अजय मल्होत्रा/हप्र
भिवानी, 27 अप्रैल
सरकार के ‘हर घर नल से जल’ मिशन के विपरीत उमरावत गांव के लिए तो ‘हर घर नल, लेकिन नहीं है जल’ का नारा सही साबित हो रहा है। भिवानी शहर से सटे इस गांव के लगभग सभी बाशिंदे एक दशक से पानी खरीद कर पीने को मजबूर हैं। नहाने व रोजमर्रा के लिए भी पानी खरीदना पड़ता है। करीब 900 घरों और 5 हजार आबादी वाले इस गांव की प्यास की कहानी कोई नयी नहीं है, पिछले लगभग दो दशक से प्रत्येक चुनाव में लंबे-चौड़े वादे ग्रामीणों से किये गये, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हुआ।
यहां भू-जल खारा है और नहरी पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। जन स्वास्थ्य विभाग ने गांव में एक टैंक का वाटर वर्क्स तो जरूर बनाया, लेकिन यह न के बराबर है। इसमें पानी या तो आता ही नहीं और यदि आता है तो इसकी क्षमता इतनी कम है कि ग्रामीणों को 10 से 15 दिन के बाद ही एक बार पानी मिल पाता है। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि पानी के टैंक में 35 दिन बाद थोड़ा-बहुत पानी आता है, जो केवल दो-तीन दिन ही चल पाता है। जो लोग पानी खरीदने में सक्षम नहीं हैं, वे मजबूरन गांव के दो कुओं का पानी पीते हैं, जो हल्का खारा है। ग्रामीणों ने अपने घरों में भूमिगत छोटे टैंक बना रखे हैं, जिनमें 600 से 700 रुपये का टैंकर हर 10 से 15 दिन में डलवाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वे सभी राजनीतिक पार्टियों व नेताओं के समक्ष समय-समय पर गुहार लगा चुके हैं, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हुआ। वह मुख्यमंत्री दरबार से लेकर सीएम विंडों तक गुहार लगा चुके हैं। मुख्यमंत्री के निर्देश के बावजूद स्थिति जस की तस है।
पशुओं के लिए भी पानी की भारी किल्लत है। गत दिनों ग्रामीणों ने चंदा एकत्र करके कुछ टैंकर पानी जोहड़ में गिरवाया है।
हर महीने 1500 तक खर्च : ग्रामीण संदीप के अनुसार यहां के लोग साथ लगते गांव सांगा में लगे एक आरओ प्लांट से पीने का पानी खरीदने को मजबूर हैं। पौ फटते ही गांव में पानी के कैम्परों की गाड़ियां पहुंच जाती हैं। गांव के लगभग सभी घर एक से दो कैम्पर प्रतिदिन खरीदते हैं। नहाने व रोजमर्रा की जरूरतों के लिए हर घर को महीने में एक से दो टैंकर भी खरीदने पड़ते हैं। पानी खरीदने का खर्च प्रतिघर 900 से 1500 रुपये आता है।
तकनीकी कारणों से अटका नहरी पानी : गांव के युवा सरपंच दिनेश शर्मा का कहना है कि मुख्यमंत्री से अनुरोध के बाद गांव सांगा से उमरावत तक नहरी पानी लाने की योजना मंजूर हुई है। लेकिन, किन्हीं तकनीकी कारणों से यह योजना शुरू नहीं हो पाई।
‘प्रोजेक्ट भेजा है’
जन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी बृजेश जावला का कहना है कि गांव में हर घर नल, हर घर जल योजना के तहत सरकार के पास प्रोजेक्ट बनाकर भेजा गया है। प्रोजेक्ट जैसे ही शुरू होगा, समस्या का निदान हो जाएगा।
चर्म रोगों ने घेरा, बढ़ रहा कैंसर भी
ग्रामीण भागवत के अनुसार खारा पानी व टैंकरों का पुराना पानी ग्रामीणों के लिए बीमारियों का कारण भी बन गया है। गांव में खाज, खुजली की बीमारी तो आम हो गई है। इसके साथ ही गले का कैंसर व अन्य बीमारियां भी जोर पकड़ने लगी हैं। पिछले दिनों गांव में लगभग एक दर्जन लोगों के कैंसर से पीड़ित होने के बारे में पता चला है। बुजुर्ग निर्मला देवी ने कहा कि पिछले चार दशक से पानी की समस्या है। पिछले दो दशक से कुओं के पानी का भी स्वाद बदल गया है और इसे पीना अब मुश्किल हो गया है। खत्म हो रही खेती : किसान प्रकाश का कहना है कि नहरी पानी की कमी के चलते गांव में खेती पूरी तरह बरसात पर निर्भर है। गांव की सैकड़ों एकड़ जमीन पर सरसों व गवार की फसलें ही कभी-कभार उगती हैं। अगर मौसम अनुकूल रहता है तो थोड़ी-बहुत फसल उग जाती है, अन्यथा खाली हाथ रह जाते हैं। पानी न होने से जमीन धीरे-धीरे बंजर हो रही है। पानी 500 फुट तक नीचे है और वह भी खारा।