दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 24 सितंबर
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे हटाने को लेकर दिए गए निर्देशों की वजह से गुरुग्राम का एक बड़ा मामला खुलकर सामने आया है। यहां सिंचाई विभाग की जमीन पर एक प्राइवेट बिल्डर को रिहायशी कालोनी बनाने के लिए लाइसेंस दे दिया गया। हाईकोर्ट ने इस पूरे केस में तल्ख टिप्पणी करते हुए टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग, राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग और सिंचाई विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं।
हाईकोर्ट ने मामले में चार बिंदुओं पर हरियाणा के मुख्य सचिव को दो महीने में जांच करवा कर रिपोर्ट जमा करवाने के आदेश दिए हैं। इतना ही नहीं, सभी सरकारी विभागों की ऐसी जमीन का रिकार्ड भी बनाने के निर्देश दिए हैं। उन्हें कहा गया है कि वे संबंधित विभागों से अधिगृहीत की गई जमीनों की रिपोर्ट मंगवाएं। इस तरह की सभी जमीनों का रेवेन्यू रिकार्ड तलब किया जाए। यह रिकार्ड राज्य के सभी रजिस्ट्रार और सब-रजिस्ट्रार को उपलब्ध करवाया जाए, जिससे भविष्य में इस तरह से सरकारी जमीन की रजिस्ट्री न हो सके। मुख्य सचिव को मामले की इन-हाउस इन्कवायरी करवाने को कहा है। साथ ही, यह पता लगाने को कहा है कि सरकारी कब्जे वाली जमीन की रजिस्ट्री प्राइवेट कंपनी/व्यक्ति के नाम पर कैसे हो गई। इससे जुड़े अधिकारियों व कर्मचारियों की भूमिका की भी जांच की जाए।
यह मामला पूर्व की कांग्रेस सरकार के समय का है। जिस बिल्डर ने सिंचाई विभाग की जमीन पर लाइसेंस लिया है, वह एनसीआर एरिया का नामी बिल्डर है। हैरानी वाली बात यह है कि जिस सरकारी जमीन की बिल्डर के नाम पर रजिस्ट्री हुई, उसका इंतकाल भी सिंचाई विभाग के नाम पर ही है।
हाईकोर्ट ने 2022 की सीडब्ल्यूडीपी-14077 मामले की सुनवाई के दौरान 14 मार्च, 2023 को सरकार को आदेश दिए कि ऐसी सभी जमीनों को चिह्नित किया जाए, जिनका अधिग्रहण किया गया था और अब उन पर प्राइवेट लोगों ने अवैध रूप से कब्जा (अतिक्रमण) किया हुआ है। साथ ही, ऐसी सभी सरकारी संपत्तियों से अतिक्रमण हटवाने को भी कहा था। हाईकोर्ट के आदेशों के बाद विभिन्न विभागों ने कब्जाई गई जमीनों से अतिक्रमण हटाने के लिए कब्जाइयों को नोटिस जारी किए। बताते हैं कि इसी कड़ी में गुरुग्राम के बिल्डर को भी सिंचाई विभाग की ओर से नोटिस जारी किया गया। बिल्डर ने गुरुग्राम की कोर्ट में इस नोटिस को यह कहते हुए चुनौती दी कि यह उसकी संपत्ति है और इसकी रजिस्ट्री भी उसके पास है और लाइसेंस भी। शुरू में लोवर कोर्ट ने इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश जारी कर दिए। बाद में जब सिंचाई विभाग की ओर से इंतकाल समेत जमीन से जुड़े सभी दस्तावेज कोर्ट में जमा करवाए तो गुरुग्राम की कोर्ट ने अपने पुराने आदेशों को वापस ले लिया।
लोवर कोर्ट में राहत नहीं मिलने के बाद बिल्डर ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की शरण ली। कोर्ट ने पूरे मामले में तथ्यों की जांच और सुनवाई के बाद यह टिप्पणी की कि ‘अगर पुराने केस में अतिक्रमण हटाने के आदेश नहीं दिए जाते तो गुरुग्राम का यह मामला पकड़ में ही नहीं आता।’ इतना ही नहीं, हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने इस मामले में बिल्डर पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
मिलीभगत से नहीं कर सकते इनकार : हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी भी की है कि यह पूरा काम सरकारी विभाग और अधिकारियों-कर्मचारियों की मिलीभगत के बिना नहीं हो सकता। इतना ही नहीं, डिवीजन बेंच ने जमीन की रजिस्ट्री और लाइसेंस से जुड़े अधिकारियों व कर्मचारियों की भूमिका की जांच करने और उनकी जवाबदेही तय करने को भी कहा है।
दर्ज हो सकता केस : डिवीजन बेंच ने दो महीने में पूरी जांच रिपोर्ट तलब करते हुए कहा है कि जांच के आधार पर अगर क्रिमिनल केस बनता है तो संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करवाया जाए।
37 साल बाद हुई रजिस्ट्री
हरियाणा सरकार ने सिंचाई विभाग के लिए गुरुग्राम के बादशाहपुर गांव की 2 एकड़ से अधिक जमीन ड्रेन के लिए अधिगृहीत की थी। जमीन अधिग्रहण के लिए पहली मार्च, 1971 को सेक्शन-4 और 6 के
नोटिस दिए गए। 26 मार्च, 1971 को अवार्ड सुनाया गया। अवार्ड संख्या-49-जी के तहत सिंचाई विभाग ने उसी दिन जमीन का कब्जा ले लिया था। 37 साल बाद यानी 2008 में यह जमीन प्राइवेट बिल्डर द्वारा रजिस्ट्री करवा ली गई।
2010 में लिया लाइसेंस
प्राइवेट बिल्डर ने इस जमीन पर रिहायशी कालोनी बनाने के लिए 2010 में लाइसेंस लिया। लाइसेंस नंबर-18 के तहत कंपनी को इस सरकारी जमीन पर कालोनी बसाने की अनुमति मिल गई। हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान बिल्डर की ओर से दलील दी गई कि जमीन के अधिग्रहण की उन्हें सूचना नहीं थी। इसे सिरे से खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा, ‘जब अधिग्रहण हुआ तो उसका गजट नोटिफिकेशन हुआ था। यह इसलिए होता है कि सभी को पता लग सके।’