रोहतक (हप्र) : भारतीय किसान यूनियन (किसान सरकार) के राष्ट्रीय महासचिव वीरेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री मोदी को एक खुला पत्र लिखकर अवगत कराया कि उनकी मांग सिर्फ़ 3 काले कानूनों को रद्द कराने की नहीं है। स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट पर आधारित (सी2+50%) लाभकारी समर्थन मूल्य फसलों पर सभी किसानों का क़ानूनी हक़ देना, एमएसपी की कानूनी गारंटी और शहीद किसान परिवारों के पुनर्वास की पक्की व्यवस्था भी प्रमुख मांग है। यहां जारी बयान में किसान नेता ने कहा कि एसकेएम ने कहा कि किसानों ने आशंका जतायी है कि अगर लाभकारी समर्थन मूल्य पर कोई कमेटी बैठी और समय पर फ़ैसला नहीं हुआ तो किसान का भारी नुक़सान होना तय है। क़र्ज़े में डूबा किसान किस तरह अपना और अपने परिवार का लालन-पालन करेगा, इस के बारे में सरकार अभी चुप है। उन्होंने कहा कि आंदोलन न सिर्फ़ तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए किया गया है बल्कि उनको अपनी मेहनत के दाम की क़ानूनी गारंटी के मिलने के विषय में भी है। दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश उत्तराखण्ड और अनेक राज्यों में हज़ारों किसानों को इस आंदोलन के दौरान सैकड़ों मुकदमों में फंसाया गया है। एसकेएम इन केसों को तत्काल वापस लेने की मांग भी शामिल है।
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।