नवीन पांचाल/हप्र
गुरुग्राम, 9 अगस्त
टुकड़ों में जमीन की रजिस्ट्री करने में बेशक एफआईआर नायब व तहसीलदारों के खिलाफ दर्ज हुई है लेकिन कानूनी कार्रवाई के लपेटे में पटवारी व राजस्व विभाग के दूसरे अफसर भी आएंगे। पटवारियों द्वारा जमाबंदी व दूसरे माध्यमों से पेश की गई फर्जी रिपोर्ट की जमीनी सच्चाई खंगालने का कार्य किया जा रहा है। इसके बाद दूसरे राजस्व कर्मियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।
गलत तरीके से जमीन की टुकड़ों में रजिस्ट्री करने के मामले की जांच अभी जारी है। जांच में ऐसे तथ्य निकलकर सामने आ रहे हैं कि जिससे साफ हो जाता है कि राजस्व विभाग का पूरा सिस्टम पैसे के बूते पर चल रहा था। टुकड़े में रजिस्ट्री पर किसी तरह की अंगुली न उठाई जा सके इसके लिए पटवारी व गिरदावर से गलत रिपोर्ट तैयार करने से लेकर रजिस्ट्री की म्यूटेशन दर्ज करवाने तक का खेल पूरी तरह से प्रायोजित होता था।
सरकार बेशक दावा करती रही हो लेकिन रजिस्ट्री के बाद म्यूटेशन कभी स्वतः दर्ज नहीं किया जा सका। रजिस्ट्री के बाद क्रेता को गिरदावर के चक्कर लगाने पड़ते थे इसके बाद भी बिना तय सुविधा शुल्क लिए म्यूटेशन दर्ज नहीं किया जाता। सूत्र बताते हैं कि पटवारियों ने ऐसे अनेक कारनामे कर रखे हैं जिनसे इसकी पुष्टि होती है कि तहसीलों में भ्रष्टाचार जड़ों तक रमा हुआ था। किसी पटवारी ने समतल जगह पर मकान बने होने की झूठी रिपोर्ट दे रखी है तो किसी ने हिस्से की गलत रिपोर्ट दे दी। रजिस्ट्री वाले साॅफ्टवेयर में आयुद्ध भंडार के प्रतिबंधित दायरे की जमीन के नंबर भी दर्ज हैं। यानि जो नंबर दर्ज हैं वहां किसी भी प्रकार से रजिस्ट्री नहीं हो सकती थी लेकिन सैंकड़ों रजिस्ट्रियां ऐसी मिली हैं जो गलत तरीके से दर्ज की गई। इनकी संख्या जांच के आगे बढ़ने के साथ बढ़ने की बात कही जा रही है।
मामले की जांच से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, ‘रजिस्ट्री से संबंधित दस्तावेजों में दर्ज तथ्यों की जांच करने की जिम्मेदारी रजिस्ट्री क्लर्क यानि आरसी की होती है लेकिन नियमों के खिलाफ हुई रजिस्ट्रियों की संख्या को देखकर लगता है आरसी ने या तो अपनी भूमिका जिम्मेदारी से निभाई नहीं या अपने लाभ के लिए नियमों को दरकिनार कर दिया।’ सूत्र बताते हैं कि पटवारी, गिरदावर, कम्प्यूटर आॅपरेटर, रजिस्ट्री कलर्क व आॅडिटर्स के खिलाफ भी शीघ्र कार्रवाई की तैयारी है।
वर्षों से लटके काम घंटों में हो गये
राजस्व विभाग के अधिकारियों पर सरकार की नजरें जरा टेढ़ी क्या हुई लोगों के वर्षों से अटके पड़े काम चंद घंटों में होने शुरू हो गए। सुरेंद्र सिंह का कहना है कि उनकी दो म्यूटेशन करीब 11 महीने से लटकी पड़ी थी। कभी गिरदावर नहीं मिलता था तो कभी कोई मामूली आॅब्जेक्शन लगाकर फाइल फिर से पढ़ने की बात कहकर इसे लटका दिया जाता। वह बताते हैं शुक्रवार को गिरदावर के पास पहुंचे तो दो दिन पहले ही तारीख में म्यूटेशन दर्ज की गई प्रतियां उसे थमा दी।