Haryana: सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन ने किया सर्वेक्षण, 90 प्रतिशत हरियाणवी बोलते हैं बेटी को बेटा
चंडीगढ़, 3 अप्रैल (ट्रिन्यू) Haryana News: सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन द्वारा हाल ही में शुरू किए गए "बेटी हूं, बेटी बोलो" राष्ट्रव्यापी अभियान के तहत किए गए सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि हरियाणा सहित कई राज्यों में लोग...
चंडीगढ़, 3 अप्रैल (ट्रिन्यू)
Haryana News: सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन द्वारा हाल ही में शुरू किए गए "बेटी हूं, बेटी बोलो" राष्ट्रव्यापी अभियान के तहत किए गए सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि हरियाणा सहित कई राज्यों में लोग बेटियों को "बेटा" कहकर संबोधित करना अधिक पसंद करते हैं।
इस 7 साल के बेसलाइन सर्वे में 20,000 से अधिक माता-पिता, शिक्षकों, प्रोफेसरों और अभिभावकों की राय ली गई। अध्ययन में पाया गया कि करीब 90% लोग अपनी बेटियों को बेटा कहकर बुलाते हैं। यह प्रवृत्ति न केवल परिवारों में बल्कि स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में भी देखने को मिली, जहां शिक्षकों द्वारा लड़कियों को "बेटा" कहा जाता है।
सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन के संस्थापक व सीईओ प्रो. सुनील जागलान ने इस मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शब्दों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने बताया कि यदि घर में बेटी और बेटा दोनों को "बेटा" कहकर संबोधित किया जाता है, तो इससे बेटे को अधिक महत्वपूर्ण मानने की मानसिकता बनती है, जिससे लैंगिक असमानता को बढ़ावा मिलता है और लड़कियों की अपनी पहचान कमजोर होती है।
समाज में बदलाव लाने के लिए जागरूकता अभियान
लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और "बेटा-बेटी" की मानसिकता को बदलने के लिए 29 मार्च 2025 को गांव बीबीपुर (हरियाणा) से "बेटी हूं, बेटी बोलो" राष्ट्रीय अभियान की शुरुआत की गई। इस कार्यक्रम में हजारों लोगों ने भाग लिया और माना कि बेटियों को बेटा कहने की उनकी आदत बन चुकी है।
बता दें, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक में प्रोफेसर और पूर्व सरपंच सुनील जागलान अब तक 76 महिला सशक्तिकरण अभियानों का नेतृत्व कर चुके हैं। उन्होंने 2012 में "बेटी बचाओ अभियान" की शुरुआत की थी और "सेल्फी विद डॉटर" अभियान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 बार "मन की बात" में सराहा था।
बेटी को बेटी कहें, बेटा नहीं
प्रो. सुनील जागलान ने इस आंदोलन का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा, "बेटी का सम्मान उसके अस्तित्व को स्वीकारने में है, उसे बेटा कहने में नहीं।" इस अभियान का लक्ष्य समाज में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना और बेटियों को उनकी खुद की पहचान दिलाना है।

