि जांच पहले से ही एक आईजी रैंक के अधिकारी की अगुवाई में गठित विशेष जांच टीम (एसआईटी) कर रही है। इस 14 सदस्यीय टीम में तीन आईपीएस अधिकारी, तीन डीएसपी और फॉरेंसिक विशेषज्ञ शामिल हैं। अब तक 22 गवाहों के बयान, 14 आरोपियों की पहचान और 21 महत्वपूर्ण साक्ष्य जुटाए जा चुके हैं।

याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि यह समाज के लिए गंभीर मामला है और निष्पक्ष जांच के लिए सीबीआई जरूरी है। लेकिन अदालत ने पलटवार करते हुए कहा कि सिर्फ अख़बार पढ़कर दायर की गई याचिका जनहित नहीं होती। सीबीआई जांच के लिए असाधारण परिस्थितियाँ चाहिए, जो यहां नहीं हैं। अदालत ने इस आदेश के साथ यह संदेश दिया कि न्यायिक सक्रियता का अर्थ प्रशासनिक हस्तक्षेप नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण संतुलन है।

गोवंश संरक्षण कानून पर कोर्ट की नजर

दूसरे अहम फैसले में हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार के गोवंश संरक्षण एवं गोसंवर्धन अधिनियम, 2015 पर गंभीर सवाल उठाए। नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन द्वारा दायर जनहित याचिका में दावा किया गया कि इस कानून की धारा 16 और 17 गोरक्षक समूहों को पुलिस जैसी शक्तियां देती हैं, तलाशी, जब्ती और निरीक्षण का अधिकार। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि राज्य की संप्रभु शक्तियाँ किसी निजी व्यक्ति को नहीं सौंपी जा सकतीं। यह न केवल असंवैधानिक है, बल्कि कानून-व्यवस्था के लिए भी खतरा है। मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने इस पर हरियाणा सरकार, पुलिस महानिदेशक और गोसेवा आयोग को नोटिस जारी किया और तीन सप्ताह में जवाब मांगा।

याचिका के अनुसार, जुलाई 2021 में हर जिले में गठित ‘स्पेशल काउ प्रोटेक्शन फोर्स’ में गोरक्षक समितियों के सदस्य शामिल हैं, जिन्हें किसी योग्यता या प्रशिक्षण के बिना पुलिस शक्तियां दी गईं। नतीजतन, कई ‘स्वयंभू गोरक्षक’ सड़कों पर कार्रवाई करने लगे, जिससे कानून और नागरिक अधिकारों का टकराव बढ़ा। इस पर अदालत ने तीखी टिप्पणी की कि कानून का उद्देश्य संरक्षण है, उत्पीड़न नहीं। यदि शक्तियां निजी हाथों में दी जाएंगी, तो संविधान का संतुलन बिगड़ जाएगा। यह मामला अब हरियाणा में गोरक्षक समूहों की भूमिका और उनके कानूनी अधिकारों की सीमा तय करेगा।

वक्फ बोर्ड पर सरकार को फटकार

तीसरे महत्वपूर्ण फैसले में हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को तीन माह के भीतर वक्फ बोर्ड का पुनर्गठन करने का आदेश दिया। यह वही मामला है जो मार्च 2020 से लंबित था और लगातार स्थगन आदेशों के जाल में फंसा हुआ था। एडवोकेट मोहम्मद अरशद की याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि राज्य सरकार ने बार-बार अधिसूचनाएं जारी कर कानूनी प्रक्रिया से बचने की कोशिश की।

अदालत ने सख्त लहजे में कहा कि सरकार को वक्फ अधिनियम के अनुरूप तीन माह में बोर्ड का गठन करना ही होगा। धार्मिक संपत्तियों का प्रबंधन कानून के बाहर नहीं चल सकता। इस आदेश के साथ ही पांच साल पुरानी कानूनी रस्साकशी खत्म हो गई और राज्य में वक्फ संपत्तियों के पारदर्शी संचालन की राह साफ हो गई।

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