ललित शर्मा/हप्र
कैथल, 24 मार्च
शत-प्रतिशत हाजिरी के एक माह बाद भी प्रदेशभर के सरकारी स्कूलों की 2 साल से बंद पड़ी रसोई में जायके की खुशबू नहीं महकी। कोरोना लहर खत्म होने के बाद शिक्षा विभाग व सरकार ने स्कूलों को शत-प्रतिशत बच्चों की हाजिरी के साथ स्कूल खोलने के निर्देश तो जारी कर दिए लेकिन राजकीय स्कूलों में विद्यार्थियों को गरम पौष्टिक भोजन देने के निर्देश नहीं दिए। राज्य भर में स्कूल खुलने के एक माह बाद भी बच्चों को सूखा राशन दिया जा रहा है। महामारी के चलते करीब 2 साल पूरे प्रदेश के स्कूल बंद रहे। मिड डे मील का चूल्हा ठंडा होने के कारण सरकारी स्कूल खुलने के बाद भी नौनिहाल बस्ते में टिफिन लाने को मजबूर हैं। कोरोना के दौरान सरकार ने स्कूलों में से मिड डे मील को बंद कर दिया था। इसके बाद सरकार ने आटा, चावल, दूध यानी सूखा राशन बंटवाया। इसके साथ ही कुकिंग कोस्ट के पैसे बच्चों को उनके खातों में दिए। 2 वर्ष से स्कूलों की रसोई का जायका भूले छात्रों का कहना है कि अब उन्हें पैसे नहीं बल्कि स्कूल की रसोई में पका हुआ जायकेदार भोजन मिले।

936570 बच्चों को मिलता है राशन
आंकड़ों की बात करें कि प्रदेश के 8650 प्राइमरी स्कूलों के 936570 बच्चे व 2423 मिडल स्कूलों के 546133 बच्चों को स्कूल में मिड डे मील नहीं मिल रहा है। सरकार ने बच्चों को स्कूलों में दिए जाने वाले दोपहर के भोजन की व्यवस्था शुरू की और पौष्टिक आहार देने के साथ उनके जायके का भी ख्याल रखा।
क्यों शुरू की गई थी मिड-डे-मील योजना
राज्य सरकार ने सरकारी स्कूलों में मिड-डे-मील देने की व्यस्था इसलिए शुरू की थी क्योंकि प्रदेश के अधिकतर बच्चे अनीमिक थे। बच्चों में खून की कमी और अन्य रोग मिले थे। इसके पीछे कारण था कि बच्चों को पौष्टिक आहार नहीं मिल रहा था। सरकार ने बच्चों में बीमारी की रोकथाम के लिए निर्णय लिया कि स्कूलों में मिड-डे-मील व्यवस्था शुरू की जाए ताकि बच्चों की अनीमिक बीमारी को रोका जा सके। यह योजना 15 अगस्त, 2004 को प्रधानमंत्री नरसिम्हा रॉव से हरियाणा के जिला झज्जर के एक गांव से शुरू की थी।
क्या कहता है अध्यापक संघ
हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के राज्य प्रेस सचिव सतबीर गोयत से बात की गई तो उन्होंने कहा कि कक्षा पहली से 8वीं तक के विद्यार्थियों को मिड डे मील की कुकिंग कोस्ट और राशन देकर खानापूर्ति न की जाए। पहली से 12वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को जरूरत के हिसाब से पका पकाया भोजन ही दिया जाए। इसके लिए पूरी तरह से अलग से व्यवस्था की जाए। अध्यापक सिर्फ हाजिरी देगा। मिड डे मील की व्यवस्था के लिए अलग से नियमित कर्मचारी की भर्ती की जाए। जैसा कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना व केरल जैसे बहुत से प्रदेशों में मिड डे मील के संचालन में देखा जा सकता है। सतबीर गोयत ने कहा कि पहले तो कोरोना के कारण स्कूल ही बंद पड़े थे तो भोजन की व्यवस्था करने में परेशानी थी लेकिन अब स्कूल खुले एक महीने से ज्यादा हो गया है तो बच्चों को पका हुआ पौष्टिक भोजन मिलना चाहिए।
मध्याह्न भोजन योजना की लिस्ट
सोमवार : पुलाव, मीठे चावल, पौष्टिक खिचड़ी
मंगलवार : खीर, मीठा दलिया, मीठा पूड़ा
बुधवार : राजमा चावल, हलवा, काला चना, सोया सब्जी, पूरी
बृहस्पतिवार : रोटी, दाल, घीया, मिस्सी रोट, सब्जी, मीठा पूड़ा
शुक्रवार : कढ़ी पकौड़ा, चावल, मीठा पूड़ा, मीठे चावल
शनिवार : पौष्टिक दालिया, पौष्टिक खिचड़ी, मिस्सी रोटी, सब्जी