भिवानी, 4 जनवरी (हप्र)
राष्ट्रीय जन उद्योग व्यापार संगठन के प्रदेश अध्यक्ष गुलशन डंग ने कितलाना टोल प्लाजा पर संयुक्त किसान मोर्चा के अनिश्चितकालीन धरने को समर्थन दिया। उन्हाेंने कहा कि खेती और व्यापार एक-दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने कहा कि किसानों से व्यापार और बाजार की रौनक है। अगर किसान खुशहाल होगा तो ही व्यवसाय फलेगा, लेकिन केंद्र सरकार ने दोनों पर चोट मारी है। इससे बचने के लिए आज किसान और व्यापारी को एक-दूसरे का साथ देना जरूरी है। भिवानी और दादरी जिले के व्यापारियों के साथ पहुंचे गुलशन डंग ने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी ने कामधंधों को बर्बाद कर दिया और अब किसानों को बड़े घरानों का दास बनाने के लिए कृषि कानून लाए हैं। इन कानूनों से किसानों और व्यापारी दोनों पर मार पड़ेगी।
पूर्व मुख्य संसदीय सचिव रणसिंह मान ने कहा कि पीएम मोदी को इस मामले को प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि 40 दिन के आंदोलन में 50 से ज्यादा किसान मर चुके हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को तीनों कृषि कानूनों रद्द करके एमएसपी की गारंटी की बात मान लेनी चाहिए।
संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर खाप 40 सांगवान के सचिव नरसिंह डीपीई, खाप फौगाट के प्रधान बलवंत नंबरदार, खाप 25 श्योराण सर्वजातीय के प्रधान बिजेंद्र बेरला, भारतीय किसान यूनियन के प्रधान जगबीर घसोला, चौधरी छोटूराम और अम्बेडकर मंच के संयोजक गंगाराम श्योराण, किसान सभा के करतार ग्रेवाल, जाटू खाप के मास्टर राजसिंह, सेवानिवृत्त कर्मचारी संघ के सज्जन सिंगला के संयुक्त संयोजन में दिए जा रहे अनिश्चित कालीन धरने के ग्यारहवें दिन भी टोल फ्री रहा। इस मौके पर सुरेंद्र परमार, नरेंद्र फरटिया, व्यापार मंडल के देवराज मेहता, प्रेम धमीजा, साहिल मंगू मौजूद थे।
महिलाएं भी पहुंची धरने पर
झज्जर (हप्र) : कृषि अध्यादेशों को लेकर किसान आंदोलन का रुख बदलने के लिए महिलाएं ट्रैक्टर का स्टीयरिंग अपने हाथों में थामकर टिकरी बॉर्डर पहुंची हैं। इन महिलाओं का कहना है कि कॉर्पोरेट और नेताओं को अब तक भी नहीं पता कि किसानी होती क्या है। वह आंदोलन के मैदान में सड़क पर इसलिए डटीं हैं, क्योंकि किसानी व खेती को लेकर अन्नदाता के साथ केवल और केवल अन्याय किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पहले युवा किसानों ने बैरिकेट तोड़कर किसाना आंदोलन को आगे बढ़ाया था, लेकिन अब वह इन बैरिकेट को तोड़कर आगे बढ़ेंगी। उन्होंने कहा कि वे भी कानून वापस होने तक धरने पर बैठी रहेंगी।