दिनेश भारद्वाज/ ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 27 सितंबर
क्राइम की दुनिया में अधिकांश अपराधियाें के दूसरे नाम भी होते हैं। बहुत कम ऐसे गैंगस्टर व बदमाश होंगे, जिन्हें उनके ‘उर्फ’ वाले नाम से न पुकारा जाता हो। लेकिन, फरीदाबाद की जेल में किए गये एक सफल ट्रायल के बाद हरियाणा की जेलों में कैदियों व बंदियों को अब उनके असली नाम से ही पुकारने की शुरुआत की गयी है। जेल प्रशासन की इस पहल से कैदियाें के व्यवहार में बड़ा सुधार देखने को मिल रहा है।
हरियाणा की जेलों में 26 हजार के लगभग कैदी और बंदी हैं। गुरुग्राम, झज्जर, फरीदाबाद, रोहतक व सोनीपत की जेलों में सबसे अधिक गैंगस्टर और कुख्यात बदमाश हैं। जेलों पर की गई एक स्टडी में यह बात सामने आई कि कैदियों को उनके दूसरे यानी ‘निक नेम’ से पुकारने पर वह काफी असहज होते थे और ठीक से जवाब भी नहीं देते थे। कुछ जेल अधीक्षकों ने जब ऐसे लोगों को उनके सही नाम से पुकारना शुरू किया तो कुख्यात बदमाशों के व्यवहार व कार्यशैली में बड़ा बदलाव देखने को मिला। बातचीत में यह बात भी सामने आई कि ‘निक नेम’ से पुकारने पर ये कैदी अपमानित महसूस करते हैं। स्टडी में यह भी पता लगा कि कालू, लीलू, लंगड़ा, मटरू, रूंड्ढा जैसे नाम के कई बदमाश हैं। कालू-लीलू बेहद कॉमन नाम हैं। जेल अथॉरिटी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कैदियों व बंदियों में आ रहे बदलाव के बाद कई जेलों में आपसी झगड़े भी कम हुए हैं। हालांकि, कई गैंग एक ही जेल में होने की वजह से उनमें टकराव होता रहता है।
जेल अथॉरिटी ने कैदियों/ बंदियों की मानसिकता बदलने के लिए उनकी काउंसलिंग भी शुरू करवाई है। उनके टैलेंट को उभारा जा रहा है, ताकि जेलों से बाहर जाने के बाद वे अपराध की दुनिया छोड़कर समाज की मुख्यधारा में जुड़ सकें। उनकी रुचि के अनुसार, उन्हें ढाला जा रहा है। फरीदाबाद, गुरुग्राम, झज्जर, सुनारियां (रोहतक), जींद, करनाल, अंबाला व हिसार सहित राज्य की अधिकांश जेलों में विभिन्न सामाजिक एवं धार्मिक संगठन भी कैदियों की काउंसलिंग के लिए कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।
टैलेंट भी है सलाखों के पीछे : सलाखों के पीछे कई तरह का टैलेंट भी छुपा हुआ है। जेलों में ऐसे कैदी/बंदी हैं, जो अलग-अलग क्षेत्रों में निपुण हैं। कुछ पेंटिंग के शौकीन हैं तो किसी को गाने-बजाने का शौक है। जेलों में ऐसे कैदियों/ बंदियों के टैलेंट को उभारने के लिए उनकी ट्रेनिंग भी करवाई जा रही है। कई एनजीओ इस काम में जेल अथॉरिटी का सहयोग कर रहे हैं।
” जेलों में कैदियों/ बंदियों को लेकर हमने एक ट्रायल किया। हमने महसूस किया है कि निक नेम से पुकारने पर वे असहज होते हैं और उनका व्यवहार सही नहीं होता। जब उन्हें असली नाम से पुकारा जाता है तो उनका व्यवहार पूरी तरह बदला होता है। वे सम्मान महसूस करते हैं। कई कैदियों का व्यवहार पूरी तरह से बदला है। जो पहले बोलने भर पर ही झगड़े पर उतारू होते थे, वे अब बिना टोका-टोकी हर बात मानते हैं।- ” – जयकिशन छिल्लर, फरीदाबाद जेल अधीक्षक