नवीन पांचाल/हप्र
गुरुग्राम, 18 सितंबर
ऋण भुगतान नहीं करने की स्थिति में बिल्डर के रियल एस्टेट प्रोजेक्ट को टेकओवर करने वाले वित्तीय संस्थान अब निवेशकों या खरीदारों के हितों को अनदेखा नहीं कर सकेंगे। प्रोजेक्ट टेकओवर करने की स्थिति में वित्तीय संस्थानों को निवेशकों या खरीददारों के प्रति जवाबदेह होना पड़ेगा। इसी तरह के एक ऐतिहासिक फैसले में सुपरटेक के ह्यूज नामक प्रोजेक्ट को वित्तीय पोषण करने वाली संस्था को निर्देश दिए गए हैं कि प्रोजेक्ट की यूनिट्स को बेचकर धनराशि की वसूली करें, लेकिन इसमें अलाॅटीज को अनदेखा न किया जाए।
हरियाणा रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (हरेरा) की गुरुग्राम बैंच ने यह फैसला दीपक चौधरी बनाम मैसर्स पीएनबी हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड के मामले में सुनाया है। इस मामले में सुपरटेक लिमिटेड प्रमोटर की भूमिका में थी, जिसे सरकार ने लाइसेंस नहीं दिया था और न ही वह कोलोब्रेटर था। सुपरटेक लिमिटेड ने पीएनबी फाइनेंस लिमिटेड से सुपरटेक ह्यूज नामक प्रोजेक्ट के निर्माण के लिए ऋण लिया था, जिसमें मैसर्स सर्व रियलटर प्राइवेट लिमिटेड (प्रोजेक्ट का लाइसेंस होल्डर) हिस्सेदार थी। सुपरटेक ऋण की वापसी करने में नाकाम रही और डिफाल्टर हो गयी। बैंक ने प्रोजेक्ट को टेकओवर करके ई-ऑक्शन पर डाल दिया। दीपक चौधरी की याचिका पर हरेरा ने प्रोजेक्ट की ई-ऑक्शन प्रक्रिया पर स्टे जारी कर दिया, क्योंकि नीलामी के लिए अथॉरिटी की पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी। ऐसे में नीलामी से इस प्रोजेक्ट में शामिल 950 अलाॅटियों के हितों का कुठाराघात होता। इन अलाॅटीज ने प्रोजेक्ट में 328 करोड़ रुपये से अधिक निवेश कर रखा है। अब फैसले में हरेरा ने कहा है कि वित्तीय संस्था की ओर से प्रोजेक्ट की प्रगति का आकलन तथा माॅनीटरिंग में जो कमी रही, उसका खामियाजा अलाॅटी नहीं भुगतेंगे। बैंक अपने ऋण की वसूली के लिए प्रोजेक्ट की नीलामी कर सकता है, लेकिन इस प्रक्रिया में अलाॅटीज के हितों की रक्षा करनी होगी।
पहली बार तय की जिम्मेदारी
इस निर्णय से हरेरा गुरुग्राम बैंच ने पहली बार यह निर्धारित किया कि वित्तीय संस्थान (जिनके पास संपत्ति गिरवी है या जिसने टेकओवर किया है) वह भी प्रमोटर की परिभाषा में आएगा और उसकी देनदारी की वही जिम्मेवारी बनी रहेगी, जो मूल रूप से पहले प्रोमेटर अथवा बिल्डर की थी। नीलामी की स्थिति में वित्तीय संस्थान को सारे एसेट्स घोषित करने होंगे तथा अथॉरिटी से अनुमति भी लेनी होगी। साथ ही, वित्तीय संस्थान यह सुनिश्चित करेंगे कि अलाॅटीज से प्राप्त 70 प्रतिशत राशि का प्रयोग प्रोजेक्ट को पूरा करने पर खर्च हो। यदि यह पाया गया कि कोई वित्तीय संस्थान प्राधिकरण के अनुमोदन के बिना परियोजना को नीलाम करने में शामिल है तो इसे गंभीरता से लिया जाएगा तथा उस देनदार प्रोमोटर व वित्तीय संस्थान के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
“रियल एस्टेट रेगुलेटरी एक्ट में बिल्डर्स के साथ खरीदारों के हितों की रक्षा करना भी समाहित है। हरेरा वित्तीय संस्थान द्वारा प्रोजेक्ट की नीलामी के विरोध में नहीं है, लेकिन इसमें अलाॅटीज व निवेशकों की अनदेखी नहीं होने दी जाएगी। गुरुग्राम बैंच का यह फैसला ऐतिहासिक इसलिए है कि वित्तीय संस्थान द्वारा टेकओवर करने के बाद खरीदारों को अपने हितों के लिए अलग से लड़ाई लड़नी पड़ती थी। अब वित्तीय संस्थान भी प्रमोटर की परिभाषा में आ जाएंगे।
-केके खंडेलवाल, चेयरमैन हरेरा, गुरुग्राम बेंच