सुरेंद्र मेहता/ हप्र
यमुनानगर, 17 अक्तूबर
चंडीगढ़ से यमुनानगर वाया नारायणगढ़-साढोरा रेललाइन की चार दशक पुरानी मांग अभी तक सिरे नहीं चढ़ी है। इस रेल लाइन के बनने से शिवालिक इलाके का पिछड़ापन दूर होता और यह विकास की राह पकड़ता। 2009 में यूपीए-2 की सरकार में इस ट्रैक की योजना पर काम शुरू हुआ था। इस पर 876 करोड़ रुपए खर्च होने थे। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रयासों से वर्ष 2013-14 में यमुनानगर-चंडीगढ़ रेल लाइन का प्रोजेक्ट फिर से शुरू हुआ था। सीमित फंड के चलते केंद्र सरकार ने प्रोजेक्ट को सिरे चढ़ाने के लिए प्रदेश सरकार पर लागत का 50 फीसदी भार डालते हुए लाइन बिछाने के लिए मुफ्त में जमीन भी मांगी थी, लेकिन आठ साल के लंबे अंतराल के बावजूद अभी तक प्रोजेक्ट कागजों से बाहर नहीं निकल पाया है। हर बार लोकसभा चुनाव से पहले सभी पार्टियां शिवालिक क्षेत्र में रेल चलाने की बात करती रही हैं।
सरकार यूपीए की रही हो या एनडीए की हर बार शिवालिक क्षेत्र के लोगों को उम्मीद होती है कि शायद इस बार उन्हें रेल लाइन मिल जाए। 91 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन के निर्माण पर अब 1000-1500 करोड़ से अधिक का खर्च आने का अनुमान है।
चंडीगढ़ से यमुनानगर वाया नारायणगढ़-साढोरा रेल लाइन के सर्वे के लिए 2017 के बजट में 25 करोड़ रुपए मंजूर किए गए थे। सर्वे पूरा भी हो चुका है, लेकिन रेल लाइन बिछाने की दिशा में आज तक कुछ नहीं किया गया है। इस ट्रैक के धरातल पर आने से यमुनानगर, अम्बाला, पंचकूला और चंडीगढ़ के लोगों को भी फायदा होगा। हरियाणा रेल इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड के अधिकारियों के अनुसार फिलहाल इस प्रोजेक्ट की फिजिबिलिटी स्टडी पूरी कर ली गई है। नारायणगढ़ जिला बनाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष सदीक चौहान का कहना है कि शिवालिक क्षेत्र में ट्रेन आने से क्षेत्र के विकास में काफी मदद मिलेगी।
यहां फंसा है पेच
हरियाणा सरकार यमुनानगर-चंडीगढ़ रेल लाइन प्रोजेक्ट के लिए मुफ्त जमीन देने और कुल निर्माण लागत का आधा खर्च उठाने को तैयार नहीं है। केंद्र सरकार ने ये शर्तें लगाते हुए हां या ना में जवाब मांगा था, जो अभी तक नहीं दिया है। सरकार असमंजस की स्थिति में है कि प्रोजेक्ट को लेकर हामी भरे या नहीं, चूंकि रेल लाइन के लिए किसानों की जमीन लेना सबसे बड़ी चुनौती है। इसकी राशि भी सरकार को ही किसानों को देनी है। इसके बाद लाइन निर्माण पर आने वाली कुल लागत का पचास फीसदी हिस्सा भी देना होगा। इसे देखते हुए सरकार ने फिलहाल इस प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाला हुआ है।
ये होगा फायदा
इस रेल लाइन प्रोजेक्ट से यमुनानगर, जगाधरी, बिलासपुर के उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। साढोरा, नारायणगढ़, रायपुरानी, बरवाला, रामगढ़ और पंचकूला के विकास में भी तेजी आएगी। नारायणगढ़ के साथ लगता कालाअंब औद्योगिक क्षेत्र है और यहां 500 से भी ज्यादा छोटी-बड़ी औद्योगिक इकाइयां हैं। ऐसे में रेल लाइन मिलने से फायदा होगा। इसके अलावा रात के समय शिवालिक क्षेत्र में परिवहन का साधन कम हैं। ऐसे में रेल मिलने से इन्हें आने-जाने में भी सुविधा होगी। इसके अलावा युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
2020 के आम बजट में भी किया था शामिल
फरवरी 2020 में आम बजट पेश करते समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रेलवे के प्रोजेक्टों को विस्तार से तो नहीं बताया था, लेकिन रेलवे ने पिंक बुक में शामिल हुए 2020-21 के मंजूर हुए प्रोजेक्टों की डिटेल जारी की थी। पिंक बुक में चंडीगढ़-बद्दी, यमुनानगर-चंडीगढ़, राजपुरा-मोहाली, ऊना-हमीरपुर नई रेल लाइनें शामिल की गई हैं। चंडीगढ़ से यमुनानगर रेल लाइन वाया नारायणगढ़ बिछाने का प्रावधान था, जो पिछले 4 दशकों से अटका हुआ था।
सरकारें हलके का विकास नहीं चाहती
