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बैंयापुर गांव में वोटिंग कराने के मामले को लेकर अदालत जाने की तैयारी

कांग्रेस प्रत्याशी ने उठाए सवाल, नगर निगम से बाहर के गांव में कैसे करा सकते हैं वोटिंग। कमल दिवान ने सरकार की मंशा का उठाए सवाल।
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सोनीपत में प्रेस वार्ता करते कांग्रेस के मेयर प्रत्याशी कमल दिवान। साथ हैं अधिवक्ता मुकेश पन्नालाल। -हप्र
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सोनीपत, 5 मार्च (हप्र) नगर निगम मेयर उपचुनाव में बैंयापुर गांव में वोटिंग को लेकर हुआ विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को शिकायत करने के बाद भी कोई ठोस जवाब न मिलने पर कांग्रेस प्रत्याशी कमल दिवान इस मुद्दे पर अब अदालत का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में जुट गए हैं। कमल दिवान ने बुधवार को दिवान फार्म हाउस में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि कैसे एक गांव में वोटिंग करवाई गई, जबकि वह गांव नगर निगम में शामिल ही नहीं है। इस बारे में राज्य चुनाव आयोग के इस बारे में मंगलवार को शिकायत दी थी। इसके अलावा बुधवार को कुछ अतिरिक्त तथ्य भी भेजे गए हैं। मगर इस बारे में अभी तक कोई जवाब उन्हें नहीं मिला है। चुनाव आयोग से जवाब आने के बाद अगर वे संतुष्ट नहीं हुए तो इस मामले को अदालत में उठाया जाएगा।

कांग्रेस प्रत्याशी कमल दिवान ने बताया कि बैंयापुर गांव नगर निगम सीमा के बाहर आता है। वर्ष 2022 में गांव में पंचायत चुनाव के बाद यहां एक निर्वाचित सरपंच कार्यरत है। वर्ष 2015 में वोटिंग नोटिफिकेशन संख्या 18/82/2015-3सी1 के तहत बैंयापुर को नगर निगम में शामिल किया गया था, लेकिन 26 जुलाई 2018 को नोटिफिकेशन संख्या 18/156/2018-3सी 1 के माध्यम से इसे नगर निगम की सीमा से हटा दिया गया था। गांव में पहले से ही एक पंचायत काम कर रही है फिर भी यहां नगर निगम चुनाव के लिए वोटिंग करवाई गई जो नियमों के विरुद्ध है। उन्होंने इसे सत्ता दल की साजिश बताते हुए प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत का आरोप लगाया और कहा कि ये सब उप चुनाव के नतीजों को प्रभावित करने के लिए किया गया।

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कमल दिवान ने चुनाव आयोग से मांग की है कि बैंयापुर गांव के बूथ नंबर 228, 229, 230, 231 और 232 पर डाले गए वोटों की गिनती न की जाए, ताकि चुनावी प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी बनी रहे। इस मामले की जांच करवाई जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।

कांग्रेस लीगल संयोजक अधिवक्ता मुकेश पन्नालाल ने कहा कि चुनाव आयोग की भूमिका पर पहले ही आरोप लगते रहे हैं। इस मामले में तथ्य उपलब्ध कराए जाने के बाद चुनाव आयोग या प्रशासन को आगे आकर मामले की तस्वीर साफ करनी चाहिए थी। मगर चुनाव आयोग और प्रशासन ने चुप्पी साध रखी है। यह चुनावी प्रक्रिया व लोकतंत्र के लिए घातक है।

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