साढोरा के पूर्व विधायक राजपाल भूखड़ी का कहना है कि उस दौरान हरियाणा के कई इलाकों में नई रेल लाइनें बिछी। जिसके लिए हरियाणा सरकार ने आधी राशि खर्च की, लेकिन जब चंडीगढ़ यमुनानगर रेल लाइन की बात आई तो हरियाणा सरकार ने अपने हाथ खींच लिए। इसी के चलते इसका निर्माण अभी तक अधर में लटका रहा। हरियाणा व केंद्र में दूसरी बार जहां भाजपा सत्ता में है वहीं इससे पहले दो बार हरियाणा व केंद्र में कांग्रेस की सरकार रही। भूखड़ी का आरोप है कि दोनों ही बार दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकार होने के बावजूद यह महत्वपूर्ण परियोजना सिरे नहीं चढ़ी। इसका यही कारण समझ आता है कि इस इलाके के विकास के लिए सरकारें गंभीर नहीं हैं।
अपना वादा निभाएं भाजपा सांसद
नारायणगढ़ की विधायक शैली चौधरी ने कहा कि क्षेत्र में रेल लाइन की पुरानी और जायज मांग है। भाजपा सांसद अपना वादा पूरा करें। इस प्रोजेक्ट के पूरा न होने से क्षेत्र के विकास पर प्रभाव पड़ रहा है। रेल लाइन आने से क्षेत्र के साथ लगते उद्योगों को फायदा होगा और नारायणगढ़ हलके में उद्योग स्थापित होंगे, जोकि विकास की धुरी साबित होगा। सांसद रतनलाल कटारिया ने इस मांग को ड्रीम प्रोजेक्ट बताते हुए चुनाव में वादा किया था कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनते ही नारायणगढ़ को रेलवे लाइन मिलेगी। रेलवे लाइन मंजूर होने का दावा कर सांसद ने तो लड्डू तक बंटवा दिए थे, लेकिन आज भी लोगों को रेल लाइन का इंतजार है। रेल लाइन मिलने से पूरे शिवालिक क्षेत्र को फायदा होगा।
अब तो उम्मीद टूटने लगी
शिवालिक इलाके के रहने वाले लोगों का कहना है कि वे 40 वर्षों से इस रेल लाइन की बात सुनते आ रहे हैं, लेकिन रेल लाइन नहीं बिछी। वे रेल लाइन देखने के इंतजार में युवा से बूढ़े हो चले हैं। अब अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव में हैं, लेकिन अभी भी रेल लाइन बिछाने की कोई आस नजर नहीं आ रही। ठस्का गांव के रामफल का कहना है कि हमें उम्मीद थी कि हम अपने इलाके में ट्रेन चलता देखें, लेकिन ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है। हर बार हम बजट सत्र में टकटकी लगाए रहते हैं कि इस रेल लाइन के लिए पैसा मंजूर होगा, लेकिन रेल लाइन का जिक्र तक नहीं होता। कुमारी सैलजा अम्बाला से दो बार सांसद और केंद्र में मंत्री भी रहीं। इस दौरान प्रदेश में मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा थे। दोनों के बीच इस रेल ट्रैक को लेकर सहमति नहीं बन पाई, जिस कारण शिवालिक इलाके में रेल ट्रैक की योजना सिरे नहीं चढ़ पाई।
रेल मंत्री के सामने उठाऊंगा मुद्दा : कटारिया
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं अम्बाला के सांसद रतनलाल कटारिया का कहना है कि उन्होंने वर्ष-2017 के कार्यकाल में 25 करोड़ रुपए की राशि मंजूर कराई थी। इसके अलावा वे यह मुद्दा कई बार लोकसभा में उठा चुके हैं और जल्द ही इस मांग को लेकर रेल मंत्री से मुलाकात करेंगे। मुख्यमंत्री मनोहर लाल से वे मिल चुके हैं और इस परियोजना को जल्द पूरा करने का आग्रह कर चुके हैं। मुख्यमंत्री ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि इस पूर्व परियोजना को प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया जाएगा। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर शिवालिक क्षेत्र के लोगों को काफी फायदा हाेगा और यहां काफी विकास होगा।
प्रोजेक्ट सिरे चढ़ने से आएगी खुशहाली : सैलजा
अम्बाला की पूर्व सांसद एवं कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा का कहना है कि यह रेल लाइन इलाके के लिए लाइफ लाइन है। इसके बनने से शिवालिक इलाके का पिछड़ापन दूर होगा। उन्होंने अपने कार्यकाल में रेल बजट में इसका प्रावधान करवाया था। हालांकि रिपोर्ट फिजिबल नहीं थी, लेकिन उसके बाद फिर से रिपोर्ट करवाई गई। लगातार देरी की वजह से यह प्रोजेक्ट महंगा होता जा रहा है। अगर यह प्रोजेक्ट चार दशक पहले पूरा हुआ होता तो इस पर निर्माण लागत बहुत कम आती और साढोरा, नारायणगढ़, बरवाला, रायपुर रानी सहित विभिन्न इलाकों में खुशहाली आ चुकी होती। उन्होंने सरकार से अपील की कि इस प्रोजेक्ट को शीघ्र पूरा किया जाए।